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जर्मनी ने मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी पर भारत के लोकतंत्र पर किया तंज़

BBC Hindi
गुरुवार, 7 जुलाई 2022 (09:09 IST)
ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी पर जर्मनी के विदेश मंत्रालय ने भारत के लोकतंत्र पर तंज़ किया है। बुधवार को जर्मन विदेश मंत्रालय की प्रेस कॉन्फ़्रेंस में मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी पर सवाल पूछा गया था।
 
जर्मन विदेश मंत्रालय ने जवाब में कहा, ''भारत ख़ुद को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहता है। ऐसे में उससे लोकतांत्रिक मूल्यों जैसे- अभिव्यक्ति और प्रेस की आज़ादी की उम्मीद की जा सकती है। प्रेस को ज़रूरी स्पेस दिया जाना चाहिए। हम अभिव्यक्ति की आज़ादी को लेकर प्रतिबद्ध हैं।

दुनिया भर में प्रेस की आज़ादी का हम समर्थन करते हैं। यह ऐसी चीज़ है, जिसकी काफ़ी अहमियत है। और यह भारत में भी लागू होता है। स्वतंत्र रिपोर्टिंग किसी भी समाज के लिए बेहद ज़रूरी है। पत्रकारिता पर पाबंदी चिंता का विषय है। पत्रकारों को बोलने और लिखने के लिए जेल में नहीं डाला जा सकता है।''
 
जर्मन विदेश मंत्रालय ने कहा, ''हमें भारत में हुई उस गिरफ़्तारी के बारे में जानकारी है। नई दिल्ली स्थित हमारे दूतावास की नज़र इस पर है। हम इस मामले में ईयू से भी संपर्क में हैं। ईयू का भारत के साथ मानवाधिकारों को लेकर संवाद है। इसमें अभिव्यक्ति और प्रेस की आज़ादी निहित है।''
 
जर्मन विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता से वहाँ के प्रसारक डीडब्ल्यू के प्रधान अंतरराष्ट्रीय संपादक रिचर्ड वॉकर ने पूछा कि जर्मनी प्रेस की आज़ादी को लेकर मुखर रहता है और कहीं भी पत्रकारों की गिरफ़्तारी होती है तो उसका विरोध करता है। लेकिन भारत को लेकर इस मामले में फ़र्क़ क्यों है? जर्मनी भारत के मामले में कोई सख़्त रुख़ क्यों नहीं अपना रहा है?
 
 
पीएम मोदी ने की थी जर्मनी में लोकतांत्रिक मूल्यों की वकालत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले महीने 26 और 27 जून को जर्मनी में जी-7 की बैठक में विशेष अतिथि के तौर पर शामिल हुए थे। भारत के अलावा इंडोनेशिया, अर्जेंटीना, दक्षिण अफ़्रीका और सेनेगल को भी विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया था।
 
इन पाँचों देशों ने जी-7 देशों के साथ 27 जून को '2022 रेज़िलिएंट डेमोक्रेसिज़ स्टेटमेंट' पर हस्ताक्षर किए थे। इसके तहत सिविल सोसायटी में विविधता और स्वतंत्रता की रक्षा, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा की बात कही गई है जिसमें ऑनलाइन और ऑफ़लाइन विचार भी शामिल हैं।
 
चार पन्ने के इस बयान में कहा गया है, ''हम जर्मनी, अर्जेंटीना, कनाडा, फ़्रांस, इंडिया, इंडोनेशिया, इटली, जापान, सेनेगल, दक्षिण अफ़्रीका, ब्रिटेन, अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के साथ मिलकर लोकतंत्र को मज़बूत बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम लोकतंत्र का बचाव करेंगे और शोषण के अलावा हिंसा के ख़िलाफ़ मिलकर लड़ेंगे। वैश्विक स्तर पर लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करेंगे। सार्वजनिक बहस, मीडिया की आज़ादी और उसमें बहुलतावाद, ऑनलाइन और ऑफ़लाइन सूचनाओं के मुक्त प्रवाह और पारर्शिता के बचाव में साथ मिलकर काम करेंगे।''
 
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर जी-7 के देशों के साथ मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता जता रहे थे, उसी दिन फैक्ट चेकर वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर को दिल्ली पुलिस ने गिरफ़्तार किया था। मोहम्मद ज़ुबैर के 2018 के एक ट्वीट को लेकर एक ट्विटर यूज़र ने शिकायत की थी। उसने मोहम्मद ज़ुबैर पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का आरोप लगाया है। दिल्ली पुलिस ने इसी आधार पर ज़ुबैर को गिरफ़्तार किया है।
 
मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी को बीजेपी की तत्कालीन राष्ट्रीय प्रवक्ता नूपुर शर्मा की पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी से भी जोड़ा जा रहा है। मोहम्मद ज़ुबैर ने नूपुर शर्मा की विवादित टिप्पणी का मुद्दा सोशल मीडिया पर ज़ोर-शोर से उठाया था।
 
इसके बाद कई इस्लामिक देशों ने भारत के ख़िलाफ़ बयान जारी किया था और नूपुर शर्मा पर कार्रवाई की मांग थी। बाद में बीजेपी ने शर्मा को पार्टी से निलंबित कर दिया था। नूपुर शर्मा पर कई राज्यों में एफ़आईआर दर्ज की गई है लेकिन उनकी अभी गिरफ़्तारी नहीं हुई है। दूसरी तरफ़ दिल्ली पुलिस ने एक ट्विटर यूज़र की शिकायत पर मोहम्मद ज़ुबैर को गिरफ़्तार कर लिया। बाद में उन पर और कई आरोप लगाए गए हैं। इनमें विदेश से चंदा लेने का मामला भी शामिल है।
 
मई के पहले हफ़्ते में प्रधानमंत्री मोदी यूरोप दौरे पर गए थे। यूरोप दौरे पर मीडिया से सवाल न लेने और भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना शुरू हो गई थी।
 
2015 के आख़िर से ही ये चलता आ रहा है कि प्रधानमंत्री पत्रकारों के सवाल लिए बिना सिर्फ़ अपने समकक्षों के साथ संयुक्त बयान जारी करते हैं। हालांकि, इस बार जर्मन ब्रॉडकास्टर डॉयचे वेले के चीफ़ इंटरनेशनल एडिटर रिचर्ड वॉकर ने ट्वीट के ज़रिए मोदी के जर्मनी दौरे को लेकर ये मुद्दा सबके सामने उठाया।
 
उन्होंने लिखा था, "मोदी और शॉल्त्स बर्लिन में प्रेस को संबोधित करने वाले हैं। वे दोनों सरकारों के बीच 14 समझौतों का एलान करेंगे। वे भारतीय पक्ष के आग्रह पर एक भी सवाल नहीं लेंगे।"
 
प्रेस की आज़ादी के मामले में भारत के आठ पायदान फिसलने को भी वॉकर ने रेखांकित किया था। रिपोर्टर्स सैन्स फ्रंटियर्स (आरएसफ़) ने प्रेस आज़ादी के मामले में 180 देशों की सूची में भारत को 150वां स्थान दिया। पिछले साल भारत 142वें स्थान पर था।
 
'रिपोर्टर्स विदाउड बॉर्डर्स' (आरएसएफ़) की ओर से जारी ताज़ा रिपोर्ट में भारत प्रेस की आज़ादी के मामले में 142वें पायदान से फिसलकर 150वें स्थान पर पहुँच गया है।
 
फ़्रांस की न्यूज़ वेबसाइट फ़्रांस 24 ने पीएम मोदी के यूरोप दौरे को लेकर लिखा था, ''चार मई को चांसलर ओलाफ़ शॉल्त्स से पीएम मोदी ने मुलाक़ात की लेकिन द्विपक्षीय समझौतों के बाद जर्मनी के चांसलर नियमों के अनुरूप प्रेस को सवाल करने का मौक़ा नहीं दिया। जर्मनी में भी पत्रकारों के सवाल न लेने का फ़ैसला भारतीय प्रतिनिधिमंडल के आग्रह पर ही लिया गया। अख़बार ने जर्मन अधिकारियों के हवाले से ये दावा किया था।''
 
मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी पर यूएन की आपत्ति और भारत का जवाब
मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी पर संयुक्त राष्ट्र ने भी 29 जून को विरोध जताया था और कहा था कि पत्रकार क्या लिखता है, क्या ट्वीट करता है और क्या बोलता है, इसके लिए उसे जेल में नहीं डाला जा सकता।
 
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरस के प्रवक्ता ने कहा था कि पत्रकारों को बोलने और लिखने के लिए प्रताड़ित नहीं किया जा सकता है।
 
यूएन प्रमुख के प्रवक्ता ने कहा था, ''मेरा मानना है कि दुनिया के किसी भी कोने में यह ज़रूरी है को लोगों को स्वतंत्र रूप से बोलने की आज़ादी हो, पत्रकारों अपना काम स्वतंत्र रूप से करने की आज़ादी हो। इसके लिए किसी को डराया या प्रताड़ित नहीं किया जाए।''
 
भारत के विदेश मंत्रालय ने यूएन की मोहम्मद ज़ुबैर पर टिप्पणी को लेकर कहा था कि यह निराधार है और भारत की स्वतंत्र न्यायपालिका में हस्तक्षेप है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा था कि भारत में न्यायिक प्रक्रिया के तहत ही कोई कार्रवाई होती है।

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