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आम बजट में टैक्स भरने वाले मिडिल क्लास को क्यों नहीं मिली राहत?

BBC Hindi
गुरुवार, 25 जुलाई 2024 (09:51 IST)
चंदन कुमार जजवाड़े, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का 23 जुलाई को पेश किया आम बजट अब तक चर्चा में है। लोकसभा चुनावों में बीजेपी के अपेक्षाकृत कमज़ोर प्रदर्शन के बाद उम्मीद की जा रही थी कि बजट में आम लोगों को बड़ी राहत दी जा सकती है।
 
भारत में नौकरी करने वालों की एक बड़ी तादाद बीजेपी समर्थक मानी जाती है। इसलिए बजट में नौकरी पेशा लोगों के लिए सरकार की तरफ से किसी बड़े एलान की उम्मीद भी की जा रही थी।
 
लेकिन इस साल के आम बजट पर ग़ौर करें तो न्यू टैक्स रिजीम में थोड़े बदलाव के अलावा सैलरी पाने वालों के लिए बजट में कुछ ख़ास नज़र नहीं आया।
 
आम बजट 2024-25 में सरकार का फ़ोकस कृषि, ग़रीब, युवा, रोज़गार जैसी चीज़ों पर दिखता है। बजट में सरकार की नीतियों में लोगों को पैसे जमा करने के लिए प्रोत्साहित करना भी नज़र नहीं आता है।
 
आम बजट को केंद्र सरकार और उसके सहयोगी दल देश के विकास से जोड़ रहे हैं। विपक्ष इसे सहयोगी दलों को खुश करने वाला और दो राज्यों (बिहार और आंध्र प्रदेश) का बजट बता रहा है।
 
मगर इन सबके बीच मध्यम वर्ग की चर्चा कम ही सुनाई दे रही है। राजनीतिक बहसों में नौकरीपेशा लोग गायब हैं, जो देश में सबसे ज़्यादा आयकर देते हैं।
 
चार्टर्ड अकाउंटेंट मनोज कुमार झा बीबीसी से कहते हैं, ''सरकार ने नए टैक्स रिजीम में आयकर जमा करने वालों को कुछ फ़ायदा दिया है, जो क़रीब 8 हज़ार रुपये से 28 हजा़र रुपये के बीच है। इसके अलावा उन्हें कोई राहत नहीं दी गई है।''
 
अगर आयकर भरने वालों को मिलने वाले लाभ की बात करें तो यह न्यू टैक्स रिजीम में औसतन क़रीब 18 हज़ार रुपये का है, जबकि पुराने टैक्स रिजीम में यह लाभ भी नहीं दिखता है।
 
कहाँ मिली निराशा
इंडेक्सेशन बेनिफ़िट ख़त्म
इस साल के बजट में सरकार ने इंडेक्सेशन बेनिफ़िट को ख़त्म करने का बड़ा फ़ैसला लिया है। यह लाभ कैपिटल एसेस्टस (संपत्ति) यानी मकान, जवाहरात, पेंटिग्स जैसी चीज़ों को बेचने पर मिलता था। हालाँकि बजट में इंडेक्सेशन टैक्स को 20 फ़ीसदी से घटाकर 12।5 फ़ीसदी कर दिया है, लेकिन इससे फ़ायदा कम और नुक़सान ज़्यादा दिखता है।
 
इसे समझने के लिए हमने कोलकाता में मौजूद सीए मनोज कुमार झा से बात की। उन्होंने बताया कि अगर आपने साल 2010 में 30 लाख में कोई घर ख़रीदा और उसे आज 70 लाख में बेच रहे हैं तो पहले 30 लाख में हर साल बढ़ने वाली महंगाई और घर के मरम्मत पर होने वाले ख़र्च को जोड़कर आपकी लागत निकाली जाती थी।
 
इस तरह से अगर आपके मकान की कीमत 60 लाख हो जाती है तो उसके बाद मकान बेचने पर आपको हुए अतिरिक्त फ़ायदे पर टैक्स देना होता था।
 
यानी पुरानी व्यवस्था में आपको 10 लाख रुपये पर 20% की दर से टैक्स देना होता था। लेकिन इस साल के बजट के मुताबिक़ आपको 40 लाख़ रुपये पर 12।5 फ़ीसदी की दर से टैक्स देना होगा। इसके अलावा इसमें सेस और सरचार्ज भी शामिल होगा।
 
पुराने मकानों की बात करें तो इसकी कीमत लगाने के लिए आधार वर्ष साल 2000 को माना जाता है। जबकि पैत्रिक संपत्ति की कीमत उस साल से तय की जाती है, जब यह आपके नाम पर ट्रांसफ़र हुई हो। इसके अलावा संपत्ति कीमत को तय करने के कई अन्य नियम और आधार भी मौजूद हैं।
 
बैंकिंग और अर्थव्यवस्था के जानकार अश्वनी राणा कहते हैं, “लगता है सरकार उन लोगों पर नियंत्रण करना चाहती है जो बार-बार संपत्ति की ख़रीद और बिक्री करते हैं। हालाँकि इससे ऐसे लोगों को झटका लगेगा, जो छोटे घर को बेचकर बड़ा घर लेना चाहते हैं या अगर दो तीन भाइयों के बीच बँटवारा होना है तो उनको इसका नुक़सान होगा।”
 
कैपिटल गेन पर टैक्स बढ़ा
बजट पर नज़र रखने वाले दिल्ली के विकास कहते हैं- पहले संपत्ति को बेचने पर लोगों को लाभ मिलता था। अगर आप संपत्ति बेचकर उसी वित्त वर्ष में रिहाइशी मकान ख़रीदते हैं तो सेक्शन 54 के मुताबिक़ आप टैक्स से बच सकते हैं, लेकिन जो लोग म्यूचुअल फंड या इक्विटी शेयर की ख़रीद बिक्री से लाभ कमाना चाहते हैं, उनपर इंडेक्सेशन बेनिफ़िट ख़त्म होने का बुरा असर पड़ेगा।
 
आम बजट 2024 में शेयर या म्यूचुअल फंड से पैसे निकालने पर टैक्स की दरों में भी बढ़ोत्तरी कर दी गई है।
 
शेयर या म्यूचुअल फ़ंड से एक साल के पहले पैसे की निकासी पर मुनाफ़े पर टैक्स को 15 फ़ीसदी से बढ़ाकर 20 फ़ीसदी कर दिया गया है। वहीं एक साल के बाद पैसे की निकासी पर टैक्स 10 फ़ीसदी से बढ़ाकर 12.5 फ़ीसदी कर दिया गया है।
 
आर्थिक मामलों के जानकार कमला कांत शास्त्री कहते हैं, “इस साल के बजट में हर साल की तरह मध्यम वर्ग की अनदेखी हुई है। अब आपको म्यूचुअल फ़ंड या शेयर से होने वाले फ़ायदे पर भी टैक्स को बढ़ा दिया गया है।"
 
कमला कांत कहते हैं, “आप पुराने टैक्स रिजीम में 80डी के अधीन मेडिक्लेम में महज़ 25 हज़ार रुपये का क्लेम कर सकते हैं। इसमें इस साल भी कोई बदलाव नहीं किया गया। यह बहुत छोटी रकम है, जबकि हेल्थ सेक्टर में खर्च बढ़ चुका है। ”
 
अश्वनी राणा भी इसमें एक और परेशानी देखते हैं। उनका कहना है कि सरकार का हेल्थ और एजुकेशन सेक्टर पर कोई नियंत्रण नहीं है। प्राइवेट हॉस्पिटल मरीज़ों से बड़ा मेडिक्लेम वसूलते हैं इसलिए बीमा कंपनियाँ अपना प्रीमियम लगातार बढ़ा रही हैं।
 
यही हाल देश भर में निजी स्कूलों और शिक्षण संस्थानों का है जिनकी फ़ीस हर साल बढ़ जाती है और इसका सीधा असर मध्यम वर्ग पर पड़ता है। आयकर भरने वालों को यहाँ थोड़ी राहत दी जा सकती थी।
 
अश्वनी राणा मानते हैं कि बिज़नेस क्लास की बड़ी कमाई और ख़र्च नकद में होता है, लेकिन सैलरी वालों के पास बचने का कोई रास्ता नहीं है।
 
नौकरी पेशा वालों पर टैक्स का बोझ
भारत सरकार के आँकड़ों के मुताबिक़ साल 2023-24 में देश में क़रीब 9.23 लाख करोड़ रुपये का कॉरपोरेट टैक्स जमा हुआ है, जबकि सरकार को आयकर के तौर पर क़रीब 10.22 लाख करोड़ रुपये मिले।
 
मौजूदा वित्त वर्ष में भी सरकार का अनुमान है कि उसे राजस्व के तौर पर आयकर से ज़्यादा कमाई होने वाली है। अनुमान है कि साल 2024-25 में सरकार को कॉरपोरेट टैक्स के तौर पर 10.42 लाख करोड़ रुपये हासिल होंगे, जबकि आयकर से 11.56 लाख करोड़ रुपये हासिल होंगे।
 
भारत की कुल आबादी का महज़ 1.6 फ़ीसदी ही आयकर जमा करता है। जबकि इनकम टैक्स रिटर्न फ़ाइल करने वालों में क़रीब 70 फ़ीसदी टैक्स के दायरे में ही नहीं आते हैं।
 
टैक्स और अर्थव्यवस्था के जानकार शरद कोहली कहते हैं- भारत में आमतौर पर सालाना 8 लाख से 15 - 20 लाख तक कमाने वालों को मध्यम वर्ग में रखा जाता है। देश में 20 करोड़ लोग संगठित क्षेत्र में काम करते हैं।
पिछले साल के आयकर विभाग के आँकड़ों के मुताबिक़ भारत में 8.18 करोड़ लोगों ने इनकम टैक्स रिटर्न फ़ाइल किया था।
 
भारत की क़रीब 30 फ़ीसदी आबादी को मध्यम वर्ग में माना जाता है। अनुमान लगाया जाता है कि साल 2031 तक यह आबादी बढ़कर 40 फ़ीसदी तक हो जाएगी।
 
शरद कोहली के मुताबिक़, “भारत में आयकर भरने वाले क़रीब 2 करोड़ लोगों में से 1.5 करोड़ के आसपास नौकरी पेशा लोग हैं। इनकी गिनती उतनी ज़्यादा नहीं है, जितनी किसानों और ग़रीबों की है। इसलिए सरकार नौकरी पेशा लोगों की ज़्यादा परवाह नहीं करती है।”
 
शरद कोहली कहते हैं- सरकार घुमा फिराकर एक भैंस को बार-बार दूहने की कोशिश करती है। सरकार रिटर्न फ़ाइल करने वालों से कुछ रुपये ले सकती है, जो रिटर्न तो फाइल करते हैं मगर टैक्स के दायरे में नहीं आते हैं।
रिटर्न फाइल करने वाले लोगों में क़रीब 70 फ़ीसदी लोग टैक्स के दायरे में नहीं आते हैं।
 
'पैसे जमा करने वालों को प्रोत्साहन नहीं'
जानकार मानते हैं कि आयकर भरने वालों को अन्य लोगों के मुक़ाबले कुछ सुविधा ज़रूर मिलनी चाहिए थी, टैक्स देने वालों को सरकार की तरफ से कुछ छूट ज़रूर मिलनी चाहिए।
 
इसके अलावा बैंकों में पैसे जमा करने को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए था, जो बैंक और ग्राहक दोनों के लिए फ़ायदेमंद होता। ख़ासकर ऐसी स्थिति में जब बजट में एलान की गई कई योजनाएँ बैंकों के ज़रिए ही पूरी हो सकती हैं।
 
भारत में आमतौर पर लोग बैंकों में पैसे जमा करते हैं। बैंकों में उनकी जमा रकम का सुरक्षित रहना और जमा रकम पर मिलने वाला ब्याज भारत में लोगों को बैंकों की तरफ आकर्षित करता रहा है।
 
इसका एक फ़ायदा यह भी है कि इससे बैंकों के पास पूंजी बढ़ती है जिसका इस्तेमाल किया जा सकता है, इसके अलावा लोगों की भविष्य की ज़रूरत भी इससे पूरी होती है।
 
शरद कोहली के मुताबिक़- नौकरीपेशा लोगों और पेंशन पाने वालों की संख्या किसानों और ग़रीबों के मुक़ाबले काफ़ी कम है। लोकसभा चुनाव ख़त्म हो चुके हैं और राज्यों के अपने मुद्दे होते हैं। इसलिए बजट में नौकरीपेशा लोगों के लिए ज़्यादा कुछ नहीं दिखता है।
 
बैंकों में जमा रकम पर ब्याज दरों के बढ़ाने और ब्याज पर लगने वाले टैक्स को कम करके लोगों को पैसे जमा करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता था।
 
अश्वनी राणा कहते हैं, “सरकार की नीति देश के मध्यम वर्ग में पैसे बचाने और निवेश करने का कल्चर ख़त्म कर रही है। सरकार चाहती है कि पैसे कमाओ और मौज करो। यह एक पश्चिमी सिद्धांत है, यह भारत के लोगों में एक ग़लत आदत डाल रहा है।”

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