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मलेशिया से सस्ता पाम ऑयल क्या कहीं और मिल सकता है?

मलेशिया से सस्ता पाम ऑयल क्या कहीं और मिल सकता है?

BBC Hindi

, गुरुवार, 23 जनवरी 2020 (10:32 IST)
हाल के दिनों में भारत और मलेशिया के बीच तनाव बढ़ा तो भारत ने मलेशिया से पाम ऑयल के आयात पर रोक लगा दी। पर, क्या ये मुमकिन है कि हम पाम ऑयल के बिना रह सकें?
 
अगर आप ने आज शैम्पू किया है, या साबुन से नहाए हैं, टूथपेस्ट से दांत साफ़ किए हैं, विटामिन की गोलियां खायी हैं, मेक-अप किया है, नाश्ते में ब्रेड खाई है और उस पर मार्जरीन लगाया है तो आप ने किसी न किसी रूप में पाम ऑयल इस्तेमाल किया है। यहां तक कि हम जिस गाड़ी में सफ़र करते हैं, बस, ट्रेन या कार वो भी ऐसे ईंधन से चलती हैं, जिसमें पाम ऑयल मिलाया जाता है।
 
आज पेट्रोल या डीज़ल में जो जैविक ईंधन या बायो-फ्यूल मिलाया जाता है, वो असल में पाम ऑयल ही होता है। यहां तक कि बहुत से घरों तक बिजली पहुंचाने में भी पाम ऑयल का रोल रहता है।
 
पाम ऑयल, दुनिया का सबसे लोकप्रिय वनस्पति तेल भी है। दुनिया के पचास प्रतिशत घरेलू उत्पादों में आज इस्तेमाल होता है। औद्योगिक कामों की बात करें, तो वहां भी इसका बहुत उपयोग होता है।
 
2018 में दुनिया भर के किसानों ने 7।7 करोड़ टन पाम ऑयल पैदा किया था। 2024 तक पाम ऑयल का उत्पादन बढ़कर क़रीब 11 करोड़ टन पहुंचने की संभावना है।
 
क्या कहते हैं आकड़े?
साल 2019 के आंकड़ों को देखें तो इंडोनीशिया में इस साल सबसे अधिक 43,000 मैट्रिक टन पाम ऑयल का उत्पादन किया गया। दूसरे नंबर पर है मलेशिया जहां 2019 में मलेशिया जहां 21,000 मैट्रिक टन का उत्पादन किया गया। इतनी अधिक मात्रा में पाम ऑयल का उप्तादन कोई तीसरा देश नहीं करता।
 
खाने वाले तेलों के मामले में भारत के आयात का दो तिहाई हिस्सा केवल पाम ऑयल है। भारत सालाना करीब 90 लाख टन पाम ऑयल का आयात करता है।
 
इंडोनीशिया और मलेशिया दोनों ही देशों से पाम ऑयल का आयात करता है। जहां भारत अपने कुल आयात का 70 फीसदी पाम ऑयल इंडोनीशिया से लेता है, वहीं 30 फीसदी मलेशिया से खरीदता है।
 
लेकिन बीते साल मलेशिया ने इंडोनीशिया के मुक़ाबले भारत को सबसे अधिक पाम ऑयल का निर्यात किया। लेकिन साल के आख़िर तक मलेशिया के साथ बिगड़ते रिश्तों के कारण भारत ने मलेशिया से पाम ऑयल का आयात कम कर दिया।
 
खुद मलेशिया के कुल निर्यात का 4।5 फीसद हिस्सा केवल पाम ऑयल है। इससे होने वाली आय का उसकी अर्थव्यवस्था की जीडीपी में बड़ा योगदान है।
 
हमारी ज़िंदगी के हर कोने तक पाम ऑयल की पहुंच होने की वजह इसकी बनावट है। पाम ऑयल को पश्चिमी अफ़्रीकी नस्ल के ताड़ के पेड़ के बीजों से निकाला जाता है। इसका रंग धुंधला होता है।
 
इसमें कोई महक नहीं होती। जिसकी वजह से इसे हर तरह के खाने में मिलाया जा सकता है। ये बहुत ऊंचे तापमान पर पिघलता है। इसमें सैचुरेटेड फ़ैट बहुत अधिक होता है। यही वजह है कि इससे मुंह में पिघल जाने वाली क्रीम और टॉफी-चॉकलेट बनाये जाते हैं।
 
दूसरे वनस्पति तेलों में हाइड्रोजन मिलाना पड़ता है तभी वो पाम ऑयल के मुक़ाबले में खड़े हो सकते हैं। लेकिन, इस वजह से अन्य वनस्पति तेलों में सेहत के लिए नुक़सानदेह ट्रांस-फैट शामिल हो जाते हैं।
 
पाम ऑयल की रासायनिक बनावट ऐसी है कि ये बहुत गर्म होने पर भी ख़राब नहीं होता। इसे ईंधन की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। ताड़ की गिरी को चूर करके कंक्रीट बनाने में प्रयोग कर सकते हैं। और इसके पेड़ जलाने से जो राख बनती है, उसे सीमेंट की जगह इस्तेमाल किया जा सकता है।
 
ताड़ के पेड़ों को उष्णकटिबंधीय इलाक़ों में आसानी से उगाया जा सकता है। ये किसानों के लिए भी बहुत फ़ायदेमंद होते हैं। यही वजह है कि दुनिया भर में ऑयल पाम यानी तेल वाले ताड़ की खेती बढ़ती जा रही है।
 
पर्यावरण को भारी नुक़सान
लेकिन, इसकी खेती बढ़ने से दुनिया के तमाम देशों में जंगलों का सफ़ाया हो रहा है। इंडोनेशिया और मलेशिया में हज़ारों एकड़ ज़मीन पर जंगल साफ़ करके ताड़ की खेती हो रही है। इन दोनों देशों में ही एक करोड़ तीस लाख हेक्टेयर में ताड़ की खेती हो रही है।
 
इसकी वजह से 2001 से 2018 के बीच इंडोनेशिया में क़रीब ढाई करोड़ हेक्टेयर के जंगल काट डाले गए। ये इलाक़ा न्यूज़ीलैंड के बराबर है।
 
पाम ऑयल के बेतहाशा इस्तेमाल से पर्यावरण को भारी नुक़सान हो रहा है। इसकी वजह से दुनिया भर में सरकारों और कारोबारियों पर दबाव है कि वो पाम ऑयल का विकल्प तलाशें। मगर, पाम ऑयल का विकल्प आसानी से उपलब्ध नहीं है।
 
अमरीका में पाम ऑयल का सबसे ज़्यादा आयात करने वाली कंपनी जनरल मिल्स की मौली वुल्फ़ कहती हैं, "हम काफ़ी दिनों से पाम ऑयल का विकल्प खोज रहे हैं। लेकिन, उस की रासायनिक बनावट जैसी कोई चीज़ अब तक नहीं मिल सकी है।"
 
ब्रिटेन की कॉस्मेटिक कंपनी लश (LUSH) बिना पाम ऑयल के साबुन बना रही है। जिसके लिए सफ़ेद सरसों के बीज और नारियल के तेल की मिलावट की जा रही है।
 
इसी कंपनी ने मोविस नाम से एक साबुन तैयार किया है। इसमें सूरजमुखी का तेल, कोकोआ का मक्खन, एक्स्ट्रा वर्जिन नारियल तेल और गेहूं के अंकुरों से बने तेल का प्रयोग किया गया है।
 
अन्य खाद्य और कॉस्मेटिक कंपनियां शिया, साल, जोजोबा, कोकम, आम की गुठली और जट्रोफ़ा ऑयल की मदद से उत्पाद तैयार कर रही हैं। लेकिन, ये सभी चीज़ें उतनी सस्ती नहीं हैं, जितना पाम ऑयल। न ही इनकी उपलब्धता उस पैमाने पर है।
 
अफ्रीका में पाया जाने वाला शिया नट स्थानीय समुदाय के लोग छोटे पैमाने पर जमा कर के बेचते हैं। इसे बागानों में नहीं उगाया जाता। ऐसे में ये दुनिया की पाम ऑयल की मांग पूरी करने का विकल्प नहीं बन सकता।
 
क्या है पाम ऑयल का विकल्प?
पाम ऑयल का प्रयोग जानवरों के खाने में भी होता है। इस में काफ़ी कैलोरी होती है और ये विटामिन पचाने में भी मदद करता है। जैसे-जैसे दुनिया में मांस, पोल्ट्री और डेयरी उत्पादों की मांग बढ़ेगी, वैसे-वैसे पाम ऑयल की मांग बढ़नी तय है।
 
पाम ऑयल की मांग कम करने के लिए दुनिया भर में प्रयोग हो रहे हैं। पोलैंड में मुर्गियों को खिलाने के लिए पाम ऑयल के उत्पादों की जगह कीड़ों से बना आहार तैयार किया गया है।
 
इसी तरह पेट्रोल और डीज़ल में मिलाने के लिए पाम ऑयल के विकल्प तलाशे जा रहे हैं। जैसे कि काई से निकाला गया तेल। कई वैज्ञानिक ऐसे प्रयोग कर रहे हैं।
 
दिक़्क़त ये है कि ये सारे प्रयोग, पाम ऑयल का विकल्प नहीं तलाश रहे हैं। क्योंकि जितनी बड़ी मात्रा में पाम ऑयल की मांग है, उसे इनमें से कोई भी विकल्प फिलहाल पूरा करता नहीं दिख रहा है।
 
कुछ लोगों का कहना है कि अगर हम पाम ऑयल की मांग नहीं कम कर सकते तो, इसे उगाने का तरीक़ा तो बदल ही सकते हैं। जिससे पर्यावरण को कम नुक़सान हो।
 
ताड़ का पेड़, भूमध्य रेखा के इर्द-गिर्द ही उगाया जा सकता है। ये सर्द इलाक़ों में नहीं उगता। अब वैज्ञानिक ऐसा पौधा विकसित करना चाहते हैं, जिसे अन्य इलाक़ों में भी उगाया जा सके।
 
इससे उष्णकटिबंधीय जंगलों पर दबाव कम होगा। ऑस्ट्रेलिया की कैनबरा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने तंबाकू और सोरघम की पत्तियों से भी तेल निकालने की कोशिश की है।
 
इस रिसर्च की अगुवाई कर रहे काइल रेनॉल्ड्स कहते हैं कि, "पाम ऑयल का उद्योग बहुत विशाल है। इस वक़्त ये क़रीब 67 अरब डॉलर का कारोबार है। हम पाम ऑयल का विकल्प तो तलाश सकते हैं। लेकिन, वो उतना ही सस्ता हो, ये ज़रूरी नहीं।"
 
मतलब साफ़ है। अभी दुनिया के पास पाम ऑयल का विकल्प है नहीं। हां, हम इस का उपयोग कम कर के पर्यावरण को होने वाले नुक़सान को ज़रूर कम कर सकते हैं।
 
रही, मलेशिया से पाम ऑयल आयात करने की बात... तो, हम भले वहां से पाम ऑयल न ख़रीदें लेकिन, किसी और देश से तो मंगाना ही पड़ेगा। इस के बिना काम नहीं चलने वाला।

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