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नवीन पटनायक अहम मौकों पर बीजेपी के साथ क्यों रहते हैं?

नवीन पटनायक अहम मौकों पर बीजेपी के साथ क्यों रहते हैं?

BBC Hindi

, गुरुवार, 3 अगस्त 2023 (07:56 IST)
अनंत प्रकाश, बीबीसी संवाददाता
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल ने बीते मंगलवार को एलान किया है कि बीजेडी दिल्ली सर्विस विधेयक और अविश्वास प्रस्ताव पर बीजेपी का समर्थन करेगी।
 
इसके साथ ही आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने भी इन दोनों मुद्दों पर बीजेपी का समर्थन करने का एलान किया है। कहा जा रहा है कि आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी का भी यही रुख़ हो सकता है।
 
ये ख़बर आने के साथ ही कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस की आलोचना शुरू कर दी है। ओडिशा से कांग्रेस के इकलौते सांसद सप्तगिरी उलाका ने बीजेडी को बीजेपी की बी टीम क़रार दिया है।
 
बीजेपी को मिला बड़ा सहारा
बीजेडी ने बीते मंगलवार कहा है कि वह दिल्ली सर्विस विधेयक और अविश्वास प्रस्ताव के मुद्दे पर बीजेपी का समर्थन करेगी।
 
इन दोनों मज़बूत क्षेत्रीय दलों के इस फ़ैसले ने जहाँ राज्यसभा में बीजेपी को बड़ी राहत दी है, वहीं विपक्षी दलों के लिए चुनौती खड़ी कर दी है।
 
राज्यसभा में आने वाले कुछ दिनों में इस विधेयक पर वोटिंग हो सकती है। किसी विधेयक के पारित होने के लिए उसे आधे से ज़्यादा सांसदों के समर्थन की ज़रूरत होती है।
 
ऐसे में इस समय राज्य सभा में कुल सांसदों की संख्या 238 है और सात सीटें खाली हैं। इस लिहाज़ से इस विधेयक को पारित कराने के लिए बीजेपी को 120 सांसदों के समर्थन की ज़रूरत होगी।
 
लेकिन फ़िलहाल बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन में सिर्फ़ 103 सांसद है। लेकिन वाईएसआर कांग्रेस और बीजेडी के पास राज्य सभा में नौ-नौ सांसद हैं।
 
ऐसे में एनडीए को इन दोनों पार्टियों का समर्थन मिलने से बीजेपी के लिए राज्य सभा में ये विधेयक पारित कराना आसान हो गया है।
 
इसी वजह से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी समेत दूसरे दलों के नेताओं की ओर से बीजेडी की आलोचना की जा रही है।
 
लेकिन ये पहला मौक़ा नहीं है जब बीजेडी को बीजेपी का समर्थन करते हुए दिखने की वजह से विपक्षी दलों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा हो।
 
बीजेडी ने कब-कब किया बीजेपी का समर्थन
साल 1997 में पार्टी के गठन के बाद से लेकर 2023 तक बीजेपी कई मौकों पर नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल का समर्थन हासिल करती रही है।
 
हालिया मौकों की बात करें तो मौजूदा दौर में जब बीजेपी को राज्य सभा में बीजेडी से चुनौतीपूर्ण मौक़ों पर समर्थन हासिल हुआ है।
 
साल 2019 में बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए गठबंधन बीजेडी के दम पर राज्य सभा में तीन राजनीतिक रूप से अहम विधेयक पास कराने में कामयाब रहा था।
 
इन विधेयकों में आर्टिकल 370 निरस्त करने वाला विधेयक, तीन तलाक़ को ग़ैर-क़ानूनी बनाने वाला विधेयक और नागरिकता संशोधन विधेयक शामिल है।
 
इसके साथ ही साल 2022 में जब बीजेपी मौजूदा रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को राज्यसभा सदस्य बनाना चाहती थी तब बीजेडी ने संख्या बल होने के बावजूद राज्यसभा में अपना उम्मीदवार नहीं भेजकर बीजेपी की मदद की।
 
लेकिन दिलचस्प बात ये है कि बीजेडी जहां अहम मौक़ों पर बीजेपी को सहारा देती नज़र आती है। वहीं, कई मौक़ों पर वह बीजेपी से दूर खड़ी भी नज़र आती है।
 
उदाहरण के लिए, जब संसद भवन के उद्घाटन समारोह का विपक्षी पार्टियों ने बायकॉट किया तो नवीन पटनायक ने भी इस कार्यक्रम से दूरी बनाए रखी। हालांकि, उन्होंने अपनी पार्टी के 21 सांसदों को इस कार्यक्रम में शिरकत लेने के लिए भेजा।
 
वाजपेयी से मोदी तक नवीन पटनायक
पिछले दो दशकों में नवीन पटनायक की राजनीति पर नज़र डालें तो एक बात स्पष्ट रूप से नज़र आती है कि उनके केंद्र सरकार के साथ हमेशा मधुर संबंध रहे हैं।
 
नवीन पटनायक के जीवन और उनकी राजनीति पर किताब लिखने वाले रुबिन बनर्जी मानते हैं कि यही बात उनकी राजनीति को दिलचस्प बनाती है।
 
बनर्जी बताते हैं, “नवीन पटनायक की राजनीति की ख़ूबसूरती यही है कि केंद्र में जो भी पार्टी सत्ता में आए, उसके साथ उनके संबंध काफ़ी अच्छे रहे हैं। जब वाजपेयी सत्ता में थे तो नवीन पटनायक के वाजपेयी और आडवाणी दोनों के साथ क़रीबी संबंध थे। फिर जब यूपीए के दौर में सोनिया गांधी सत्ता में आईं तो नवीन पटनायक के उनके साथ भी अच्छे रहे। और मोदी के साथ भी उनके काफ़ी अच्छे संबंध हैं।”
 
साल 1997 में पहली बार सांसद बनने के बाद नवीन पटनायक वाजपेयी सरकार में केंद्रीय इस्पात और खान मंत्री रहे।
 
इसके बाद साल 2000 में बीजेडी ने एनडीए के साथ मिलकर ओडिशा विधानसभा चुनाव लड़ा जिसमें जीत हासिल करके नवीन पटनायक पहली बार ओडिशा के मुख्यमंत्री बने।
 
साल 2004 में एक बार फिर एनडीए के साथ मिलकर उन्हें लोकसभा और असेंबली चुनाव लड़ा। इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी जहां सत्ता से बाहर हुई। लेकिन पटनायक अपनी गद्दी बचाने में सफल रहे।
 
इसके बाद साल 2004 से 2009 के बीच बीजेपी और बीजेडी के बीच दरारें आने के संकेत मिलने लगे। और 2009 में बीजेडी ने एनडीए का साथ छोड़ दिया।
 
इसके बाद से अब तक बीजेडी एनडीए में शामिल नहीं हुए हैं। लेकिन बीजेपी के साथ उनके रिश्ते बने हुए हैं।
 
रुबिन बनर्जी इसकी वजह बताते हैं, “सन् 1997 में जब बीजू जनता दल का गठन हुआ तो संसाधनों की कमी से जूझ रही इस क्षेत्रीय पार्टी को बीजेपी से ही आर्थिक मदद मिली थी। पार्टी की स्थापना के बाद जब भुवनेश्वर में पहली रैली हुई तो साहिब सिंह वर्मा समेत दूसरे बीजेपी नेता मंच पर मौजूद थे। इसके बाद जब केंद्र में बीजेपी सत्ता में आई तो नवीन पटनायक उस सरकार में केंद्रीय मंत्री बने। ऐसे में ये संबंध बेहद पुराना है।”
 
‘इंडिया’ या ‘एनडीए’ से दूरी क्यों?
नवीन पटनायक एक ऐसे नेता हैं जिन्हें भारत के दो बड़े राजनीतिक गठबंधन अपनी ओर खींचने का प्रयास करते रहते हैं। विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ से जुड़े शीर्ष क्षेत्रीय नेता जैसे नीतीश कुमार और ममता बनर्जी बीजेडी को अपने साथ लाने की कोशिश कर चुकी हैं।
 
लेकिन बीजेडी हर मौके पर ये दिखाने की कोशिश करती आई है कि वह दोनों गठबंधनों से दूर रहना चाहती है।
 
रुबिन बनर्जी इसकी वजह बताते हैं, “बीजेडी दावा करती है कि वह दोनों सिरों से समान दूरी बनाए रखने में यकीन रखती है। लेकिन जो नवीन पटनायक की राजनीति समझता है, वो इस दावे की असलियत भी जानता है। इसके पीछे की बात ये है कि वो ओडिशा में अपनी सत्ता बरकरार रखना चाहते हैं। उनकी उम्र 76 वर्ष है और उनकी राष्ट्रीय राजनीति में किसी तरह की भूमिका निभाने की महत्वाकांक्षा नहीं है। ऐसे में इस मामले में वह शरद पवार, नीतीश कुमार और ममता बनर्जी जैसे दूसरे क्षेत्रीय नेताओं से अलग हैं।
 
उनका मूल मकसद ओडिशा में अपनी पार्टी को मजबूत बनाए रखना है और इसमें उन्हें दोनों शीर्ष गठबंधनों से दूरी बनाकर रखने में ही फायदा है। क्योंकि अगर वह एनडीए में चले जाते हैं तो ओडिशा में विपक्ष के रूप में कांग्रेस के लिए जगह बनना शुरू हो जाएगी। फिलहाल ओडिशा में मुख्य विपक्षी दल बीजेपी है। वहीं, अगर वह विपक्षी दलों के साथ चले जाते हैं तो उन्हें मोदी और शाह की नाराज़गी मोल लेनी पड़ेगी। ऐसे में उनकी पॉलिटिक्स को ये सूट करता है कि वे किसी के साथ जाए बग़ैर अलग-अलग मौकों को ध्यान में रखते हुए अपने हित में कदम उठाएं।”

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