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ताइवान को आंख दिखाकर आखिर चीन क्या हासिल करना चाहता है?

ताइवान को आंख दिखाकर आखिर चीन क्या हासिल करना चाहता है?

BBC Hindi

, शनिवार, 25 मई 2024 (08:00 IST)
रुपर्ट विंगफ़ील्ड-हेयेस, बीबीसी न्यूज़, ताइपेई
ताइवान के चारों तरफ़ आसमान और समंदर में चीन ने दो दिनों तक मिलिट्री ड्रिल करके ये दिखाया है कि उसकी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी जहाज़ों और लड़ाकू विमानों से कैसे इस द्वीप की घेराबंदी कर सकती है।
 
चीन के लिए ये एक रिहर्सल की तरह था। चीन ने एक बार ये दिखाया कि वो ताइवान को कैसे अपने दखल में लेगा। ऐसा करने कि वो बार-बार कसमें खाता रहा है। ताइवान स्ट्रेट (ताइवान की खाड़ी) में चीन ने पहले ही ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं जिसे 'न्यू नॉर्मल' कहा जा सकता है। अपनी सरकार खुद चलाने वाले ताइवान पर चीन ने आहिस्ता-आहिस्ता मिलिट्री प्रेशर बढ़ाना शुरू कर दिया है।
 
ताइवान पर दबाव बढ़ाने के लिए चीन पहले भी मिलिट्री ड्रिल करता रहा है तो ऐसे इस बार क्या अलग है? और चीन के इस मिलिट्री ड्रिल से किन बातों को अंदाज़ा मिलता है?
 
प्रचार बनाम वास्तविकता
ये कहना मुश्किल है कि वास्तव में क्या चल रहा है लेकिन अभी तक चीन ने जो जानकारियां सार्वजनिक तौर पर दी हैं, उससे ये तो पता चलता है कि चीन के ताज़ा मिलिट्री ड्रिल में जिन इलाकों को शामिल किया गया है, उस लिहाज से ये शायद अब तक का सबसे बड़ा मिलिट्री ड्रिल है।
 
इसमें ताइवान की खाड़ी का ज़्यादातर हिस्सा शामिल था। ताइवान के पूर्वी तट से लगने वाले प्रशांत महासागर का बड़ा हिस्सा और ताइवान और फिलिपींस को एक दूसरे से अलग करने बाशी चैनल सब इस मिलिट्री ड्रिल की जद में आ गए थे।
 
ताइवान के मिलिट्री एक्सपर्ट चीएह चुंग कहते हैं कि गुरुवार के ड्रिल में ताइवान की घेराबंदी पर फोकस था। ज़मीनी सैनिक भेजने को छोड़ दें तो ये एक व्यापक हमले की तैयारी थी।
 
उनकी राय में ताइवान के आस-पास के सभी द्वीपों को इस मिलिट्री ड्रिल में शामिल करने से ऐसा लगता है कि चीन की योजना उन सभी ठिकानों को नेस्तनाबूद करने की है जहां से पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के ख़िलाफ़ जवाबी हमला किया जा सकता है।
 
चीएह चुंग को ये भी लगता है कि दो दिनों तक चला ये मिलिट्री इस बरस का कोई आख़िरी सैन्य अभ्यास नहीं रहने वाला है जिसे ताइवान को सहना होगा। इसीलिए चीन ने इस मिलिट्री ड्रिल का नाम 'ज्वॉयंट स्वोर्ड 2024-ए' रखा है। शुक्रवार को जारी किए वीडियो फुटेज से ये पता चलता है कि पीएलए ताइवान के प्रमुख शहरों और बंदरगाहों पर हमले का अभ्यास कर रहा है।
 
पीएलए के पूर्वी कमान ने एक नाटकीय वीडियो जारी किया है जिसमें देखा जा सकता है कि जहाज़ों का बेड़ा ताइवान की ओर बढ़ रहा है। साथ ही इस वीडियो में 'आगे बढ़ो', 'घेर लो', 'लॉक कर दो' जैसे शब्द सुने जा सकते हैं।
इसके बाद पूरे ताइवान को ऑरेंज कलर में हाईलाइट कर दिया गया है जिसका मतलब टोटल कंट्रोल से निकाला जा रहा है।
 
चीन ने एक और वीडियो जारी किया है जिसमें पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के एक कर्नल बेहद सियासी जुबान में इस मिलिट्री ड्रिल के मक़सद के बारे में बता रहे हैं।
 
वे कहते हैं, "जैसा कि हम देख सकते हैं कि हमने ताइवान के पूर्वी हिस्से के पास समंदर और आसमान में सैन्य अभ्यास के लिए दो जगहों को चिह्नित किया है। इसका मक़सद 'ताइवान इंडिपेंडेंस' के अलगाववादियों को भागने से रोकना और उनके कम्फर्ट ज़ोन को रोकना है।"
 
ताइवान का पूर्वी तट उसके मिलिट्री इंफ्रास्ट्रक्चर के लिहाज से अहम है। अमेरिका समेत ताइवान के सहयोगियों के लिए ये पूर्वी तट जापान के दक्षिणी द्वीपों से नज़दीकी के कारण भरोसेमंद री-सप्लाई रूट भी है। लेकिन ज़मीन पर हालात इतने आसान नहीं दिखते।
 
चीन की ओर से जारी किए गए एक वीडियो में उसके कोस्ट गार्ड के जहाज़ों को ताइवान के नियंत्रण वाले द्वीप 'वु-किउ' के तीन नॉटिकल मील के दायरे की तरफ़ बढ़ते हुए देखा जा सकता है। चीन के फुजियान प्रांत के तट के पास मौजूद इस छोटे से पथरीले द्वीप पर समुद्री पंछियों के बसेरे के साथ-साथ ताइवानी सैनिकों के एक छोटे से दस्ते का डेरा है।
 
गुरुवार को ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने बताया कि चीन के 49 लड़ाकू विमान, 19 नौसैनिक जहाज़ और कोस्ट गार्ड के सात जहाज़ ताइवान के सामुद्रिक क्षेत्र के क़रीब पहुंच गए थे। इस बेड़े में छोटे आकार के युद्ध पोत थे जिनसे हलके हथियार लाए जा सकते थे।
 
चीन के जहाज़ी बेड़े के बड़े युद्ध पोतों या विमान वाहक पोतों का कोई निशान नहीं था। हमले की सूरत में उसे इससे कहीं अधिक बड़े जहाज़ों की ज़रूरत पड़ेगी और वो भी बड़ी संख्या में। अतीत में ताइवान के करीब एक बड़ा हमला 1944 में जापान के ओकिनावा पर अमेरिकी आक्रमण था। उस अमेरिकी बेड़े में लगभग 300 नौसैनिक लड़ाके थे, जिनमें 11 युद्धपोत और सैकड़ों सैनिक थे।
 
चीन ताइवान के नए राष्ट्रपति को बिल्कुल पसंद नहीं करता
गुरुवार को मिलिट्री ड्रिल के अलावा चीन ने जमकर राष्ट्रपति लाई पर हमला किया है। विलियम लाई के ख़िलाफ़ चीनी मीडिया में एक मोर्चा खोल दिया गया है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने उन्हें 'घमंडी' और 'लापरवाह' बताया है। चीन के सरकारी टीवी चैनल ने कहा है कि विलियम लाई को 'इतिहास एक शर्म के खंभे पर टांगेगा।' चैनल ने उन पर द्वि-राष्ट्र सिंद्धात का समर्थन करने पर भी कड़ी निंदा की है।
 
विलियम लाई का अपराध ये है कि उन्होंने सोमवार को पदभार संभालने के बाद दिए भाषण में चीन को चीन कहकर पुकारा। चीन का कहना है कि ऐसा करके लाई ने अपना असली रंग दिखा दिया है। चीन को चीन कहकर उन्होंने बता दिया चीन और ताइवान दोनों अलग-अलग देश हैं। उनकी नज़र में ये अलगाववादी विचारधारा की स्वीकारोक्ति है।
 
जो चीन और ताइवान के बीच विवाद नहीं जानते उनके लिए ये सारी बातें अजीबोग़रीब लग सकती हैं। लेकिन दशकों से चीन और ताइवान ने 'चीन' की परिभाषा पर बहस की है और बहस इस बात पर भी रही है कि क्या ताइवान चीन का हिस्सा है?
 
ताइवान के कई स्कॉलर मानते हैं कि शब्दावली बहुत अहम चीज़ है और विलियम लाई ने उस ख़तरनाक रेखा को लांघ दिया है।
 
लेकिन बाक़ी लोगों का कहना है कि चीन तो पहले ही लाई का विरोध करने का मन बना चुका था और उनका भाषण तो बस एक बहाना था।
 
लेकिन एक बात पर सभी लोग इत्तफ़ाक रखते हैं और वो है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग चाहते हैं कि चीन ताइवान पर लगाम कस कर रखे। और ताइवान को लोगों को ये स्वीकार नहीं है।
 
अब यही सामान्य स्थिति होगी?
लेकिन ताइवान में लोग इससे अधिक हैरान नहीं हैं। उनके हिसाब से तो चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बारे में उन्हें ठीक से समझ है। जब लाई की डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी ने जनवरी में लगातार तीसरी बार राष्ट्रपति का चुनाव जीता तो कई लोग सोच रहे थे कि ना मालूम, चीन की इस पर क्या प्रतिक्रिया होगी।
 
उस वक्त लोगों का अंदाज़ा था कि लाई के पदभार संभालने के बाद ही चीन कोई प्रतिक्रिया पेश करेगा। अब लाई के पदभार संभालने के चार दिन बाद ये सब हो रहा है। मिलिट्री ड्रिल और चेतावनी शायद यही है चीन की प्रतिक्रिया।
 
मुख्य बात तो ये है चीनी प्रतिक्रिया काफ़ी तैयारी के बाद आई हुई लग रही है। दुनिया की कोई भी सेना आनन फानन में इतनी बड़ी मिलिट्री ड्रिल नहीं कर सकती। एक और बात ग़ौर करने वाली ये है कि चीनी सेना ने बार-बार समुद्र में मेडियन लाइन को पार किया है। मेडियन लाइन चीन और ताइवान के तट से लगभग 50 नॉटिकल माइल्स पर स्थित एक रेखा है जिसे दोनों के बीच अनौपचारिक सरहद कहा जाता है।
 
लेकिन चीन ने अब तक ताइवान के 24 मील की लाइन को ब्रीच नहीं किया है। अगर ये होता है तो इसे एक बड़ा उकसावा माना जा सकता है। ऐसा लगता है कि तमाम आक्रामकता के बावजूद चीन अब भी एहतियात बरत रहा है।
 
ताइपेई की सड़कों पर चीनी सैन्य अभ्यास के बारे में कोई ख़ास प्रतिक्रिया नहीं दिखी। कई लोग आपको बताएंगे कि उन्हें कोई ख़ौफ़ नहीं है। लेकिन ये पूरा सच नहीं है। चीन का पड़ोसी होना ऐसा ही है कि जैसा आप किसी भूकंप संभावित ज़ोन में हों। यानी ख़तरा हमेशा बना रहेगा।
 
ताइवान के इर्द-गिर्द चीनी ड्रिल का आकार बढ़ता रहेगा और ख़तरनाक होता जाएगा। इसलिए आपको इससे निपटने के लिए तैयारी तो करनी चाहिए। लेकिन आपको रोज़मर्रा की ज़िंदगी भी सुचारू रूप से चालू रखनी चाहिए।
 
ताइवान में सत्तारूढ़ और विपक्ष के बीच संसद में खूब गर्मागर्मी होती रहती है लेकिन चीनी के सैन्य अभ्यास ने देश की सभी दलों को एकजुट कर दिया है। विपक्षी दल केएमटी को चीन का हिमायती बताया जाता है। इस दल ने चीन से सावधानी बरतने की गुज़ारिश की है। केएमटी के लिए ये वो वक़्त नहीं है जब वे चीन के साथ दोस्ताना व्यवहार करते दिखें। पर यहाँ एक अजीब विडंबना भी है, जो ये बताती है कि चीन के कम्युनिस्ट नेता ताइवान को कितना कम समझते हैं।
 
चीन ने घोषणा की है कि सैन्य अभ्यास का मक़सद सिर्फ़ ताइवान की आज़ादी की हिमायत करने वाली ताक़तों को हराना है। लेकिन जितनी बार चीन ऐसी हरकतें करता है डीपीपी के लिए ताइवान में जन समर्थन बढ़ जाता है और चीन के प्रति दोस्ताना नीति अपनाने वाली केएमटी के समर्थन घट जाते हैं।
 
हाल ही में इसका सबूत भी देखने को मिला। महीनों तक चीन ताइवान के ख़िलाफ़ कोई न कोई क़दम उठाता रहा और फिर जनवरी में जब चुनाव हुए तो डीपीपी के नेता लाई को जीत हासिल हुई।
 
अगर चीन का उद्देश्य ताइवान की उन पार्टियों को डराना है जो चीन को चुनौती देना चाहती हैं तो फिलहाल ये होता नहीं दिख रहा, बल्कि हो इससे उलट रहा है।

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