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कारगिल युद्ध में लड़ने वाले वो सैनिक जो अब असम में एनआरसी से बाहर हैं

कारगिल युद्ध में लड़ने वाले वो सैनिक जो अब असम में एनआरसी से बाहर हैं
, बुधवार, 19 सितम्बर 2018 (14:24 IST)
फ़ैसल मोहम्मद अली (बीबीसी संवाददाता, गुवाहाटी से)
 
"जब कारगिल युद्ध का सायरन बजा तो बेस पर पहुंचने वालों में मैं पहला आदमी था, देश के लिए मेरा जज़्बा इतना मज़बूत है।" ये कहते हुए सादुल्लाह अहमद की गर्दन फ़ख़्र से तन जाती है।
 
 
मगर इस पूर्व सैनिक का नाम असम के नागरिकता रजिस्टर (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर या एनआरसी) में शामिल नहीं है और इसके लिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाना पड़ा।
 
सादुल्लाह का मामला इकलौता नहीं है। फ़ौज में 30 साल की सेवा के बाद गुवाहाटी में बसे अजमल हक़ बताते हैं, "मैं कम से कम छह ऐसे पूर्व सैनिकों को जानता हूं। एक तो अब भी फ़ौज में ही हैं जिनको या तो विदेशी बताकर नोटिस भेजा गया है या 'डी वोटर' (संदिग्ध वोटर) की लिस्ट में डाल दिया गया है।"
 
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अजमल हक़ के मुताबिक़ ये सात तो वो हैं जो उनके संपर्क में हैं, पूरे राज्य में तो ऐसे बहुत सारे सैनिक और पूर्व सैनिक होंगे जिन्हें अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने को कहा गया होगा। 
 
हक़ ये सब कहते हुए उत्तेजित हो जाते हैं और बताते हैं कि उन्होंने बेटे को भी फ़ौज में भेजने की तैयारी कर ली है। उनका बेटा आजकल राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कॉलेज देहरादून में पढ़ रहा है। उनके बेटे और बेटी का नाम भी एनआरसी में शामिल नहीं है।
 
 
'असम पुलिस ने ग़लत बताया था'
अजमल हक़ एनआरसी का नोटिस और दूसरे काग़ज़ात दिखाते हुए कहते हैं, "हमने देश के लिए अपनी जवानी के तीस साल दिए और आज हमारे साथ ऐसा हो रहा है, बहुत दुख होता है।"
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हक़ के विदेशी होने और नागरिकता साबित करने के नोटिस को असम पुलिस प्रमुख मुकेश सहाय ने ख़ुद ग़लत बताया था और कहा था कि ये पहचान में हुई भूल का नतीजा है। मुख्यमंत्री ने इस पर जांच के हुक्म भी दिए थे और कहा था कि मामले में ज़िम्मेदारी तय हो। लेकिन फिर भी नागरिकता के मामले पर पूर्व जूनियर कमीशन्ड ऑफिसर अजमल हक़ की परेशानी कम नहीं हुई।
 
 
'फौज ने भर्ती के वक़्त तोकी थी छानबीन'
सैनिकों का कहना है कि भर्ती के वक़्त फौज उनके बारे में गहरी छानबीन करती है, तो अब उनकी नागरिकता पर किसी तरह का कोई शक क्यों पैदा किया जा रहा है?
 
पूर्व कैप्टन सनाउल्लाह कहते हैं, "जब हमारी भर्ती होती है तो उस समय बहुत गहन छानबीन होती है। नागरिकता सर्टिफिकेट और दूसरे दस्तावेज़ मांगे जाते हैं। सेना उसे राज्य प्रशासन को भेजकर उसका रीवैरिफिकेशन करवाती है। ऐसे में ये सवाल तो उठने ही नहीं चाहिए।"
 
 
इन सैनिकों ने अपनी नागरिकता पर उठाए गए सवाल को लेकर राष्ट्रपति को चिट्ठी भेजी है और उनसे इस मामले में हस्तक्षेप की गुहार की है। गुवाहाटी से 250 किलोमीटर दूर बारपेटा के बालीकुड़ी गांव में नूरजहां अहमद कहती हैं इस नोटिस ने "हमको समाज में बदनाम कर दिया।"
 
नूरजहां पूर्व सैनिक शमशुल हक़ की पत्नी हैं, जिन्हें संदिग्ध वोटरों की श्रेणी में रख दिया गया जबकि वो दो बार वोट डालने का दावा करते हैं। शमशुल हक़ के बेटे-बेटी अमरीका में रहते हैं मगर वो कहते हैं कि उन्हें अपनी माटी से प्यार है और वो असम में ही मरना चाहते हैं और वहां से कहीं नहीं जाएंगे।
 

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