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सऊदी अरब के बाद रूस ने भी लिया यह फैसला, क्या भारत पर पड़ेगा भारी?

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मंगलवार, 4 जुलाई 2023 (15:57 IST)
सऊदी अरब और रूस के फैसले का असर भारत पर सीधा पड़ सकता है। सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्रालय ने जुलाई महीने में 10 लाख बैरल प्रतिदिन कच्चे तेल का उत्पादन घटाने का फैसला किया है, जो कि अगस्त तक जारी रहेगा।
 
सऊदी अरब की सरकारी न्यूज़ एजेंसी सऊदी प्रेस एजेंसी (एसपीए) ने बताया है कि अगस्त में उसका तेल उत्पादन प्रतिदिन 90 लाख बैरल प्रतिदिन होगा। एसपीए सूत्रों के हवाले से लिखता है कि तेल उत्पादन करने वाले देशों के समूह ओपेक प्लस के तेल बाजार को स्थिरता देने के प्रयासों की कोशिशों के लिए ये फैसला लिया गया है। 
 
वहीं, सऊदी अरब को देखते हुए रूस ने भी अगस्त में प्रतिदिन पांच लाख बैरल तेल निर्यात कम करने का फ़ैसला किया है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, मॉस्को की ये कोशिश सऊदी अरब के साथ मिलकर तेल के वैश्विक दामों में उछाल लाने की है।
 
रूस का क्या है कहना : सऊदी अरब और रूस के फैसले के बाद कच्चे तेल के दामों में 1.6 फीसदी का उछाल आया है और एक बैरल कच्चे तेल की क़ीमत 76.60 डॉलर तक पहुंच गई है। रूस के उप-प्रधानमंत्री एलेक्सेंडर नोवाक ने कहा है कि वैश्विक बाजार को उसके निर्यात में 5 लाख बैरल प्रतिदिन की कटौती की जाएगी ताकि तेल बाजार संतुलित रह सके।
 
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाए हुए हैं, इसके बावजूद रूस का तेल निर्यात मजबूत बना हुआ है। रूस ने फ़ैसला किया हुआ है कि वो इस साल के आखिर तक तेल उत्पादन घटाएगा और 95 लाख बैरल प्रतिदिन उत्पादन करेगा।
 
सऊदी अरब के बाद रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक है और 27 जून को सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन से बात की थी। रूस और सऊदी अरब लगातार कच्चे तेल के दामों में उछाल लाने की कोशिशें कर रहे हैं।
 
आर्थिक सुस्ती और बड़े तेल उत्पादकों की पर्याप्त आपूर्ति के बाद कच्चे तेल के दाम में गिरावट आई है। एक साल पहले कच्चे तेल के दाम 113 डॉलर प्रति बैरल थे।
 
रूस की बड़ी ऊर्जा कंपनी में शामिल रोसनेफ़्ट के प्रमुख इगार सेशिन ने कहा है कि बीते महीने ओपेक प्लस देशों की तुलना में रूस पीछे छूट रहा था और वो अपने तेल उत्पादन का बहुत छोटा हिस्सा ही निर्यात कर पा रहा था। सेशिन ने कहा कि कुछ ओपेक प्लस देश अपने उत्पादन का 90 फ़ीसदी तक निर्यात कर रहे थे, जहां रूस अपने उत्पादन का सिर्फ़ आधा ही वैश्विक बाज़ार में भेज पा रहा था।
तेल के दामों में क्यों नहीं है तेजी : रूसी वित्त मंत्रालय ने सोमवार को बताया था कि पश्चिमी देशों के प्राइस कैप के बाद रूसी कच्चे तेल के दाम जून में औसतन 55.28 डॉलर प्रति बैरल थे जबकि एक साल पहले इसके दाम 87.25 डॉलर प्रति बैरल थे।
सऊदी अरब ने तेल उत्पादन में कटौती का फैसला अगस्त तक जारी रखना तय किया है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि ये सितंबर तक जारी रह सकता है। एनर्जी इन्फ़ॉर्मेशन कंपनी एनर्जी इंटेलिजेंस का कहना है कि सऊदी अरब मार्केट अपने हिसाब से तय करना चाहता है और आगे की घोषणाएं हर महीने होने का अनुमान है।
 
एनर्जी इंटेलिजेंस के मुताबिक, तेल के दाम ऊपर उठाने के लिए बुनियादी तत्व मजबूत नहीं हैं और इन्वेस्टमेंट बैंक इस साल के लिए तेल के दामों का अनुमान कम ही मानकर चल रहे हैं।
 
एचएसबीसी ने 2023 की दूसरी छमाही के लिए कच्चे तेल के दामों का अपना अनुमान घटाकर 80 डॉलर प्रति बैरल कर दिया है जबकि पहले उसने इसका अनुमान 93.50 डॉलर प्रति बैरल रखा था। हालांकि ये भी माना जा रहा है कि सऊदी अरब और रूस की इन कोशिशों के बाद इस साल के दूसरे हिस्से में वैश्विक तेल बाज़ार में उछाल आएगा।
 
संयुक्त अरब अमीरात स्थित अमीरात एनबीडी बैंक का अनुमान है कि सऊदी अरब साल 2023 के अंत तक अतिरिक्त कटौती की नीति अपना सकता है। सऊदी अरब को लगता है कि तेल उत्पादन में दूसरी कटौती जरूरी थी। ऊर्जा की मांग को लेकर अब भी अनिश्चितता बनी हुई है जबकि ट्रैवेल इंडस्ट्री पिक पर है। सऊदी अरब तेल से राजस्व बढ़ाना चाहता है ताकि उसकी परियोजनाओं में पैसे की कोई कमी ना हो।
 
दूसरी तरफ रूस भी यूक्रेन जंग के कारण तेल से ज़्यादा से ज़्यादा राजस्व हासिल करना चाहता है। पश्चिम के प्रतिबंध के कारण रूस को निर्यात से मिलने वाले राजस्व में मई महीने में 1.4 अरब डॉलर की गिरावट आई थी।
 
युआन में रूसी तेल का भुगतान कर रहा भारत? : 24 फरवरी, 2022 को रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था और तब से भारत का रूस से तेल आयात बढ़ता गया। पश्चिम के देशों के कड़े प्रतिबंधों के कारण रूस से यूरोप ने तेल आयात सीमित कर दिया था।
 
ऐसे में रूस ने भारत समेत कई देशों को सस्ता तेल देना शुरू किया था। भारत को यूक्रेन में जारी जंग के बाद रूस से सस्ता तेल मिल रहा है। जो तेल सऊदी अरब से भारत को 86 डॉलर प्रति बैरल मिल रहा है, वही रूस से 68 डॉलर प्रति बैरल मिल रहा है।
 
भारत का रूस से कच्चे तेल का आयात रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा है, लेकिन पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण रूस भारत से डॉलर में भुगतान नहीं चाहता है।
 
तेल के भुगतान के लिए लेन-देन किस मुद्रा में हो ये सवाल अब तक दोनों देशों के सामने खड़ा है। शुरुआत में भारत ने रूस को रुपए में भुगतान किया था, लेकिन रूस को इसका कोई फायदा नहीं हो रहा था। अब समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि भारतीय तेल कंपनियां रूस से तेल के आयात का भुगतान चीनी मुद्रा युआन में कर रही हैं।
 
रॉयटर्स के मुताबिक, वैश्विक तेल खरीद के लिए अमेरिकी डॉलर मुख्य तौर पर इस्तेमाल किया जाता था और भारत भी इससे ही तेल खरीदता था, लेकिन युआन ने रूस के वित्तीय सिस्टम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण मॉस्को को डॉलर और यूरो वित्तीय नेटवर्क से बाहर कर दिया गया है।
 
सूत्रों के आधार पर रॉयटर्स ने लिखा है कि जून में कच्चा रूसी तेल खरीदने वाली सबसे बड़ी कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन ने युआन में भुगतान किया था। वो चीनी मुद्रा में भुगतान करने वाली पहली सरकारी कंपनी बन गई है। इसके अलावा भारत की तीन में से दो निजी कंपनियों ने रूसी तेल के आयात के लिए युआन में भुगतान किया है।
 
रॉयटर्स ने इंडियन ऑयल, रिलायंस इंटस्ट्रीज लिमिटेड, रूस समर्थक नायारा एनर्जी और एचपीसीएल मित्तल एनर्जी लिमिटेड से इस मुद्दे पर उसका पक्ष जानना चाहा, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। युआन में भुगतान करने में आई तेजी से चीन को उम्मीद जगी है क्योंकि वो अपनी मुद्रा के अंतरराष्ट्रीयकरण की कोशिशें करता रहा है।
 
रूस से कितना तेल खरीद रहा है भारत : भारत को रूस से छूट पर मिल रहा कच्चा तेल जून महीने में शीर्ष पर रहा है, लेकिन जुलाई महीने में गिरावट आने की बात कही जा रही है। तेल विशेषज्ञ विक्टर कटोना ने अंग्रेज़ी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से कहा है कि रूस में तेल उत्पादन में कटौती और रूसी रिफाइनरी से बढ़ती मांग के कारण भारत पर असर पड़ेगा।
 
एक बात यह भी कही जा रही है कि जुलाई और अगस्त में भारतीय रिफाइनरी से मांग में कमी आएगी और कुछ यूनिट्स मॉनसून में मेंटेनेंस के लिए बंद होंगे। बरसात में भारत में तेल की मांग कम हो जाती है।
 
जून में भारत ने रूस से हर दिन 20.17 लाख बैरल कच्चा तेल आयात किया था। भारत ने जून महीने में कुल 40.78 लाख बैरल तेल प्रतिदिन आयात किया था और इसमें रूस की हिस्सेदारी करीब 45 फीसदी थी। मई महीने की तुलना में भारत के तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी ज्यादा थी।
 
भारत का 2021-22 में रूस से तेल आयात महज दो फीसदी था, जो अब बढ़कर 20 फीसदी से ज़्यादा हो गया है। रूस भारत के पारंपरिक तेल आपूर्तिकर्ता देश सऊदी अरब और इराक को पीछे छोड़ चुका है। रूस और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार भले बढ़कर 44 अरब डॉलर पहुंच गया है, लेकिन इसमें बड़ा हिस्सा तेल आयात का है।
 
भारत का रूस में निर्यात बहुत कम है। अप्रैल 2022 से जनवरी 2023 तक रूस के साथ भारत का व्यापार घाटा 34.79 अरब डॉलर का था।

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