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एक 'ग़लती' ने उसकी ज़िंदगी बदल कर रख दी

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मंगलवार, 28 मार्च 2017 (12:16 IST)
- उमर नांगियाना (लाहौर से)
पाकिस्तान की वजीहा अरूज ने पंजाब विश्वविद्यालय के साथ 17 साल से चल रही क़ानूनी लड़ाई जीत ली है। यह लड़ाई विश्वविद्यालय की एक मामूली-सी दिखने वाली भूल की वजह से थी। यह विश्वविद्यालय की एक ऐसी ग़लती थी, जिसने अरूज की ज़िंदगी बदल कर रख दी थी।
 
अरूज कहती हैं, "विश्वविद्यालय ने मेरे सपने कुचल कर रख दिए लेकिन कभी माफ़ी नहीं मांगी। मेरी इज्ज़त और समाज में मेरी प्रतिष्ठा की भरपाई पैसे से नहीं हो सकती।" विश्वविद्यालय ने अरूज के एमए अंग्रेज़ी की परीक्षा के एक पेपर में उन्हें ग़ैरहाज़िर बताकर फ़ेल कर दिया था।
 
अरूज के मुताबिक़, विश्वविद्यालय के एक अधिकारी ने उनके पिता से कहा कि वे नहीं जानते कि उनकी बेटी क्या करती हैं और परीक्षा के दिन कहां थीं। पाकिस्तान एक रूढ़िवादी समाज वाला देश माना जाता है। वहां बेटियों की सुरक्षा पर अधिक ध्यान दिया जाता है। किसी पुरुष के साथ डेट पर जाना आमतौर पर वहां के समाज में अच्छा नहीं माना जाता।
 
लोग यह अनुमान लगाने लगे कि अरूज किसी पुरुष के साथ किसी रिश्ते में हैं और उस दिन परीक्षा छोड़कर वो उसी पुरुष के साथ थीं। अरूज कहती हैं, "यहां तक कि मेरी मां भी मुझे अजीब निगाहों से घूरने लगीं। मेरे चचेरे भाई-बहन मुझसे पूछने लगे कि मैंने परीक्षा क्यों छोड़ दी।"
 
रिश्तेदार शाम की कक्षा पर आपत्ति करने लगे। वे यह भी पूछने लगे कि अरूज पूरे साल तो क्लास नहीं छोड़ती रही। वो कहती हैं, "एक समय तो मैं इतना तनावग्रस्त हो गई कि ख़ुदकुशी करने तक की सोचने लगी।"
उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय के ख़िलाफ़ लाहौर हाई कोर्ट में मुक़दमा दायर किया। उनके घर के लोगों ने उनका साथ दिया और उनके वकील पिता उनकी पैरवी करने पर राज़ी हो गए। चार महीने बाद विश्वविद्यालय ने अदालत में अरूज के परीक्षा के काग़ज़ात पेश किए। उन्होंने परीक्षा के हाज़िरी रजिस्टर को ठीक से नहीं भरने का दोष एक क्लर्क पर मढ़ दिया। बाद में उन्हें फिर से रिज़ल्ट दिया गया और उसमें उन्हें पास कर दिया गया।
 
घर के लोगों ने समाज की आलोचना से बचने के लिए अरूज की शादी चार महीने बाद ही करवा दी। इसका नतीजा यह निकला कि वे आगे की पढ़ाई नहीं कर सकीं और सिविल सेवा की परीक्षा नहीं दे सकीं। उनकी दोनों बहनों ने पढ़ाई जारी रखी और उनमें से एक न्यायिक अधिकारी बन गई। विश्वविद्यालय ने बाद में फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील की और मामला आगे चलता रहा। बीते साल लाहौर की एक अदालत ने विश्वविद्यालय को आठ लाख रुपए बतौर मुआवज़ा देने को कहा।
 
विश्वविद्यालय के प्रवक्ता ख़ुर्रम शहज़ाद ने कहा कि प्रशासन पहले फ़ैसले का अध्ययन करेगा और उसके बाद इस पर विचार करेगा। वह इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील भी कर सकता है। 
 
इस्लामाबाद के क़ायदे आज़म विश्वविद्यालय में लैंगिक अध्ययन की पूर्व निदेशक डॉक्टर फ़रज़ाना बारी ने कहा, ''यदि आज के समय में किसी लड़की के साथ ऐसा हो तो उसे भी इसी तरह के अफ़वाहों और दवाबों से गुज़रना होगा।'' अरूज ने अदालत के फ़ैसले पर सिर्फ़ इतना कहा कि वो यह साबित करना चाहती थीं कि वो ग़लत नहीं थीं।

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