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मिलिए, 'मिस्टर गे इंडिया' समर्पण मैती से

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बुधवार, 24 जनवरी 2018 (15:04 IST)
- सिन्धुवासिनी
13 जनवरी, 2018। ये तारीख़ समर्पण मैती की ज़िंदगी में हमेशा ख़ास रहेगी। 29 साल के समर्पण इसी दिन मिस्टर गे इंडिया बने थे। जी हां, मिस्टर गे इंडिया।....मिस इंडिया, मिस वर्ल्ड और मिस यूनिवर्स के बारे में तो आप पहले ही जानते हैं। मिस्टर गे इंडिया भी एक ऐसा ही टाइटल है।
 
जैसा कि नाम से ज़ाहिर है, इसमें वो पुरुष हिस्सा लेते हैं जो गे (समलैंगिक) हैं और सार्वजनिक तौर पर अपनी सेक्शुअलिटी को लेकर 'आउट' यानी सहज हैं। भारत में इसकी शुरुआत 2009 में हुई थी।
 
इस साल यह खिताब समर्पण मैती के नाम गया है। एलजीबीटी समुदाय के नामी चेहरों और सितारों से एक भरे हुए ऑडिटोरियम में जैसे ही समर्पण के नाम का ऐलान हुआ, चारों तरफ़ से तालियों और सीटियों की आवाज़ें आने लगीं।
 
पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव में पले-बढ़े समर्पण के लिए ये सब एक हसीन सपने जैसा था। कुछ साल पहले तक वो ख़ुद को नकार रहे थे, लोगों के तानों और परिवार को समझाने की नाक़ाम कोशिश से जूझ रहे थे।
 
कुछ वक़्त पहले तक वो ख़ुद को चोट पहुंचा रहे थे, ख़ुदकुशी के करीब आ चुके थे। मगर आज सब कुछ बदल गया है। वो बधाइयों वाले मेसेज और कॉल्स का जवाब दे रहे हैं, इंटरव्यू दे रहे हैं। वो हंसकर कहते हैं, "शुरुआत भले मुश्किल हो लेकिन आखिर में सब ठीक हो जाता है।"
 
समर्पण इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ केमिकल बॉयोलजी में रिसर्च कर रहे हैं। उन्होंने बीबीसी से बातचीत में बताया, "ग्रैजुएशन में मैं हॉस्टल में रहता था। वहां मैंने लोगों पर भरोसा करके अपनी सेक्शुअलिटी के बारे में बता दिया। उसके बाद मेरा वहां रहना मुश्किल हो गया।"
 
हालात ऐसे हो गए कि समर्पण को हॉस्टल छोड़ना पड़ा। उन्होंने बताया, "मेरे रूममेट से मेरी बहुत अच्छी दोस्ती थी। कुछ लोगों ने अफ़वाह फैला दी कि हम दोनों कपल हैं, जबकि ऐसा नहीं था।" उनसे कहा गया कि या तो वो अपने रूममेट से अलग हो जाएं या हॉस्टल छोड़ दें। आख़िर समर्पण ने हॉस्टल छोड़ने का फ़ैसला किया।
 
समर्पण की शिक़ायत है कि एलजीबीटी समुदाय बहुत 'अर्बन सेंट्रिक' है। वो कहते हैं, "कम्युनिटी में ज्यादातर लोग बड़े शहरों से हैं। वो फ़र्राटेदार अंग्रेज़ी बोलते हैं और महंगी-महंगी जगहों पर मीटिंग करते हैं। अगर कोई समलैंगिक गांव या पिछड़े इलाके से है तो उसके लिए अडजस्ट करना बहुत मुश्किल होता है।"
 
उन्हें भी ऐसे भेदभाव का सामना करना पड़ा था। उन्होंने बताया, "जब मैं कोलकाता आया तो यहां लोगों ने मुझ पर ध्यान नहीं दिया लेकिन धीरे-धीरे मैंने अपनी पहचान क़ायम की।" समर्पण को लिखने और मॉडलिंग का शौक़ है।
 
वो कहते हैं, "जब लोगों ने मेरा लिखा हुआ पढ़ा, मेरी मॉडलिंग देखी, मेरा आत्मविश्वास देखा तो वो ख़ुद मेरे पास आए।" मिस्टर गे इंडिया बनने के बाद अब समर्पण मई में 'मिस्टर गे वर्ल्ड' पीजेंट में हिस्सा लेने के लिए दक्षिण अफ़्रीका जा
एंगे। 
 
इसमें ख़ास क्या है?
लेकिन क्या मिस्टर गे जैसी प्रतियोगिताएं भी एक ख़ास तरह के लुक और ख़ूबसूरती के दम पर जीती जाती हैं? मिस्टर गे वर्ल्ड के डायरेक्टर (दक्षिण-पूर्व एशिया) सुशांत दिवगीकर की मानें तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। 
 
उन्होंने कहा, "ये मिस इंडिया और मिस वर्ल्ड से बिल्कुल अलग है। मिस्टर गे बनने के लिए आपको लंबा, गोरा, ख़ूबसूरत या अविवाहित होने की ज़रूरत नहीं है। एलजीबीटी समुदाय पहले ही तमाम भेदभावों का शिकार है। अगर हम भी यही करेंगे तो लोग हम पर हंसेंगे।"
 
सुशांत कहते हैं कि यही वजह है कि अगर आप मिस्टर गे बनने वाले अब तक के सभी लोगों को देखेंगे तो पाएंगे वो एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। उन्होंने कहा, "आप पिछले साल के विनर अन्वेश साहू और समर्पण को ही देख लीजिए। दोनों बिल्कुल अलग हैं। अन्वेश सांवला और दुबला है जबकि समर्पण गोरा और हट्टा-कट्टा।"
 
कैसे बनते हैं मिस्टर गे?
तो मिस्टर गे चुना कैसा जाता है? इसमें हिस्सा लेने की शर्तें क्या हैं? सिर्फ़ तीन शर्तें हैं।
 
•18 साल ये इससे ज्यादा का कोई भी शख़्स इसमें शामिल हो सकता है।
•वो भारतीय नागरिक होना चाहिए।
•वो गे होना चाहिए और सार्वजनिक जीवन में अपनी पहचान को लेकर सहज होना चाहिए।
 
सुशांत ने बताया, "रजिस्ट्रेशन के बाद कई राउंड्स होते हैं। मसलन, मिस्टर फ़ोटोजेनिक राउंड और पीपल्स चॉइंस राउंड। प्रतियोगियों को इंटरव्यू और ग्रुप डिस्कशन में भी शामिल होना पड़ता है।" इन सबके बाद मिस्टर गे के नाम का ऐलान किया जाता है और उसे 'मिस्टर वर्ल्ड' प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए भेजा जाता है।
 
इनका मक़सद क्या है?
सुशांत के मुताबिक ऐसे इवेंट्स समुदाय के लोगों को मिलने-जुलने का मौक़ा देते हैं। इसमें हिस्सा लेने वालों को एक प्लैटफ़ॉर्म मिलता है जहां वो अपनी बातें सबके सामने रख सकें।
 
उन्होंने कहा, "भारत जैसे देशों में ऐसी प्रतियोगिताएं और ज़्यादा ज़रूरी हो जाती हैं क्योंकि बहुत से लोगों को पता ही नहीं है कि गे या लेस्बियन जैसा कुछ होता है। जिन्हें पता भी है, वो इसे ग़लत समझते हैं।"
 
क्या समर्पण को ये ख़िताब जीतने की उम्मीद थी? इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं, "हां, बिल्कुल। लेकिन मैं अपनी अंग्रेज़ी को लेकर थोड़ा नर्वस था। मैं ठीकठाक अंग्रेज़ी बोल लेता हूं लेकिन उसमे वो एलीट लहजा नहीं है, जो बड़े शहरों के लोगों में होता है।" हालांकि वो इस बात से बेहद ख़ुश हैं कि ज़ूरी ने उनका साथ दिया और वो विनर बन सके।
 
अब इसके बाद क्या?
समर्पण गांवों में काम करना चाहते हैं। सिर्फ़ एलजीबीटी और जेंडर मामलों पर नहीं बल्कि स्वास्थ्य समस्याओँ पर भी। उन्हें फ़िल्ममेकिंग का शौक़ है और वो इसमें भी हाथ आज़माना चाहते हैं।

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