Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

इजराइल हमास की 'अंतिम लड़ाई' क्या युद्धविराम खत्म होने के साथ ही शुरू हो जाएगी

israel hamas war

BBC Hindi

, रविवार, 26 नवंबर 2023 (07:57 IST)
पॉल एडम्स, बीबीसी न्यूज
Israel Hamas ceasefire : गाजा में इजराइल का सैन्य अभियान संभवतः अब अपने अंतिम चरण है। हमास के साथ हुए अस्थायी युद्ध विराम ने इजराइली और फिलिस्तीनी बंधकों की रिहाई का रास्ता खोल दिया है।
 
लेकिन इससे इजराइली फौज की कार्रवाई में 4 से 9 दिनों तक की देरी होने की बात कही जा रही है। ये इस पर भी निर्भर करता है कि हमास कितने बंधकों को रिहा करता है।
 
इजराइली विशेषज्ञों का अनुमान है कि जब बंधकों की अदला-बदली का काम पूरा हो जाएगा तो गाजा शहर पर नियंत्रण की लड़ाई फिर से शुरू हो जाएगी और ये हफ़्ते भर से दस दिनों तक और चलेगा।
 
लेकिन उस सूरत में क्या होगा अगर इजराइली फौज अपना ध्यान गाजा पट्टी के दक्षिणी इलाके की तरफ मोड़ ले। इस बात के संकेत प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतनयाहू गंभीरता के साथ दे चुके हैं।
 
इजराइल ने इस बात की कसम ली है कि वो हमास का जहां कहीं भी वजूद होगा, उसका नामोनिशान मिटा दिया जाएगा। इजराइल का मानना है कि याह्या सिनवार और मोहम्मद देइफ़ जैसे हमास के सीनियर नेता हज़ारों लड़ाकों के साथ गाजा पट्टी के दक्षिण में ही कहीं हैं। शायद उनके साथ बड़ी संख्या में इजराइली बंधक भी मौजूद हों।
 
मानवीय संकट
ऐसे में एक सवाल ये भी उठता है कि अगर इजराइल ये फ़ैसला करता है कि वो गाजा पट्टी के उत्तर में जो कुछ कर चुका है, वही उसे दक्षिणी इलाके में भी करना है तो क्या पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका के मन में इजराइल के लिए जो सहानुभूति है, वो कम तो नहीं होने लगेगी?
 
गाजा पट्टी के लगभग 22 लाख लोगों का एक बहुत बड़ा हिस्सा दक्षिण की ओर चला गया है। दक्षिण के इलाके में लोग अटे पड़े हैं, उनमें बहुत से लोग डरे-सहमे और बेघर हैं। ऐसा लगता है कि वहां एक बहुत बड़ी मानवीय त्रासदी अपने होने की प्रतिक्षा कर रही है।
 
अल मवासी के रेतीले मैदानों के बीच, टैंटों में ठूँसे सैकड़ों फिलिस्तीनियों का मंज़र दुनिया को इस मानवीय संकट की ओर निगाहें दौड़ाने के लिए मजबूर कर सकता है।
 
फिलिस्तीनी लोगों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की सहायता एजेंसी यूएनआरडब्ल्यूए के मुताबिक, 7 अक्टूबर के हमले के बाद गाजा पट्टी से लगभग 17 लाख विस्थापित हो चुके हैं। इनमें से ज़्यादातर लोगों ने गाजा पट्टी के दक्षिणी इलाके में पहले से भीड़-भाड़ वाले शिविरों में पनाह ले रखी है।
 
संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी वहां की ख़राब होती स्थिति के बारे में लगातार कहते रहे हैं। दसियों हज़ार लोगों ने स्कूलों, अस्पतालों और कुछ मामलों में अस्थायी तंबुओं में डेरा डाल रखा है।
 
वहां सर्दियों की शुरुआत बारिश से हुई है। लोग अभी ही बाढ़ जैसे हालात से रूबरू हो चुके हैं। उनकी तकलीफ़ों में लगातार इजाफा हो रहा है।
 
कई हफ़्तों से इजराइली अधिकारी एक समाधान का जिक्र कर रहे हैं। वे अल मवासी की बात करते हैं जो कथित तौर पर 'सुरक्षित इलाका' माना जाता है।
 
नक़्शे पर ये एक संकरी सी पट्टी जैसा इलाका है, जहां मुख्य रूप से खेती होती है। भूमध्य सागर के किनारे मौजूद अल मवासी से मिस्र की सीमा भी क़रीब है।
 
पिछले हफ़्ते ख़ान यूनिस के पास के एक शहर में आसमान से पर्चियां गिराई गईं जिसमें लोगों को हवाई हमलों के बारे में आगाह किया गया था। इन पर्चियों पर लिखे संदेश में लोगों को पश्चिम की ओर समंदर के पास जाने का निर्देश दिया गया था।
 
अल मवासी का इलाका
इजराइली सेना के प्रवक्ता अविचाय आद्राई ने अरबी मीडिया के लिए गुरुवार को सोशल मीडिया पर एक संदेश जारी किया। इस संदेश में उन्होंने गाजा के लोगों से कहा कि "अल मवासी उनके परिजनों की सुरक्षा के लिए उचित माहौल मुहैया कराएगा।"
 
लेकिन सवाल तो फिर भी उठता है कि ये सोचना कितना वास्तविक है कि 20 लाख से अधिक लोग उस छोटे से इलाक़े में कैसे पनाह लेंगे जबकि वहां पास में जंग छिड़ी हो? और ये भी कि अल मवासी में उनके शरण लेने के लिए स्थितियां कितनी अनुकूल हैं?
 
ऊपर के नक़्शे में देखा जा सकता है कि अल मवासी में खेती की ज़मीन के कुछ टुकड़े हैं, ग्रीनहाउस घर हैं और ध्वस्त हो गईं इमारतें हैं। इजराइल का कहना है कि अल मवासी ढाई किलोमीटर चौड़ा और चार किलोमीटर से कुछ अधिक लंबा है लेकिन इसका सही-सही आकलन करना मुश्किल है।
 
इजराइली मिलिट्री की एक शाखा 'सीओजीएटी' (कोऑर्डिनेटर ऑफ़ गवर्नमेंट एक्टिविटिज़ इन द टेरिटोरीज़) में फ़लस्तीनी मामलों के पूर्व सलाहकार डॉक्टर माइकल मिल्शटीन अल मवासी को एक ख़ूबसूरत और अच्छी लेकिन छोटी जगह बताते हैं।
 
लेकिन सहायता एजेंसियां अल मवासी के बारे में बताते वक़्त इतनी उदारता नहीं बरतती हैं।
 
शरणार्थी कैम्प
यूएनआरडब्ल्यूए में संचार निदेशक जुलिएट टॉमा कहती है, "ये ज़मीन का छोड़ा टुकड़ा भर है। यहां कुछ नहीं है, कुछ है तो वो हैं रेत के टीले और खजूर के पेड़।"
 
लेकिन बुनियादी सुविधाओं के अभाव वाली इस छोटी-सी जगह में हज़ारों लाखों बेघर लोगों को बसाने की कोशिश का अर्थ है संयुक्त राष्ट्र के सामने पहाड़ सी चुनौती का खड़ा होना। यहां पर अस्पताल नहीं है और यहां लोगों के रहने के लिए उन्हें इमर्जेंसी शेल्टर शायद टेन्ट लगाने पड़ेंगे।
 
नैतिक तौर पर भी ये बहुत बड़ी चुनौती हौगी। गाजा में रहने वाली अधिकांश आबादी ऐतिहासिक तौर पर शरणार्थी रही है और 1948 में इजराइल के बाहर निकाले जाने के बाद लोग लंबे वक्त तक टेन्ट में ही रहे हैं।
 
गाजा पट्टी में पहले ही आठ शरणार्थी कैम्प हैं, जिनका दायरा गुज़रते दशकों में बढ़ता रहा है और जो अब कैम्प से बढ़कर बेहद भीड़भाड़ वाले शहरों की शक्ल ले चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र नहीं चाहेगा कि यहां एक और शरणार्थी कैम्प बनाने का ज़िम्मेदार वो हो।
 
इजराइल के साथ चर्चा
इजराइली अधिकारी कहते हैं कि राहत कार्य में लगी एजेंसियों की ये जिम्मेदारी होगी कि वो ये सुनिश्चित करें कि मानवीय मदद रफ़ाह क्रॉसिंग से 10 किलोमीटर दूर अल मसावी तक पहुंच सके। हालांकि अब तक उन्होंने ये नहीं बताया है कि वास्तव में ये कैसे होगा।
 
कहा जा रहा है कि अमेरिकी अधिकारी अतिरिक्त सुरक्षित रास्ते के लिए इजराइल के साथ चर्चा कर रहे हैं। इनमें गाजा पट्टी पर दक्षिणी छोर पर स्थित दहानिया शामिल है।
 
इजराइली बंधकों को छोड़ने को लेकर इजराइल और हमास के बीच हुए शुक्रवार को लागू हुए समझौते के तहत इजराइल रोज़ राहत सामग्री से भरे दो ट्रकों को गाजा में सुरक्षित आने देगा। बीते कुछ सप्ताह में गाजा में पहुंचने वाली राहत सामग्री की तुलना में ये कहीं अधिक है।
 
लेकिन 16 नवंबर को फ़लस्तीनी लोगों को मानवीय मदद दे रही संयुक्त राष्ट्र की 18 एजेंसियों और राहत कार्य में लगी दूसरी एजेंसियों ने इजराइल की योजना को सिरे से खारिज कर दिया था।
 
एकतरफा प्रस्ताव
उन्होंने कहा, "गाजा के भीतर एक 'सुरक्षित ज़ोन' बनाने की योजना में हम हिस्सा नहीं लेंगे, ख़ासकर तब जब सभी पक्षों की सहमति के बिना ऐसा हो रहा हो।"
 
संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों ने कहा कि इस मामले में संबंधित पक्ष इजराइल, हमास और वेस्ट बैंक में मौजूद फ़लस्तीनी प्रशासन हैं।
 
अल मवासी का नाम लिए बग़ैर 16 नवंबर के इस बयान में ये चेतावनी दी गई कि इजराइल का एकतरफा प्रस्ताव कई ज़िंदगियों को जोखिम में डाल सकता है।
 
बयान में हस्ताक्षर करने वाले विश्व स्वास्थ्य संगठन ने महानिदेशक डॉक्टर टेड्रोस अडहोनम गीब्रिएसुस ने इजराइल की इस योजना को "तबाही का नुस्खा" बताया था।
 
उन्होंने कहा, "बिना मूलभूत ढांचे और सुविधाओं वाली किसी छोटी-सी जगह में क्षमता से कहीं अधिक लोगों को रखने की कोशिश से उन लोगों के स्वास्थ्य पर जोखिम बढ़ जाएगा जो पहले से ही मुश्किल स्थिति में हैं।"
 
हमास के लड़ाके
इजराइली अधिकारियों का कहना है कि बीते दिनों गाजा में जो कुछ हो रहा उसके लिए हमास ज़िम्मेदार है और ऐसा लगता है कि वो आने वाले ख़तरों से अनजान है। उनका कहना है कि अल मसावी वो इलाक़ा है जिस पर उनकी सेना ने हमला नहीं करेगी।
 
इजराइली सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेन्ट कर्नल रिचर्ड हेच कहते हैं, "ये मुश्किल हो सकता है, लेकिन वो लोग जीवित रहेंगे।"
 
इजराइल के लिए ये सैन्य ज़रूरत बन गया है। उसका कहना है कि जिस तरह गाजा शहर के नीचे हमास का नेटवर्क है, ठीक वैसे ख़ान यूनिस और रफ़ाह में भी हमास के लड़ाके फैले हुए हैं और वहां उन्होंने अपना इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाया है।
 
इजराइल कहता है कि वो हमले से पहले आम लोगों को इलाक़े से बाहर निकलना चाहता है। उसकी दलील है कि ये हमास को हराने का मानवीय तरीका है।
 
इजराइल के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मेजर जनरल याकूब अमिद्रोद कहते हैं, "इजराइल के लोगों को ये पसंद नहीं कि गाजा के लोग सर्दियों में या बारिश में अल मसावी में रहें, लेकिन फिर विकल्प क्या है? अगर किसी के पास इसके अलावा हमास को ख़त्म करने का कोई और तरीका है तो मेरी गुज़ारिश है कि हमें बताएं।"
 
पश्चिमी मुल्कों का धैर्य
लेकिन आने वाले वक्त में पता नहीं कितने महीनों तक, भीषण सर्दी के दिनों में और बेहद छोड़ी-सी जगह क्षमता से कहीं अधिक लोगों के रहने को लेकर अंतरराष्ट्रीय हलकों में चिंता और चर्चा ज़रूर होगी। इसके साथ ही ये भी चर्चा होगी कि इजराइल ने गाजा में अपने सैन्य अभियान को किस तरह अंजाम दिया है।
 
पश्चिमी मुल्क से जुड़े एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर मुझसे कहा, "इस इलाक़े में एक नया ज़मीनी अभियान शुरू करने का मतलब है कई लोग बड़ी संख्या में हताहत होंगे, बड़ा संख्या में लोग बेघर होंगे। इजराइल को लेकर अब तक अंतरराष्ट्रीय पर जो सहानुभूति रही है, इससे उसके ख़त्म होने का ख़तरा है।"
 
"सवाल ये है कि इसे लेकर पश्चिमी मुल्कों का धैर्य कब तक बना रहेगा।"
 
नेतन्याहू सरकार को ये पता है कि सात अक्तूबर को हुए हमास के हमले के बाद उसे पश्चिमी मुल्कों के अपने सहयोगियों से लगातार सहानुभूति मिलती रही है।
 
अंतरराष्ट्रीय दबाव
लेकिन इजराइली अधिकारी ये भी जानते हैं कि उनके सहयोगियों की ये सहानुभूति असीमित नहीं हैं। वो जानते हैं कि युद्धविराम ख़त्म होने के बाद इजराइल जब एक बार फिर अपना सैन्य अभियान शुरू करेगा तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर युद्ध रोकने को लेकर आवाज़ें पहले से और तेज़ हो सकती हैं।
 
2021 से लेकर 2023 तक इजराइली राष्ट्रीय सुरक्षा काउंसिल का नेतृत्व कर चुकी डॉक्टर इयाल हुलाता कहती हैं, "मुझे उम्मीद है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव इजराइल के अभियान में रुकावट नहीं बनेगा।"
 
"मुझे ये भी उम्मीद है कि प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की सरकार इस दबाव के सामने अपने हथियार नहीं डालेगी। इजराइल के नागरिक अपनी सरकार ये यही उम्मीद करते हैं।"
 
सर्दियां आ रही हैं और इजराइली सरकार अपने अभियान के अगले चरण को लेकर विचार कर रही है।
 
लेकिन आम लोगों के भविष्य को लेकर अब तक कोई सहमति नहीं बन सकी है, ऐसे में ये साफ़ है कि गाजा के लोगों की मुसीबतें जल्द ख़त्म नहीं होने वाली हैं। हो सकता है कि उनकी स्थिति पहले के मुक़ाबले और बिगड़ जाए।
 

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

पाकिस्तान: संकट में कूड़ा बीनने वालों का भविष्य