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मोदी पर भरोसा ही ला सकता है कश्मीर में नई सुबह- नज़रिया

मोदी पर भरोसा ही ला सकता है कश्मीर में नई सुबह- नज़रिया
, शुक्रवार, 9 अगस्त 2019 (08:19 IST)
प्रदीप सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को कश्मीर में एक नई सुबह का इंतज़ार है। पर घाटी में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिन्हें यह सुबह नहीं काली रात लग रही है।
 
सवाल है कि कौन जीतेगा? उम्मीद या नाउम्मीदी। इस रहस्य से पर्दा जल्दी नहीं उठने वाला। पर उठेगा ज़रूर। पर्दा उठने का इंतज़ार केवल जम्मू-कश्मीर के लोगों को ही नहीं बल्कि पूरे देश को है।
 
दो तरह के भाव देश की फ़िज़ा में तैर रहे हैं। एक तरफ़ देश के ज़्यादातर हिस्सों में राहत, ख़ुशी, सुखद आश्चर्य और दशकों पुरानी साध पूरा होने का भाव है। ऐसे लोगों को लगता है कि देश के साथ जम्मू-कश्मीर के एकीकरण का अधूरा एजेंडा पूरा हो गया है। उन्हें लगता है कि एक कमी थी जो पूरी हो गई।
 
दूसरी तरफ़ घाटी में ऐसे लोग हैं जिन्हें लगता है उनकी सबसे अमूल्य चीज़ चली गई है। इस वर्ग के साथ खड़े होने वाले भी देश में हैं। इसमें लगभग सभी घोषित रूप से मोदी विरोधी हैं। जो मानते हैं मोदी और भाजपा कुछ अच्छा कर ही नहीं सकते।
 
मोदी का राजनीतिक संदेश
ऐसे माहौल में गुरुवार की रात आठ बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला संविधान का अनुच्छेद ख़त्म हो गया है। यह एक वास्तविकता है। उन्होंने जो नहीं कहा वह यह कि सबके हित में होगा कि इस वास्तविकता को स्वीकार कर लें। सत्तर साल से जिन्हें लगता था कि भारतीय संविधान का यही प्रावधान उनका सबसे बड़ा कवच है, वे इस वास्तविकता को स्वीकार करेंगे?
 
प्रधानमंत्री के राष्ट्र के नाम संदेश को लेकर तरह तरह की अटकलें थीं। एक वर्ग को उम्मीद थी कि वह शायद अपनी पार्टी की विचारधारा और उसके मुख्य मुद्दे की बात करेंगे।
 
लेकिन प्रधानमंत्री ने दलगत राजनीति से परे जाकर बात की। इसके बावजूद वे एक राजनीतिक संदेश देना नहीं भूले। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 के ख़त्म होने के साथ ही अलगाववाद, परिवारवाद, आतंकवाद और भ्रष्टाचार की छुट्टी होगी।
 
उन्होंने जम्मू-कश्मीर के युवाओं को सीधे संबोधित करते हुए नई राजनीतिक व्यवस्था की बात की। मोदी ने कहा कि परिवारवाद ने नये लोगों, युवाओं को आगे नहीं आने दिया। मोदी का इशारा था कि पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव ने ऐसे युवाओं के लिए संभावना का द्वार खोला है। उन्होंने अपने संबोधन में जम्मू-कश्मीर के पूरे सामाजिक ताने बाने को ध्यान में रखकर बात की।
 
सिर्फ़ एक बार किया पाकिस्तान का ज़िक्र
उम्मीद यह भी की जा रही थी कि प्रधानमंत्री अपने संबोधन में पाकिस्तान पर हमलावर होंगे। पर उन्होंने अपने अड़तीस मिनट के संबोधन में पाकिस्तान का सिर्फ़ एक बार ज़िक्र किया। यह कहते हुए कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे का इस्तेमाल भावनाएं भड़काने के लिए हथियार के रूप में करता रहा है। मोदी ने एक एक करके ऐसे मुद्दे गिनाए जिनके रास्ते में यह विशेष दर्जा रोड़ा बना हुआ था।
 
घाटी में संचार सेवाओं के बंद होने और क़रीब पांच सौ नेताओं, कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी का ज़िक्र किए बिना उन्होंने कहा कि कुछ एहतियाती क़दम उठाए गए हैं। इनसे कुछ परेशानी हो रही है।
 
पर यह धीरे धीरे कम होती जाएगी। जो उम्मीद कर रहे थे प्रधानमंत्री बताएंगे कि संचार सुविधाएं कब बहाल होंगी और गिरफ़्तार नेता कब रिहा होंगे। उन्हें निराशा हुई है। मोदी ने उन लोगों की भावनाओं को ज़्यादा तरजीह नहीं दी जो मानते हैं कि घाटी में जो हो रहा है वह जनतंत्र के ख़िलाफ़ है या कि आम कश्मीरी को बंधक बना लिया गया है।
 
लेकिन ईद की मुबारकबाद दी और यह आश्वासन भी दिया कि ईद मनाने में लोगों कोई परेशानी न हो सरकार इसके लिए ज़रूरी उपाय कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग देश के दूसरे हिस्सों से ईद पर घर जाना चाहते हैं उन्हें भी सरकार मदद देगी।
 
सतर्क है सरकार
सवाल है कि क्या इससे घाटी के लोग संतुष्ट होंगे? फ़िलहाल तो यह मुश्किल नज़र आता है।
 
सरकार को भी पता है कि विरोध होगा। वह इसके लिए तैयार भी है। पर उसकी तैयारी राजनीतिक विरोध की है। उसे जो डर है वह यह कि पाकिस्तान समर्थक तत्व कहीं इस मौक़े का फायदा उठाकर हिंसा का माहौल पैदा करने की कोशिश न करें।
 
विरोध ने हिंसक रूप लिया तो उसे केंद्र सरकार के इस क़दम की नाकामी के रूप में देखा जाएगा। इसी को रोकने के लिए घाटी में इतने बड़े पैमाने पर सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है।
 
ख़त्म हो चुकी है कश्मीरी नेताओं की साख?
आने वाले सात दिन सरकार के लिए कठिन परीक्षा के होंगे। ग्यारह या बारह अगस्त को ईद-उल-अज़हा है और पंद्रह को स्वाधीनता दिवस। दोनों दिन शांति से निकल गए तो सरकार के लिए थोड़ी राहत होगी। इसी के आधार पर सरकार अपना अगला क़दम तय करेगी।
 
प्रधानमंत्री की बात से लगा कि उन्हें मुख्य धारा के क्षेत्रीय दलों के नेताओं का ज़्यादा डर नहीं है। मोदी की पूरी बात से ऐसा आभास हुआ कि वे मानकर चल रहे हैं कि इन नेताओं की साख ख़त्म हो चुकी है।
 
प्रधानमंत्री एक वैकल्पिक राजनीतिक व्यवस्था को उभरते हुए देखना चाहते हैं। इसीलिए उन्होंने राजनीतिक विमर्श से ज्यादा सामाजिक और विकास के विमर्श पर ज़ोर दिया।
 
कश्मीर के हालात आने वाले दिनों में क्या रुख़ अख्तियार करेंगे किसी को पता नहीं है। सरकार और प्रधानमंत्री की उम्मीद इस बात पर टिकी है कि सूबे के युवा और आम कश्मीरी सरकार के इस क़दम में अपना हित देखेगा।
 
इसीलिए उन्होंने अपने संबोधन का ज्यादा समय जम्मू-कश्मीर और लद्दाख़ के विकास के विज़न पर दिया।
 
प्रत्येक परिवर्तन अपने साथ अनिश्चितता और असुरक्षा लाता है। बदलाव जितना बड़ा होता है अनिश्चितता और असुरक्षा भी उतनी ही बड़ी। कश्मीर घाटी आज इसी अनिश्चितता और असुरक्षा के दौर से गुज़र रही है। राज्य का राजनीतिक नेतृत्व अपनी विश्वसनीयता खो चुका है।
 
घाटी को पीएम पर कितना भरोसा?
इस बात को पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों के समय सरकार देख चुकी है। इनके चुनाव बहिष्कार के बावजूद भारी पैमाने पर मतदान हुआ। ये नेता जब जेल से निकलेंगे तो वे भी इन्हीं दोनों भावनाओं से ग्रस्त होंगे। बाहर आते ही उन्हें भ्रष्टाचार सहित कई तरह के मामलों का सामना करना पड़ सकता है। अलगाववादी नेता पहले से ही जेल में हैं।
 
पाकिस्तान के साथ जुड़ी उनकी गर्भनाल एनआईए ने काट दी है। घाटी में आतंकवादी नेटवर्क की कमर टूट चुकी है। पत्थरबाज़ी उद्योग बंद हो चुका है।
 
सवाल है कि अनुच्छेद 370 का विरोध करने वाले देखें तो किसकी तरफ़। घाटी से बाहर उन्हें समर्थन मिलेगा। पर वह उनके कितने काम का होगा कहना कठिन है।
 
कश्मीर घाटी में आने वाले दिनों में क्या होगा यह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि घाटी के अवाम को प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन पर कितना भरोसा है।
 

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