Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

किसकी सेना सबसे ताक़तवर-रूस या अमेरिका

किसकी सेना सबसे ताक़तवर-रूस या अमेरिका
, बुधवार, 28 मार्च 2018 (15:56 IST)
दुनिया भर के कई देश रूसी राजनयिकों को अपने देशों से निकाल रहे हैं। सोमवार को अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने 60 रूसी राजनयिकों को देश छोड़ने का आदेश दिया था। इसके साथ ही जर्मनी समेत यूरोपो के कई देशों ने रूसी राजनयिकों को निकाला है।


इसकी शुरुआत ब्रिटेन ने दक्षिण इंग्लैंड में पूर्व रूसी जासूस पर नर्व एजेंट से हमले की प्रतिक्रिया में की थी। इन देशों का का कहना है कि इस हमले के पीछे रूस था और इसने सैन्य श्रेणी के प्रतिबंधित केमिकल नर्व एजेंट का इस्तेमाल किया था।

अमेरिका  का कहना है कि यह अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन है। रूस के ख़िलाफ़ ऑस्ट्रेलिया ने भी इन देशों का समर्थन किया है। कहा जा रहा है कि शीत युद्ध और सोवियत संघ के दौर की दुश्मनी के बाद रूस के ख़िलाफ़ यह सबसे बड़ी गोलबंदी है।

रूस का कहना है कि वो भी पलटवार करेगा। मंगलवार को रूस ने अमेरिका  पर आरोप लगाया कि वो दुनिया के कई देशों पर रूसी राजनयिकों को निकालने का दबावा डाल रहा है। रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोफ़ ने अमेरिका  पर ब्लैकमेल करने का आरोप लगाया है।


क़रीब 20 देशों ने 100 के क़रीब रूसी राजनयिकों को निकाला है। यह इतिहास का सबसे बड़ा राजनयिक निष्कासन बताया जा रहा है। सीरिया में भी रूस की भूमिका को लेकर नेटो देशे ख़फ़ा हैं। रूस के कारण अमेरिका  चाहकर भी सीरियाई राष्ट्रपति बशर-अल असद को बेदख़ल नहीं कर पाया। इन सारे घटनाक्रमों के बीच रूस और अमेरिका  के सैन्य शक्ति की बात हो रही है। आज की तारीख़ में रूस के पास अमेरिका  से टकराने का कितना माद्दा है? 
 
किसकी सैन्य शक्ति सबसे दमदार? : द स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में सैन्य खर्चों में हर साल 1.2 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हो रही है। इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर के सैन्य खर्चों में अमेरिका  अकेले 43 फ़ीसदी हिस्से के साथ सबसे आगे है।
 
इसके बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के चार स्थायी सदस्य आते हैं। हालांकि बाक़ी के सदस्य अमेरिका  के आसपास भी नहीं फटकते हैं। चीन सात फ़ीसदी के साथ दूसरे नंबर पर है। इसके बाद ब्रिटेन, फ़्रांस और रूस क़रीब चार फ़ीसदी के आसपास हैं। हालांकि अमेरिका  और सुरक्षा परिषद के बाक़ी सदस्य देशों के सैन्य खर्च में इस बड़े अंतर को समझना इतना मुश्किल नहीं है। अमेरिका  की तरह बाक़ी देश अंतरराष्ट्रीय मिशनों या सैन्य हस्तक्षेप में अपने सैनिकों को नहीं लगाते हैं।
 
इसके साथ ही अमेरिका  की तरह दुनिया भर में उनके सैकड़ों सैन्य ठिकाने नहीं हैं। बाकी देशों ने ख़ुद को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय सैन्य अभियानों तक ही अब तक सीमित रखा है। द स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार सेना पर खर्च के मामले में रूस चौथे नंबर पर है। रूस से ऊपर अमेरिका , चीन और सऊदी अरब है।
 
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एनलिस्ट दमित्री गोरेनबर्ग का कहना है कि रूस ने 2009 में अपनी सेना का आधुनिकीकरण शुरू कर दिया था। रूस सोवियत दौर के हथियारों से मुक्ति पाना चाहता था और उसने इस काम को तेज़ी से किया।
 
पिछले साल अमरीकी रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस ने कहा था कि अमेरिका  को मुख्य रूप से रूस से ख़तरा है और टकराने के लिए तैयार रहना चाहिए। अमेरिका  की मौजूदगी और उसके सैन्य ठिकाने दुनिया के कई देशों में हैं। इस मामले में रूस उसके सामने कहीं नहीं टिकता है।
 
रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने इटली के एक अख़बार को इंटरव्यू दिया था। इस इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, ''आप दुनिया का मानचित्र उठाकर देखिए और उसमें अमरीकी सैन्य ठिकानों को चिह्नित किजिए। इसी से स्पष्ट हो जाएगा कि रूस और अमेरिका  में क्या अंतर है।''
 
रूस के बारे में कहा जाता है कि वो सेना पर जितनी रक़म खर्च करता है उससे कम दिखाता है। इसके बावजूद दोनों देशों के सैन्य खर्च में बड़ा अंतर है। जो देश दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताक़त है उसी की सैन्य ताक़त भी बेमिसाल है। आर्थिक संपन्नत के मामले में भी अमेरिका  और रूस की कोई तुलना नहीं है।
 
रूस के बारे में कहा जाता है कि उसके पास दुनिया के बेहद प्रभावशाली परमाणु हथियार हैं और इनमें अमेरिका  को नष्ट करने की क्षमता है। हालांकि रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि पुतिन कभी अमेरिका  पर हमला करने का जोखिम नहीं उठाएंगे क्योंकि यह आत्मघाती क़दम साबित होगा। दोनों देशों की सीमाएं मिलती नहीं है इसलिए हमला होगा तो यह बेरिंग जल डमरू मध्य और अलास्का के ज़रिए होगा। इसका मतलब है कि दोनों देशों को एक दूसरे से सीधे तौर पर ख़तरा नहीं है।
 
एयर फ़ोर्स के मोर्चे पर भी अमेरिका  की तुलना में रूस पीछे है लेकिन वो अमरीकी एयर फोर्स के ऑपरेशन पर सर्बिया, इराक़, अफ़ग़ानिस्तान और लीबिया में रणनीतिक रूप से भारी पड़ सकता है। हालांकि कई विश्लेषकों का मानना है कि अब शीत युद्ध का वक़्त ख़त्म हो गया है। अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि पुतिन का आक्रामक राष्ट्रवाद युद्ध तक नहीं जाएगा।
 
इसी महीने रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने कहा था कि रूस ने एक ऐसी परमाणु मिसाइल तैयार कर ली है जो पूरी दुनिया में कहीं भी मार कर सकती है और हर लक्ष्य को भेद सकती है। पुतिन का दावा है कि इस मिसाइल को रोक पाना असंभव होगा।
 
रूस के सरकारी टीवी पर पुतिन ने लोगों को एक प्रज़ेंटेशन भी दिखाया था। इसमें पुतिन ने कहा कि रूस ऐसे ड्रोन भी तैयार कर रहा है जिन्हें पनडुब्बियों से छोड़ा जा सकेगा और वो परमाणु हमला करने में सक्षम होंगे। पुतिन ने आगे कहा था कि रूस की इस नई मिसाइल को यूरोप और एशिया में बिछे अमरीकी डिफ़ेंस सिस्टम भी नहीं रोक सकते। पुतिन ने रूसी संसद के दोनों सदनों को क़रीब दो घंटे तक संबोधित किया था। दूसरी तरफ़ अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप भी अपने परमाणु हथियारों के आधुनीकीकरण का आदेश दे चुके हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

जासूस पर हमले से तनातनी, शीतयुद्ध की वापसी