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राकेश टिकैत कौन हैं? जिनके आँसू देख ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर उमड़ी भीड़

राकेश टिकैत कौन हैं? जिनके आँसू देख ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर उमड़ी भीड़

BBC Hindi

, शनिवार, 30 जनवरी 2021 (08:58 IST)
प्रशांत चाहल, बीबीसी संवाददाता
किसान नेता राकेश टिकैत इस वक़्त ख़बरों के केंद्र में हैं। गुरुवार रात को ग़ाज़ीपुर बॉर्डर के उनके एक भावुक वीडियो से ना सिर्फ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बल्कि हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के किसानों में भी आंदोलन के लिए एक नई ऊर्जा देखने को मिली है।
 
सोशल मीडिया पर इन इलाक़ों के सैकड़ों लोग हैं जिन्होंने लिखा है कि 'उनके यहाँ कल रात खाना नहीं बना' और वो 'अपने बेटे की पुकार' पर ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पहुँच रहे हैं।'
 
26 जनवरी के दिन लाल क़िले पर हुई घटना के बाद किसान संगठन जिस नैतिक दबाव का सामना कर रहे थे, उसके असर को ग़ाज़ीपुर की घटना ने कम कर दिया है और किसान नेता राकेश टिकैत के क़द को बढ़ा दिया है।
 
नवंबर 2020 में जब इस आंदोलन की शुरुआत हुई, तब राकेश टिकैत की भूमिका बहुत सीमित बताई जा रही थी। लोग उन्हें 'बिकाऊ' कह रहे थे और कुछ लोगों का मानना था कि 'उनके होने से किसान आंदोलन का नुक़सान होगा।'
 
52 वर्षीय राकेश टिकैत ने गुरुवार को ऐलान किया कि 'देश का किसान सीने पर गोली खाएगा, पर पीछे नहीं हटेगा।' उन्होंने यह धमकी भी दी कि 'तीनों कृषि क़ानून अगर वापस नहीं लिये गए, तो वे आत्महत्या करेंगे, लेकिन धरना-स्थल खाली नहीं करेंगे।'
 
उनके इस तेवर ने लोगों को नामी किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की याद दिलाई, जिन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक बड़ा इलाक़ा सम्मान से 'बाबा टिकैत' या 'महात्मा टिकैत' कहता है।
 
'बाबा टिकैत' की विरासत
महेंद्र सिंह टिकैत उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय किसान नेता रहे। वे भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भी थे और क़रीब 25 साल तक वे किसानों की समस्याओं को लेकर संघर्ष करते रहे।
 
उन्हें क़रीब से जानने वाले बताते हैं कि 1985 तक टिकैत को कम ही लोग जानते थे। मगर उसके बाद, स्थानीय स्तर पर बिजली के दाम और उससे जुड़ी हुई समस्याओं को लेकर कुछ प्रदर्शन हुए जिनमें प्रशासन से टकराव के बाद युवा किसानों ने 'बाबा टिकैत' से उनका नेतृत्व करने की गुज़ारिश की और टिकैत ज़िम्मेदारी लेते हुए नौजवानों के साथ खड़े हो गये।
 
वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी बताते हैं, "महेंद्र सिंह टिकैत की सबसे बड़ी ताक़त थी कि वे अंत तक धर्म-निरपेक्षता का पालन करते रहे। उनकी बिरादरी (जाट) के किसानों के अलावा खेती करने वाले मुसलमान भी उनकी एक आवाज़ पर उठ खड़े होते थे, और इसी के दम पर उन्होंने उस 'विशेष जगह' को भरने का काम किया जो किसान-मसीहा कहे जाने वाले चौधरी चरण सिंह के बाद खाली हुई थी।"
 
खड़ी बोली में बात करने वाले महेंद्र सिंह टिकैत एक सामान्य किसान थे जिनका जीवन अपने गाँव में ही गुज़रा। लेकिन किसान आंदोलनों की वजह से और अपने बयानों की वजह से, कई बार सरकारों के साथ उनका टकराव हुआ।
 
रामदत्त त्रिपाठी बताते हैं कि "यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने एक बार उन्हें गिरफ़्तार करवा लिया था। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने भी उन्हें गिरफ़्तार करने के लिए पुलिस भेजी, पर पुलिस असफल रही। तो इस तरह की घटनाओं ने 'एक बुज़ुर्ग किसान नेता' की लोकप्रियता को हर बार और बढ़ाया।"
 
महेंद्र सिंह टिकैत का जब भी ज़िक्र होता है, तब 1988 में दिल्ली के बोट क्लब में हुए किसानों के प्रदर्शन को ज़रूर याद किया जाता है। इस प्रदर्शन के बाद, बोट क्लब के क़रीब प्रदर्शन करने पर ही रोक लगा दी गई थी।
 
उसे याद करते हुए रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, "एक अनुमान के मुताबिक़, पाँच लाख किसान दिल्ली चले आये थे। कुर्ता-धोती पहने किसानों की एक पूरी फ़ौज बोट क्लब पर जमा हो गई थी जिनका नेतृत्व कर रहे लोगों में बाबा टिकैत एक मुख्य चेहरा थे। दिल्ली के शहरी इससे ज़रा चिढ़ते थे क्योंकि किसानों ने उनकी आइसक्रीम खाने और घूमने की जगह पर क़ब्ज़ा कर लिया था। लेकिन तब सरकार अब की तुलना में थोड़ी लचीली थी और विभिन्न पक्षों को सुना जाता था। लेकिन अब स्थिति अलग है और इसीलिए राकेश टिकैत और मौजूदा किसान आंदोलन के सामने चुनौतियाँ ज़्यादा हैं।"
 
राकेश टिकैत भावुक क्यों हुए?
टिकैत परिवार मूल रूप से खेती करने वाला परिवार है। महेंद्र सिंह टिकैत के छोटे भाई भोपाल सिंह दिल्ली में अध्यापक थे और गाँव में खेती का काम टिकैत संभालते रहे।
 
टिकैत के घर चार लड़के और तीन लड़कियाँ हुईं। इनमें से नरेश टिकैत, जिन्हें जवानी में 100 और 200 मीटर रेस का चैम्पियन कहा जाता था, वो सबसे बड़े हैं। नरेश टिकैत भारतीय किसान यूनियन के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और इलाक़े की एक बड़ी खाप पंचायत 'बालियान खाप' के मुखिया भी हैं। बालियान खाप में मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के 80 से ज़्यादा गाँव शामिल हैं।
 
उनके बाद राकेश टिकैत हैं जिनका जन्म 4 जून 1969 को मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले के सिसौली गाँव में हुआ। ये टिकैत परिवार का पैतृक गाँव है।
 
राकेश टिकैत ने एमए तक अध्ययन किया है। उनके पास वक़ालत की डिग्री भी बताई जाती है। वे भारतीय किसान यूनियन के मौजूदा राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं और उनका संगठन किसानों के संयुक्त मोर्चे में भी शामिल है।
 
तीसरे और चौथे नंबर पर हैं, नरेंद्र और सुरेंद्र टिकैत जो स्थानीय शुगर मिलों में काम करते हैं और खेती का काम संभालते हैं।
 
टिकैत बंधुओं ने बीते दो दशकों में अपनी खेती की ज़मीन और पहचान, दोनों ही बढ़ा लिये हैं। पर चारों भाइयों में नरेश और राकेश टिकैत की सार्वजनिक पहचान बाकियों से ज़्यादा मज़बूत है। टिकैत परिवार के मुताबिक़, ये दोनों ही सरकारी नौकरियों के लिए चुने गए, मगर दोनों ने ही खेती से जुड़े रहकर, अपने पिता की विरासत को आगे ले जाने का निर्णय लिया।
 
राकेश के छोटे भाई सुरेंद्र टिकैत ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि 'उन्हें टीवी पर यूं परेशान होता देख परिवार और पूरा गाँव विचलित ज़रूर हुआ, लेकिन डर का भाव किसी के चेहरे पर नहीं था।'
 
उन्होंने कहा कि 'जो शख़्स किसानों के आंदोलनों में शामिल होने की वजह से 43 बार जेल जा चुका है, उसे 44वीं बार जेल जाते देखना कोई हैरानी की बात नहीं थी। पर हमने इस परिस्थिति का सामना पहले नहीं किया था।'
 
टिकैत के कुछ आलोचकों का कहना है कि "वो फंस चुके हैं। अगर वो ग़ाज़ीपुर से उठते हैं तो उनके ख़िलाफ़ केस तैयार हैं, पुलिस उन्हें गिरफ़्तार करेगी और धरना-स्थल खाली करा लिया जायेगा। नरेश टिकैत ने गुरुवार को कहा भी था कि ग़ाज़ीपुर बॉर्डर खाली कर देना चाहिए। वहीं सिंघु बॉर्डर पर डटे पंजाब के किसान संगठन टिकैत की गतिविधियों पर नज़र रखे हुए थे कि कहीं वीएम सिंह और भानु प्रताप जैसे नेताओं की तरह वो भी अलग होने का विचार तो नहीं कर रहे। ऐसे में उनके पास समर्थन की अपील करने का ही विकल्प बचा था।"
 
लेकिन राकेश टिकैत के समर्थक इस थ्योरी में विश्वास नहीं रखते। उनके भाई सुरेंद्र टिकैत के अनुसार, "ग़ाज़ीपुर पर बैठे हज़ारों किसानों की ज़िम्मेदारी यूनियन की है। गुरुवार को जब बीजेपी के दो नेता अपने कुछ कार्यकर्ताओं के साथ धरना-स्थल पर पहुँचे, तो उनका निशाना राकेश टिकैत नहीं थे। बल्कि वो इस इंतज़ार में थे कि टिकैत गिरफ़्तारी दें, पुलिस धरना-स्थल को खाली कराये और वो उत्तर प्रदेश-उत्तराखण्ड की सीमा पर स्थित तराई क्षेत्र से आये हमारे सहयोगी सरदार किसानों और उनके साथ आयीं महिलाओं को देशद्रोही बताकर उन्हें निशाना बनायें। इसी वजह से टिकैत भावुक हुए और उन्होंने कहा कि किसानों को पीटने की साज़िश की जा रही है।"
 
राकेश टिकैत ने गुरुवार को बीजेपी के किसी नेता का नाम लिये बिना यही आरोप लगाया था, लेकिन दूसरी ओर बीजेपी की तरफ़ से इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की गई है।
 
दिल्ली पुलिस की नौकरी छोड़ बने किसान नेता
राकेश टिकैत के भांजे देवेंद्र सिंह ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि "उन्हें अपने मामा में अब नाना जी (महेंद्र सिंह टिकैत) की छवि दिखने लगी है।"
 
उनकी कुछ आदतों का ज़िक्र करते हुए देवेंद्र सिंह ने कहा, "वो पूर्ण रूप से शाकाहारी हैं। क़रीब पंद्रह वर्षों से पैक्ड चीज़ों का सेवन नहीं करते। घर में भी सबको इन चीज़ों से बचने के लिए कहते रहते हैं। वो कई तरह के व्रत रखते हैं। बिना पानी पिये 48 घंटे तक रह लेते हैं। उन्होंने प्रण किया है कि वे 75 साल की उम्र तक ब्लड डोनेट करते रहेंगे। अभी वे साल में चार बार तक ब्लड डोनेट करते हैं और वे बहुत इमोशनल हैं।"
 
उन्होंने ज़िक्र किया कि 'उनकी किसान राजनीति में एंट्री की कहानी भी सामान्य नहीं है।'
 
उन्होंने बताया कि "राकेश टिकैत साल 1985 में दिल्ली पुलिस में बतौर कांस्टेबल भर्ती हुए थे। कुछ वक़्त बाद प्रमोशन हुआ और वे सब-इंस्पेक्टर बने। लेकिन उसी दौर में बाबा टिकैत का आंदोलन अपने चरम पर था। वे किसानों के लिए बिजली के दाम कम करने की माँग कर रहे थे। सरकार उनसे परेशान थी क्योंकि उन्हें बड़ा जन-समर्थन प्राप्त था। उसी समय राकेश टिकैत पर अपने पिता से आंदोलन ख़त्म कराने का दबाव बनाया गया। लेकिन राकेश टिकैत ने नौकरी छोड़कर पिता के आंदोलन में शामिल होने का निर्णय लिया।"
 
राजनीति करने की महत्वकांक्षा
चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की एक लंबी बीमारी के बाद 2011 में मृत्यु हो गई। उन्होंने अपने दौर में किसानों के लिए कई मोर्चे खोले। उन्होंने हमेशा कोशिश की कि वे राजनीति से दूर रहें। वे बार-बार इस बात पर ज़ोर देते रहे कि वो किसानों के एक सामाजिक संगठन का नेतृत्व करते हैं।
 
मगर उनके बेटे राकेश टिकैत ने राजनीति से परहेज़ नहीं रखा। साल 2007 में पहली बार उन्होंने मुज़फ़्फ़रनगर की बुढ़ाना विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा जिसे वो हार गये थे। उसके बाद टिकैत ने 2014 में अमरोहा लोकसभा क्षेत्र से चौधरी चरण सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर चुनाव लड़ा, पर वहाँ भी उनकी बुरी हार हुई।
 
उन्हें क़रीब से जानने वाले कहते हैं कि "राकेश को यह पता है कि उनकी दो ताक़त हैं। एक है किसानों का कैडर, और दूसरा है 'खाप' नामक सामाजिक संगठन जिसमें टिकैत परिवार की काफ़ी इज़्ज़त है।"
 
उनके बारे में कहा जाता है कि बड़े भाई नरेश टिकैत इसलिए अध्यक्ष हैं, क्योंकि वो बड़े हैं, वरना संगठन के अधिकांश निर्णायक फ़ैसले राकेश ही लेते हैं। बीते समय में जैसे-जैसे भारतीय किसान यूनियन का प्रभाव बढ़ा है, राकेश टिकैत को क्षेत्रीय राजनीति पर अपना प्रभाव साबित करते देखा गया है।
 
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले किसानों की ट्रैक्टर रैली को लेकर राकेश टिकैत दिल्ली गेट तक आ गये थे। उस समय भी किसानों और दिल्ली पुलिस के बीच ज़बरदस्त टकराव हुआ था।
 
उस समय टिकैत के आलोचकों ने कहा था कि 'भोले-भाले किसानों को लेकर राकेश टिकैत ने यह स्टंट अपनी राजनीतिक महत्वकाक्षाएं पूरी करने के लिए किया जिसका किसानों के हित में कोई नतीजा नहीं निकला।'
 
दिल्ली पुलिस ने किसान नेता राकेश टिकैत के टेंट के बाहर एक नोटिस चिपका दिया है जिसमें उनसे लाल क़िले पर हुई हिंसा को लेकर जवाब माँगा गया है
 
'2019 में बीजेपी को वोट दिया'
बालियान खाप का सदस्य होने के नाते, बीजेपी के नेता और केंद्रीय मंत्री रहे संजीव बालियान से टिकैत परिवार के पारिवारिक संबंध हैं। सुरेंद्र टिकैत ने बीबीसी से बातचीत में इसकी पुष्टि की। पर क्या कल का वीडियो देखने के बाद संजीव बालियान ने परिवार के लिए कोई संदेश भेजा? इस पर सुरेंद्र टिकैत ने ना में जवाब दिया।
 
लेकिन राष्ट्रीय लोक दल के नेता जयंत चौधरी के ज़रिये चौधरी अजित सिंह का संदेश टिकैत परिवार तक ज़रूर पहुँचा। चौधरी अजित सिंह ने कहा कि "ये सबके एक होने और साथ रहने का समय है।"
 
कुछ जानकार मानते हैं कि अजित सिंह का परिवार टिकैत परिवार को बिरादरी में अपना प्रतिद्वंद्वी मानता है।
 
वहीं ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर के लोग चौधरी चरण सिंह के वारिस चौधरी अजित सिंह के 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी नेता संजीव बालियान से हारने की एक वजह राकेश टिकैत को भी मानते हैं। बताया जाता है कि राकेश टिकैत ने अजित सिंह के ख़िलाफ़ बालियान को चुनाव लड़ाया था, और गुरुवार को रोते हुए राकेश टिकैत ने इसकी पुष्टि भी की।
 
उन्होंने कहा, "मैंने भी 2019 में बीजेपी को वोट दिया था। क्या इस दिन के लिए? ये पार्टी किसानों को बर्बाद करने पर लगी हुई है।"
 
बहरहाल, केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाली दिल्ली पुलिस ने लाल क़िले पर हुई हिंसा के बाद राकेश टिकैत के ख़िलाफ़ कुछ गंभीर धाराओं के तहत मुक़दमे दर्ज किये हैं और दिल्ली पुलिस ने अपने नोटिस में उनसे सवाल किया है कि उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई क्यों ना की जाये?
 
वहीं राकेश टिकैत जो फ़िलहाल ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर डटे हुए हैं, उनका कहना है कि 'वो जल्द ही सब सबूतों के साथ दिल्ली पुलिस को अपना जवाब सौंपेंगे।'

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