Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

PUBG बैन: आख़िर इतना बड़ा गेमिंग का साम्राज्य कैसे खड़ा हुआ?

PUBG बैन: आख़िर इतना बड़ा गेमिंग का साम्राज्य कैसे खड़ा हुआ?

BBC Hindi

, शुक्रवार, 4 सितम्बर 2020 (12:09 IST)
सरोज सिंह, बीबीसी संवाददाता
वैसे तो भारत सरकार ने 118 मोबाइल ऐप्स को बैन किया है। इसमें गेमिंग ऐप से लेकर डेटिंग, बिज़नेस और दूसरी तरह के ऐप शामिल हैं।
 
लेकिन हर जगह चर्चा पबजी मोबाइल गेम बैन की ही हो रही है। प्रतिबंध के बाद पबजी अब आप मोबाइल पर तो नहीं खेल सकते लेकिन डेस्कटॉप वर्जन अब भी काम कर रहा है।
 
भारत सरकार के इस फ़ैसले से कुछ बच्चे भले ही नाराज़ हों, लेकिन गेम को खेलने वाले बच्चों के माता-पिता ने इससे सबसे ज़्यादा ख़ुश हैं। पबजी खेलने के बच्चों की लत से सबसे ज़्यादा वही परेशान थे।
 
माता-पिता की परेशानी का आलम ये था कि 2019 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'परीक्षा पर चर्चा' कर रहे थे तो एक अभिभावक ने उनसे पूछा, "मेरा बेटा 9वीं क्लास में पढ़ता है, पहले वो पढ़ने में बहुत अच्छा था, पिछले कुछ समय से ऑनलाइन गेम्स के प्रति उसका झुकाव ज़्यादा बढ़ गया है। जिसकी वजह से उसकी पढ़ाई पर फ़र्क़ पड़ रहा है। मैं क्या करूं"
 
सवाल पूरा होने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "पबजी वाला है क्या?"
 
उनके इतना कहते ही पूरा ऑडिटोरियम ठहाकों से गूंज उठा। ज़ाहिर है ये ठहाके भारत में पबजी की लोकप्रियता को बयान करने के लिए काफ़ी हैं। क्या अभिभावक, क्या बच्चे और क्या प्रधानमंत्री - ऐसा कोई नहीं जिसने पबजी का नाम नहीं सुना हो।
 
प्रधानमंत्री मोदी ने उसी चर्चा में कहा था - ये समस्या भी है और समाधान भी। लेकिन डेढ़ साल बाद इसे समस्या मानते हुए उन्हीं की सरकार ने इसे बैन कर दिया।
 
इसके बैन होने के बाद इस गेम को खेलने वाले पबजी के पोस्टर बॉय नमन माथुर ने यूट्यूब पर एक लाइव किया। इस लाइव को एक समय में 80 हज़ार लोग देख रहे थे। नमन ने इस बैन के बारे में ट्वीट कर कहा, 'तूफ़ान आ गया है'। बैन के बाद के उसके वीडियो को लगभग 60 लाख लोग देख चुके हैं।
 
भारत सरकार के इस नए क़दम को चीन पर डिजिटल स्ट्राइक पार्ट-3 के तौर पर भी देखा जा रहा है। पिछले दस सालों में ऑनलाइन गेमिंग के मार्केट ने अपना जाल ऐसे फैला लिया है कि अब दुनिया के सबसे तेज़ी से उभरते हुए मार्केट में से एक माना जा रहा है।
 
आसान शब्दों में इस गेमिंग बाज़ार को समझने के लिए आप ये समझें कि जब पैसा देकर कोई सामान ख़रीददतें हैं तो आप ख़र्च करने के पहले पाँच बार सोचते हैं।
 
लेकिन ऑनलाइन मोबाइल गेम खेलते हैं तो इसका ख़र्चा शुरुआती दौर में नहीं होता। इसलिए लोगों को लगता है कि पैसे ख़र्च भी नहीं होते और मज़ा भी ले लेते हैं। इसी तरह ऑनलाइन मोबाइल गेम का बाज़ार बढ़ता जाता है। हालाँकि इसे प्रोफ़ेशनल तरीक़े से खेलने में और नए-नए लेवल पर जा कर खेलने में पैसे भी ख़र्च करने पड़ते हैं।
 
गेमिंग कंपनियां पहले आपको इसे खेलने की आदत लगाती हैं और फिर बाद में पैसे बनाती हैं। आसान भाषा में इस व्यापार को ऐसे समझा जा सकता है।
 
पबजी के बारे में कितना जानते हैं आप?
पबजी (PlayerUnknown's Battlegrounds) दुनिया भर में मोबाइल पर खेला जानेवाला एक पॉपुलर गेम है। भारत में भी इसके काफ़ी दीवाने हैं।
 
ये गेम एक जापानी थ्रिलर फ़िल्म 'बैटल रोयाल' से प्रभावित होकर बनाया गया जिसमें सरकार छात्रों के एक ग्रुप को जबरन मौत से लड़ने भेज देती है।
 
पबजी में क़रीब 100 खिलाड़ी किसी टापू पर पैराशूट से छलांग लगाते हैं, हथियार खोजते हैं और एक-दूसरे को तब तक मारते रहते हैं जब तक कि उनमें से केवल एक ना बचा रह जाए।
 
इसे दक्षिण कोरिया की वीडियो गेम कंपनी ब्लूहोल कंपनी ने बनाया है। दक्षिण कोरिया की कंपनी ने इसका डेस्क टॉप वर्जन बनाया था। लेकिन चीन की कंपनी टेनसेंट कुछ बदलाव के साथ इसका मोबाइल वर्जन नए नाम से बाज़ार में लेकर आई।
 
दुनिया में पबजी खेलने वालों में से लगभग 25 फ़ीसद भारत में हैं। चीन में महज़ 17 फ़ीसद यूज़र्स हैं और अमरीका में छह फ़ीसद।
 
पबजी गेम को एक साथ सौ लोग भी खेल सकते हैं। इसमें आपको नए नए हथियार ख़रीदने के लिए कुछ पैसे भी ख़र्च करने पड़ सकते हैं और कूपन ख़रीदना पड़ सकता है। गेम को इस तरीक़े से बनाया गया है कि जितना आप खेलते जाएंगे उतना ही उसमें मज़ा आएगा, उतना ही आप कूपन और हथियार ख़रीदेंगे, जिससे आपका गेम और बेहतर होता जाएगा। इसमें फ्री रूम भी होता है और इसमें अलग-अलग लेवल होते हैं। एक साथ कई अलग-अलग जगह पर रहने वाले इसे खेल सकते हैं और इसकी एक साथ स्ट्रीमिंग भी होती है। कॉनसोल के साथ भी इसे खेला जाता है।
 
कितना बड़ा है गेमिंग का बाज़ार
दुनिया की बात करें तो 2019 में गेमिंग का बाज़ार 16.9 अरब डॉलर का है। इसमें 4.2 अरब डॉलर की हिस्सेदारी के साथ चीन सबसे आगे है। दूसरे नंबर पर अमेरिका, तीसरे नंबर पर जापान और फिर ब्रिटेन और दक्षिण कोरिया का नंबर आता है।
 
ये आँकड़े statista.com के हैं। भारत में भी इस इंडस्ट्री का विस्तार तेज़ी से हो रहा है लेकिन अब भी ये एक अरब डॉलर से भी कम का है। भारत रेवेन्यू के मामले में गेमिंग के टॉप पाँच देशों में नहीं है। लेकिन बाक़ी देशों के लिए उभरता हुआ बाज़ार ज़रूर है।
 
भारत में गेमिंग स्ट्रीमिंग साइट, रूटर्स के सीईओ पीयूष कुमार के मुताबिक़, "भारत में सिर्फ़ पबजी की बात करें तो इस गेम के 175 मिलियन डाउनलोड्स हैं, जिसमें से एक्टिव यूज़र 75 मिलियन के आसपास हैं। चीन से ज़्यादा लोग भारत में पबजी खेलते हैं। लेकिन कमाई की बात करें तो वो भारत से बहुत कम होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि पैसा ख़र्च कर गेम खेलने वालों की तादाद भारत में कम है।"
 
क्या इसका मतलब ये हुआ कि भारत सरकार के इस तथाकथित 'डिजिटल स्ट्राइक' का असर चीन पर 'ना' के बराबर होगा?
 
पीयूष के मुताबिक़ ऐसा कहना ग़लत होगा। भारत में गेम खेलने वालों की तादाद दुनिया के दूसरे बड़े देशों के मुक़ाबले ज़्यादा है इसलिए भविष्य में 'गेमिंग हब' के तौर पर भारत को देखा जा रहा है। अगर किसी कंपनी को भारत के बाज़ार से बाहर निकलना पड़ेगा, तो उस पर असर उसके यूज़र बेस पर ज़रूर पड़ेगा।
 
यूज़र बेस की बात करें तो भारत में 14 साल से लेकर 24 साल के बच्चे और युवा ऑनलाइन गेम को सबसे ज़्यादा खेलते हैं। लेकिन पैसा ख़र्च करने की बात करें तो 25 से 35 साल वाले ऑनलाइन गेमिंग पर ख़र्च ज़्यादा करते हैं।
 
कैसे होती है गेमिंग से कमाई?
दरअसल ऑनलाइन गेमिंग में कई तरह से कमाई होती है। ये जानने के लिए हमने बात की वरिष्ठ बिज़नेस पत्रकार आशु सिन्हा से।
 
उनके मुताबिक़ गेमिंग से पैसा कमाने का एक मॉडल है फ्रीमियम का - यानी पहले फ्री में दो और बाद में प्रिमियम (किश्तों में) ख़र्च करने को कहो। दूसरा मॉडल होता है - उससे जुड़े मर्चन्डाइज़ बना कर। बच्चों में ख़ास कर उनसे जुड़े कैरेक्टर, टी-शर्ट, कप प्लेट, कपड़ों का क्रेज़ बहुत बढ़ जाता है। गेम से प्रभावित होकर अक्सर उन चीज़ों की ख़रीद बढ़ जाती है, जिससे भी कंपनियाँ कमाई करती हैं।
 
और कमाई का तीसरा रास्ता होता है उस पर आधारित विज्ञापन और फिल्में बना कर। कई बार फ़िल्मों पर आधारित गेम्स आते हैं। फ़िल्म की लोकप्रियता गेम्स के प्रचार प्रसार में मदद करती है और कभी गेम्स की लोकप्रियता फ़िल्मों के प्रचार प्रसार में मदद करती है।
 
जो लोग इस गेम को प्रोफ़ेशनल तरीक़े से खेलते हैं उनको सरकार के इस क़दम से नुक़सान पहुँच सकता है। कई गेम्स खेलने वाले यूट्यूब पर भी बहुत पापुलर हैं। इस तरह के गेम्स ऑर्गेनाइज़ करने वालों को भी काफ़ी नुक़सान होगा। लेकिन टिकटॉक पर बैन के बाद पबजी बैन की चर्चा शुरू हो गई थी। ऐसे में बहुत लोगों ने पहले ही दूसरे गेम्स पर शिफ्ट करना शुरू कर दिया था।
 
दूसरे विकल्प कौन से हैं?
पीयूष के मुताबिक़ भारत में अभी ऑनलाइन गेम्स बनाने का बहुत बड़ा चलन नहीं है। भारतीय डेवलपर्स इसमें अभी काफ़ी पीछे हैं। उनको उम्मीद है कि बैन के बाद इसमें कई कंपनियाँ अब हाथ आज़माएंगी, क्योंकि अब तक उन्हें पबजी की लोकप्रियता से ख़तरा ज़्यादा था।
 
फ़िलहाल रूटर्स की बात करें तो उनके पास 'फ्री फायर' और 'कॉल ऑफ ड्यूटी' खेलने वालों की तादाद ज़्यादा है। 'फ्री फ़ायर' सिंगापुर की कंपनी ने बनाया है और भारत में इसे खेलने वालों की संख्या अभी पाँच करोड़ के आसपास है और 'कॉल ऑफ ड्यूटी' के यूज़र्स लगभग डेढ़ करोड़ के आसपास हैं।
 
भारत में हर तरह के मोबाइल और ऑनलाइन गेम खेलने और देखने वालों की संख्या लगभग 30 करोड़ है, जो लॉकडाउन में बढ़ती है जा रही है। कुछ भारतीय गेम्स भी हैं जो यहाँ के लोगों में पापुलर है जैसे बबल शूटर, मिनीजॉय लाइट, गार्डन स्केप, कैंडी क्रश।
 
चूंकी पिछले चार-पाँच महीने से लोग और ख़ास कर बच्चे घरों से बाहर नहीं जा रहे, तो गेमिंग का बाज़ार अपने आप में बढ़ता जा रहा है।
 
विकास जायसवाल, फाउंडर हैं गेमशन टेक्नलॉजिज़ के। बीबीसी से बातचीत में उन्होंने बताया था कि लॉकडाउन के पहले उनके प्रतिदिन एक्टिव यूज़र लगभग 13 से 15 मिलियन होते थे, जो लॉकडाउन में 50 मिलियन हो गए। उनकी कमाई में भी पाँच गुना इज़ाफ़ा हुआ है। लेकिन वो मानते हैं कि अभी गेमिंग इंडस्ट्री का पीक आना बाक़ी है।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

चीन को रोकने का लिए क्या क्या कर रहा है अमेरिका