मोहम्मद शाहिद, बीबीसी संवाददाता
नारे और वन लाइनर जहां कार्यकर्ताओं में जोश भरते हैं वहीं विरोधियों में उबाल पैदा करते हैं। उत्तर प्रदेश में हर चुनाव में नारे और वन लाइनर उछलते रहे हैं और कई बार नारों ने उन्माद भी पैदा किया है। इस बार भी हर बार की तरह एक नई वन लाइनर सामने है। इसे किसी पार्टी ने अपना आधिकारिक नारा नहीं बनाया है लेकिन समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल (सपा-बसपा-आरएलडी) महागठबंधन के लिए इसे इस्तेमाल किया जा रहा है और ये है, 'लाठी, हाथी और 786'।
लाठी को यादव, लोधी और जाटों जैसी जातियों से जोड़कर देखा जा रहा है तो वहीं हाथी बसपा पार्टी का चिह्न है और वह दलित वोटों को अपना कहती रही है और 786 मुसलमानों के लिए एक पवित्र अंक है। लेकिन क्या ये त्रिकोण सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन को आगामी लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीटों पर क्लीन स्वीप करने में मदद करेगा? अभी साफतौर पर ये नहीं कहा जा सकता है।
उत्तर प्रदेश में पहले चरण का मतदान होने में अब बमुश्किल पांच दिन बचे हैं। पहले चरण में 11 अप्रैल को देश भर की 91 सीटों पर वोटिंग होगी। इस दिन यूपी में पश्चिम की आठ सीटों पर मतदान होगा।
ये वे सीटें हैं जहां पर जाट, गुर्जर, मुस्लिम और दलित मतदाता निर्णायक भूमिका अदा करते हैं और 2014 में इन सीटों पर भाजपा ने क्लीन स्वीप किया था। इसी इलाके की बागपत सीट पर मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर और भाजपा उम्मीदवार सत्यपाल सिंह ने दिग्गज जाट नेता और आरएलडी के प्रमुख अजित सिंह को करारी मात दी थी। अजित सिंह उस समय तीसरे नंबर पर रहे थे।
किन मुद्दों पर हो रहा चुनाव?
'जाटलैंड' कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा-आरएलडी की एकता पिछले साल कैराना सीट पर हुए उप-चुनावों में देखी गई। जब सपा की तबस्सुम हसन को आरएलडी ने अपने चिह्न पर चुनाव लड़ाया और उन्होंने दिवंगत केंद्रीय मंत्री हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को 45 हजार वोटों से हराया। उसी समय समझा जाने लगा था कि सपा-बसपा-आरएलडी गठबंधन हुआ तो उत्तर प्रदेश में ये गठजोड़ भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकता है। साल 2014 के चुनावों में बीजेपी ने 71 सीटें और 2017 विधानसभा चुनावों में 300 से ज़्यादा सीटें अपने नाम की थीं।
गाजियाबाद के स्थानीय पत्रकार अजय प्रकाश कहते हैं कि पूरे उत्तर प्रदेश में कैराना के आधार पर ही चुनाव लड़ा जा रहा है। वो कहते हैं, 'ये चुनाव 'हाथी, लाठी और 786' के नारे पर लड़ा जाएगा। फूलपुर, नूरपुर, कैराना और गोरखपुर सीटों पर हुए उप-चुनाव में इसी आधार पर महागठबंधन ने जीत दर्ज की थी। इसी के ज़रिए महागठबंधन ने पूर्वी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जीत दर्ज की थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ये समीकरण जाट, गुर्जर, मुस्लिम और जाटव हो जाता है।'
कहां हैं गन्ना किसान?
भारतीय राजनीति में जाति को बहुत अहम माना जाता है। जाति और धर्म के आधार पर पार्टियां अपना उम्मीदवार तय करती रही हैं तो क्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाति ही केंद्र में है या फिर गन्ना किसानों के भुगतान और यूरिया जैसे भी मुद्दे मौजूद हैं।
इस पर अजय प्रकाश कहते हैं, 'कोई भी सियासत बिना मुद्दों के नहीं हो सकती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश वह इलाका है जहां किसानों का एक बड़ा वर्ग आमद वाली फसलें बोता है। वहां वे बड़े नुकसान में हैं और गन्ने के भुगतान का बकाया लगातार मांगते हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी ने वादे किए थे कि वो किसानों की आय दोगुनी करेंगे, डाई यूरिया के दाम बढ़ने नहीं देंगे। ये वादे पूरे नहीं हुए हैं। किसान सिर्फ जाति धर्म पर वोट नहीं देगा, मुद्दों पर भी वोट देगा।'
हालांकि, मुजफ्फरनगर के एक स्थानीय पत्रकार का कहना है कि किसानों की समस्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटों पर कोई बड़ा मुद्दा ही नहीं है।
वो कहते हैं, 'किसान, गन्ना, सड़क, बिजली जैसे मुद्दे केवल स्थानीय ही हैं लेकिन लोकसभा जैसे चुनाव जातिगत समीकरणों पर ही लड़े और जीते जाते हैं। ये केवल टीवी पर ही दिखाया जाता है लेकिन जमीनी स्तर पर जातिगत और सांप्रदायिक मुद्दे ही हैं। जातिगत समीकरण इस कदर भाजपा पर हावी है कि वह बहुत मेहनत कर रही है और सहारनपुर की रैली में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कांग्रेस उम्मीदवार इमरान मसूद को चरमपंथी मसूद अज़हर का दामाद तक कह दिया।
कौन कितना ताकतवर?
लगभग पूरे उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक धुव्रीकरण की कोशिश की जाती रही है। 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद बसपा का गढ़ कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां भाजपा ने कब्जा किया था। वहीं, बड़े स्तर पर राय है कि 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान 'श्मशान और कब्रिस्तान' के नारे ने भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का काम किया।
तो इस समय पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर कौन ताकतवर है। इस सवाल पर रवि कहते हैं कि महागठबंधन को जातिगत समीकरणों के कारण बढ़त हासिल है लेकिन गाजियाबाद, गौतम बुद्ध नगर और सहारनपुर जैसी तीन सीटों पर भाजपा की बढ़त कायम है।
स्थानीय पत्रकार कहते हैं, '2013 के मुजफ्फरनगर दंगों का अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उतना प्रभाव नहीं है। लोग दंगों को भूलना चाहते हैं। यहां तक कि सर्जिकल स्ट्राइक जैसे मुद्दे भी बड़े पैमाने पर प्रभाव नहीं डाल पा रहे हैं लेकिन फिर भी आगामी लोकसभा चुनाव एकतरफा नहीं होने जा रहा है। तीन सीटों पर भाजपा की बढ़त कायम है।
सहारनपुर सीट
भाजपा के राघव लखनपाल इस सीट से वर्तमान सांसद हैं और भाजपा ने उन्हें दोबारा अपना उम्मीदवार बनाया है। वहीं बसपा की ओर से हाजी फजलुर्रहमान और कांग्रेस से इमरान मसूद उम्मीदवार हैं।
सहारनपुर के स्थानीय पत्रकार तस्लीम कुरैशी कहते हैं कि इस सीट पर चुनाव थोड़ा हटकर है क्योंकि यहां पर कांग्रेस और महागठबंधन के उम्मीदवार मुस्लिम हैं, 2014 में इमरान मसूद को चार लाख वोट मिले थे जो अब महागठबंधन के साथ बंटेगा।
कैराना सीट
2018 में कैराना सीट पर हुए उप-चुनावों में आरएलडी की तबस्सुम हसन ने जीत दर्ज की थी। अब तबस्सुम सपा की ओर से महागठबंधन की उम्मीदवार हैं।
वहीं, भाजपा से प्रदीप चौधरी और कांग्रेस की ओर से हरेंदर मलिक उम्मीदवार हैं। उप-चुनावों में तबस्सुम ने मृगांका को सिर्फ 45 हजार वोटों से हराया था। इस सीट पर कांग्रेस का भी उम्मीदवार है तो चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला है।
मुजफ्फरनगर सीट
2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के अभियुक्त रहे वर्तमान सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान इस सीट से फिर एक बार भाजपा के उम्मीदवार हैं। उनके सामने आरएलडी प्रमुख और महागठबंधन के उम्मीदवार अजित सिंह हैं।
महागठंधन ने जिस तरह से कांग्रेस के लिए अमेठी और रायबरेली सीट पर चुनाव न लड़ने का फैसला लिया था। उसी तरह से कांग्रेस ने भी सात सीटों पर चुनाव न लड़ने का फैसला लिया है जिनमें मुजफ्फरनगर और बागपत सीट शामिल है।
रवि कहते हैं कि मुजफ्फरनगर सीट पर जाट बनाम जाट की लड़ाई है, यहां पर संजीव बालियान अभी भी मजबूत हैं लेकिन अजित सिंह के पास मुस्लिम वोट भी हैं जो यहां तकरीबन 30 फीसदी हैं।
बिजनौर सीट
उत्तर प्रदेश की जिन सीटों पर मुस्लिम वोट अधिक है उनमें से एक सीट बिजनौर भी है। महागठबंधन की ओर से बसपा के मलूक नागर यहां से उम्मीदवार हैं। वहीं, भाजपा ने वर्तमान सांसद कुंवर भारतेंद्र सिंह को फिर एक बार अपना उम्मीदवार बनाया है।
कांग्रेस की ओर से नसीमुद्दीन सिद्दीकी के आ जाने से इस सीट पर भी चुनाव बेहद रोमांचक होने वाला है।
मेरठ सीट
बसपा के हाजी मोहम्मद याकूब, भाजपा के वर्तमान सांसद राजेंद्र अग्रवाल और कांग्रेस के हरेंद्र अग्रवाल मेरठ सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। 2014 के चुनाव में राजेंद्र अग्रवाल ने बसपा के मोहम्मद शाहिद अखलाक को ढाई लाख वोटों से हराया था। इस बार का चुनाव भी महागठबंधन के लिए आसान नहीं होने वाला है।
बागपत सीट
केंद्रीय मंत्री सत्यपाल सिंह बीजेपी की ओर से तो वहीं आरएलडी की ओर से जयंत चौधरी महागठबंधन के उम्मीदवार हैं। अजित सिंह की पारंपरिक सीट रही बागपत से इस बार उनके पुत्र जयंत उम्मीदवार हैं। कांग्रेस ने उनके खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है। इस कारण मुख्य मुकाबला सत्यपाल सिंह और जयंत चौधरी के बीच है।
गाजियाबाद सीट
अजय प्रकाश कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की गाजियाबाद और गौतम बुद्ध नगर दो ऐसी सीटें हैं जिन पर बीजेपी उम्मीदवार मजबूत स्थिति में हैं। उनका कहना है कि इस क्षेत्र की अधिकतर आबादी शहरों में रहती है जिनमें सवर्ण अधिक है जो पारंपरिक रूप से बीजेपी का वोटर है।
महागठबंधन से सपा के सुरेश बंसल, बीजेपी की ओर से वर्तमान सांसद वीके सिंह और कांग्रेस की ओर से डॉली शर्मा इस सीट पर मुख्य उम्मीदवार हैं।
गौतम बुद्ध नगर सीट
बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा एक बार फिर उम्मीदवार बनाए गए हैं। महागठबंधन की ओर से बसपा के सतबीर नागर और कांग्रेस के अरविंद सिंह चौहान भी इस सीट पर अपनी दावेदारी ठोंक रहे हैं।
महेश शर्मा ने 2014 में सपा के नरेंद्र भाटी को तकरीबन दो लाख 80 हजार वोटों से हराया था। विश्लेषकों का मानना है कि महेश शर्मा को हराना महागठबंधन या कांग्रेस के लिए बिलकुल आसान नहीं होगा।