Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

क्या चीन के सपनों में उलझ गए हैं ये देश

क्या चीन के सपनों में उलझ गए हैं ये देश
, गुरुवार, 9 अगस्त 2018 (12:43 IST)
- (टीम बीबीसी नई दिल्ली)
 
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना को 'प्रोजेक्ट ऑफ द सेंचुरी' कहा था। उन्होंने कहा था कि इससे वैश्वीकरण का स्वर्ण युग आएगा। चीन के वन बेल्ट वन रोड परियोजना में 78 देश शामिल हैं और यह दुनिया की सबसे महत्वाकांक्षी विकास परियोजना है।
 
 
हालांकि इस परियोजना के आलोचकों की आशंका है कि इसमें शामिल देश क़र्ज़ के जाल में ऐसे उलझ रहे हैं कि निकलना मुश्किल होगा। इन आशंकाओं को इस परियोजना से जुड़े कुछ विवादों के कारण और हवा मिली है। पाकिस्तान, श्रीलंका, मोंटेनेग्रो, लाओस और मलेशिया पर बढ़ते चीनी क़र्ज़ की बात दुनिया भर में हो रही है।
 
 
इन देशों में चीन की वन बेल्ट वन रोड परियोजना के तहत हो रहे काम इतने गोपनीय हैं कि अब तक लगने वाली रक़म तक को सार्वजनिक नहीं किया गया है। चीन का कितना पैसा लगा है और जिस देश में काम हो रहा है उसका कितना हिस्सा है यह अब तक रहस्य बना हुआ है।
 
 
वॉशिंगटन के एक थिंक टैंक आरडब्ल्यूआर अडवाइजरी ग्रुप का कहना है कि प्रोजेक्ट की लागत और चीन से मिलने वाले क़र्ज़ की रक़म पूरी तरह से अपारदर्शी है। इस थिंक टैंक के प्रमुख एंड्र्यू डेवेनपोर्ट का कहना है कि अनुबंध को हासिल करने में स्पष्ट प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है।
 
 
बीआरआई यानी वन बेल्ट रोड का खाका जिस तरह से चीन ने तैयार किया है वो बेमेल है। फाइनैंशियल टाइम्स के एक अध्ययन के अनुसार चीन ने जिन 78 देशों को इसमें शामिल किया है उनमें से कई की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडी का भी यही आकलन है कि जिन 78 देशों को चीन ने इस योजना में शामिल किया है उनमें से कई की अर्थव्यवस्था निवेश के लायक नहीं हैं।
 
 
ख़ाली हो गया पाकिस्तान का विदेश मुद्रा भंडार
मिसाल के तौर पर बीआरआई में शामिल पाकिस्तान को देखा जा सकता है। ओईसीडी रैंकिंग ऑफ कंट्री रिस्क में पाकिस्तान को सातवां दर्जा मिला है। इसी महीने पाकिस्तान ने इस बात की पुष्टि की है कि वो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में बेलआउट के लिए संपर्क कर रहा है।
 
 
चाइना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर के तहत चीन पाकिस्तान में 60 अरब डॉलर की योजनाओं पर काम कर रहा है। सीपीईसी के कारण पाकिस्तान चीन से भारी पैमाने पर सामान आयात कर रहा है और इस वजह से उसका आयात का खर्च बेशुमार बढ़ गया है। क़र्ज़ों के भुगतान के कारण पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग ख़ाली हो गया है। इस वक़्त पाकिस्तान विदेशी मुद्रा भंडार की कमी से जूझ रहा है।
 
 
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में भुगतान संकट लगातार गहरा हो रहा है। एशिया इकनॉमिस्ट ऐट कैपिटल इकनॉमिक्स एक रिसर्च फ़र्म है और उसका कहना है कि ऐसा पाकिस्तान में चल रही चीनी परियोजना में लगने वाले सामनों के चीन से आयात के कारण हुआ है। जून महीने की शुरुआत में पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक के पास महज 10 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा बची थी। पाकिस्तान को अगले साल भुगतान के लिए 12.7 अरब डॉलर की ज़रूरत पड़ेगी।
 
 
कंबोडिया भी तनाव में
इस परियोजना के तहत कंबोडिया दूसरा देश है, जिसे बड़ा क़र्ज़ दिया गया है। कंबोडिया भी इससे तनाव में है। परियोजना को पूरा करने के लिए भारी पैमाने पर कंबोडिया सामानों का आयात कर रहा है। इस वजह से उसका व्यापार घाटा 10 फ़ीसदी बढ़ गया है। अगर विदेशी निवेश में कमी आती है कि कंबोडिया को अपनी देनदारी चुकाने में भी कठनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
 
 
दूसरे अन्य देशों की चिंताएं
अन्य देशों को भी इसी तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। श्रीलंका आर्थिक कठिनाइयों की वजह से अपना हम्बनटोटा बंदरगाह चीन को सौंप चुका है। श्रीलंका चीन के दिए क़र्ज़ को चुका नहीं पाया था और उसके पास ऐसा करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था।
 
 
चीन से क़र्ज़ लेने के बाद क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने मोंटेनेग्रो देश की क्रेडिट रेटिंग घटा दी थी। मोंटेनेग्रो ने अपनी मोटरवे परियोजना के पहले चरण के लिए चीन से 809 मिलियन यूरो क़र्ज़ लिया था। यह क़र्ज़ उसकी कुल जीडीपी का करीब पांचवां हिस्सा था।
 
 
मलेशिया ने रोका भुगतान
लाओस ने चीन के साथ देश में रेल लाइन के निर्माण पर समझौता किया है, जिसकी लागत क़रीब 6 अरब डॉलर है। यह पूरा खर्च उसकी 2015 की जीडीपी का 40% है। निर्माण में लगने वाली कई ज़रूरी वस्तुएं आयात की जा रही है, जिससे देश की सुस्त अर्थव्यस्था को घाटे का सामना करना पड़ रहा है।
 
 
वन बेल्ट वन रोड परियोजना को लेकर मलेशिया की परेशानी कुछ और ही है। मलेशिया को भुगतान की समस्या नहीं है पर देश की नई सरकार ने कई कई फ़ैसले बदल दिए हैं। नए प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने देश में चीन की मदद से चल रही एक परियोजना पर रोक लगा दी है। मलेशिया ने अपने फ़ैसले में 23 अरब डॉलर के भुगतान रोक दिया है। साथ ही नई सरकार अब "असमान संधि" की समीक्षा करने का निर्णय लिया है।
 
 
चीनी कंपनियां भी क़र्ज़ तले
अमेरिका की एक व्यापार प्रबंधन सलाहकार फर्म आरडव्ल्यूआर अडवायजरी के एक अध्ययन में क़र्ज़ के पूरे विवाद का मूल्यांकन किया गया है। इसमें परियोजनाओं का सार्वजनिक विरोध, चीन की श्रम नीतियों, निर्माण में देरी और राष्ट्र सुरक्षा के समक्ष चिंताओं जैसे बिंदु शामिल थे।
 
 
इसमें यह बताया गया है कि साल 2013 में शुरू हुई वन बेल्ट वन रोड परियोजना के तहत 1814 परियोजनाओं में से 270 पर ही बेहतर काम हो पाए हैं। यह पूरी परियोजना का 32 प्रतिशत हिस्सा है। चीनी स्वामित्व वाली कंपनियां, जो निर्माण कार्य में लगी हैं, वो भी क़र्ज़ की समस्या झेल रही हैं।
 
 
फाइनैंशियल के एक अध्ययन के मुताबिक चीन के बाहर काम कर रही 10 बड़ी चीनी कंपनियों पर क़र्ज़ का बोझ ज़्यादा है। आंकड़े बताते हैं कि इन कंपनियों पर इनकी कुल क्षमता का 9.2 गुना बोझ है। वहीं, इस परियोजना के लिए काम कर रही ग़ैर-चीनी कंपनियों पर यह बोझ 2.4 गुना है।
 
 
फ़ाइनैंशियल टाइम्स से चीन के एक अधिकारी ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, "बड़ी कंपनियां देश की कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चला रहे हैं। राजनीतिक निष्ठा और अपने आकाओं को ख़ुश रखने के लिए उन्हें परियोजना का हिस्सा बनाया गया है। ऐसे में क़र्ज़ उनके लिए चिंता का विषय नहीं है।"
 
 
ये कंपनियां कहीं न कहीं सरकार का हिस्सा हैं, ऐसे में ये दिवालिया होने के डर के बिना भारी क़र्ज़ पर चल सकती हैं। ''चीन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि परियोजना के तहत कुछ निवेश जोखिम भरे हैं, जिसकी भरपाई शायद न हो। इसलिए बीजिंग में इस परियोजना की समीक्षा हो रही है। हमें यह सुनिश्चित करने की ज़रूरत है कि परियोजना की प्रतिष्ठा बनी रहे और यह काम गुणवत्तापूर्ण हो।''
 

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

15 साल तक गुफ़ा में क़ैद रखकर करता रहा बलात्कार