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भारत के रफ़ाएल ख़रीदने से क्या डर जाएंगे चीन और पाकिस्तान?

भारत के रफ़ाएल ख़रीदने से क्या डर जाएंगे चीन और पाकिस्तान?
, गुरुवार, 6 सितम्बर 2018 (18:05 IST)
- टीम बीबीसी हिन्दी (नई दिल्ली)
फ्रांस से 36 रफ़ाएल लड़ाकू विमान ख़रीदने का समझौता काफ़ी विवादित हो गया है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पर मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस इस समझौते में घपले का आरोप लगा रही है। इस समझौते को रोकने के लिए मनोहर लाल शर्मा नाम के एक वक़ील ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार कर लिया है और अगले हफ़्ते मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच सुनवाई करेगी। इस बेंच में जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा जस्टिस खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ होंगे।
 
 
इन सब विवादों के बीच भारतीय वायु सेना के उपप्रमुख एसबी देव ने समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा है कि रफ़ायल एक बेहतरीन लड़ाकू विमान है और इसकी क्षमता अभूतपूर्व है। एसबी देव ने यह भी कहा कि जो इस डील की आलोचना कर रहे हैं उन्हें नियमों और समझौते की प्रक्रिया को जानना चाहिए। उन्होंने कहा, ''यह बेहतरीन लड़ाकू विमान है। इसकी क्षमता ज़बर्दस्त है और हम लोग इसका इंतज़ार कर रहे हैं।''
 
 
रफ़ाएल क्या कर पाएगा?
क्या रफ़ाएल वाक़ई बेहतरीन लड़ाकू विमान है? क्या इसके आने से भारतीय सेना की ताक़त बढ़ेगी? क्या चीन और पाकिस्तान से युद्ध के हालात में रफ़ाएल कारगर साबित होगा?
 
 
द इंस्टीट्यूट फ़ॉर डिफेंस स्टडीज़ एंड एनालिसिस (आईडीएसए) में फ़ाइटर जेट पर विशेषज्ञता रखने वाले एक विश्लेषक का कहना है, ''कोई भी लड़ाकू विमान कितना ताक़तवर है यह उसकी सेंसर क्षमता और हथियार पर निर्भर करता है। मतलब कोई फ़ाइटर प्लेन कितनी दूरी से देख सकता है और कितनी दूर तक मार कर सकता है। ज़ाहिर है इस मामले में रफ़ाएल बहुत ही आधुनिक लड़ाकू विमान है। भारत ने इससे पहले 1997-98 में रूस से सुखोई ख़रीदा था। सुखोई के बाद रफ़ाएल ख़रीदा जा रहा है। 20-21 साल के बाद यह डील हो रही है तो ज़ाहिर है इतने सालों में टेक्नॉलजी बदली है।''
 
 
वो कहते हैं, ''कोई फ़ाइटर प्लेन कितनी ऊंचाई तक जाता है यह उसकी इंजन की ताक़त पर निर्भर करता है। सामान्य रूप से फ़ाइटर प्लेन 40 से 50 हज़ार फ़िट की ऊंचाई तक जाते ही हैं, लेकिन हम ऊंचाई से किसी लड़ाकू विमान की ताक़त का अंदाज़ा नहीं लगा सकते हैं। फ़ाइटर प्लेन की ताक़त मापने की कसौटी हथियार और सेंसर क्षमता ही है।''
 
 
एशिया टाइम्स में रक्षा और विदेश नीति के विश्लेषक इमैनुएल स्कीमिया ने नेशनल इंटरेस्ट में लिखा है, ''परमाणु हथियारों से लैस रफ़ाएल हवा से हवा में 150 किलोमीटर तक मिसाइल दाग सकता है और हवा से ज़मीन तक इसकी मारक क्षमता 300 किलोमीटर है। कुछ भारतीय पर्यवेक्षकों का मानना है कि रफ़ाएल की क्षमता पाकिस्तान की एफ़-16 से ज़्यादा है।''
 
 
क्या भारत इसके दम पर जंग जीत पाएगा?
क्या भारत पाकिस्तान से इस लड़ाकू विमान के ज़रिए युद्ध जीत सकता है? आईडीएसए से जुड़े एक विशेषज्ञ का कहना है, ''पाकिस्तान के पास जो फ़ाइटर प्लेन हैं वो किसी से छुपे नहीं हैं। उनके पास जे-17, एफ़-16 और मिराज हैं। ज़ाहिर है कि रफ़ाएल की तरह इनकी टेक्नॉलजी एडवांस नहीं है। पर हमें यह समझना चाहिए कि अगर भारत के पास 36 रफ़ाएल हैं तो वो 36 जगह ही लड़ाई कर सकते हैं। अगर पाकिस्तान के पास इससे ज़्यादा फाइटर प्लेन होंगे तो वो ज़्यादा जगहों से लड़ाई करेगा। मतलब संख्या मायने रखती है।''
 
 
पूर्व रक्षा मंत्री और वर्तमान में गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर भी रफ़ाएल समझौते को आगे बढ़ाने में शामिल रहे हैं। पर्रिकर ने इसी साल जुलाई में कहा था कि रफ़ायल के आने से भारत, पाकिस्तान की हवाई क्षमता पर भारी पड़ेगा। पर्रिकर ने इसी साल 12 जुलाई को गोवा कला और साहित्य उत्सव में कहा था, ''इसका टारगेट अचूक होगा। रफ़ाएल ऊपर-नीचे, अगल-बगल यानी हर तरफ़ निगरानी रखने में सक्षम है। मतलब इसकी विजिबिलिटी 360 डिग्री होगी। पायलट को बस विरोधी को देखना है और बटन दबा देना है और बाक़ी काम कंप्यूटर कर लेगा। इसमें पायलट के लिए एक हेलमेट भी होगा।''
 
 
पाकिस्तान अब भी हमसे आगे?
पर्रिकर ने कहा था, ''1999 के करगिल युद्ध में भारतीय वायु सेना पाकिस्तान पर इसलिए हावी रही थी क्योंकि भारत की मिसाइलों की पहुंच एसयू-30 और मिग-20 के साथ 30 किलोमीटर तक थी। दूसरी तरफ़ पाकिस्तान की पहुंच 20 किलोमीटर तक ही थी। इसलिए हम आगे रहे। हालांकि 1999 से 2014 के बीच पाकिस्तान ने अपनी क्षमता को बढ़ाकर 100 किलोमीटर तक कर लिया जबकि भारत इस दौरान अपनी पहुंच 60 किलोमीटर तक ही बढ़ा पाया। मतलब हम लोग अभी ख़तरे में हैं। पाकिस्तानी लड़ाकू विमान हम पर हमले करेंगे तो हम पलटवार नहीं कर पाएंगे। रफ़ाएल आने के बाद हमारी पहुंच 150 किलोमीटर तक हो जाएगी।''
 
 
रक्षा विश्लेषक राहुल वेदी का कहना है कि रफ़ाएल से भारतीय एयर फ़ोर्स की ताक़त बढ़ेगी, लेकिन इसकी संख्या बहुत कम है। बेदी का मानना है कि 36 रफ़ाएल अंबाला और पश्चिम बंगाल के हासीमारा स्क्वाड्रन में ही खप जाएंगे।
 
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दो ही स्क्वाड्रन में खप जाएंगे रफ़ाएल
वो कहते हैं, ''दो स्क्वाड्रन काफ़ी नहीं हैं। भारतीय वायु सेना की 42 स्क्वाड्रन आवंटित हैं और अभी 32 ही हैं। जितने स्क्वाड्रन हैं उस हिसाब से तो लड़ाकू विमान ही नहीं हैं। हमें गुणवत्ता तो चाहिए ही, लेकिन साथ में संख्या भी चाहिए। अगर आप चीन या पाकिस्तान का मुक़ाबला कर रहे हैं तो आपको लड़ाकू विमान की तादाद भी चाहिए।''
 
 
वो कहते हैं, ''चीन के पास जो फ़ाइटर प्लेन हैं वो हमसे बहुत ज़्यादा हैं। रफ़ाएल बहुत अडवांस है, लेकिन चीन के पास ऐसे फ़ाइटर प्लेन पहले से ही हैं। पाकिस्तान के पास एफ़-16 है और वो भी बहुत अडवांस है। रफ़ाएल साढ़े चार जेनरेशन फ़ाइटर प्लेन है और सबसे अडवांस पांच जेनरेशन है।''
 
 
राहुल वेदी कहते हैं, ''रफ़ाएल हमें बना बनाया मिला है। इसमें टेक्नॉलजी ट्रांसफ़र नहीं है। रूस के साथ जो डील होती थी उसमें वो टेक्नॉलजी भी देता था। हम इसी दम पर 272 सुखोई विमान बना रहे हैं और लगभग फ़ाइनल होने के क़रीब हैं। हमारी क़ाबिलियत तकनीक का दोहन करने के मामले में बिल्कुल ना के बराबर है।''
 
 
कई रक्षा विश्लेषकों का कहना कि भारत की सेना के आधुनीकीकरण की रफ़्तार काफ़ी धीमी है। समाचार एजेंसी एएफ़पी को दिए इंटरव्यू में रक्षा विश्लेषक गुलशन लुथरा ने कहा था, ''हमारे लड़ाकू विमान 1970 और 1980 के दशक के हैं। 25-30 साल के बाद पहली बार टेक्नॉलजी के स्तर पर लंबी छलांग है। हमें रफ़ाएल की ज़रूरत थी।''
 
 
25 ही बचेंगे स्क्वाड्रन
अभी भारत के सभी 32 स्क्वाड्रन पर 18-18 फ़ाइटर प्लेन हैं। एयरफ़ोर्स की आशंका है कि अगर एयरक्राफ़्ट की संख्या नहीं बढ़ाई गई तो स्क्वाड्रन की संख्या 2022 तक कम होकर 25 ही रह जाएगी और यह भारत की सुरक्षा के लिए ख़तरनाक होगा।
 
 
भारत के वर्तमान आर्मी प्रमुख जनरल बिपिन रावत कई बार टू फ्रंट वॉर मतलब एक साथ दो देशों के आक्रमण की बात कह चुके हैं। जनरल रावत की इस टिप्पणी को भारत के ख़िलाफ़ पाकिस्तान और चीन के गठजोड़ के तौर पर देखा गया। मतलब पाकिस्तान अगर भारत से युद्ध छेड़ता है तो चीन भी उसका साथ दे सकता है। ऐसे में क्या भारत दोनों से निपट सकेगा?
 
 
गुलशन लुथरा ने अपने इंटरव्यू में कहा था, ''पाकिस्तान को तो हम लोग हैंडल कर सकते हैं। लेकिन हमारे पास चीन की कोई काट नहीं है। अगर चीन और पाकिस्तान दोनों साथ आ गए तो हमारा फंसना तय है।'' भारत और चीन 1962 में एक युद्ध कर चुके हैं। भारत को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। अब भी दोनों देशों के बीच सीमा का स्थाई तौर पर निर्धारण नहीं हो सका है।
 
 
डर का कारोबार
रफ़ाएल का इस्तेमाल सीरिया और इराक़ में किया जा चुका है। इसकी क़ीमत को लेकर भी आलोचना हो रही है। पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने भी क़ीमत को लेकर कहा था कि भारत और लड़ाकू विमान ख़रीदने में सक्षम नहीं है। उन्होंने कहा था, ''मैं ख़ुद भी चाहता हूं कि बीएमडब्ल्यू और मर्सीडीज रखूं पर मेरे पास नहीं हैं, क्योंकि मैं खर्च वहन नहीं कर सकता।''
 
 
कई रक्षा विश्लेषकों का यह भी कहना है कि भारत छोटे और हल्के फ़ाइटर प्लेन को पूरी तरह से ख़त्म कर रफ़ायल जैसे फ़ाइटर प्लेन को लाने में सक्षम नहीं है। राहुल बेदी भी क़ीमत को लेकर कहते हैं कि यह डर का कारोबार है जो थमता नहीं दिख रहा।
 
 
वो कहते हैं, ''भारत ने अरबों डॉलर लगाकर रफ़ाएल ख़रीदा है। संभव है कि इसका इस्तेमाल कभी ना हो और लंबे समय में इसकी तकनीक पुरानी पड़ जाए और फिर भारत को दूसरे फ़ाइटर प्लेन ख़रीदने पड़े। यह डर का कारोबार है जो दुनिया के ताक़तवर देशों को रास आता है। भारत इनके लिए बाज़ार है और यह बाज़ार युद्ध की आशंका पर ही चलता है। इसके कारोबारी आशंका को बढ़ाए रखते हैं और ग्राहक डरा रहता है।''
 
 
हालांकि राहुल बेदी कहते हैं कि डर के इस कारोबार से भारत के लिए निकलना बहुत मुश्किल है क्योंकि उसके पड़ोसी चीन और पाकिस्तान है। क्या रफ़ाएल से चीन और पाकिस्तान को डर लगेगा? राहुल बेदी कहते हैं, ''चीन को तो क़तई नहीं। पाकिस्तान के बारे में भी मैं पूरी तरह से 'हां' नहीं कह सकता। अगर 72 रफ़ाएल होते तो पाकिस्तान को डरना पड़ता, लेकिन 36 में डर जैसी कोई बात नहीं है। आज की तारीख़ में पाकिस्तान को रफ़ाएल से चार बट्टा 10 डर लगेगा और 9 बट्टा 10 नहीं डरेगा।''
 
 
बेदी के मुताबिक 2020 तक पाकिस्तान के भी 190 फ़ाइटर प्लेन बेकार हो जाएंगे। अगर पाकिस्तान चाहता है कि वो 350 से 400 की संख्या बनाए रखे तो उसे भी फ़ाइटर प्लेन का सौदा करना होगा। कई पर्यवेक्षकों का कहना है कि भारत से बराबरी करने के लिए भी पाकिस्तान अपना क़दम बढ़ा सकता है।
 
 
अमेरिकी सीनेट ने पाकिस्तान के साथ आठ एफ़-16 फ़ाइटर प्लेन का सौदा रोक दिया था। अमेरिका ने इसे रोकने के पीछे तर्क दिया था कि पाकिस्तान आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में भरोसेमंद नहीं है। पाकिस्तान की अभी आर्थिक हालत ठीक नहीं है कि वो रफ़ायल जैसा सौदा करे।
 

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