Webdunia - Bharat's app for daily news and videos

Install App

कोरोना वायरस: लॉकडाउन में ज़रूरी सामान पहुंचाने वाले ट्रक ड्राइवरों की क्या है मुसीबत

BBC Hindi
शनिवार, 11 अप्रैल 2020 (07:50 IST)
तारेंद्र किशोर, बीबीसी संवाददाता
25 मार्च से लेकर 14 अप्रैल तक घोषित 21 दिनों के लॉकडाउन में बहुत सारे क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। साथ में ये चुनौती भी आई है कि लोगों को बहुत ज़रूरी सेवाएं और चीज़ें मसलन खाद्य सामग्रियां और दवाइयां बिना किसी बाधा की मिलती रहें।
 
ज़रूरत का सामान एक शहर से दूसरे शहरों तक पहुंचे इसके लिए उन ट्रांसपोर्ट सेवाओं को जारी रखने का फ़ैसला लिया गया था जो इन ज़रूरी चीज़ों की ट्रांसपोर्टिंग में लगे हुए थे। इसके बावजूद ट्रांसपोर्टिंग सेक्टर को ना सिर्फ़ बड़ा नुक़सान झेलना पड़ रहा है बल्कि इन ज़रूरी सेवाओं को जारी रखना भी मुश्किल हो रहा है।
 
ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस ट्रांसपोटर्स, ट्रकर्स और पैसेंजर वेहिक्ल ऑपरेटर्स की सबसे बड़ी संस्था है। इसके साथ क़रीब एक करोड़ ट्रक रजिस्टर हैं। ऑल इंडिया मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस के सेक्रेटरी जनरल नवीन कुमार गुप्ता ने बीबीसी को बताया कि 90 फ़ीसदी ट्रासपोर्टेशन लॉकडाउन की वजह से प्रभावित हुआ है। लॉकडाउन की वजह से ये सारे ट्रक जगह-जगह सड़कों पर, फ़ैक्ट्रियों के बाहर या फिर पार्किंग में फंसे हुए हैं। इन ट्रकों में घरेलू सामान से लेकर तमाम तरह के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैं।
 
वो बताते हैं, "ज़रूरी चीज़ों के ट्रांसपोर्टेशन की इजाज़त तो है लेकिन उन्हें वापसी में कोई लोड नहीं मिलता। ख़ाली होने के बाद उन्हें वापस लाने में दिक्क़त हो रही है। ज़मीनी स्तर पर यह इतना सहूलियत भरा नहीं है। उन्हें इसके लिए डीसी के दफ्तर से इजाज़त लेनी पड़ती है। अब ड्राइवर आम तौर पर इतना सक्षम नहीं होते, जो डीसी के दफ्तर में जाकर परमिशन ले आएं।"
 
वो आगे बताते हैं, "अगर ट्रांसपोर्टर या ड्राइवर के फ़ोन करने से परमिशन मिल भी जा रही है तो फिर उसे ड्राइवर तक कैसे पहुँचाया जाए। लॉकडाउन में यह भी एक बड़ी चुनौती है। यह भी एक बड़ी वजह है कि बहुत ज़रूरत की चीज़ें लेकर भी जो गाड़ियां जहां जा रही हैं, वहीं फंसी रह जा रही हैं।"
सप्लाई चेन के टूटने के ख़तरे पर वो कहते हैं कि हम कोशिश कर रहे हैं कि कम से कम बहुत ज़रूरी चीज़ों की सप्लाई की चेन ना टूटे लेकिन यह एक इको-सिस्टम की तरह है जो एक-दूसरे से जुड़ी हुई है।
 
वो सवाल करते हैं, "मान लिजिए कि हिमाचल से फल-सब्जियां लेकर गाड़ी दिल्ली आई और यहां ख़ाली करने के बाद वो क्या लेकर वापस जाएगी। इसलिए वो गाड़ियां वहीं फंसी रह जा रही हैं। अगर हम सिलसिले को जल्दी से जल्दी दुरुस्त नहीं किए तो सप्लाई चेन टूट ही जाएगी।"
 
नवीन कुमार गुप्ता का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान क़रीब एक ट्रक पर दो हज़ार रुपये का हर दिन का नुक़सान है। वो बताते हैं, "इस हिसाब से एक करोड़ गाड़ियों पर दो हज़ार करोड़ का नुक़सान हर रोज़ हो रहा है। 21 दिनों का नुक़सान अगर जोड़ें तो यह क़रीब 42 हज़ार करोड़ का नुक़सान होगा। चूंकि दस प्रतिशत गाड़ियां चल भी रही हैं। इसलिए यह नुक़सान 36-37 हज़ार करोड़ का तो ज़रूर ही है।"
 
झारखंड के बेरमो के रहने वाले आफ़ताब आलम ख़ान का कोयला खानों में ट्रक चलता है। जब से लॉकडाउन की घोषणा हुई है उनका काम चौपट हो गया है। वो बताते हैं कि सबसे बड़ी दिक्क़त यह है कि लॉकडाउन की वजह से ड्राइवर ट्रक छोड़कर अपने-अपने घरों को लौट गए हैं।
 
वो बताते हैं, "ट्रक काफ़ी लंबी दूरियों तक माल ढुलाई का काम करते हैं। इस दौरान ट्रक ट्राइवर अक्सर लाइन होटल पर खाते हैं। अब लॉकडाउन की वजह से उन्हें रास्ते में खाने-पीने की कोई सुविधा नहीं मिल रही है जिससे कि वो काम मिलने पर भी वापस नहीं आ रहे हैं।"
 
उनका ट्रक कोयला की ढुलाई में इस्तेमाल होता है। वो कहते हैं कि औद्योगिक उत्पादनों में बिजली की खपत कम होने से बिजली के उत्पादन में कमी आई है। इससे कोयला की खपत भी कम हो गई है। अब खादानों में कोयला पड़ा हुआ है। ज्यादा कोयला इकट्ठा होने से आग लगने का भी ख़तरा है। वो बताते हैं, "अभी कोयला की ढुलाई में थोड़ी राहत तो मिली है लेकिन अब समस्या यह है कि ड्राइवर के घर वाले डर के मारे उन्हें काम पर नहीं लौटने दे रहे।"
 
ट्रासपोर्टिंग के काम में लगे हुए लोगों के इस डर पर नवीन कुमार गुप्ता कहते हैं, "स्वास्थ्य क्षेत्र में लगे लोगों को जिस तरह से बीमा की सुविधाएं दी जा रही हैं, उसी तरह से इन लोगों की भी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने की सरकार से मांग की गई है ताकि इनके परिवार के लोग भी थोड़ी राहत महसूस करे और ड्राइवर काम पर लौट पाए।" वो बताते हैं कि तमाम ट्रांसपोटर्स को सैनिटाइज़ेशन और क्या-क्या ऐहतियाती क़दम उठाने हैं, इसे लेकर गाइडलाइन जारी की गई है। सरकार से उनकी क्या मांगें हैं, जिनसे लॉकडाउन से बुरी तरह से प्रभावित ट्रांसपोर्ट सेक्टर को आसानी से निकला जा सके।
 
इस पर वो बताते हैं, "सरकार ने ईएमआई 30 जून तक के लिए टाल दी है। परमिट, फिटनेस और डीएल वैलिडिटी भी 30 जून तक बढ़ाई है। 21 अप्रैल तक इंश्यूरेंस बढ़ाई है। गुड्स टैक्स, मोटर वेहिकल टैक्स, रोड टैक्स पर कोई तवज्जो अभी नहीं है। यह राज्य सरकारों के अधिन आने वाले मुद्दे हैं। जिसका 1 अप्रैल से बाक़ी है, उसे तो देना ही पड़ा। ईएमआई भी 30 जून के बाद देनी पड़ेगी और उसका ब्याज भी देना पड़ेगा। फिटनेस फीस, परमीट फीस भी देनी पड़ेगी। ये सारे टैक्स और फीस आपको एडवांस में देने होते हैं। ऐसा नहीं है कि 30 जून तक स्थिति इतनी सुधर जाएगी कि वो सारे टैक्स उस वक़्त एडवांस में दे भी दे और बचत भी कर ले।"
 
वो आगे कहते हैं, "धीरे-धीरे आर्थिक गतिविधियां जब तेज़ होंगी तभी फिर स्थिति पटरी पर आएगी और वो एक-दो महीने में नहीं होता लग रहा है। इसलिए हमारी मांग है कि ईएमआई और दूसरी सुविधाएं छह महीने के लिए बढ़ाई जाए। इसके बाद 31 अक्टूबर से 31 मार्च 2021 तक इन शुल्कों का सिर्फ़ 50 फीसदी ही लिया जाए। तब कहीं जाकर स्थिति कुछ संभलने लायक़ हो पाएगी।"

सम्बंधित जानकारी

जरूर पढ़ें

Modi-Jinping Meeting : 5 साल बाद PM Modi-जिनपिंग मुलाकात, क्या LAC पर बन गई बात

जज साहब! पत्नी अश्लील वीडियो देखती है, मुझे हिजड़ा कहती है, फिर क्या आया कोर्ट का फैसला

कैसे देशभर में जान का दुश्मन बना Air Pollution का जहर, भारत में हर साल होती हैं इतनी मौतें!

नकली जज, नकली फैसले, 5 साल चली फर्जी कोर्ट, हड़पी 100 एकड़ जमीन, हे प्रभु, हे जगन्‍नाथ ये क्‍या हुआ?

लोगों को मिलेगी महंगाई से राहत, सरकार बेचेगी भारत ब्रांड के तहत सस्ती दाल

सभी देखें

मोबाइल मेनिया

Infinix का सस्ता Flip स्मार्टफोन, जानिए फीचर्स और कीमत

Realme P1 Speed 5G : त्योहारों में धमाका मचाने आया रियलमी का सस्ता स्मार्टफोन

जियो के 2 नए 4जी फीचर फोन जियोभारत V3 और V4 लॉन्च

2025 में आएगी Samsung Galaxy S25 Series, जानिए खास बातें

iPhone 16 को कैसे टक्कर देगा OnePlus 13, फीचर्स और लॉन्च की तारीख लीक

આગળનો લેખ
Show comments