फैसल मोहम्मद अली
राजा चौहान को 'क्रिकेट, गिटार और डांस का शौक था' और हथियारों का भी। उनके आखिरी शौक ने उनके लिए फिलहाल दिक्कतें पैदा कर दी हैं। कुछ लोग टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीर बार-बार दिखाई जा रही है। इस तस्वीर को कई लोगों ने हिंसक दलित प्रदर्शनकारी बताते हुए शेयर किया था।
दो अप्रैल को हुई हिंसा के मद्देनजर ग्वालियर में जो 40 एफआईआर दर्ज हुई हैं, उनमें एक राजा चौहान के खिलाफ भी है। पुलिस अधीक्षक डॉ. आशीष के मुताबिक, उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 308 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है, 308 का मतलब है कि ग़ैर-इरादतन हत्या का प्रयास।
एक केस बॉबी तोमर नाम के दूसरे सवर्ण युवक पर भी दर्ज हुआ है। यह मुकदमा 22 साल के दलित युवक दीपक की हत्या का है। दीपक की मौत दो अप्रैल को गोली लगने से हो गई थी।
बॉबी तोमर के चचेरे भाई राजेश सिंह तोमर, अपने भाई के खिलाफ हुए एफआईआर के पीछे राजनीति बताते हैं क्योंकि 'स्थानीय चुनाव में उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार का साथ दिया था।'
पिछली तीन पीढ़ियों से गांधी रोड के एक किनारे पर रहने वाले लगभग 450 सदस्यों वाले कुनबे के सभी लोग बड़ी-सी तोमर बिल्डिंग के अहाते में रहते हैं और होटल और कंसट्रक्शन के कारोबार में लगे हुए हैं।
जिन दो दलितों की दो अप्रैल की हिंसा में मौत हुई है, वो भी पास के ही गल्लाकोटार और कुम्हारपुरा में रहते थे। तोमर बिल्डिंग के बिल्कुल रोड के दूसरी ओर है चौहान पियाऊ जो राजा चौहान का घर है।
राजा चौहान के पिता सुरेंद्र चौहान कहते हैं कि दो अप्रैल को उनका बेटा ग्वालियर में मौजूद ही नहीं था। सुरेंद्र सिंह चौहान कहते हैं, मेरे बेटे ने बीई किया है और 'स्किल इंडिया' का काम करता है, जिसके सिलसिले में वो कुछ दिनों से बाहर था।
अब बात तमंचे वाली तस्वीर की, सुरेंद्र सिंह चौहान मानते हैं कि तस्वीर उनके बेटे की ही है, लेकिन वे बताते हैं कि ये तस्वीर पुरानी है, उस दिन की नहीं है, जिस दिन ग्वालियर में हिंसा भड़की।
राजा के ताऊ नरेंद्र सिंह चौहान कुछ और ही बताते हैं, वे फायरिंग की बात को स्वीकार करते हैं, लेकिन उनका कहना है कि 'राजा फायरिंग में मौजूद नहीं था।'
घनी सफेद नोकदार मूंछों वाले बॉर्डर सिक्यॉरिटी फोर्स से रिटायर हो चुके नरेंद्र सिंह चौहान का दावा है कि 'उस दिन मुँह पर कपड़े से लपेटे, कट्टे (देसी पिस्तौल) और लाठियां लिए लोग उनकी तरफ से (दलितों की ओर से) प्रदर्शन में शामिल थे और लोगों के साथ मार-पीट और तोड़-फोड़ कर रहे थे।'
वो कहते हैं, जब उस तरफ से गोलियां चलीं तो हमें आत्मरक्षा में फायरिंग करनी पड़ी। ग्वालियर स्थित जीवाजी यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र विभाग के प्रमुख एपी चौहान कहते हैं कि दलितों के प्रदर्शन के दौरान किसी तरह के हथियार होने की बात कहना सरासर ग़लत है।
एपी सिंह के मुताबिक, कुछ लोगों ने जबरन इस पूरे बंद को काउंटर करने की कोशिश की जिसके बाद वही हुआ जो भीड़ में होता है और हिंसा की शुरुआत हुई। हिंसा में मारे गए दलित युवक दीपक के भाई राजन का कहना है कि जब उधर से गोलियां चलने लगीं तो हमें बचाव में पत्थर फेंकने पड़े।
दलित कार्यकर्ता सुधीर मण्डेलिया का कहना है कि 'दो अप्रैल को हुए प्रदर्शनों को कुछ लोगों ने जातीय हिंसा की शक्ल देने की पूरी कोशिश की और इसकी तैयारी योजनाबद्ध तरीके से की गई थी।' कल पास के जिले भिंड में सवर्ण समाज से जुड़े लोगों ने दो अप्रैल को दलितों की रैली के विरोध में प्रदर्शन निकालने की कोशिश की।
उस दौरान सूबे के मंत्री लाल सिंह आर्य के घर पर पथराव भी किया गया। कुछ लोग सोशल मीडिया के जरिए ये बात फैलाने की कोशिश कर रहे हैं कि दलितों ने विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसक हमले किए, लेकिन प्रदेश में दलित हिंसा में मारे गए सात में से छह लोग दलित हैं।