Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

घट रही कीटों की संख्या, बढ़ेगा हानिकारक कीड़ों का प्रकोप

घट रही कीटों की संख्या, बढ़ेगा हानिकारक कीड़ों का प्रकोप
, मंगलवार, 12 फ़रवरी 2019 (14:25 IST)
- मैक मैकग्रॉ
 
कीटों की संख्या को लेकर की गई एक वैज्ञानिक समीक्षा से पता चला है कि 40 प्रतिशत प्रजातियां पूरी दुनिया में नाटकीय ढंग से कम हो रही हैं। अध्ययन बताता है कि मधुमक्खियां, चींटियां और बीटल (गुबरैले) अन्य स्तनधारी जीवों, पक्षियों और सरीसृपों की तुलना में आठ गुना तेज़ी से लुप्त हो रहे हैं।
 
 
मगर शोधकर्ता कहते हैं कि कुछ प्रजातियों, जैसे कि मक्खियों और कॉकरोच (तिलचट्टों) की संख्या बढ़ने की संभावना है। कीट-पतंगों की संख्या में आ रही इस कमी के लिए बड़े पैमाने पर हो रही खेतीबाड़ी, कीटनाशकों का इस्तेमाल और जलवायु परिवर्तन ज़िम्मेदार है।
 
 
धरती पर रहने वाले जीवों में कीटों की संख्या प्रमुख है। वे इंसानों और अन्य प्रजातियों के लिए कई तरह से फ़ायदेमंद हैं। वे पक्षियों, चमगादड़ों और छोटे स्तनधारी जीवों को खाना मुहैया करवाते हैं। वे पूरी दुनिया में 75 प्रतिशत फसलों के पॉलिनेशन (परागण) के लिए ज़िम्मेदार हैं यानी कृषि के लिए वे बेहद महत्वपूर्ण हैं। वे मृदा को समृद्ध करते हैं और नुक़सान पहुंचाने वाले कीटों की संख्या को नियंत्रित रखते हैं।
 
 
क्या है अध्ययन में
हाल के सालों में किए गए अन्य शोध बताते हैं कि कीटों की कई प्रजातियों, जैसे कि मधुमक्खियों की संख्या में कमी आई है और ख़ासकर विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों में। मगर नया शोध पत्र बड़े स्तर पर इस विषय में बात करता है।
 
 
बायोलॉजिकल कंज़र्वेशन नाम के जर्नल में प्रकाशित इस पत्र में पिछले 13 वर्षों में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में प्रकाशित 73 शोधों की समीक्षा की गई है। शोधकर्ताओं ने पाया कि सभी जगहों पर संख्या में कमी आने के कारण अगले कुछ दशकों में 40 प्रतिशत कीट विलुप्त हो जाएंगे। कीटों की एक तिहाई प्रजातियां ख़तरे में घोषित की गई हैं।
 
 
सिडनी विश्वविद्यालय से संबंध रखने वाले मुख्य लेखक डॉक्टर फ्रैंसिस्को सैंशेज़-बायो ने बीबीसी से कहा, "इसके पीछे की मुख्य वजह है- आवास को नुक़सान पहुंचना। खेती-बाड़ी के कारण, शहरीकरण के कारण और वनों के कटाव के कारण इस तरह के हालात पैदा हुए हैं।"
 
 
कितना गंभीर है मामला
वह कहते हैं, "दूसरा मुख्य कारण है पूरी दुनिया में खेती में उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल और कई तरह के ज़हरीले रसायनों के संपर्क में आना। तीसरा कारण जैविक कारण है जिसमें अवांछित प्रजातियां हैं जो अन्य जगहों पर जाकर वहां के तंत्र को नुक़सान पहुंचाती हैं। चौथा कारण है- जलवायु परिवर्तन। खासकर उष्ण कटिबंधीय इलाकों में, जहां इसका प्रभाव ज़्यादा पड़ता है।"
 
 
अध्ययन में जर्मनी में उड़ने वाले कीटों की संख्या में हाल ही में तेज़ी सी आई गिरावट का ज़िक्र किया गया है। साथ ही पुएर्तो रीको के उष्णकटिबंधीय वनों में भी इनकी संख्या कम हुई है। इस घटनाक्रम का संबंध पृथ्वी के बढ़ते तापमान से जोड़ा गया है।
 
 
अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि अध्ययन के नतीजे 'बेहद गंभीर' हैं। ब्रितानी समूह बगलाइफ़ के मैट शार्डलो कहते हैं, "बात सिर्फ़ मधुमक्खियों की नहीं है। मामला परागण या हमारे खाने से भी जुड़ा नहीं है। ये गोबर के बीटल की भी बात है जो अपशिष्टों को रीसाइकल करते हैं। साथ ही ड्रैगनफ़्लाइज़ से भी यह मामला जुड़ा है जो नदियों और तालाबों में पनपते हैं।"
 
 
"यह स्पष्ट हो रहा है कि हमारे ग्रह का पर्यावरण ख़राब हो रहा है। इस दिशा में पूरी दुनिया को मिलकर गंभीर क़दम उठाने की ज़रूरत है ताकि न सिर्फ़ इस नुक़सान को रोका जाए, बल्कि इससे उबरा भी जाए।"
 
 
बढ़ रहे हानिकारक कीड़े
अध्ययन में शामिल रहे लोगों की चिंता है कि कीटों की संख्या में कमी आने से आहार शृंखला प्रभावित हो रही है। पक्षियों, सरीसृपों और मछलियों की कई प्रजातियां खाने के लिए इन कीटों पर निर्भर हैं। नतीजा यह रहेगा कि कीटों के विलुप्त होने से इनकी प्रजातियों के अस्तित्व पर भी संकट आ जाएगा।
 
 
भले ही कुछ महत्वपूर्ण कीट विलुप्त होने की कगार पर हैं, कुछ प्रजातियां ऐसी भी हैं जो परिवर्तन के साथ ढलने में कामयाब होती दिख रही हैं। ससेक्स यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर डेव गॉलसन कहते हैं कि गरम जलवायु के कारण तेज़ी से प्रजनन करने वाले कीटों की संख्या बढ़ेगी क्योंकि उनके शत्रु कीट, जो धीमे प्रजनन करते हैं, विलुप्त हो जाएंगे।
 
 
वह कहते हैं कि यह संभव है कि इससे हानिकारक कीट-पतंगों की संख्या बढ़ जाएगी मगर उपयोगी कीट-पतंगे ख़त्म हो जाएंगे। इनमें मधुमक्खियां, तितलियां और गुबरैले भी शामिल हैं। उनका कहना है कि इससे मक्खियों, कॉकरोच जैसी प्रजातियां बढ़ जाएंगी क्योंकि वे बदलते हालात के हिसाब से ख़ुद को ढाल लेती हैं और कीटनाशकों को लेकर उनमें प्रतिरोधक क्षमता भी है।
 
 
इन हालात से बचने के लिए किया किया जा सकता है? इस बारे में प्रोफ़ेसर डेव कहते हैं कि लोग इतना कर सकते हैं कि अपने बागीचों को कीटों के अनुकूल बनएं और कीटनाशकों का इस्तेमाल न करें। प्रोफ़ेसर डेव के मुताबिक ऑर्गैनिक फ़ूड ख़रीदकर और इसे इस्तेमाल करके भी लोग फ़ायदेमंद कीटों को विलुप्त होने से बचाने में योगदान दे सकते हैं।
 

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

जब मुग़ल बादशाह जहाँगीर का हुआ अपहरण