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जिनकी नींद उड़ी रहती है उनका दिमाग़ ठीक नहीं होता

जिनकी नींद उड़ी रहती है उनका दिमाग़ ठीक नहीं होता
, सोमवार, 27 अगस्त 2018 (14:12 IST)
- क्रिस्टिन रो बीबीसी फ़्यूचर
 
जक्के टैमिनेन के ऐसे बहुत से शागिर्द हैं जो आम छात्रों की तरह ही बर्ताव करते हैं। वो इम्तिहान से एक दिन पहले सारी रात जाग कर पढ़ते हैं, ताकि जितना हो सके उतना चीज़ें याद कर लें। मगर, किसी भी छात्र के लिए इससे ग़लत काम नहीं होता।
 
 
ये बात ख़ुद टैमिनेन कहते हैं। टैमिनेन ब्रिटेन के रॉयल हॉलोवे यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान के लेक्चरर हैं। वो छात्रों को चेतावनी देते हैं कि इम्तिहान से एक रात पहले जागना उनके लिए बहुत नुक़सानदेह है। टैमिनेन को ये बात इसलिए पता है क्योंकि वो नींद के हमारे ज़हन पर पड़ने वाले असर के एक्सपर्ट हैं। वो ये अच्छी तरह से जानते-समझते हैं कि नींद हमारी याददाश्त पर और ज़बान को याद करने की ताक़त पर कैसा असर डालती है।
 
टैमिनेन कहते हैं कि सोते हुए टेप रिकॉर्डर पर किसी भाषा का ऑडियो सुनते हुए सोने पर वो भाषा याद हो जाएगी, ऐसा बिल्कुल नहीं है। हां, नींद का हमारी ज्ञान बढ़ाने की कोशिश से गहरा ताल्लुक़ है। टैमिनेन ही नहीं तमाम और रिसर्चर्स के तजुर्बों से ये बात सामने आई है।
 
 
टैमिनेन अभी जो रिसर्च कर रहे हैं, उसमें शामिल होने वालों को पहले नए शब्द याद कराए जाते हैं। फिर उन्हें रात भर जगा कर रखा जाता है। टैमिनेन, इन लोगों की याददाश्त को पहले कुछ दिनों, फिर कुछ हफ़्तों बाद परखते हैं। पता ये चला है कि शब्द याद करने के बाद सारी रात जागने वाले छात्र बाद के दिनों में चाहे जितना सो लें, उनके याद किए हुए शब्द दोबारा याद करने में दिक़्क़त होती है।
 
 
इन लोगों के मुक़ाबले, जो लोग शब्दों को याद करने के बाद रात में सो गए, उन्हें याद किए हुए लफ़्ज़ों को दोबारा याद करने में मशक़्क़त नहीं करनी पड़ी। टैमिनेन कहते हैं कि, "नींद का हमारी सीखने की क्षमता से गहरा नाता है। भले ही आप सोते वक़्त कुछ पढ़ नहीं रह होते, लेकिन आप का दिमाग़ उस वक़्त भी पढ़ रहा होता है। सीख रहा होता है। वो आपके लिए रतजगा कर के पढ़ाई कर रहा होता है। अगर आप ठीक से नहीं सोते, तो भले ही आप कितनी कोशिशें कर लें, आप की याददाश्त कम ही रहनी है।"
 
 
सोते हुए ज़हन के अंदर क्या हो रहा होता है?
हम ने टैमिनेन की 'स्लीब लैब' में जाकर सोते हुए लोगों के ज़हन में झांकने की कोशिश की। इस लैब में बिस्तर के ऊपर छोटी सी ईईजी मशीन यानी इलेक्ट्रोएनसेफैलोग्राफी मशीन लगी होती है। इस मशीन के ज़रिए सो रहे लोगों के दिमाग़ की गतिविधियों पर नज़र लखी जाती है। ये देखा जाता है कि सोते वक़्त दिमाग़ के अलग-अलग हिस्सों (फ्रॉन्टल, टेम्पोरल और पैरिएटल) में क्या हो रहा होता है। इसके अलावा ठोढ़ी और आंखों की हरकतों पर भी निगाह रखी जाती है।
 
 
लेकिन, फ़िलहाल तो टैमिनेन की रिसर्च के निशाने पर है, गहरी नींद का दौर। इसे वैज्ञानिक भाषा में 'स्लो वेव स्लीप' कहते हैं। ये यादें इकट्ठी करने और उन्हें सहेज कर रखने के लिए बहुत ज़रूरी होती है। इस दौरान, हमारे दिमाग़ का 'हिप्पोकैम्पस' हिस्सा दिमाग़ के दूसरे हिस्से 'नियोकॉर्टेक्स' के लगातार संपर्क में रहता है।
 
 
हिप्पोकैम्पस बहुत तेज़ी से चीज़ें सीखता है। वो रात में गहरी नींद के दौरान नियोकॉर्टेक्स को नई सीखी हुई जानकारियों को सहेजने में मदद करता है, ताकि ज़रूरत पड़ने पर उन्हें दोबारा से याद किया जा सके। तो, दिन में जो हिप्पोकैम्पस किसी जानकारी को जल्दी से सीखने में मदद करता है।
 
 
वही, हिप्पोकैम्पस रात में उस जानकारी को अच्छे से सहेजने का काम करता है। ये काम वो तभी करता है, जब आप गहरी नींद में होते हैं। फिर इस जानकारी को हिप्पोकैम्पस इसी तरह की दूसरी जानकारियों के साथ सहेज कर रखता है, ताकि वक़्त पड़ने पर दोनों के मेल से आप बेहतर नतीजे हासिल कर सकें।
 
 
किसी समस्या का हल खोजने में इस जानकारी की मदद ले सकें। इस काम में नियोकॉर्टेक्स की तंत्रिकाएं, हिप्पोकैम्पस की मददगार होती हैं। नियोकॉर्टेक्स और हिप्पोकैम्पस को जोड़ने वाली तंत्रिकाओं में नींद वाले तंतु होते हैं। ये तीन सेकंड की छोटी-छोटी खूंटियां होती हैं।
 
 
टैमिनेन बताते हैं कि इन तंतुओं की मदद से नई जानकारी का ज़हन में जमा पुरानी जानकारी से नाता तलाशा और जोड़ा जाता है। तो, अगर आप ने दिन में कोई नया शब्द याद किया है। फिर रात में अच्छी नींद लेते हैं। तो इससे ये नए शब्द आप की पहले जमा शब्दावली में उन शब्दों के साथ जुड़ते हैं, जो नए याद किए गए लफ़्ज़ से नाता रखते हैं।
 
 
गहरी नींद में हमारी आंखें तेज़ फड़फड़ाती हैं। इसे आरईएम यानी रैपिड आई मूवमेंट कहते हैं। इसका नई भाषा सीखने की हमारी क्षमता से गहरा ताल्लुक़ है। इस दौरान हम ख़्वाब देख रहे होते हैं। साथ ही नई भाषा से संबंध बना रहे होते हैं। कनाडा की राजधानी ओटावा की यूनिवर्सिटी में छात्रों पर हुई रिसर्च से ये बात साबित हो चुकी है।
 
 
ख़्वाब केवल दिन में हुई घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं हैं। रिसर्च से पता चला है कि दिमाग़ के जिस हिस्से के ज़रिए हम तर्क-वितर्क करते हैं और जिस हिस्से से हमारे जज़्बात कंट्रोल होते हैं, उन पर ख़्वाब देखने का गहरा असर होता है। ये कोई नई भाषा सीखने में काफ़ी मददगार होते हैं।
 
 
रिसर्च में पता चला है कि जो छात्र कोई दूसरी नई भाषा सीख रहे होते हैं, वो ख़्वाब देखने वाली गहरी नींद में ज़्यादा सोते हैं। यानी इस दौरान उन्होंने जो भी सीखा होता है, वो जानकारी अच्छे से दिमाग़ में जमा होती है। फिर दिन में हमारा ज़हन इस जानकारी का बेहतर इस्तेमाल कर पाता है।
 
 
रात के चक्र
हमारे ज़हन में नींद के कितने तंतु होते हैं, इसका ताल्लुक़ हमारे ख़ानदान से होता है। हमारे शरीर की अंदरूनी घड़ी का हिसाब-किताब भी ख़ानदानी विरासत का नतीजा होता है। हमारे शरीर की घड़ी हमें बताती है कि हमें कब सोना है और कब जागना है। नींद के इस चक्र के साथ तालमेल बनाए रखना ज़रूरी है। तभी हम अपनी अक़्ल का अच्छे से इस्तेमाल कर सकेंगे।
 
 
अमेरिकी जीव वैज्ञानिक माइकल डब्ल्यू यंग ने हमारे शरीर के 'क्लॉक जीन' यानी शरीर की घड़ी चलाने वाले जीन का एक्सपर्ट माना जाता है। इसके लिए उन्हें 2017 में संयुक्त रूप से नोबेल पुरस्कार भी मिला था। यंग कहते हैं कि अच्छी परफॉर्मेंस के लिए लोग एक लय में काम करना चाहते हैं। फिर वो स्कूल में, दफ़्तर में हो या फिर ज़िंदगी में कोई और काम।
 
 
अब अगर किसी इंसान की लाइफस्टाइल, आस-पास का माहौल या फिर विरासत में मिली नींद की दिक़्क़त नींद में ख़लल डालती है, तो इसका सबसे अच्छा तरीक़ा है, कमरे में रात के वक़्त घुप्प अंधेरा और दिन मे चटख रोशनी करना। यानी दिन और रात के चक्र वाला माहौल घर और दफ़्तर में तैयार करना। इससे हमारा ज़हन और शरीर दिन-रात के फ़र्क़ को समझेंगे और उसी हिसाब से सोने-जागने के लिए तैयार रहेंगे।
 
 
झपकी है कारगर
बड़े होने पर सीखने की हमारी ताक़त, हमारी बॉडी क्लॉक से बहुत प्रभावित होती है। ये बात तो हमें पता है। मगर बचपन में भी बॉडी क्लॉक का सीखने की क्षमता से गहरा नाता होता है। बड़ों के मुक़ाबले, बच्चे ज़्यादा गहरी नींद में सोते हैं। यही वजह है कि नई चीज़ें भी वो जल्दी से सीख लेते हैं। जर्मनी की ट्यूबिनगेन यूनिवर्सिटी में बच्चों की स्लीप लैब है।
 
 
इसमें बच्चों की नींद और सीखने की क्षमता को लेकर रिसर्च चल रही है। लैब में सोते हुए बच्चों के ज़हन की हरकतों पर निगाह रखी जाती है। ये जांचा जाता है कि सोने से पहले और जागने के बाद वो कितनी नई जानकारियां सहेज पाते हैं। इस रिसर्च से पता चला है कि बच्चे अपनी नींद के दौरान कई नई सीखी हुई हरकतों को ज़्यादा अच्छे से सहेज पाते हैं। फिर जागने पर दिमाग़ उनका बेहतर इस्तेमाल करता है।
 
 
बड़े भी ऐसा कर सकते हैं। लेकिन, इसके लिए अच्छी नींद लेना ज़रूरी है। कनाडा के नींद और बॉडी क्लॉक विशेषज्ञ डोमिनिक़ पेटिट कहती हैं कि, 'बच्चों का दिमाग़ विकसित हो रहा होता है, तो नींद का उनके ज़हन पर ज़्यादा असर होता है। इसीलिए बच्चों को सीखी हुई चीज़ें याद रखने के लिए दिन में भी सोने की ज़रूरत होती है।'
 
 
डोमिनिक़ कहती हैं कि, 'अगर बच्चे दिन में सोते हैं, तो उन्हें नए शब्द याद करने में मदद मिलती है। शब्दों के मायने अच्छे से याद होते हैं। नई भाषा वो जल्दी से सीख जाते हैं। वैसे बचपन हो या युवावस्था या उम्र का कोई और दौर, याददाश्त और नई चीज़ें सीखने के लिए अच्छी नींद लेना बहुत ज़रूरी है।'
 
 
नींद के दौरान हमारा ज़हन दिन में याद की गई बातों को अच्छे से सहेजता तो है ही, उन्हें ज़रूरत पड़ने पर तुरंत निकालकर हमें पकड़ा भी देता है। यानी हम इस याद की हुई नई जानकारी का बेहतर इस्तेमाल तभी कर पाते हैं, जब हम अच्छे से सो लेते हैं।
 
 
यानी नींद हमारी याददाश्त को मज़बूत बनाने का काम करती है। हमारे पास जो जानकारियां हैं, उनका हम बेहतर इस्तेमाल कर सकें, इसके लिए भी अच्छी नींद ज़रूरी है। तो, अगर कोई देर तक सोता है, तो उसे आलसी कह कर ख़ारिज न करें। ये दिमाग़ की लय-ताल के लिए ज़रूरी है। और हां, जो इम्तिहान की तैयारी कर रहे हैं, वो रतजगा करने के बजाय, रात में अच्छे से सो लें, तो ज़्यादा फ़ायदा होगा।
 
स्लीप वेल!
 
(नोट- ये स्टोरी मूल अंग्रेज़ी स्टोरी का अक्षरश:अनुवाद नहीं है। हिंदी पाठकों के लिए कुछ प्रसंग जोड़े गए हैं।)
 
 

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