-प्रशांत चाहल, बीबीसी फ़ैक्ट चेक टीम
भारत के कई बड़े न्यूज चैनलों ने बुधवार को पाकिस्तान का एक वीडियो इस दावे के साथ दिखाया कि पाकिस्तान आर्मी के एक बड़े अफसर ने बालाकोट हमले में 200 लोगों के मारे जाने की बात स्वीकार की है।
टीवी चैनलों पर आने से पहले ये वीडियो हमें सोशल मीडिया पर सर्कुलेट होता हुआ मिला था। फेसबुक के कुछ क्लोज़ ग्रुप्स में इस वीडियो को ‘भारतीय वायु सेना के बालाकोट हमले के सबूत’ के तौर पर शेयर किया गया है।
केंद्रीय मंत्री गिरीराज सिंह ने इस वीडियो को ट्वीट करते हुए लिखा है, “हिंदुस्तान की सेना के शौर्य पर पाकिस्तान रो रहा है। जिसका वीडियो वायरल हो रहा है और देश के गद्दार हमारी सेना को अपमानित कर रहे हैं और सबूत मांग रहे हैं।”
टीवी चैनलों पर दिखाये जाने के बाद ये वीडियो तेजी से फैला है और इसे व्हॉट्सऐप पर भी ‘बालाकोट के सबूत’ के तौर पर शेयर किया जा रहा है। बीबीसी को अपने कई पाठकों से यह वीडियो मिला है और उन्होंने इसकी सत्यता जाननी चाही है।
वीडियो की पड़ताल में हमने पाया है कि इसमें दिख रहे पाकिस्तानी आर्मी अफसर ने कहीं भी बालाकोट हमले में 200 लोगों के मरने की बात स्वीकार नहीं की है।
पीड़ित परिवार के साथ खड़े पाकिस्तान फौज के फैसल कुरैशी
पहली ये कि वीडियो में जो लोग आर्मी अफ़सर से बात कर रहे हैं, खासतौर पर पाकिस्तानी अफसर के बगल में खाट पर बैठे बुजुर्ग, वो पश्तो बोल रहे हैं और खैबर पख्तूनख्वा के मानसेरा-बालाकोट इलाके में हिंदको भाषा बोली जाती है।
दूसरी बात ये कि जो पाकिस्तानी अफसर लोगों से बात कर रहे हैं, उन्हें सुनकर लगता है कि वो 200 लोगों के मरने की नहीं, बल्कि 200 लोगों में से किसी एक शख़्स के मरने की बात कर रहे हैं।
वायरल वीडियो के पहले 17 सेकेंड में वो कहते हैं, “...इसीलिए हम आए हैं कि हम सब का ईमान है कि जो हुकूमत के साथ खड़े होकर लड़ाई करता है, वो जिहाद है।”
इसके बाद आर्मी अफसर तीन बच्चों से मुलाकात करते हैं और 49वें सेकेंड से उन्हीं की आवाज फिर सुनाई देती है:
“ये रुतबा कुछ ही लोगों को नसीब होता है। ये हरेक बंदे को नसीब नहीं होता। आपको पता है कि कल दो सौ बंदा ऊपर (पहाड़ पर) गया था। इसके नसीब में लिखी हुई थी शहादत। हमारे नसीब में नहीं लिखी हुई थी। हम रोज़ाना चढ़ते हैं। जाते हैं, आते हैं। लेकिन शहादत उन्हीं को नसीब होती है जिनपर अल्लाह की खास नजर होती है।”
49वें सेकेंड के बाद जो आवाज सुनाई देती है वो सुनने में तो उन्हीं आर्मी अफसर की लगती है, लेकिन इस दौरान उनके हाव-भाव और आवाज मेल नहीं खाते। ऐसा लगता है कि उनकी आवाज का ये हिस्सा एडिटिंग की मदद से वीडियो में जोड़ा गया है।
बहरहाल, वायरल वीडियो में उन्हें सुनकर कहीं से भी ये अर्थ नहीं निकलता कि ‘200 लोगों की मौत हुई है’।
लेकिन भारत में इस वीडियो को यह कहते हुए शेयर किया जा रहा है कि पाकिस्तानी अफसर ने 200 लोगों के मरने की बात स्वीकार की।
गाँव वालों से मुलाकात के दौरान फरमानुल्लाह खान से हाथ मिलाते पाकिस्तान आर्मी के आला अफसर हलीम
वीडियो बालाकोट का नहीं
इस वायरल वीडियो को फ़्रेम बाई फ़्रेम सर्च करने पर जो सबसे पुरानी फेसबुक पोस्ट मिलती है वो 1 मार्च 2019 की है।
उर्दू में लिखी इस फेसबुक पोस्ट के अनुसार ये कथित तौर पर एहसानुल्लाह नाम के किसी पाकिस्तानी सैनिक के जनाजे का वीडियो है जिसका गाँव पश्चिमी खैबर पख्तूनख्वा में स्थित है।
हमने इस घटना से जुड़ी एक अन्य वीडियो भी देखी और फेसबुक के ज़रिए उसमें दिखने वाले जावेद इकबाल शाहीन और फरमानुल्लाह खान की पहचान की। ये दोनों शख्स फौजी अफसरों के दौरे के समय पीड़ित परिवार के साथ थे।
खुद को पाकिस्तान के दीर का बाशिंदा बताने वाले इन दोनों लोगों ने 2 मार्च को इस घटना की कुछ तस्वीरें पोस्ट की थीं। इनमें से एक तस्वीर के साथ फरमानुल्लाह खान ने लिखा था, “पाकिस्तानी फौज के आला अफसर हलीम और लेफ्टिनेंट कर्नल फैसल कुरैशी से मुलाकात हुई”।
दोनों अफसरों की वर्दी पर जड़े सितारों के अनुसार हलीम पाकिस्तान आर्मी में कर्नल हो सकते हैं और फैसल कुरैशी लेफ्टिनेंट कर्नल। लेकिन पाकिस्तानी आर्मी के प्रवक्ता ने अपने अफसरों की पहचान बीबीसी से जाहिर नहीं की।
भारत में इस घटना का जो वीडियो वायरल हुआ है, उसमें लेफ्टिनेंट कर्नल फैसल कुरैशी की ही आवाज सुनाई देती है।
वीडियो पर पाकिस्तान में भी भ्रम
भारत में ये वीडियो वायरल होने के बाद कुछ पाकिस्तानी मीडिया वेबसाइट्स ने भी इस वीडियो को फेक बताया है और लिखा है कि ‘बालाकोट हमले में कथित तौर पर हुई लोगों की मौत के दावे को सही साबित करने के लिए भारतीय मीडिया ने फिर फर्जी वीडियो दिखाए’।
लेकिन इन वेबसाइट्स ने इस वीडियो के बारे में जो सूचना दी है वो भी तथ्यात्मक रूप से गलत है।
‘डेली पाकिस्तान डॉट कॉम’ ने लिखा है कि ये वीडियो एलओसी पर भारत और पाकिस्तान के बीच हुई फायरिंग में नायक खुर्रम के साथ मारे गए हवलदार अब्दुल राब के अंतिम संस्कार से पहले का है।