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कोविड-19 वैक्सीन की दो अरब डोज़ बनी लेकिन कहां गईं?

कोविड-19 वैक्सीन की दो अरब डोज़ बनी लेकिन कहां गईं?

BBC Hindi

, शुक्रवार, 4 जून 2021 (07:52 IST)
कोरोना वायरस महामारी पूरी दुनिया को तबाह करने वाली साबित हुई है। लेकिन इतने कम समय में हम कोरोना वैक्सीन की दो अरब डोज़ बना रहे हैं और यह संक्रमण को रोकने की लड़ाई में मील का पत्थर है।
 
अच्छी ख़बर है कि इस साल के अंत तक एक अुनमान के मुताबिक़ दुनिया भर के 5.8 अरब वयस्कों के टीकाकरण के लिए वैक्सीन की डोज़ उपलब्ध हो जाएगी। बुरी ख़बर है कि वैक्सीन का उत्पादन भौगोलिक रूप से केंद्रीकृत है। साथ ही कुछ देश इसका संग्रह कर रहे हैं।
 
ऐसे में सभी को वैक्सीन पहुंचाने के विचार को झटका लगा है। चलिए दुनिया में वैक्सीन की उपलब्धता को प्रभावित करने वाले कुछ कारकों पर एक नजर डालते हैं-
 
ड्यूक्स ग्लोबल हेल्थ इनोवेशन सेंटर (जीएचआईसी) के मुताबिक़, इस साल 12 अरब से ज्यादा डोज़ का उत्पादन हो सकता है।
 
वैक्सीन के उत्पादन और आपूर्ति पर निगरानी रखने वाली एनालिटिक्स फर्म एयरफिनिटी के अनुमान के मुताबिक़, साल 2021 में 11.1 अरब से ज़्यादा वैक्सीन की डोज का उत्पादन हो सकता है। एयरफिनिटी के मुताबिक़, पाँच साल और उससे ज़्यादा उम्र की 75 फ़ीसदी वैश्विक आबादी को टीका लगाने के लिए 10।82 अरब डोज़ पर्याप्त होंगी।
 
ड्यूक्स ग्लोबल हेल्थ इनोवेशन सेंटर की असिस्टेंट डायरेक्टर एंड्रिया टेलर ने बीबीसी को बताया, ''महामारी ने दिखा दिया है कि पूरी दुनिया में वैक्सीन का उत्पादन समान रूप से नहीं हो पा रहा है।''
 
वैक्सीन के उत्पादन की जगह बहुत मायने रखती है। ज़्यादातर वैक्सीन का उत्पादन अमेरिका और यूरोप में हो रहा है। इन देशों को वैक्सीन की डोज़ पहले मिल रही है क्योंकि वहीं पर वैक्सीन का उत्पादन हो रहा है। ये देश निर्यात पर प्रतिबंध लगाने जैसे तरीक़ों का इस्तेमाल करके ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि वैश्विक बाज़ार से पहले उनके नागरिकों को वैक्सीन मिले।
 
आपूर्ति चेन से जुड़ीं चुनौतियाँ
वैक्सीन के उत्पादन में एक और बड़ी चुनौती है, सप्लाई चेन। वैक्सीन में लगने वाले कच्चे माल की आपूर्ति से लेकर तकनीक और विशेषज्ञता तक, देशों के बीच आपूर्ति नेटवर्क अच्छी स्थिति में नहीं है। नतीजतन, कई जगहों पर जहाँ नई डोज़ बननी थी, वहाँ उत्पादन ठप पड़ चुका है।
 
ये अड़चनें वैक्सीन उत्पादन को कई तरह से प्रभावित कर रही हैं। एयरफिनिटी के अनुमान के मुताबिक़, इस साल वैश्विक आपूर्ति में तीन वैक्सीन का दबदबा कायम रहेगा- फ़ाइज़र/बायोएनटेक (2।47 अरब डोज़), ऑक्सफ़ोर्ड/एस्ट्राज़ेनेका (1।96 अरब डोज़) और सिनोवैक (1।35 अरब डोज़)।
 
अभी तक, फ़ाइज़र और सिनोवैक उत्पादन के शुरुआती लक्ष्य को पूरा करने में सफल रही हैं। हालांकि, एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन ने इस साल वैक्सीन की 3 अरब डोज बनाने की योजना बनाई थी।
 
इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए कंपनी अलग-अलग जगहों पर वैक्सीन का उत्पादन कर रहे साझेदारों पर निर्भर थी। इसके लिए वैक्सीन बनाने की तकनीक और विशेषज्ञता के हस्तांतरण की भी ज़रूरत पड़ती है।
 
टेलर कहती हैं, ''एस्ट्राज़ेनेका को इन मुद्दों को सुलझाने में लंबा वक़्त लगा है। मुझे लगता है कि वैश्विक साझेदारों और तकनीक के हस्तांतरण पर उत्पादन बढ़ाने के बारे में सोच रहीं अन्य कंपनियों के साथ भी ऐसा ही हो रहा है। इस पूरी प्रक्रिया में वैक्सीन के उत्पादन में देरी हो रही है। इसके उलट, फ़ाइज़र और सिनोवैक अपने स्तर पर ही उत्पादन कर रही हैं।''
 
वैक्सीन का संग्रह
दुनिया में वैक्सीन के वितरण को प्रभावित करने वाला एक और अहम कारक है- वैक्सीन के निर्यात पर प्रतिबंध। एयरफिनिटी के सीनियर एनालिस्ट मैट लिनले ने बीबीसी से बातचीत में बताया, इन समस्याओं की वजह से विकासशील देशों में संक्रमण का ख़तरा बढ़ गया है।
 
फ़ाइज़र सबसे ज़्यादा वैक्सीन डोज़ बना रही है लेकिन ये वैक्सीन उन अमीर देशों तक पहुँच रही हैं जो इसे ख़रीद रहे हैं। एस्ट्राज़ेनेका का उत्पादन यूरोप और भारत में हो रहा है और इसका वितरण भी वहीं तक सीमित है।
 
एयरफिनिटी के मुताबिक़, केवल चीन ही बड़े पैमाने पर वैक्सीन का उत्पादन कर रहा है और अभी तक 26.3 करोड़ डोज़ विदेश भेज चुका है। चीन ने संयुक्त राष्ट्र की वैक्सीन वितरण की योजना कोवैक्स से भी ज़्यादा वैक्सीन दूसरे देशों तक पहुँचाई है।
 
निश्चित रूप से चीन का वैक्सीन वितरण के मामले में दबदबा है। लिनले का कहना है कि रूस ने वादे तो बहुत किए लेकिन कुछ ठोस नहीं कर पाया।
 
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कोई आपातकालीन योजना नहीं
एयरफिनिटी के अनुसार 17 मई तक रूस की स्पूतनिक वी की 4।2 करोड़ डोज़ का उत्पादन हुआ है, जिनमें से 1.3 करोड़ डोज़ का निर्यात किया गया है। स्पूतनिक वी वैक्सीन के साथ भी तकनीक हस्तांतरण जैसी समस्याएं हैं। रूस ने शुरुआत में वैश्विक स्तर पर 18 उत्पादन केंद्र के लेकर समझौता किया था लेकिन रूस से बाहर स्पूतनिक वी का उत्पादन केवल कज़ाख़स्तान में हो रहा है।
 
भारत में भी अगस्त से स्पूतनिक वी के उत्पादन की घोषणा की गई है। इसके उत्पादन का लक्ष्य 85 करोड़ डोज़ है।
 
ज़्यादातर विकासशील देश भारत के सीरम इंस्टिट्यूट में बन रही एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन की ओर देख रहे हैं। सीरम इंस्टिट्यूट महामारी से इतर हर साल दुनिया की 60 फ़ीसदी वैक्सीन का उत्पादन करता है। लेकिन भारत में इस साल कोविड-19 की जानलेवा लहर आई तो वैक्सीन के निर्यात पर पाबंदी लगा दी गई। इसका नतीजा यह हुआ कि ग़रीब देशों को वैक्सीन की आपूर्ति रुक गई।
 
टेलर कहती हैं कि भारत पर ज़्यादा निर्भरता के कारण वैश्विक आपूर्ति बुरी तरह से प्रभावित हुई है। वो कहती हैं, ''भारत में आई कोरोना की दूसरी लहर से सारी योजनाएं धरी की धरी रह गईं और इसका कोई विकल्प नहीं है। दुनिया में दूसरा कोई सीरम इंस्टिट्यूट नहीं है जो संकट की घड़ी में उसकी जगह ले सके। इस वजह से ग़रीब देशों और दुनिया भर में वैक्सीन के संतुलित वितरण को लेकर संयुक्त राष्ट्र की पहल कोवैक्स पर भी असर पड़ा है।''
 
कोवैक्स के तहत 2021 के अंत तक क़रीब दो अरब डोज़ के वितरण का लक्ष्य है। इस अभियान में शामिल देशों की 20 फ़ीसदी आबादी तक वैक्सीन पहुँचाने की योजना थी। यूनिसेफ़ के मुताबिक़ कोवैक्स के तहत 125 देशों को 7।2 करोड़ वैक्सीन की डोज़ ही पहुँचाई जा सकी है।
 
वैक्सीन की साझेदारी
'वैक्सीन डिप्लोमैसी' और वैक्सीन को लेकर एकजुटता की बातों के बावजूद कई देश ऐसे हैं जो वैक्सीन विदेशों में नहीं भेज रहे हैं। एयरफिनिटी का अनुमान है कि अगर आपूर्ति के लक्ष्य का पालन किया गया तो 2021 के अंत तक पूरी दुनिया में 2.6 अरब अतिरिक्त डोज़ होंगी।
 
2021 में कोवैक्स ने जो लक्ष्य रखा है, उससे यह कहीं ज़्यादा है। यूरोपीय संघ और पाँच अन्य देश- अमेरिका, जापान, ब्रिटेन, ब्राज़ील और कनाडा में 90 फ़ीसदी सरप्लस वैक्सीन होगी।
 
लिनले का कहना है कि ये सरप्लस डोज़ संयुक्त राष्ट्र के अभियान कोवैक्स को दे दी जाए तो इससे दुनिया के हर देश के बेहद ज़रूरतमंद लोगों की सुरक्षा हो सकती है।
 
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हालाँकि उनका कहना है कि आगे क्या होगा इसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है क्योंकि कई अमीर देश अपनी आबादी को बूस्टर शॉट देने के बारे में सोच रहे हैं। कई मुल्क अपने यहाँ बच्चों को भी वैक्सीन लगाने की योजना बना रहे हैं।
 
यूनिसेफ़ में आपूर्ति विभाग के टीका केंद्र के प्रबंधक एन ऑटोसेन ने बीबीसी को ई-मेल के ज़रिए बताया कि जो देश अपनी आबादी के टीकाकरण में बहुत आगे हैं वे दूसरे देशों के साथ वैक्सीन को लेकर द्विपक्षीय समझौते कर रहे हैं।
 
वैक्सीन की आपूर्ति के लिए जितने ऑर्डर किए गए हैं उसका 54 फ़ीसदी अमीर देशों की ओर से है जबकि इनकी जंनसख्या वैश्विक आबादी का 19 फ़ीसदी ही है। ऑटेसेन का कहना है कि अमीर देशों को तत्काल वैक्सीन की आपूर्ति में संतुलन लाने के लिए अपनी वैक्सीन की अतिरिक्त डोज़ ग़रीब देशों को देना चाहिए। ग़रीब देश वैक्सीन लगाने की रेस में पिछड़ते जा रहे हैं।
 
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अमेरिका ने एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन की 6 करोड़ डोज़ साझा करने की घोषणा की है। हालाँकि अभी अमेरिका में इसके इस्तेमाल की मंज़ूरी नहीं मिली है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि अमेरिका में जिन वैक्सीन को मंज़ूरी मिली है, उनकी भी दो करोड़ अतिरिक्त डोज़ दूसरे देशों को मुहैया कराई जाएगी।
 
फ़्रांस ने कहा है कि जून के अंत तक कोवैक्स अभियान को वैक्सीन की पाँच लाख डोज़ देगा। ऑटोसेन कहते हैं, ''वैक्सीन की खोज, उत्पादन और वितरण की गति ऐतिहासिक है। हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती वैक्सीन की आपूर्ति को लेकर है।''
 
वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य सेक्टर का नेतृत्व करने वाले लोग कम और मध्यम आय वाले देशों में वैक्सीन की उपलब्धता को सुनिश्चित करने की बात कर रहे हैं। हालाँकि अभी तक कोई ठोस विकल्प नहीं बन पाया है। ऑटोसेन कहते हैं कि महामारी के चक्र को रोकने के लिए सीमित वैक्सीन आपूर्ति के वितरण में संतुलन लाने की ज़रूरत है।

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