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प्रधानमंत्री मोदी के विमान पर पाकिस्तान कितना सही, कितना ग़लत?

प्रधानमंत्री मोदी के विमान पर पाकिस्तान कितना सही, कितना ग़लत?
, शुक्रवार, 20 सितम्बर 2019 (13:55 IST)
सिन्धुवासिनी, बीबीसी संवाददाता
"हिंदुस्तान से दरख़्वास्त आई थी कि हिंदुस्तान के वज़ीर-ए-आज़म नरेंद्र मोदी पाकिस्तान के एयर स्पेस से होकर जाना चाह रहे थे। कश्मीर के हालात को देखते हुए हमने फ़ैसला किया है कि हम इसकी इजाज़त नहीं देंगे।"
 
ये पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी के शब्द हैं। जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 के हटाए जाने के फ़ैसले के बाद से पाकिस्तान अपना विरोध जताने के लिए अलग-अलग तरीके अपना रहा है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पाकिस्तान के वायुक्षेत्र से गुज़रने की अनुमति न देना भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है।
 
इससे पहले पाकिस्तान ने भारतीय राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हवाई जहाज़ को भी अपने एयरस्पेस में प्रवेश की अनुमति नहीं दी थी। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने पाकिस्तान के इस क़दम की निंदा की है और कहा है कि पाकिस्तान को इस पर दोबारा विचार करने को कहा है।
 
प्रधानमंत्री मोदी 21 सितंबर को अमरीका की यात्रा पर जा रहे हैं, वहां वह 22 सितंबर को ह्यूस्टन में 'हाउडी मोदी' कार्यक्रम में शामिल होंगे। इन सबके बीच एक अहम सवाल ये है कि क्या किसी देश को अधिकार है कि वो अपने हवाई क्षेत्र को दूसरों के लिए प्रतिबंध कर दे?
 
हिंदू बिज़नेस लाइन में पिछले कई वर्षों से एविएशन कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार अश्विनी फड़नीस कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय क़ानून इसकी इजाज़त देता है।
 
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उन्होंने बीबीसी हिंदी को बताया, "हर संप्रभु देश को ये अधिकार है कि वो अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनज़र अपने वायुक्षेत्र को दूसरों के प्रवेश से दूर रख सके। अपने नागरिकों की सुरक्षा किसी भी देश की प्राथमिकता होती है। ऐसे में अगर किसी देश को लगता है कि दूसरी जगहों से आने वाले विमान उसकी सुरक्षा के लिए ख़तरा बन सकते हैं तो वो उन्हें बेशक़ अपने एयरस्पेस में आने से रोक सकता है।"
 
इंटरनेशनल सिविल एविएशऩ ऑर्गनाइज़ेशन (ICAO) एक संस्था है जो सुरक्षित उड़ानों के लिए नियम निर्धारित करती है। दुनिया भर के देश इन्हीं नियमों के तहत दूसरे देशों के विमानों को अपने वायुक्षेत्र में आने से रोकते हैं। ये संस्था दुनिया के अलग-अलग देशों में पैदा तनाव और घटनाक्रमों पर लगातार नज़र रखती है और देखती है कि कौन सा वायुक्षेत्र विमानों के आवागमन के लिए असुरक्षित हो सकता है।
 
वैसे तो एयरस्पेस बंद करने के पीछे आम तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा का ही मसला होता है लेकिन कुछ अन्य परिस्थितियों में भी ये फ़ैसला लिया जा सकता है। अश्विनी फड़नीस इसका एक उदाहरण देते हैं, "इंडोनेशिया में कुछ साल पहले एक भयानक ज्वालामुखी फटा था और इसकी वजह से वहां का वायुक्षेत्र बहुत प्रदूषित हो गया था। इसके बाद एयरलाइंस ने ख़ुद ही उस एयरस्पेस में जाने से इनकार कर दिया था।"
 
एयर इंडिया के पूर्व कार्यकारी निदेशक जितेंद्र भार्गव भी इस बारे में अश्विनी फड़नीस से सहमति जताते हैं। वो कहते हैं, "अपने एयरस्पेस पर किसी देश का पूरा अधिकार होता है। इसलिए पाकिस्तान ने क़ानूनी तौर पर किसी नियम का उल्लंघन नहीं किया है।"
 
जितेंद्र भार्गव बताते हैं कि जब कोई विमान किसी अन्य देश के वायुक्षेत्र में प्रवेश करता है तो वहां का एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल (एटीसी) विभाग विमान को तब तक पूरी तरह गाइड करता है, जब तक विमान उसके वायुक्षेत्र से सही-सलामत बाहर नहीं निकल जाता।
 
भारत-पाकिस्तान ने पहले भी बंद किए हैं हवाई क्षेत्र : इस साल फ़रवरी महीने में हुए पुलवामा हमले और बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद भी जब भारत और पाकिस्तान में तनाव हुआ था तब दोनों देशों ने एक-दूसरे के लिए अपने-अपने हवाई क्षेत्र बंद कर दिए थे।
 
हालात सामान्य होने पर भारत ने तो पहले अपना एयरस्पेस खोल दिया था, लेकिन पाकिस्तान ने काफ़ी वक़्त बाद, करीब पांच-छह महीने तक भारत के लिए अपना हवाई क्षेत्र बंद रखा था। इसका नतीजा ये हुआ था कि भारत से अमेरिका और यूरोप जाने वाले विमानों की यात्रा अवधि बढ़ गई थी। इसकी वजह से कई एयरलाइंस को अपनी सेवाओं में बदलाव करना पड़ा।
 
मिसाल के तौर पर अमेरिकन कैरियर युनाइटेड ने अपनी नॉनस्टॉप सेवा बंद कर दी थी, एयर कनाडा ने अपनी फ़्लाइट बंद कर दी थी। इसके अलावा इंडिगो को अपनी दिल्ली से इस्तांबुल (तुर्की) की नॉनस्टॉप फ़्लाइट को रोकना पड़ा।
 
2001 में भारतीय संसद पर हमले के बाद वाजपेयी सरकार के दौरान भी भारत और पाकिस्तान ने एक-दूसरे के लिए अपने हवाई क्षेत्र बंद कर दिए थे। तब चार-पांच महीने के बाद ये वायुक्षेत्र खोले गए थे। 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने अपना पूरा हवाई क्षेत्र बंद कर दिया था। इसका नतीजा ये हुआ कि किसी भी दूसरे देश का कोई भी विमान अमेरिका के एयरस्पेस में नहीं जा सका।
 
इसके अलावा दो देशों के बीच की युद्ध की स्थिति में भी वायुक्षेत्र बंद कर दिए जाते हैं। क्या भारत, पाकिस्तान के इस फ़ैसले को किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर चुनौती दे सकता है? अश्विनी फड़नीस और जितेंद्र भार्गव दोनों इसका जवाब 'नहीं' में देते हैं।
 
जितेंद्र भार्गव कहते हैं कि ऐसा कोई फ़ोरम या मंच नहीं है, जहां भारत पाकिस्तान की शिकायत कर सके या उसके फ़ैसले को चुनौती दे सके। ज़्यादा से ज़्यादा भारत जो कर सकता है वो है जवाबी कार्रवाई, यानी पाकिस्तान के लिए अपना एयरस्पेस भी बंद करना।
 
अश्विनी फड़नीस कहते हैं, "आम तौर पर वीवीआईपी विमानों को आने-जाने की अनुमति मिल जाती है, लेकिन चूंकि अभी भारत-पाकिस्तान में तनाव गहरे हैं इसलिए पाकिस्तान ने राष्ट्रपति कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विमानों को अपने हवाई क्षेत्र से गुज़रने की अनुमति नहीं दी।" 
 
लेकिन क्या वीवीआईपी विमानों की वजह से क्या वाक़ई किसी देश की सुरक्षा को ख़तरा हो सकता है? इसके जवाब में फड़नीस कहते हैं, "ऐसा नहीं है। असल में ये फ़ैसले कूटनीतिक संकेत भर होते हैं। इनके ज़रिए एक देश दूसरे देश को ये संकेत देता है कि उसने सख़्त रुख़ अख़्तियार किया हुआ है। पाकिस्तान का ये फ़ैसला भी कुछ ऐसा ही है।"
 
वायुक्षेत्र बंद करने के कूटनीतिक संकेत का प्रभाव भारत और पाकिस्तान में एयरलाइंस के कारोबार पर भी पड़ता है। बालाकोट हमले के बाद जब भारत-पाकिस्तान ने अपने वायुक्षेत्र बंद किए तब इसका नुक़सान दोनों देशों को उठाना पड़ा था।
 
भारत के नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने संसद में बताया था कि इसकी वजह से भारत को लगभग 300-400 करोड़ रुपए का नुक़सान हुआ था। वहीं, पाकिस्तानी मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक़ भारतीय एयरस्पेस बंद होने के कारण पाकिस्तानी एयरलाइंस को कई बिलियन रुपयों का नुक़सान हुआ था।
 
भारत-पाकिस्तान एयरस्पेस बंद होने से होने वाले नुक़सान को अश्विनी फड़नीस कुछ इस तरह समझाते हैं : भारत और पाकिस्तान यूरोप के लिए बेहद अहम 'गेटवे' हैं। दिन में लगभग 200-250 विमान यूरोप जाने के लिए भारत और पाकिस्तान के वायुक्षेत्र से होकर गुज़रना पड़ता है।
 
ऐसे में अगर हम अनुमान लगाएं कि इन सभी विमानों को यूरोप पहुंचने के लिए 40-45 मिनट ज़्यादा वक़्त लगाना पड़े तो एयरलाइन्स को कितना नुक़सान होगा और यात्रियों को कितनी असुविधा उठानी पड़ेगी। फड़नीस बताते हैं कि एयरस्पेस को बंद रखने की कोई अधिकतम समयसीमा या अवधि नहीं होती।
 
वो कहते हैं, "अमूमन ये पारस्परिक होता है। अगर एक देश पहल करके अपना वायुक्षेत्र खोलता है तो सामान्य तौर पर दूसरा भी ऐसा ही करता है। मगर हमेशा ऐसा ही हो, ऐसा भी ज़रूरी नहीं है। जैसे कि बालाकोट हमले के बाद भारत ने पहले अपना वायुक्षेत्र खोल दिया था लेकिन पाकिस्तान ने ऐसा करने में काफ़ी वक़्त लिया।"
 
पाकिस्तान को फ़ायदा नहीं होगा : जितेंद्र भार्गव कहते हैं कि भारतीय प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के विमान को अपने वायुक्षेत्र से न गुज़रने देकर पाकिस्तान ने अपरिपक्वता का परिचय दिया है और भविष्य में उसे इसका नुक़सान ही होगा, फ़ायदा नहीं।
 
वो कहते हैं, ''अनुच्छेद-370 को ख़त्म किए जाने के भारत के फ़ैसले के बाद से ही पाकिस्तान इस मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने और दुनिया का कश्मीर मसले की ओर ध्यान खींचने की कोशिश कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के लिए अपना एयरस्पेस बंद करना भी एक ऐसी ही कोशिश है।''
 
दूसरी तरफ़, अश्विनी फड़नीस का मानना है कि राष्ट्रपति कोविंद के विमान को पाकिस्तानी वायुक्षेत्र में प्रवेश की अनुमति न मिलने के बाद प्रधामंत्री मोदी के विमान के लिए ये अर्ज़ी पाकिस्तान को भेजनी ही नहीं चाहिए थी।
 
फड़नीस कहते हैं, "अगर जुलाई में प्रधानमंत्री बिश्केक जाने के लिए पाकिस्तानी वायुक्षेत्र छोड़कर ओमान और ईरान का वायुक्षेत्र चुनते हैं तो कुछ महीने बाद ही पाकिस्तानी एयरस्पेस में जाने की ज़रूरत क्यों पड़ी? मुझे इसकी कोई वजह समझ नहीं आती।"
 
इस साल जुलाई में पुलवामा हमले और बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद जारी तनाव को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी बिश्केक यात्रा में पाकिस्तानी वायुक्षेत्र से होकर नहीं गुजरे थे। ऐसा तब हुआ था जब पाकिस्तान ने उनके विमान के अपने वायुक्षेत्र में प्रवेश के लिए सहमति जता दी थी।

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