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भारत-चीन सीमा विवाद: मोदी सरकार पर कांग्रेस इतनी आक्रामक क्यों?

भारत-चीन सीमा विवाद: मोदी सरकार पर कांग्रेस इतनी आक्रामक क्यों?

BBC Hindi

, बुधवार, 24 जून 2020 (07:30 IST)
सरोज सिंह, बीबीसी संवाददाता
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 16 जून से अभी तक 17 ट्वीट किए हैं। इनमें से 16 जून की सुबह को किए गए दो ट्वीट छोड़ दें तो सभी ट्वीट भारत-चीन सीमा विवाद से जुड़े हैं। 16 जून के पहले दो ट्वीट तक भारत-चीन सीमा पर हुए हिंसक संघर्ष की बात सामने नहीं आई थी।
 
राहुल ने इनमें कई ट्वीट अलग-अलग मीडिया संस्थान की ख़बरों को री-ट्वीट करते हुए किए थे। कई ट्वीट में उन्होंने सरकार से सवाल पूछे थे। कई में पत्रकार, सरकार से जो सवाल पूछ रहे हैं उसे दोहराया था, तो कई ट्वीट में सरकार पर कटाक्ष करते नज़र आए थे।
 
जब देश में कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ों की तादाद रोज़ाना नए रिकॉर्ड बना रही हो, ऐसे में कोरोना से अलग भारत-चीन सीमा पर कांग्रेस का रवैया कई लोगों को ज़्यादा आक्रमक लग रहा है।
 
इसी बीच पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से प्रधानमंत्री को सलाह देना भी सरकार को ठीक नहीं लगा।
 
सोमवार को देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ। मनमोहन सिंह ने पत्र के माध्यम से कहा कि देश का नेतृत्व जिन लोगों के हाथों में है, उन्हें अपने शब्दों के चयन में इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसका असर देश की सुरक्षा और दूसरे हितों पर भी पड़ेगा।
 
15-16 जून की रात में लद्दाख सीमा पर गलवान घाटी में हुए हिंसक संघर्ष में भारत के 20 जवानों की जान चली गई। उसके बाद से ही देश की मुख्य विपक्षी पार्टियाँ केंद्र में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी पर हमलावर दिख रही हैं।
 
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सर्वदलीय बैठक में ये सवाल उठाया था कि क्या इस पूरे मामले में इंटेलिजेंस की तरफ़ से चूक हुई थी। सोनिया गांधी ने ये भी कहा कि एलएसी पर बातचीत के सारे अवसरों का इस्तेमाल करने में हम नाकाम रहे हैं।
 
और इन्हीं उदाहरणों की वजह से लगता है कि सीमा विवाद पर कांग्रेस ज़्यादा मुखर हो गई है।
 
कांग्रेस पर किताब लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई की मानें, तो कांग्रेस इस समय 1962 में भारत-चीन युद्ध का हिसाब सूद समेत वापस कर रही है। उस वक़्त भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू थे।
 
1962 के भारत-चीन युद्ध में भारत की हार और चीन की जीत हुई थी। ख़ुद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने संसद में खेदपूर्वक कहा था, "हम आधुनिक दुनिया की सच्चाई से दूर हो गए थे और हम एक बनावटी माहौल में रह रहे थे, जिसे हमने ही तैयार किया था।"
 
इस तरह उन्होंने इस बात को लगभग स्वीकार कर लिया था कि उन्होंने ये भरोसा करने में बड़ी ग़लती की कि चीन सीमा पर झड़पों, गश्ती दल के स्तर पर मुठभेड़ और तू-तू मैं-मैं से ज़्यादा कुछ नहीं करेगा।
 
शीद किदवई बताते हैं कि उस दौरान विपक्ष (अटल बिहारी वाजपेयी) का रुख़ भी आज की कांग्रेस की ही तरह था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, उस वक़्त 36 साल की उम्र में राज्य सभा से सांसद थे। उन्होंने उस वक़्त संसद का विशेष सत्र बुलाने तक की मांग की थी। तब विपक्ष के दबाव में तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन को इस्तीफ़ा तक देना पड़ा था।
 
1962 के युद्ध के दौरान संसद सत्र बीच में बुलाने की बात ख़ुद कांग्रेस के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने ट्विटर पर साझा की थी।
 
वरिष्ठ कांग्रेस नेता मणि शंकर अय्यर ने एक निजी बेवसाइट के लिए लेख में उस संसद सत्र के बारे में विस्तार से लिखा है।
 
उस सत्र की जानकारी साझा करते हुए उन्होंने लिखा - नवंबर 1962 के विशेष संसद सत्र को सीक्रेट रखने की बात एलएम सिंघवी ने कही थी, जो उस वक़्त निर्दलीय सांसद थे। लेकिन नेहरू ने इस प्रस्ताव को खारिज़ कर दिया था। उस वक़्त सात दिन तक लगातार भारत-चीन सीमा तनाव पर चर्चा चली थी। 165 सदस्यों ने इसमें हिस्सा लिया था। किसी भी वक्ता को बोलने के दौरान उन्हें टोका नहीं गया, ना ही स्पीच छोटी करने को कहा गया। संसद में चर्चा की शुरुआत अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी।
 
रशीद कहते हैं, "फ़िलहाल कांग्रेस ने अभी तक किसी मंत्री के इस्तीफ़े की मांग सामने नहीं रखी है। लेकिन 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद जवाहर लाल नेहरू पर जनसंघ जिस तरह हावी थी, उसी को कांग्रेस इस वक़्त दोहराती हुई नज़र आ रही है।"
 
देश की ताज़ा स्थिति को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने वर्किंग कमेटी की बैठक भी बुलाई है। भारत-चीन सीमा पर तनाव को लेकर वहाँ भी चिंता व्यक्त की गई है।
 
सोनिया गांधी ने बैठक में कहा कि सीमा पर ताज़ा विवाद सत्तारूढ़ पार्टी के मिसमैनेजमेंट का नतीजा है। इस मौक़े पर उन्होंने एक वीडियो संदेश भी जारी किया।
 
रशीद कांग्रेस के वर्तमान रवैए को एक देश की आंतरिक राजनीति से जोड़ कर भी देखते हैं।
 
उनके मुताबिक़ जब देश में पाकिस्तान की सीमा पर विवाद चलता है तो कांग्रेस का रवैया थोड़ा अलग होता है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि भारत और पाकिस्तान का रिश्ता थोड़ा अलग है। दोनों का एक साझा इतिहास है, भारत में मुसलमानों की संख्या पाकिस्तान से कम नहीं।
 
लेकिन चीन के साथ भारत का संबंध पाकिस्तान जैसा नहीं है। चीन की निंदा करने से भारत में कांग्रेस के वोट बैंक पर कोई असर नहीं पड़ता है और ना ही ऐतिहासिक कोई लगाव है। इसलिए भी कांग्रेस के लिए चीन के मुद्दे पर सत्ताधारी पार्टी को घेरना आसान हो जाता है।
 
लेकिन क्या कांग्रेस ग़लत समय पर सही सवाल नहीं उठा रही है?
 
इस सवाल के जवाब में रशीद कहते हैं कि भारत में विपक्ष का इतिहास हमेशा से ऐसा ही रहा है। भारत में विपक्ष का हमेशा से ऐसा ही चेहरा रहा है। चाहे वो नेहरू के ज़माने का विपक्ष रहा हो या फिर इंदिरा गांधी के ज़माने का या मनमोहन सिंह के ज़माने का। विपक्ष का काम ही है सत्ता पक्ष से सवाल करना। जनसंघ और भाजपा भी इसमें अपवाद नहीं हैं।
 
रशीद का मानना है कि जो लोग कांग्रेस से सवाल पर सवाल उठा रहे हैं वो दरअसल सत्ता के भक्तगण ही हैं।
 
उनके मुताबिक़ कांग्रेस को ये मुद्दा इस वक़्त भारत-चीन सीमा तनाव 'ज़ीरो लॉस' वाला मुद्दा लग रहा है। चीन बहुत बड़ी आर्थिक शक्ति है, इसे दुनिया के सभी देश मानते हैं।
 
ऐसे में भारत कितना कड़ा स्टैंड ले पाएगा, ये भी बात किसी से छिपी नहीं है। जो सवाल कांग्रेस पूछ रही है, जनता भी उसका जवाब जानना चाहती है। कांग्रेस उसी सेंटीमेंट को दोहराने का काम कर रही है।
 
लेकिन वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह रशीद किदवई की बात से सहमत नज़र नहीं आते।
 
प्रदीप सिंह के मुताबिक़ भारत-चीन सीमा विवाद पर कांग्रेस ज़रूरत से ज़्यादा आक्रमक हो गई है। कांग्रेस का मत पूरे यूपीए का मत नहीं दिख रहा। डीएमके, एनसीपी जो हमेशा कांग्रेस के साथ खड़ी रहती है, चीन के सवाल पर कांग्रेस से अलग खड़ी दिख रही है। जैसा रवैया सोनिया गांधी ने सर्वदलीय बैठक में दिखाया वैसा रुख़ डीएमके और एनसीपी का नहीं था। ये दोनों पार्टियां भी सरकार की विरोधी ही हैं।
 
तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी ने ज़रूर सोनिया गांधी जैसे ही सवाल सरकार से पूछे हैं।
 
ये पूछे जाने पर कि क्या सवाल पूछना सरकार का विरोध होता है? प्रदीप सिंह कहते हैं, ''सवाल उठाने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन कांग्रेस को सोचना होगा कि उनके सवाल से देश को मदद मिल रही है या फिर देश के विरोधियों को मदद मिल रही है। दूसरी बात ये कि पब्लिक सेंटीमेंट को कोई भी विपक्षी पार्टी नहीं झुठलाती है। इस वक़्त पूरे देश में सत्ता के पक्ष में सेंटीमेंट है और चीन के विरोध में। लेकिन कांग्रेस अपने ट्वीट में सारे सवाल सरकार के विरोध में ही कर रही है।''
 
प्रदीप सिंह का इशारा राहुल गांधी के उस ट्वीट की ओर था, जिसमें प्रधानमंत्री मोदी के सर्वदलीय बैठक में दिए बयान पर उन्होंने दो सवाल पूछे थे। इसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ़ से प्रधानमंत्री के बयान पर स्पष्टीकरण भी जारी किया गया था।
 
प्रदीप सिंह के मुताबिक़ कांग्रेस पार्टी के सवाल ही, उनके सवाल पूछने और सरकार के विरोध करने के फ़र्क़ को ख़त्म कर देते हैं। उनके सवालों से ये झलकता है कि चीन, भारत से ज़्यादा ताक़तवर है, चीन ने भारत को परास्त कर दिया है।
 
प्रदीप सिंह की मानें तो सवाल दो वजहों से पूछे जाते हैं - एक जानने की मंशा से और दूसरा चिढ़ाने के इरादे से। उनके मुताबिक़ कांग्रेस का इरादा सही नहीं है।
 
सर्वदलीय बैठक में सोनिया गांधी ने ऐसा ही सवाल किया था कि अप्रैल से अभी तक क्या-क्या हुआ। सरकार सभी को सूचना दे।
 
वो आगे पूछते हैं, कांग्रेस ने अपने शासन काल में सीमा पर कोई इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं बनाया, क्या प्रधानमंत्री मोदी ज़िम्मेदार हैं इसके लिए?
 
प्रदीप सिंह के मुताबिक़ कांग्रेस ने यही काम सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान किया। बालाकोट एयर स्ट्राइक पर किया, पुलवामा में किया और नतीजा सामने है। पाकिस्तान ने राहुल गांधी के सभी बयानों को अपने पक्ष में भुनाया। कांग्रेस को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।
 
तो फिर 1962 में अटल बिहारी वाजपेयी ने विशेष संसद सत्र बुलाने की मांग क्यों की थी?
 
इस पर प्रदीप सिंह कहते हैं, ''दो ग़लत मिल कर सही नहीं हो सकते। अगर उस वक़्त अटल बिहारी वाजपेयी ने ग़लत किया तो स्वीकार करना चाहिए। अभी अगर कांग्रेस ग़लत है तो 1962 में अटल बिहारी वाजपेयी ग़लत थे। 26/11 के हमलों में बीजेपी की भूमिका भी उसी तरह से ग़लत थी।''
 
उनके मुताबिक़ कांग्रेस ने ग़लत वक़्त और ग़लत तरीक़ा चुना है। इसलिए लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका पर नए सिरे से सबको सोचने की ज़रूरत है।

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