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कोरोना वायरस की चपेट में कैसे आए रूस के ख़ुफ़िया परमाणु शहर

BBC Hindi
गुरुवार, 7 मई 2020 (14:17 IST)
- लियोमैन लीमा
रूस इस समय कोरोना (Corona virus) कोविड-19 संक्रमण के बढ़ते मामलों से परेशान है। माना जा रहा है कि सोवियत संघ के ज़माने में बसाए गए ख़ुफ़िया परमाणु शहर इसकी चपेट में है। उनमें से कुछ शहर तो दशकों तक आधिकारिक नक़्शे पर कभी दिखाए ही नहीं गए। कुछ वीरान थे, जिनके नाम भी लोग नहीं जानते थे लेकिन उत्तरी रूस के दूरदराज़ वाले जंगली और बर्फीले इलाकों में ज़िंदगी किसी और ही शक्ल में आबाद हो रही थी।

इस वीराने में जहां शायद ही खानाबदोश किसानों ने अभी तक क़दम रखा हो, यहां ऐसे शहर बसे हुए हैं जिन तक कम ही लोगों की पहुंच है। दरअसल, ये बड़े मिलिट्री कॉम्प्लेक्स हैं, जो अपने आप में एक पूरे शहर जैसे हैं। अमेरिका से परमाणु रेस के दौरान रूस ने ये शहर बसाए थे।

सोवियत संघ के दौर में इन ठिकानों को 'न्यूक्लियर', 'क्लोज़्ड' और 'सीक्रेट' सिटीज़ कहा जाता था। सोवियत संघ की सेना और परमाणु उद्योग के लिए ये अहम रणनीतिक केंद्र थे। सोवियत संघ के विघटन के तीन दशकों के बाद भी इन सैनिक ठिकानों के बने रहने की वजह बहुत ज़्यादा नहीं बदली है।

कोरोना वायरस की महामारी
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में परमाणु ऊर्जा नीति मामलों के विश्लेषक मैथ्यू बन कहते हैं, अमरीका की तरह रूस भी अपने परमाणु जख़ीरे का आधुनिकीकरण करना चाहता था। इसलिए रिसर्च एंड डेवलपमेंट की ज़रूरत के मद्देनज़र इन ख़ुफ़िया शहरों की अहमियत बनी रही। हाल के दिनों में ये शहर एक बार फिर सुर्ख़ियों में आए हैं और वो भी यहां रखे परमाणु सीक्रेट्स की वजह से नहीं। वैसे रूस में कम ही लोगों को ये जगहें याद होंगी।

रूस के इन ख़ुफ़िया शहरों में से कुछ में कोविड-19 की महामारी ने गंभीर रूप ले लिया है। कुछ हफ़्ते पहले तक रूस जहां ये दावा कर रहा था कि उसने कोरोना वायरस की महामारी पर काबू पा लिया है, वहां अब ये हालात हैं कि संक्रमण और मौत के आंकड़ों के लिहाज से वो दुनिया में आठवें स्थान पर पहुंच गया है।

रूस की सरकारी परमाणु एजेंसी 'रोज़ाटोम' इन शहरों का प्रबंधन देखती है। एजेंसी की एक रिपोर्ट में ये कहा गया है कि इन जगहों पर रेस्पिरेटर्स और प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट्स भेजे जाने की ज़रूरत है। तीन जगहों पर तो कोविड-19 की महामारी की स्थिति काफ़ी बिगड़ गई है।

हालात बेहद चिंताजनक
'रोज़ाटोम' के चीफ़ एलेक्जाई लिखाचेव ने माना कि, ये महामारी हमारे परमाणु शहरों के लिए सीधा ख़तरा हैं। सारोव, इलेक्ट्रोस्टाल और डेस्नोगोर्स्क में हालात बेहद चिंताजनक हैं। कुछ रोज़ पहले ही रूस की परमाणु एजेंसी ने ये बात स्वीकार की थी सारोव एक्सपेरिमेंटल फिजिक्स साइंटिफिक रिसर्च इंस्टीट्यूट के सात कर्मचारी कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं।

गौरतलब है कि सारोव के इस सेंटर पर रूस ने अपना पहला परमाणु बम तैयार किया था। 'सीक्रेट' सिटीज़ के चिंताजनक हालात के बारे रूस के आधिकारिक बयान के बाद बीबीसी के मुंडो ने कई विशेषज्ञों से बात की। उनका कहना है कि सिर्फ़ मेडिकल सुविधाओं की कमी के कारण ही वहां हालात चिंताजनक नहीं हैं बल्कि वहां चल रही परमाणु गतिविधियों पर भी इसका असर पड़ सकता है। मैथ्यू बन कहते हैं, वहां परमाणु हथियारों की डिज़ाइन तैयार की जाती है। उन्हें असेंबल किया जाता है। परमाणु सामाग्री की प्रोसेसिंग होती है। इन शहरों में जो हो रहा है, वो केवल रूस के ही लिए महत्वपूर्ण नहीं है।

रूस में कोविड-19 की स्थिति
हालांकि राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने शुरू में ये दावा किया था कि महामारी नियंत्रण में है और संक्रमण के मामले बहुत कम संख्या में हैं। लेकिन पिछले दो हफ़्तों में वहां हालात तेज़ी से बदले हैं और हाल के दिनों में तो रूस में हालात और ख़राब हुए हैं। इसी सप्ताहांत पर रूस में 24 घंटे के भीतर संक्रमण के 10 हज़ार नए मामले दर्ज किए गए थे।

चार मई तक रूस में कोरोना वायरस से संक्रमण के डेढ़ लाख मामलों की पुष्टि हो चुकी थी और इससे तकरीबन 1400 लोगों की मौत हुई है। आंकड़ों के लिहाज से देखें तो रूस दुनिया में कोविड-19 की महामारी से सबसे ज़्यादा प्रभावित देशों में सातवें नंबर पर आता है। रूस में इस महामारी का केंद्र मॉस्को शहर है और यहां तक कि प्रधानमंत्री मिखाई मिशुस्तिन ने पिछले हफ़्ते बताया कि वे भी इस वायरस से संक्रमित हैं। बीबीसी की रूसी सेवा का कहना है संक्रमण के मामले अब दूरदराज़ के इलाक़ों से आ रहे हैं।
 
पुतिन ने क्या कहा...
कुछ जगहों पर लोगों ने इस शिकायत को लेकर विरोध प्रदर्शन भी किया है कि उनके यहां महामारी की स्थिति छुपाई जा रही है। कभी राष्ट्रपति पुतिन ने मेडिकल हेल्प के साथ एक सैनिक विमान अमरीका भेजा था और कुछ दिनों पहले उन्होंने स्वीकार किया कि उनके देश में पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट्स की कमी है। पुतिन ने ये चेतावनी भी दी है कि रूस में महामारी की सबसे ख़राब स्थिति अभी आना बाक़ी है।

उन्होंने कहा, हम एक नई स्थिति का सामना कर रहे हैं। महामारी के ख़िलाफ़ जारी लड़ाई में अब शायद हमें सबसे ज़्यादा ज़ोर लगाना पड़े। संक्रमित होने का ख़तरा अपने चरम पर है। इस जानलेवा वायरस का डर बना हुआ है। माना जाता है कि रूस में लाखों लोग इस महामारी के कारण बेरोज़गार हो चुके हैं। इस बीच सरकार ने महामारी की रोकथाम के लिए उठाए गए क़दमों को 11 मई तक लागू रखने की घोषणा की है।

शीतयुद्ध के शहर
शीतयुद्ध के शुरुआती दिनों में किसी मुल्क की ताक़त और हैसियत उसके परमाणु जखीरे से मापी जाती थी।
उसी दौर में अमरीका और सोवियत संघ के बीच परमाणु हथियार विकसित करने के लिए पागलपन भरी होड़ शुरू हुई थी।

प्रिंसटाउन यूनिवर्सिटी में साइंस और ग्लोबल सिक्योरिटी प्रोग्राम के सहनिदेशक फ्रैंक एन वोन हिप्पेल कहते हैं, इन्हीं वजहों से सोवियत संघ ने परमाणु हथियारों के विकास के लिए ये केंद्र बनाए थे। उसने इन केंद्रों के लिए ऐसी जगहें चुनीं जहां न केवल उनके अस्तित्व को गोपनीय रखा जा सकता था बल्कि दुश्मन की किसी संभावित बमबारी की ज़द से भी ये बहुत दूर थे।

इस बारे में फ़िलहाल पक्के तौर पर ये कहना मुश्किल है कि सोवियत संघ के ज़माने में क्रेमलिन ने ऐसे कितने ख़ुफ़िया शहर बसाए थे। लेकिन माना जाता है कि इनमें से 40 शहर आज भी अस्तित्व में हैं। इनमें से ज़्यादातर शहरों का नियंत्रण सीधे रक्षा मंत्रालय के पास है और कुछ सरकारी परमाणु एजेंसी 'रोज़ाटोम' के पास।

इन ख़ुफ़िया शहरों में ज़िंदगी फ्रैंक एन वोन हिप्पेल नब्बे के दशक के आख़िर में इनमें से कुछ शहरों का दौरा कर चुके हैं। वो बताते हैं, ये वो जगहें हैं जहां पहुंचना बहुत मुश्किल है। ये दूरदराज़ में स्थित हैं। यहाँ पहुँचने के लिए आम तौर पर एक ही सड़क जाती है जिस पर सुरक्षा पहरा होता है। अंदर आने या जाने के लिए आपको पास दिखाना पड़ता है।

राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के दौर में 'नेशनल सिक्योरिटी फ़ॉर द व्हॉइट हाउस ऑफ़िस ऑफ़ साइंस एंड टेक्नॉलॉजी' विभाग में अस्टिटेंट डायरेक्टर के तौर पर काम कर चुके प्रोफ़ेसर फ्रैंक एन वोन हिप्पेल का कहना है कि इन शहरों में ज़िंदगी न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर्स के इर्द-गिर्द ही घूमती है। वो याद करते हैं, इन ख़ुफ़िया शहरों में रहने वाले ज़्यादातर लोग वैज्ञानिक होते हैं या मिलिट्री से जुड़े होते हैं।

साथ में उनके परिवार होते हैं। साथ ही और भी सर्विस स्टाफ़ होते हैं। ज़्यादातर लोग बिल्डिंग्स में रहते हैं। केवल टॉप लेवल के अफसरों को बंगले मिले हुए हैं। ऐसा नहीं है कि वहां लोगों को सुरक्षा में या फिर क़ैद करके रखा जाता है। किसी छोटी आबादी की तरह ही ये रहते हैं।

तापमान शून्य से 40 डिग्री नीचे
वोन हिप्पेल के अनुसार जो लोग यहां रहते हैं, उन्हें इसकी कुछ इस क़दर आदत पड़ जाती है कि वे रूस के किसी भीड़-भाड़ वाले शहर में रहने के बारे में सोच भी नहीं पाते हैं। भले ही वे ऐसे शहर में रह रहे हों जहां तापमान शून्य से 40 डिग्री नीचे रहता है।
इनमें ओज़र्स्क जैसे शहर भी हैं जहां रहने वाले लोगों पर विकिरण का ख़तरा पाया गया था। इनमें से कुछ शहर अब विदेशी निवेश के लिए खोल दिए गए हैं। आप को जानकर ताज्जुब होगा कि रूसी नागरिकों को भी बिना वैध दस्तावेज़ के इन शहरों में जाने की इजाज़त नहीं है। परमाणु केंद्रों में काम करने वाले लोगों को गोपनीयता के अनुबंध पर दस्तख़त करना होता है।

ये कॉन्ट्रेक्ट उन लोगों पर जीवनभर के लिए लागू रहते हैं। मैथ्यू बन कहते हैं, इन शहरों में से कुछ में तो लोगों पर पास की जगहों पर जाने की पाबंदी होती है। व्यावहारिक रूप से कहें तो यहां रहने वाले लोग एक ऐसे समाज की तरह हैं जिनका बाहरी दुनिया से ज़्यादा वास्ता नहीं पड़ता है।

ख़ुफ़िया शहरों की कहानी
हालांकि एक ज़माने तक इन शहरों का जिक्र केवल ख़ुफ़िया रिपोर्टों तक ही सीमित था। लेकिन सोवियत संघ के विघटन की शुरुआत से ठीक पहले इन शहरों के वजूद के बारे में जानकारी सामने आने लगी थी। इससे पहले इन शहरों को नक्शे पर नहीं दिखाया जाता था। यहां तक इन शहरों में रहने वाले लोगों को जनगणना में भी नहीं गिना जाता था।

जैसे ही कोई यहां सोवियत संघ के परमाणु प्रतिष्ठान के लिए काम करने आता था, बाक़ी दुनिया के लिए उसका अस्तित्व आधिकारिक तौर पर मिटा दिया जाता था। मैथ्यू बन याद करते हैं, इन शहरों की पहचान तो कभी-कभी पोस्ट बॉक्स से जोड़ दिए जाते थे और उन्हें पास के किसी ऐसे शहर में रख दिया जाता था जो बाहरी दुनिया से जुड़ा हुआ हो।

रूस की परमाणु सामाग्री की सुरक्षा पर क्लिंटन प्रशासन के लिए मैथ्यू बन एक ख़ुफ़िया स्टडी कर चुके हैं। वो कहते हैं, नब्बे के दशक में कुछ शहरों को यूं ही वीरान छोड़ दिया गया था क्योंकि वहां चल रही परियोजनाओं में रूस की नई सरकार की दिलचस्पी नहीं रह गई थी।

राष्ट्रपति पुतिन के दौर में
इन ख़ुफ़िया शहरों में ज़्यादातर नियमित रूप से काम कर रहे थे लेकिन उनकी अहमियत कम हो गई थी, उनका दर्जा पहले जैसा नहीं रह गया था। लेकिन व्लादीमिर पुतिन के सत्ता में आने के बाद चीज़ें बदल गईं। प्रोफ़ेसर मैथ्यू बन बताते हैं, सोवियत संघ के विघटन के बाद इनमें से ज़्यादातर केंद्र बेकार हो गए थे लेकिन हाल के वर्षों में रूस की सरकार ने यहां बड़े पैमाने पर निवेश किया है।

ये पैसा इन केंद्रों के आधुनिकीकरण और परमाणु हथियार बनाने का काम जारी रखने के लिए किया गया है। पिछले साल सारोव में एक रहस्यमयी दुर्घटना हुई थी जिसमें पांच परमाणु वैज्ञानिकों की मौत हो गई थी। बाद के दिनों में रूस की सरकार ने ये स्वीकार किया था कि ये विशेषज्ञ नए हथियारों पर प्रयोग कर रहे थे।

सदियों पुराने एक मठ के पास बसा सारोव अब रूस के खुफिया शहरों में कोरोना वायरस के प्रकोप का अहम केंद्र बन गया है। सरकारी एजेंसी 'रोज़ाटोम' के अनुसार एक रिटायर्ड कपल हाल ही मॉस्को से छुट्टियां बिताकर यहां लौटा था। सारोव में कोरोना वायरस का संक्रमण यहीं से शुरू हुआ।

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