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क्यों है बेरोज़गार ‘ग्रेजुए्‍टस' की फौज?

वृजेन्द्रसिंह झाला
देश की बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ ही रोज़गार के अवसर भी तेज़ी से बढ़े हैं। लेकिन विश्वविद्यालय जो ग्रेजुएट्‍स तैयार कर रहे हैं वो इंडस्ट्री की ज़रूरतों के अनुरूप नहीं हैं।
 
हिन्दीभाषी राज्यों से हर साल लाखों ग्रेजुएट्‍स निकल रहे हैं, लेकिन इनमें से कुछ हज़ार ही टेक्निकल ग्रेजुएट्‍स होते हैं।
 
एनसीईआरटी के वैज्ञानिक अवनीश पांडेय कहते हैं कि कंपनियों को स्किल्ड वर्कफोर्स चाहिए, जो अभी विश्वविद्यालय नहीं दे रहे।
 
भारत की 400 कंपनियों पर किए गए एक रिक्रूटमेंट सर्वे का हवाला देते हुए पांडेय कहते हैं कि 97 फीसदी कंपनियां मानती हैं कि अर्थव्यवस्था बढ़ने के साथ रोज़गार के अवसरों में भी इज़ाफ़ा हुआ है, मगर उस अनुपात में अच्छे प्रोफेशनल्स नहीं मिल पा रहे हैं।
सर्वे के मुताबिक 60 फीसदी ग्रेजुएट्‍स किसी भी समस्या को सुलझाने में सफल नहीं हो पाते, उन्हें अपने क्षेत्र की पूरी जानकारी भी नहीं होती।
 
कैसे तैयार होगा स्किल्ड वर्कफोर्स?
पांडेय कहते हैं कि विश्वविद्यालयों को परंपरागत ढर्रे को छोड़कर प्रैक्टिकल नॉलेज पर ज़ोर देना होगा। साथ ही इंटर्नशिप और लाइव ट्रेनिंग पर भी ध्यान देना होगा।
 
वे कहते हैं, ''तकनीकी बदलावों को अपनाने के साथ ही छात्रों को डिबेट और ग्रुप डिस्कशन का प्रशिक्षण देना चाहिए ताकि वे खुद को सही तरीके से पेश कर सकें।''
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के इंस्टीट्‍यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज़ (आईएमएस) के प्लेसमेंट अधिकारी डॉ. अवनीश व्यास कहते हैं कि हकीकत में मेरिट का अच्छी नौकरी से ज्यादा लेना-देना नहीं हैं।
 
वे कहते हैं, ''सही प्लेसमेंट के लिए स्टूडेंट को मार्केट नॉलेज, संबंधित क्षेत्र की पूरी जानकारी, अर्थव्यवस्था की जानकारी, टीम भावना और मैनेजमेंट स्किल्स होनी चाहिए।''
 
कितना मेरिट, कितनी तैयारी
व्यास कहते हैं, ''कई बार देखने में आता है कि मेरिट वाले स्टूडेंट ज्यादा वक्त किताबों के साथ बिताते हैं जबकि एवरेज स्टूडेंट स्टडी के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों पर भी ध्यान देते हैं, इन खूबियों के कारण उन्हें अधिक नंबर लाने वाले छात्र के मुक़ाबले जल्दी प्लेसमेंट मिल जाता है।''
रिक्रूटमेंट पर पीएचडी कर चुके डॉ. व्यास कहते हैं कि प्लेसमेंट के लिए कंपनियां न आएं तो भी उनके संपर्क में रहना चाहिए।
 
वे बहुराष्ट्रीय कंपनी डिलॉइट की मिसाल देते हुए कहते हैं कि यह कंपनी सेंट्रल इंडिया के अंग्रेज़ी जानने वाले विद्यार्थियों को ज्यादा अहमियत देती है क्योंकि उसका मानना है कि यहां के प्रोफेशनल्स का उच्चारण अच्छा होता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ कम्युनिकेशन में परेशानी नहीं होती।
 
विशेषज्ञों के नज़रिए के आधार पर कहा जा सकता है कि अच्छी डिग्री के साथ ही विषय की जानकारी, संवाद कौशल, बाज़ार की समझ, सामान्य ज्ञान और प्रेजेंटेशन स्किल भी होना चाहिए, सिर्फ़ ग्रेजुएशन कर लेने से बात नहीं बनने वाली।
 
(हिंदी भाषी छात्रों की मदद के मक़सद से ये बीबीसी हिन्दी और वेबदुनिया डॉट कॉम की संयुक्त पेशकश है। आने वाले दिनों में करियर से जुड़ी ज़रूरी जानकारियाँ हम आप तक पहुँचाएँगे।)

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