Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

ओपेक क्यों नहीं घटा रहा कच्चे तेल के आसमान छूते दाम?

ओपेक क्यों नहीं घटा रहा कच्चे तेल के आसमान छूते दाम?

BBC Hindi

, गुरुवार, 5 मई 2022 (07:38 IST)
दुनियाभर में तेल के दामों को कम करने की मांग के बीच दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक देशों की पाँच मई को मिलने वाले हैं। लेकिन तेल उत्पादक देशों का समूह ओपेक प्लस फ़िलहाल मदद करने की जल्दबाज़ी में नहीं है। ओपेक प्लस देशों में रूस भी शामिल है।
 
ओपेक प्लस क्या है?
23 तेल निर्यातक देशों के समूह को ओपेक प्लस कहा जाता है। हर महीने विएना में ओपेक प्लस देशों की बैठक होती है। इस बैठक में ये निर्णय किया जाता है कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कितना कच्चा तेल देना है।
 
इस समूह के मूल में ओपेक (ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ़ ऑयल एक्सपोर्टिंग कंट्रीज़) के 13 सदस्य हैं, जिनमें मुख्य तौर पर मध्य पूर्वी और अफ़्रीकी देश हैं। इसका गठन सन 1960 में उत्पादक संघ के तौर पर हुआ था। इसका मक़सद दुनियाभर में तेल की आपूर्ति और उसकी कीमतें निर्धारित करना था।
 
साल 2016 में, जब तेल की कीमतें कम थीं, ओपेक ने 10 गैर-ओपेक तेल उत्पादक देशों के साथ मिलकर ओपेक प्लस बनाया। इनमें रूस भी शामिल है, जो हर दिन करीब 1 करोड़ बैरल तेल का उत्पादन करता है। दुनिया भर के कुल कच्चे तेल का तकरीबन 40 फ़ीसदी हिस्से का उत्पादन ये सब देश मिलकर करते हैं।
 
एनर्जी इंस्टीट्यूट की केट दूरियान कहती हैं, "ओपेक प्लस बाज़ार को संतुलित रखने के लिए तेल की आपूर्ति और उसकी मांग को अनुकूल बनाता है। जब तेल की मांग में गिरावट आती है तो वे आपूर्ति कम कर के इसकी कीमतें ऊंची रखते हैं।"
 
ओपेक प्लस बाज़ार में अतिरिक्त तेल देकर इसकी कीमतें कम भी कर सकते हैं, जो कि अमेरिका, ब्रिटेन से बड़े आयातक देश इससे उम्मीद भी करते हैं।
 
तेल की कीमतें इतनी कैसे बढ़ गईं?
बीते साल मार्च से मई के बीच जब कोरोना तेज़ी से फैल रहा था और जगह-जगह लॉकडाउन लगाए जा रहे थे, तब ख़रीदारों की कमी की वजह से कच्चे तेल के दाम बहुत गिर गए थे।
 
दूरियान कहती हैं, "उस समय उत्पादक लोगों को पैसे देकर तेल बेच रहे थे क्योंकि उनके पास इसे स्टोर करने के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी।"
 
इसके बाद ओपेक प्लस सदस्यों के बीच हर दिन 1 करोड़ बैरल तेल का उत्पादन घटाने पर सहमति बनी ताकि दाम पहले जैसे हो सके।
 
2021 के जून में जब कच्चे तेल की मांग दोबारा बढ़ने लगी तो ओपेक प्लस ने हर दिन वैश्विक बाज़ार में 4 लाख बैरल तेल देकर आपूर्ति भी धीरे-धीरे बढ़ानी शुरू कर दी। अब 25 लाख बैरल प्रति दिन तेल आपूर्ति की जा रही है जो कि 2020 के मार्च से मई महीने की तुलना में कम हैं।
 
हालांकि, जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो कच्चे तेल के दाम 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गए। इससे पेट्रोल पंपों पर भी तेल के दामों में भारी उछाल आया।
 
अर्गुस मीडिया में मुख्य अर्थशास्त्री डेविड फ़ाइफ़ कहते हैं, "मई 2020 में जब ओपेक प्लस ने 1 करोड़ बैरल प्रति दिन आपूर्ति घटाई, तो ये बहुत ज़्यादा गिरावट थी।"
 
उन्होंने कहा, "अब वो धीमी गति से आपूर्ति बढ़ा रहे हैं, जिसपर रूस-यूक्रेन संकट का असर नहीं दिख रहा।"
 
फ़ाइफ़ कहते हैं कि सभी तेल खरीदारों को ये डर है कि यूरोपीय संघ यानी ईयू भी अमेरिका की राह पर चलते हुए रूस से तेल आयात पर रोक लगा देगा। मौजूदा समय में यूरोप एक दिन में रूस से 25 लाख बैरल कच्चा तेल खरीद रहा है।
 
ओपेक प्लस तेल के उत्पादन को क्यों नहीं बढ़ाएगा?
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने बार-बार सऊदी अरब से तेल का उत्पादन बढ़ाने की अपील की लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ।
 
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने भी सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात से उत्पादन बढ़ान की अपील की लेकिन इससे भी कुछ हासिल नहीं हुआ।
 
केट दूरियान कहती हैं, "सऊदी और यूएई दोनों के पास अतिरिक्त क्षमता है लेकिन वे उत्पादन बढ़ाने से ख़ुद ही इनकार कर रहे हैं। वो नहीं चाहते कि पश्चिम उनपर अपने आदेश थोपे।"
 
"वो कह रहे हैं कि आपूर्ति और मांग के बीच फ़ासला कम होता जा रहा है और अब तेल के ऊंचे दाम खरीदारों के मन में मौजूद डर को दिखा रहा है।"
 
ओपेक प्लस में शामिल अन्य देशों को भी तेल का उत्पादन बढ़ाने में मुश्किलें आ रही हैं।
 
डेविड फ़ाइफ़ कहते हैं, "नाइजीरिया और अंगोला जैसे उत्पादक देश मिलकर भी तय कोटे से कम तेल उत्पादन कर रहे हैं। दोनों मिलकर बीते एक साल से हर रोज़ 10 लाख बैरल तेल ही उत्पादित कर रहे हैं।"
 
"महामारी के दौरान निवेश भी घटा और कुछ मामलों में तो तेल उत्पादन संयंत्रों के रखरखाव में भी कमी देखी गई। अब इन संयंत्रों की क्षमता के अनुसार तेल उत्पादन नहीं हो पा रहा है।"
 
रूस का रुख क्या है?
ओपेक प्लस को समूह के दो सबसे बड़े सहयोगियों में से एक रूस की इच्छाओं का भी सम्मान करना पड़ता है।
 
क्रिस्टल एनर्जी की सीईओ कैरोल नखल कहती हैं, "तेल के दाम इस स्तर तक पहुंचने से रूसी खुश हैं। कीमतें घटने से उन्हें कोई फ़ायदा नहीं दिख रहा है।"
 
"ओपेक रूस के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता है ताकि बीते साल हुए समझौते जारी रहें। इसका मतलब है कि कच्चे तेल की आपूर्ति अब से लेकर सितंबर महीने तक बहुत धीरे-धीरे बढ़ेगी।"

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

मोदी की जर्मनी यात्रा के बारे में जर्मन अखबारों ने क्या छापा?