Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

पश्चिम बंगाल: चुनावी राजनीति में धर्म का ‘तड़का’?

पश्चिम बंगाल: चुनावी राजनीति में धर्म का ‘तड़का’?
, मंगलवार, 30 अप्रैल 2019 (17:11 IST)
- नितिन श्रीवास्तव (कोलकाता से)
 
सूरज ढलने को है और पश्चिम बंगाल के चन्दननगर शहर में एक अजीब सी चहल-पहल है। हुगली नदी के किनारे बसा ये शांत और ख़ूबसूरत शहर भी इस नई क़िस्म की रौनक़ को देखने के लिए सड़कों पर उतर आया है।
 
 
क़रीब पाँच सौ लोगों के इस जुलूस में ज़्यादातर जवान पुरुष और महिलाएँ हैं। इसमें लाउडस्पीकर वाले ठेले भी चल रहे हैं। जुलूस में कुछ लोग तलवारबाज़ी के करतब दिखा रहे हैं, कुछ 'भारत माता की जय' के नारे लगा रहे हैं जबकि कुछ देशभक्ति के हिंदी गानों पर झूम रहे हैं।
 
 
जुलूस के सबसे आगे मिसाइलों और टैंकों की प्रतिकृतियाँ भी चल रही हैं और बीच-बीच में 'पाकिस्तान मुर्दाबाद...मुर्दाबाद-मुर्दाबाद' के नारे भी गूँजते हैं। इनके पीछे वाली गाड़ियों में हिंदू-देवी देवताओं की मूर्तियाँ भी जुलूस में साथ ले जाई जा रही हैं।
 
 
मज़हबी आधार पर लुभाने की कोशिश?
यह जूलूस शहर के स्ट्रैंड इलाक़े से गुज़र रहा है। पीछे चन्दननगर के पहले फ़्रांसीसी गवर्नर ड्यूप्ले का 18वीं सदी में बना आलीशान घर है। ज़्यादातर स्थानीय लोगों ने इस तरह का जुलूस कभी नहीं देखा और वे हैरान हैं कि ये तो चंद दिन पहले बीती रामनवमी पर निकली यात्रा का चार गुना है।
 
 
दिलचस्प बात ये भी है कि इस जुलूस के शुरुआत में हुगली लोकसभा सीट की भाजपा प्रत्याशी भी कुछ देर के लिए शामिल होकर प्रचार के लिए आगे बढ़ गईं हैं।
 
 
पास खड़े एक स्थानीय नागरिक, श्री रॉय से मैंने पूछा, ये सब है क्या? उन्होंने कहा, "पश्चिम बंगाल में चंद वर्षों से राजनीति की परिभाषा ही बदल गई है। लगभग सभी राजनीतिक दल विभिन्न मज़हब के लोगों को लुभाने में काफ़ी समय बिता रहे हैं।"
 
 
उनकी बात में कुछ तो दम लग रहा था। एक दिन पहले ही हम कोलकाता से डेढ़ घंटे दूर धूलागढ़ इलाक़े में गए थे जहाँ ज़्यादातर ज़री की कढ़ाई का काम होता है।
 
 
सांप्रदायिक तनाव
लगभग पाँच से दस गांवों में तृणमूल कांग्रेस के झंडे मिले और तस्वीरों में राज्य के कुछ प्रमुख मुस्लिम धर्मगुरुओं की ओर से लगाए गए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नागरिक अभिनंदन के दर्जनों बैनर भी दिखे।
 
 
इलाक़े में पहुँचने पर पता चला कि हिंदू-मुस्लिम आबादी लगभग बराबर है और दशकों से साथ में रहकर व्यवसाय कर रही थी। लेकिन 2016 के बाद से चीज़ें बदल चुकी है और इलाक़े में साम्प्रदायिक तनाव साफ़ देखने को मिलता है।
 
 
धूलागढ़ में दोनों समुदायों के बीच हिंसक झड़पें हुईं थी जिसमें हिंदुओं और मुसलमानों, दोनों के घर जले और दुकानें भी। यहां अधिकतर लोगों ने उस घटना के बारे में बात करने से मना कर दिया और हमसे आगे बढ़ जाने को कहा।
 
webdunia
आख़िरकार मुलाक़ात काशीनाथ मालया से हुई जो ज़री की कढ़ाई करके अपना पाँच सदस्यों का परिवार चलाते हैं। अपने घर के चबूतरे पर बैठे काशीनाथ ने हमसे बात की और अपना जला हुआ घर भी दिखाया।
 
 
उन्होंने कहा, "मुझे पता नहीं फ़साद की वजह क्या थी। एक भीड़ आई, दो-चार दुकानों को तोड़ा। जब हम कुछ समझ पाते लोगों ने हमारे घर को घेर लिया और हमें बाहर निकालकर पूरे घर में आग लगा दी। क़रीब चार-पाँच लाख का नुक़सान हुआ क्योंकि गहने, मोटरसाइकिल सब जला दिए। इससे पहले धूलागढ़ में ऐसा कभी नहीं हुआ।"
 
 
जिस दौरान हम काशीनाथ के घर पर थे गाँव में मीडिया के आने की ख़बर फैल गई। उनके घर के बाहर दर्जन भर लोगों की भीड़ जमा हो गई जिसमें अधिकांश मुस्लिम लोग थे। हमारे बाहर निकलते ही मोहम्मद नईम ने कहा, "अब चलकर हमारे भी जले हुए घर देख लीजिए। वहाँ भी नुक़सान कम नहीं हुआ है।"
 
गाँव के दूसरे छोर मुस्लिम परिवार मिले और उनका भी नुक़सान बराबर का हुआ था। लगभग सभी कह रह थे अब स्थिति सामान्य है, लेकिन दरअसल कुछ घंटे बिताने पर ऐसा कुछ भी नहीं लगा।
 
घटनाएं पहले भी थीं, चश्मा बदला है
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 2016 और 2017 के बीच पश्चिम बंगाल में साम्प्रदायिक हिंसा के मामले बढ़े हैं और उनमें घायल या मरने वालों की संख्या भी। अगर 2015 में 27 ऐसे मामले सामने आए थे तो 2017 में 58 ऐसे मामले दर्ज किए गए।
 
हालाँकि इन्हीं आँकड़ों से ही पता चलता है कि पश्चिम बंगाल में पहले भी साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाएं होती रही हैं। लेकिन पिछले वर्षों में पश्चिम बंगाल में राजनीति को धर्म के चश्मे से देखने का चलन बढ़ा है, क्योंकि साम्प्रदायिक तनाव के लगभग सभी मामलों के बाद उन पर राजनीति बढ़ी है।
 
कभी आरोप तृणमूल कांग्रेस पर लगे हैं तो कभी भारतीय जनता पार्टी पर तो कभी सीपीआई (एम) पर। 2017 में उत्तर चौबीस परगना में हिंसा की वजह रही सोशल मीडिया पर एक भड़काऊ फ़ेक तस्वीर।
 
'हमारा सब कुछ उजड़ गया'
बशीरहाट इलाक़े में हिंदुओं की भी दुकानें जलीं और मुसलमानों की भी। दंगे के एक दिन पहले तक महमूद के पिता की दवाई की दुकान में सब कुछ ठीक था। लेकिन एक गुस्साई हुई भीड़ आई जिसे ये पता था कि पूरे बाज़ार में सिर्फ़ एक ही दुकान के मालिक मुस्लिम हैं।
 
महमूद ने बताया, "उस दिन मैं परिवार के साथ ही था जब ख़बर आई कि हमारी दवाई की दुकान जला दी गई है। हमारा लाखों का नुक़सान हुआ, पापा का आधार कार्ड, ड्रग लाइसेंस, पैन कार्ड सब कुछ जलकर ख़ाक हो गया।"
 
बताते हुए महमूद भावुक हो चुके थे क्योंकि घटना के चौदह दिन बाद हार्ट अटैक से उनके पिता गुज़र गए और कुछ महीने बाद माँ की भी मौत हो गई। उन्होंने कहा, "हमारा तो सब कुछ उजड़ गया"।
 
हक़ीक़त यही है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान पश्चिम बंगाल में राजनीतिक दलों ने सभी धर्मों के पर्व-त्योहारों को अपना रंग पहनाने की कोशिश भी की है। कोलकाता में मुलाक़ात अली हैदर से हुई जो इसे नहीं मानते और ममता बनर्जी सरकार को शाबाशी देते हैं।
 
उन्होंने कहा, "जो भी यहाँ त्योहार होता है वो शांति से गुज़र जाता है। दूसरे राज्यों में देखते हैं तो कोई पर्व आता है तो दंगा हो जाता है, लेकिन पुलिस भी कंट्रोल नहीं करती। लेकिन यहाँ सरकार हिंदू-मुस्लिम का झगड़ा होने नहीं देती"।
 
इधर प्रदेश में अपनी पैठ बनाने को बेक़रार भारतीय जनता पार्टी ने अगर हिंदुओं को ये कहकर लुभाने का प्रयास किया कि, "तृणमूल सरकार ने अल्पसंख्यकों पर ज़्यादा ध्यान दिया" तो जवाब में तृणमूल ने भी 'सॉफ़्ट हिंदुत्व' की राजनीति करने की कोशिश की है।
 
चन्दननगर में ही मुलाक़ात कामता प्रसाद से हुई जो दशकों पहले यहाँ आकर बस गए थे। उनके अनुसार, "विपक्षी पार्टियाँ कहती हैं कि मोदी जी किसी धर्म के लिए काम कर रहे हैं तो ये सौ प्रतिशत ग़लत है। क्योंकि जब प्रधानमंत्री आवास योजना होता है या फिर जन धन योजना खाता या फिर शौचालय बनवाया जा रहा है। तो क्या उसमें देखा जाता है कि उसमें क्या नाम है आपका। आख़िर पश्चिम बंगाल में सभी का फ़ायदा हुआ है ना"।
 
लेकिन बड़ा सवाल ये भी है कि पश्चिम बंगाल में इस तरह का माहौल बना कैसे। मोनालिसा महंतो कोलकाता में राजनीति शास्त्र पढ़ाती है और समाज में होने वाले बदलावों पर गहरी नज़र रखती हैं। उन्हें लगता है, 'जो हो रहा है वो नया नहीं है, लेकिन इसके फ़ायदे उठाने की गुंजाइश काफ़ी है।'
 
उनके मुताबिक़, "हमारे पूरे देश में ही अभी धर्म से जुड़ी राजनीति में इज़ाफ़ा दिखा है। पश्चिम बंगाल का इतिहास रहा है कि 34 साल सीपीएम का शासन रहा है तो बतौर समाजशास्त्री हमें लगता है कि उन दिनों राजनीति में धर्म की मिलावट नहीं थी, विचारधारा के चलते। उसके बाद चाहे तृणमूल हो या भाजपा सभी को ये करने का मौक़ा दिखा है"।
 
ज़ाहिर है, पश्चिम बंगाल इन दिनों एक नई क़िस्म की राजनीति की प्रयोगशाला बना हुआ है। लोक सभा चुनावों में असल सीटों में इसका लाभ किसे कितना होगा ये फ़िलहाल कह पाना मुश्किल है।
 
लेकिन एक 26 साल की स्टूडेंट अनन्या दास के शब्द अभी भी दिमाग़ में बैठे हुए हैं। "मुझे लगता है राजनीतिक दल धर्म की बात कर मुद्दे को भटकाते हैं जिससे असली समस्या से बचा जा सके, जो कि बेरोज़गारी है।"

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

CIA की पहली इंस्टाग्राम पोस्ट की गुत्थी सुलझा सकते हैं आप?