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लैटिन अमेरिका में पांव पसारती चीनी करेंसी युआन, क्यों पिछड़ रहा है डॉलर?

BBC Hindi
शुक्रवार, 26 मई 2023 (07:44 IST)
गेरार्डो लिसार्डी, बीबीसी न्यूज़ संवाददाता
 
लातिनी अमेरिका के कुछ मुल्कों में कारों या घरेलू उपकरणों की बिक्री में ये साफ़ तौर पर नहीं दिखेगा, लेकिन सच ये है कि चीन की मुद्रा युआन लातिन अमेरिका की अर्थव्यवस्था में धीरे-धीरे अपनी जगह बना रही है। लातिन अमेरिका में चीन अपनी मुद्रा युआन को अमेरिकी डॉलर के विकल्प के तौर पर प्रमोट कर रहा है।
 
हाल के दिनों में ब्राज़ील में विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में दूसरे स्थान पर रहे यूरो की जगह युआन ने ले ली। इसके बाद वहां की सरकार ने चीन के साथ एक समझौता करने की घोषणा की जिसके तहत दोनों देश अब आपसी व्यापार डॉलर की बजाय एकदूसरे की मुद्रा में करेंगे।
 
लैटिन अमेरिका की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में आए इस बदलाव के बाद अब बोलिविया के राष्ट्रपति लुइस एर्स ने कहा है कि ये एक तरह की क्षेत्रीय ट्रेंड बनता जा रहा है जिसमें उनका मुल्क भी शामिल हो सकता है।
 
इसी साल 10 मई को हुई एक प्रेस वार्ता में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए युआन के इस्तेमाल की हिमायत की।
 
उन्होंने कहा, "इस क्षेत्र की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाएं चीन के साथ समझौता कर चुकी हैं और उसके साथ युआन में विदेशी व्यापार कर रही हैं। ये इस क्षेत्र में ट्रेंड बनता जा रहा है। लातिन अमेरिका के देशों में हमेशा से अमेरिका का ज़्यादा प्रभाव रहा है... लेकिन अब कई देश चीन की मुद्रा में अधिक व्यापार कर रहे हैं। चीज़ें बदल रही हैं।"
 
लेकिन जानकार मानते हैं कि अमेरिका के साथ बढ़ते तनाव के बीच चीन अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अपनी मुद्रा को अधिक बढ़ावा देना चाहता है और लैटिन अमेरिकी मुल्कों का उसके साथ युआन में व्यापार करना इसी की झलक है।
 
चीन की रणनीति
वॉशिंगटन में मौजूद थिंक टैंक विल्सन सेंटर के इंटर-अमेरिकन डायलॉग में एशिया एंड लैटिन अमेरिका प्रोग्राम की निदेशिका मार्गरेट मायर्स के अनुसार, "अलग-अलग बाज़ारों में अपनी मुद्रा का इस्तेमाल बढ़ाने के लिए चीन कई तरह के तरीकों का इस्तेमाल कर रहा है। ये केवल ब्राज़ील और अर्जेंन्टीना में हुआ मामला नहीं है बल्कि एक क्षेत्रीय घटना है।"
 
हालांकि वो आगाह करती हैं कि अभी ये देखना होगा कि चीन की ये मुद्रा दुनिया के इस हिस्से में किस हद तक अपने पैर पसार सकती है।
 
बीते एक दशक में लैटिन अमेरिका के कुछ मुल्कों के साथ अपने व्यापारिक रिश्ते बढ़ाने और कुछ को आर्थिक मदद देने के बाद से चीन की कोशिश रही है कि यहां उसकी मुद्रा का इस्तेमाल बढ़े।
 
2015 में चीनी अधिकारियों ने चिली के साथ निवेश और करेंसी एक्सचेंज से जुड़ा एक समझौता किया। इसके तहत चीन ने युआन में व्यापार करने के लिए सहूलियत के लिए लातिन अमेरिका के इस देश में बैंक खोला।
 
इसके कुछ महीनों बाद उसने अर्जेन्टीना के साथ समझौता किया और आधिकारिक तौर पर द्विपक्षीय व्यापार के लिए युआन के इस्तेमाल के लिए वहां बैंक खोला। इन ख़ास बैंकों को क्लीयरिंग हाउस कहा जाता है।
 
आम तौर पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार में पहले एक देश की मुद्रा को डॉलर में बदला जाता है, उसमें व्यापार होता है, जिसके बाद डॉलर को फिर से दूसरे देश की मुद्रा में बदला जाता है। लेकिन चीन की ये संस्थाएं डॉलर के इस्तेमाल के बिना, सीधे-सीधे स्थानीय मुद्रा और युआन में अंतरराष्ट्रीय लेनदेन को बढ़ावा देती हैं।
 
युआन में लेनदेन बढ़ाने के इरादे से चीन दूसरे इलाक़ों में भी इसी तरह के समझौते कर रहा है। इसी साल फरवरी में चीन ने लातिन अमेरिका में अपने सबसे बड़े व्यापार सहयोगी ब्राज़ील के साथ समझौता किया। साल 2022 में ब्राज़ील के साथ उसका द्विपक्षीय व्यापार रिकॉर्ड 150 अरब डॉलर तक पहुंच गया था।
 
इसी साल अप्रैल में ब्राज़ील ने चीन के साथ युआन में अपना पहला द्विपक्षीय व्यापार पूरा किया। चीन के इंडस्ट्रियल एंड कॉमर्शियल बैंक ने इसमें अहम भूमिका निभाई जो ब्राज़ीली व्यापारियों को ये भरोसा देता है कि युआन में होने वाले हर व्यापार के मामले में भुगतान तुरंत ब्राज़ील की मुद्रा रियाल में किया जाएगा।
 
बढ़ रही चीनी मुद्रा का इस्तेमाल
विदेशी व्यापार मामलों के पूर्व ब्राज़ीलियाई मंत्री वेल्बर बर्राल कहते हैं कि अगर बड़ी मात्रा में व्यापार हो और इस तरीके से लेनदेन हो तो युआन का इस्तेमाल काफी सहज हो जाता है, क्योंकि इससे डॉलर में कन्वर्ट करने की ज़रूरत नहीं रहती।
 
बर्राल ने कहा, "ये चीन की रणनीति है कि मुल्क उसकी मुद्रा को आसानी से कन्वर्ट कर सकें और उसका इस्तेमाल बढ़े।"
 
हालांकि वो ये भी कहते हैं कि ब्राज़ील के साथ होने वाला चीन का 90 फ़ीसदी व्यापार अभी भी डॉलर में ही होता है। हो सकता है कि दोनों के बीच समझौतों से आने वाले वक्त में युआन के ज़रिए होने वाला व्यापार बढ़े और ब्राज़ील के विदेशी भंडार में डॉलर के बाद दूसरे नंबर पर युआन जगह बना ले, लेकिन फिलहाल स्थिति ऐसी नहीं है।
 
बीते साल दिसंबर में ब्राज़ील के विदेशी मुद्रा भंडार में अमेरिकी डॉलर की जगह 80 फ़ीसदी से अधिक थी जबकि युआन मात्र 6 फ़ीसदी से आसपास रहा था।
 
अर्जेन्टीना और चीन के बीच पांच अरब डॉलर के बराबर मूल्य के एक्सचेंज से जुड़ा समझौता होने के बाद अर्जेन्टीना के उर्जा मंत्री सर्जियो मास्सा ने अप्रैल में घोषणा की कि चीन से होने वाले आयात के लिए वो डॉलर में भुगतान करने की बजाय युआन में करेंगे।
 
अर्जेन्टीना ने कहा कि एक हिसाब से केवल मई के महीने में चीन से होने वाले 1।04 अरब डॉलर के बराबर का व्यापार उसकी कंपनियां युआन के ज़रिए करेंगी। इसमें इलेक्ट्रोनिक्स से लेकर गाड़ियों का सामान शामिल है। वहीं अमेरिका के साथ अर्जेन्टीना का व्यापार अब तक औसतन 79 करोड़ डॉलर महीना रहा है।
 
चीन से साथ हुए समझौतों की मदद से अर्जेन्टीना सरकार की कोशिश है कि वो अपने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा भंडार को स्थिर कर सके, जो आर्थिक मुश्किलों के कारण लगातार गिर रहा है। अर्जेन्टीना के केंद्रीय बैंक को लगातार गिर रही देश की मुद्रा पेसो को स्थिर करने के लिए एक्सचेंज बाज़ार में डॉलर तक बेचना पड़ा है।
 
बोलिविया भी फिलहाल इसी तरह की स्थिति से जूझ रहा है, उसका अंतरराष्ट्रीय मुद्रा भंडार गिर रहा है और डॉलर में व्यापार उसके लिए मुश्किल होता जा रहा है।
 
बोलिविया राष्ट्रपति लुइस एर्स ने कहा है कि अर्जेन्टीना, ब्राज़ीर और चीन के बीच युआन में आपसी व्यापार से इस मुश्किल का हल निकल सकता है।
 
'युआन या डॉलर-कौन करेगा फ़ैसला?'
हालांकि इस पूरे खेल में भू-राजनीतिक कारण भी अहम किरदार निभाते हैं। जानकार मानते हैं कि चीन अपनी तेज़ी से मुद्रा का विस्तार चाहता है और केवल इसके ज़रिए द्विपक्षीय व्यापार को ही बढ़ावा नहीं दे रहा है बल्कि वो दशकों से चली आ रही डॉलर की मज़बूती को भी चुनौती देने की कोशिश कर रहा है।
 
और यूक्रेन पर हमला करने के कारण रूस पर पश्चिमी देशों ने जो प्रतिबंध लगाए हैं, उससे चीन को अपनी मुद्रा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ाने में काफी मदद मिल रही है।
 
इस साल यानी 2022 में रूस के साथ हुए चीन के व्यापार में युआन अमेरिकी डॉलर को पछाड़ कर आगे निकल गया। 2022 में रूस से हुए निर्यात का 23 फ़ीसदी लेनदेन युआन में हुआ।
 
और रही चीन की बात तो, इस साल मार्च में उसने पहली बार अपने अंतरराष्ट्रीय लेनदेन में डॉलर के मुक़ाबले युआन से अधिक भुगतान किया। हालांकि वैश्विक व्यापार में उसकी मुद्रा की हिस्सेदारी केवल 5 फ़ीसदी है।
 
हाल के दिनों में यहां के दक्षिणी हिस्सों से इसके कुछ संकेत भी मिल रहे हैं। अर्जेन्टीना सरकार ने बीते महीने घोषणा की कि लगातार घट रहे अपने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा भंडार को देखते हुए चीन के साथ हो रहे अपने व्यापार में वो भुगतान डॉलर में नहीं बल्कि चीनी मुद्रा में करेगी।
 
कुछ जानकार मानते हैं कि डॉलर पर निर्भरता कम कर चीन आने वाले वक्त में इससे जुड़े जोखिम से खुद को बचाना चाहता है।
 
चीन ने हाल के दिनों में युआन के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए पाकिस्तान से लेकर फ्रांस तक कंपनियों के साथ समझौते किए हैं। उसने अपनी अलग डिजिटल करेंसी लॉन्च की है जो अंतरराष्ट्रीय लेनदेन में ग्लोबल इंटरबैंक मैसेजिंग नेटवर्क (स्विफ्ट) का विकल्प बनेगा।
 
वहीं लैटिन अमेरिका के मुल्क भी अब व्यापार में डॉलर को प्राथमिता देने को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं।
 
ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुई इनासियो लूला डी सिल्वा ने इसी साल सुझाव दिया था कि ब्रिक्स देश (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्ऱीका) आपसी व्यापार के लिए डॉलर से हट कर किसी और मुद्रा पर विचार कर सकते हैं।
 
अप्रैल में चीन के दौरे पर गए लूला डी सिल्वा ने सवाल किया था, "अंतरराष्ट्रीय मानक के रूप में सोने के बाद किसने तय किया कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए मुद्रा के रूप में डॉलर का ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए? हमें ऐसी मुद्रा चाहिए जो हमारे लिए बेहतरी और स्थिरता लेकर आए क्योंकि आज निर्यात करने के लिए मुल्कों को एक तरह से डॉलर के पीछे भागना पड़ रहा है।"
 
लेकिन जानकार मानते हैं कि मुश्किल ये है कि डॉलर को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में लेनदेन के लिए सुरक्षित मुद्रा माना जाता है और इस मामले में युआन इसके साथ तब तक मुक़ाबला नहीं कर सकेगी जब तक चीन खुद पूंजी से जुड़े अपने प्रतिबंधों में ढील नहीं देता।
 
मार्गरेट मायर्स कहती हैं कि ब्राज़ील और अर्जेन्टीना के चीन के साथ समझौतों के बावजूद आने वाले वक्त में लातिन अमेरिका में युआन के इस्तेमाल में तेज़ी से उछाल दिखेगा ऐसा नहीं लगता।
 
वो कहती हैं, "युआन के इस्तेमाल में बढ़ोतरी ज़रूर दिखेगी और चीन भी इसके लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाएगा। लेकिन वैश्विक मुद्रा के रूप में इसका इस्तमाल किस हद तक हो सकता है ये चीन के आंतरिक सुधारों पर और इस बात पर निर्भर करता है कि वो अपने वित्त बाज़ार को कितना खोल पाता है। ये होने वाला नहीं लगता।"

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