Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia

पाकिस्तान में हिंदुओं के घरों का क्या हुआ?

पाकिस्तान में हिंदुओं के घरों का क्या हुआ?
, मंगलवार, 29 अगस्त 2017 (11:07 IST)
- सुमिरन प्रीत कौर 
बंटवारे के वक़्त पाकिस्तान के डेरा इस्माइल ख़ान से कई हिंदू परिवार अपने घर छोड़कर भारत आ गए थे। ये तो हुई सरहद के उस पार की बात। भारत में भी अब तक डेरा इस्माइल ख़ान के निशान मिलते हैं। डेरा से आए लोग वहां का रहन-सहन, भाषा और संस्कृति भी अपने साथ ले आए थे।
 
इनमें से कई हिंदू परिवारों के घर अब भी वहां सलामत हैं और आज भी घरों के बाहर उनके नाम लिखे हैं। लाहौर से करीब 320 किलोमीटर की दूरी पर है डेरा इस्माइल ख़ान। हिंदू परिवारों के कई घर अब तक वहां मौजूद हैं।
 
किसी पर 'बाबा भगवानदास' लिखा है तो किसी की छत पर अब तक वह नक्काशी है, जो बंटवारे से पहले रहने वालों की दास्तां बयां करती है। दिल्ली के पास गुरुग्राम में रहने वाले प्रेम पिपलानी बंटवारे के वक़्त वहीं से आए थे। वह आज भी डेरा की भाषा 'सराइकी' में बात करते हैं।

प्रेम पिपलानी ने बीबीसी से बातचीत में बंटवारे के वक़्त को याद करते हुए बताया, 'बंटवारे के समय माहौल बहुत ख़राब था। एक बार मेरे ऊपर तलवार से हमला भी हुआ। बंटवारे के बाद बहुत लोग भारत आए और जिसको जहां जगह मिली, वह वहीं बस गया। मैं 50 साल जालंधर रहा और फिर गुरुग्राम आया।'
webdunia
जब पाकिस्तान में अपना घर देखा
प्रेम पिपलानी एक व्यवसायी हैं और दुनिया घूम चुके हैं। लेकिन 1999 में वह यादें टटोलते हुए करीब 57 साल बाद फिर पाकिस्तान गए। वहां उन्होंने डेरा इस्माइल ख़ान जाकर अपने घर को ढूंढने की कोशिश की। 
 
प्रेम पिपलानी ने बताया, 'जैसे ही मैंने क़दम रखा, वही मिट्टी की ख़ुशबू आई, वही अहसास याद आए। मैं 85 साल का हूं लेकिन वहां जाकर एक अजीब सी चुस्ती आई। मुझे लगा मैं 40 या 50 साल का हूं। इतने सालों में कुछ नहीं बदला है। उस इलाक़े में अब तक पुराने घर हैं, गोशाला है और एक मंदिर भी है।'
 
प्रेम बताते हैं, 'हिंदू और सिखों के घरों पर उनके नेम-प्लेट अभी भी हैं। सबसे अच्छा तब लगा जब अपना घर देखा। यह घर 18वीं सदी का है। डेरा का यह मकान मेरे दादाजी ने बनवाया था। वहां की छत अभी भी वैसी है। अब वह सरकारी स्कूल है।'
webdunia
बंटवारे के बाद बने नए रिश्ते
बंटवारे के वक़्त जहां बहुत से लोग बिछड़े तो वहीं करीब 70 साल बाद नए रिश्ते भी बन रहे हैं। जहां प्रेम पिपलानी अपना खानदानी घर देखकर हैरान हुए, वहां उन्होंने सराइकी भाषा में बात करके लोगों को हैरान कर दिया। डेरा इस्माइल के बुलंद इक़बाल ने बीबीसी से बातचीत में कहा, 'जब लोगों को पता चलता है कि कोई भारत से आकर यहां की भाषा 'सराइकी' बोल रहा है तो वे हैरान होते हैं। उनको अचरज इस बात का होता है कि भारत के कई लोग उनके जैसे ही हैं।'
 
सराइकी से दूर होती जा रही है नई पीढ़ी
प्रेम पिपलानी डेरा की भाषा बोलते हैं और वहां के रहन-सहन के बारे में भी जानते हैं। मगर उनके परिवार की नई पीढ़ी को इसका ज़्यादा पता नहीं है। उनकी बेटी नीलिमा विग ने बताया, 'मैं सराइकी के कुछ शब्द समझ सकती हूं लेकिन भाषा पूरी तरह नहीं जानती। मेरे पिताजी कुछ ख़ास मौकों पर अभी भी वो कपड़े पहनते हैं जो डेरावाले पहनते हैं।'
 
बंटवारे की बात
प्रेम की तरह और भी कुछ लोग पाकिस्तान से आए और भारत को अपना घर बनाया। इनमें से बहुत से परिवार गुड़गांव में ही रहते हैं।
webdunia

इनमें भी कुछ लोग सराइकी बोलते हैं। जब वे मिलते हैं तो बंटवारे की बात हो जाती है। डेरा से आए राजकुमार बवेजा ने बताया, 'डेरा का माहौल ऐसा था कि हिंदू-मुसलमान एकसाथ रहते थे और सारे त्योहार एक साथ मनाते थे। फिर सब बदल गया और सरहदें बन गईं।'
 
वहीं सहदेव रत्रा ने बताया, 'हमारे परिवार के सदस्य अलग-अलग भारत आए। हम सब बिछड़ गए थे। हमें मिलने में करीब सात महीने लग गए।'
 
बेशक भारत में अब गिने-चुने लोग ही सराइकी बोलते हैं लेकिन जब कभी ये डेरावाले मिलते हैं, इसी भाषा में पुरानी यादें ताज़ा करते हैं और सराइकी के कुछ लोकगीत भी गाते हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia gujarati

આગળનો લેખ

तीन तलाक पर फैसला ऐतिहासिक है...