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किसान आंदोलनः 6 महीने से डटे किसान, क्यों नहीं निकल रहा समाधान?

किसान आंदोलनः 6 महीने से डटे किसान, क्यों नहीं निकल रहा समाधान?

BBC Hindi

, बुधवार, 26 मई 2021 (07:49 IST)
कीर्ति दुबे, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
26 नवंबर, 2020- पंजाब, हरियाणा, यूपी से हज़ारों किसानों का जत्था दिल्ली बॉर्डर पर पहुँचा, नेशनल हाइवे खोद दिए गए, ठंड की रातों में पानी की बौछार की गई ताकि किसान दिल्ली में दाख़िल न हो सकें। इसके बाद किसान दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर ही केंद्र सरकार के तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन पर बैठ गए।
 
26 मई साल 2021- मौसम बदल गया, तपती गर्मी आई, आंदोलन के छह महीने और नरेंद्र मोदी के शासनकाल के 7 साल पूरे हुए। किसानों के यूनियन संयुक्त मोर्चा ने 26 मई को 'काला झंडा दिवस' घोषित किया है। उन्होंने केंद्र सरकार से अपील की है कि कृषि कानूनों को लेकर वह किसानों के साथ दोबारा तत्काल संवाद शुरू करे वर्ना आंदोलन तेज़ किया जाएगा।
 
कृषि कानूनों के खिलाफ़ किसानों का ये आंदोलन असल में सितंबर, 2020 से ही पंजाब और हरियाणा में जारी था लेकिन जब किसानों को लगा कि उनकी बात दिल्ली तक नहीं पहुंच पा रही तो नवंबर के आख़िर में किसान दिल्ली के लिए कूच कर गए।

बीते छह महीने के अरसे में किसानों ने सड़कों पर लगे तंबुओं और ट्रॉलियों को अपना घर बना लिया है। ये आज़ाद भारत का सबसे बड़ा और लंबा किसान आंदोलन है लेकिन इसकी शुरुआत कैसे हुई, इन छह महीनों में आंदोलन के क्या- क्या अहम पड़ाव रहे, पढ़िए इस रिपोर्ट में-

21 मई, 2021 को 40 किसान संगठनों के समूह संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी और तत्काल किसानों के साथ संवाद दोबारा शुरू करने को कहा।

इस चिट्ठी में लिखा है, "सरकार की ओर से की गई बातचीत में किसानों ने पूरा सहयोग किया लेकिन फिर भी सरकार हमारी न्यूनतम मांगों और चिंताओं का हल निकालने में असफल रही है। कोई भी लोकतांत्रिक सरकार अब तक इन कानूनों को वापस ले चुकी होती जिससे किसानों में इतना असंतोष है, जिनके नाम पर ये क़ानून लाया गया है।"
 
बीबीसी से बात करते हुए संयुक्त किसान मोर्चा के नेता दर्शनपाल सिंह कहते हैं, "26 मई को हम शुरूआत बुधपूर्णिमा की पूजा से करेंगे, जो जहाँ भी प्रदर्शन चल रहा है वहां सरकार के इस कानून के खिलाफ़ काले झंडे फहराएगा। हम पंजाब में रैली निकाल रहे हैं लेकिन दिल्ली में कोरोना के हालात देखते हुए हम रैली या परेड नहीं निकालेंगे"।

"हमने अपनी मांग सरकार के सामने कई बार रख दी है, अब नरेंद्र तोमर (कृषि मंत्री) कहते हैं कि हम कोई अल्टरनेटिव लेकर आएँ, सरकार आपकी है, ये काम आपका है, हमने अपनी मांग रखी है और अपनी मांगों के साथ डटे हुए हैं। हमारी पीढ़ियों का भविष्य दांव पर है, 18 महीने की रोक से कुछ नहीं होगा"।

बीते चार महीनों से सरकार और प्रदर्शन कर रहे किसानों के बीच कोई संवाद नहीं हुआ है। सीमाओं पर किसान अब भी आंदोलन कर रहे हैं लेकिन वह न्यूज़ चैनल और सरकार के एजेंडे से बिल्कुल बाहर नज़र आ रहे हैं।

भारतीय किसान यूनियन के धर्मेंद्र मलिक यूपी के गाज़ीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शन को जारी रखे हुए हैं। बीबीसी से वे कहते हैं, "हमने कोरोना को देखते हुए किसानों को यहां आने से मना किया है लेकिन इस बार ये काले झंडे गांवों-गांवों में फहराएँगे।"

ऐसा नहीं है कि किसानों और सरकार के बीच संवाद कम हुए हों , कम से कम संख्या के हिसाब तो सरकार और किसानों के बीच 11 दौर की बातचीत हुई है लेकिन इससे कुछ भी हासिल नहीं हुआ। इन 11 बैठकों में क्या हुआ ये सिलसिलेवार तरीके से समझना ज़रूरी है।

14 अक्टूबर, 2020
सितंबर, 2020 में कृषि कानून पास हुआ और किसानों का पंजाब में प्रदर्शन तेज़ हो गया। किसानों ने रेल रोकी और इससे थर्मल प्लांटों में सप्लाई होने वाले कोयले पर असर पड़ा। इसे देखते हुए केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने किसानों को 14 अक्टूबर को बैठक के लिए आमंत्रित किया।

29 किसान नेता इस बैठक में शामिल होने के लिए दिल्ली आए लेकिन इस बैठक में कृषि सचिव संजय अग्रवाल सरकार की ओर से शामिल हुए जिससे नाराज़ होकर किसानों इस बैठक में अपनी मांग का एक पर्चा संजय अग्रवाल को सौंपकर वापस चले गए। किसान चाहते थे कि कम-से-कम कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर उसके साथ बातचीत में शामिल हों।

इसके बाद 13 नवंबर, 2020 को किसान नेताओं को एक बार फिर बातचीत के लिए बुलाया गया। इस बार सरकार की ओर से कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रेल मंत्री पीयूष गोयल इस बैठक में शामिल हुए।

250 किसान समूहों के संगठन ऑल इंडिया संघर्ष कॉर्डिनेशन कमेटी ने इस बैठक के बाद एक प्रेस रिलीज़ जारी की और कहा कि सरकार ने हर किसान के लिए एमएसपी की गारंटी की मांग को गंभीरता से नहीं लिया, और ये बैठक सार्थक साबित नहीं हुई।

एक दिसंबर, 2020
दूसरे दौर की बैठक में केंद्र सरकार की ओर से नरेंद्र सिंह तोमर, पीयूष गोयल और सोमप्रकाश (वाणिज्य राज्य मंत्री) शामिल हुए, वहीं किसानों की ओर से 35 नेता शामिल हुए।

केंद्र सरकार की ओर से पांच सदस्यीय कमेटी बनाने का प्रस्ताव रखा गया, जिसमें अधिकारी, कृषि के जानकार और कुछ किसान नेताओं को रखने की बात कही गई, कहा गया कि ये कमेटी कानूनों को लेकर जो भी चिंताएं हैं उसका हल निकालने की कोशिश करेगी।

किसानों ने इस कमेटी के प्रस्ताव को खारिज कर दिया और मांग की कि संसद का विशेष सत्र बुलाकर इन तीन कानूनों को वापस लिया जाए

तीन दिसंबर, 2020
आठ घंटे लंबी बैठक में सरकार और किसानों के बीच बातचीत अटक गई क्योंकि किसान कानूनों को वापस लेने पर अड़ गए। किसानों ने सरकारी चाय नाश्ते को हाथ लगाने से इनकार कर दिया। इससे पहले नरेंद्र सिंह तोमर ने ये बयान दिया था कि एमएसपी बदस्तूर जारी रहेगी, हर चीज़ को कानून में नहीं लिखा जा सकता।

इस बैठक के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि वह किसानों की पाँच मांगों पर विचार करेंगे जो हैं- निजी व्यापारियों पर भी सरकारी मंडी की तरह शुल्क लगे, केवल रजिस्टर्ड व्यापारी ही खरीद कर सकें, विवाद होने पर अदालत से निबटारा हो, न्यूनतम समर्थन मूल्य को पक्का करना और बिजली से जुड़े कानून पर पुनर्विचार।

पाँच दिसंबर, 2020
चार घंटों की बैठक के बाद तीन केंद्रीय मंत्रियों और अधिकारियों ने किसान नेताओं से आपसी बातचीत के लिए वक़्त मांगा ताकि अगली बैठक तक फ़ाइनल प्रस्ताव किसानों के सामने पेश किया जा सके। कृषि मंत्री तोमर ने कहा था कि सरकार चाहती है कि किसानों की ओर से ठोस सुझाव पेश किए जाएं, किसानों के सहयोग से ही किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकेगा।
 
इसके अलावा तोमर ने किसान यूनियन के नेताओं से दिल्ली में कड़ाके की ठंड के कारण बूढ़े, महिलाओं और बच्चों को प्रदर्शन से वापस भेजने के लिए कहा था।

आठ दिसंबर, 2020
इस बैठक से पहले किसानों ने भारत बंद का आह्वान किया था, देर शाम हुई बैठक में गृह मंत्री अमित शाह शामिल हुए। इसमें किसानों को 22 पन्नों के प्रस्ताव दिए गए। इसमें एमएसपी पर आश्वासन दिया गया, साथ ही, सरकार ने सफ़ाई दी कि इन कानूनों से सरकारी मंडियाँ कमज़ोर नहीं होंगी। लेकिन किसानों ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया और आंदोलन जारी रखने की बात कही।
 
30 दिसंबर, 2020
इस बैठक में सरकार किसानों की दो मांगें मानने को तैयार हुई। पहला, बिजली संशोधन कानून 2020 को वापस लेने की मांग और दूसरा- पराली जलाने पर लगाया जाने वाला भारी जुर्माना वापस लेने की मांग। लेकिन संयुक्त किसान मोर्चा ने इस बैठक के बाद कहा कि सरकार को तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने और एमएसपी पर कानून बनाने को अपने एजेंडा का हिस्सा बनाना ही होगा। इन मुख्य मांगों के बिना बात आगे नहीं बढ़ पाएगी।

चार जनवरी, 2020
नए साल की पहली बैठक चार घंटे तक चली और इसमें किसानों ने ये साफ़ किया कि किसान कानून वापस लेने से कम कुछ भी नहीं चाहते। किसानों ने लंच के समय मंत्रालय का खाना नहीं खाया और अपने साथ लाए हुए पराठे खाए। इस बैठक के बाद नरेंद्र तोमर ने कहा कि 'ताली दोनों हाथों से बजती है।' जाहिर है, ये किसानों की ओर इशारा था कि वो इस बातचीत में सुलह की ओर आगे नहीं बढ़ रहे।

भारतीय किसान यूनियन के नेता युद्धवीर सिंह ने इस बैठक के बाद मीडिया से कहा, "मंत्री जी चाहते थे कि पूरे कानून के बिंदुओं पर चर्चा की जाए लेकिन हम चाहते हैं कि पूरा कानून ही वापस लिया जाए, तो इसके बिंदुओं चर्चा का सवाल ही कहाँ है?" इस बैठक के बाद सरकार और किसानों के बीच का गतिरोध और गहरा नज़र आने लगा।

आठ जनवरी, 2020
इस बार किसान ने साफ़ कहा कि 'घर वापसी' तभी होगी जब 'कानून वापसी' की जाएगी। लेकिन सरकार ने कानून को पूरी तरह वापस लेने से इनकार कर दिया गया। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि किसानों का एक बड़ा हिस्सा इस कानून के समर्थन में है और प्रदर्शन कर रहे किसानों को पूरे देश के बारे में सोचना चाहिए।
 
उन्होंने कहा, "सरकार बार-बार ये कहती रही कि क्या कानून वापस लेने के अलावा कोई और सुझाव है? तो सरकार उस पर विचार करने को तैयार है। लेकिन किसान इसे वापस लेने की बात ही दोहराते रहे। जब कोई फैसला नहीं हो सका तो हमने अगली बैठक 15 जनवरी के लिए तय की है।"

लेकिन उससे पहले 11 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई की और नए कानूनों पर अलग से आदेश तक रोक लगा दी। इसके बाद एक कमेटी का गठन किया गया जिसकी ज़िम्मेदारी दोनों पक्षों की बात सुनकर एक रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने की थी।

15 जनवरी, 2020
इस बैठक में सरकार और किसान नेताओं के बीच कोई बात नहीं हो सकी। नरेंद्र तोमर ने कहा कि "सरकार सुप्रीम कोर्ट के कमेटी बनाने के फैसले का स्वागत करती है, सरकार अपनी बात कमेटी के सामने रखेगी। हम संवाद से विवाद सुलझाना चाहते हैं।"

20 जनवरी, 2020
इस बैठक में सरकार की ओर से कृषि कानूनों पर डेढ़ साल तक रोक लगाने का प्रस्ताव रखा गया। इसके साथ ही कहा गया कि इस दौरान एक कमेटी जिसमें सरकार के लोग और किसान नेता होंगे वो इस पर चर्चा करके कोई हल निकालेंगे और सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों को आंदोलन खत्म करके वापस घर चले जाना चाहिए।
किसानों की ओर से तुरंत इस प्रस्ताव पर जवाब न देकर आपसी बातचीन के लिए वक्त मांगा गया।

किसानों ने 21 जनवरी को प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया कि "पांच घंटे तक चली बैठक में सरकार ने कानूनों पर एक से डेढ़ साल तक रोक लगाने का प्रस्ताव दिया है, जिसे हम ख़ारिज करते हैं, लेकिन चूंकि 22 जनवरी की बैठक सरकार ने तय की है तो हम उसमें शामिल होंगे।"

22 जनवरी, 2020
इस बैठक में किसानों ने सरकार के कानून को डेढ़ साल तक रोके जाने के प्रस्ताव ख़ारिज कर दिया और सीधे कानूनों को वापस लेने की बात फिर सामने रखी। इसके बाद सरकार ने किसानों के साथ कोई बातचीत नहीं की।

'ख़लिस्तानी' प्लॉट की एंट्री
जब सरकार और किसान नेताओं के बीच बातचीत चल ही रही थी तो उसी दौरान राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए ने प्रोटेस्ट में खलिस्तानी फंडिंग की जांच शुरू कर दी और आंदोलन में शामिल लोगों को एनआईए से समन किया गया।

जिन लोगों को नोटिस भेजा गया उनमें जालंधर के लेखक और टिप्पणीकार बलविंदर पाल सिंह का भी नाम था। बलविंदर एक पत्रकार और कॉलेज में लेक्चरर रह चुके हैं। वो लगातार किसानों के आंदोलन के समर्थन में लिख रहे थे। 18 दिसंबर को उन्हें एनआईए ने पेश होने के लिए बुलाया।

इसके अलावा एक पंजाबी चैनल में काम करने वाले जसवीर सिंह को समन किया गया, होशियारपुर के रहने वाले करनैल सिंह, बरनाला के रहने वाले सुरेंदर सिंह ठिकरीवाल, लुधियाना के रहने वाले इंदरपाल सिंह को भी नोटिस भेजा गया।

उन्हें 15 जनवरी की एक एफ़आईआर संख्या 40/2020 के सिलसिले में समन किया गया था जो प्रतिबंधित संस्था 'सिख फॉर जस्टिस' बब्बर ख़ालसा इंटरनेशनल, खलिस्तान टाइगर फोर्स जैसी संस्थाओं के नाम पर दर्ज किया गया है।

एनआईए ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ये संस्थाएँ किसान आंदोलन में घुस चुकी हैं और देश में डर और सरकार के खिलाफ़ बगावत का माहौल पैदा कर रही हैं।

एनआईए ने कहा कि ये अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं हैं जो वैश्विक पटल पर भारत की छवि खराब करना चाहती हैं। हाल ही में भारत के अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और जर्मनी में दूतावासों के बाहर हुए प्रदर्शन भी इस साज़िश का ही हिस्सा हैं।

बड़ा फ़ंड जुटा कर ग़ैर-सरकारी संस्थाओं के ज़रिए भारत में खलिस्तान समर्थित समूहों को भेजा जा रहा है ताकि देश में आतंक मचाया जा सके। इन संस्थाओं को प्रतिबंधित किया जा चुका है और इस मामले में एनआईए ने यूएपीए की धाराएं जोड़ी गई है। हालांकि अभी इस मामले में जांच में क्या सामने आया है, जांच कहां तक पहुंची है इसे लेकर कोई जानकारी एनआईए की ओर से नहीं दी गई है।
 
26 जनवरी 2021
गणतंत्र दिवस के मौके पर किसानों की ओर से दिल्ली में ट्रैक्टर परेड निकालने का ऐलान किया गया। इस रैली की मंज़ूरी के लिए दिल्ली पुलिस और किसानों के बीच कई दौर की बातचीत हुई और तय हुआ कि टिकरी, सिंघु और गाजीपुर ब़ॉर्डर से किसानों के ट्रैक्टर दिल्ली में कुछ किलोमीटर दाखिल होंगे और फिर वापस अपने प्रदर्शन स्थल की ओर चले जाएंगे।
 
लेकिन जब परेड निकली तो कुछ उग्र लोग तय रास्ते से हटकर सेंट्रल दिल्ली में दाखिल हो गए। दिल्ली पुलिस के हेडक्वार्टर के पास आईटीओ पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव हुआ। आँसू गैस के गोले पुलिस की ओर से चलाए गए। पुलिस की ओर से लाठीचार्ज भी की गई और प्रदर्शन कर रहे लोगों ने पुलिस पर पथराव किया।

आईटीओ पर ही ऐसा लगने लगा कि पुलिस की तैनाती कम और उग्र प्रदर्शनकारी इसकी तुलना में कई ज्यादा थे। इसके बाद प्रदर्शनकारियों का एक समूह जिसमें ज्यादातर नौजवान मौजूद थे लाल किले पर जा पहुंचा। लाल किले पर कुछ लोगों ने सिख धर्म का निशान साहेब का झंडा फहराया।
 
लाल किले पर इस दौरान दीप सिंह सिंधु मौजूद थे और उन्होंने एक वीडियो जारी करते हुए अपनी इस हरक़त को सही ठहराया और कहा कि इसके लिए उन्होंने तिरंगे को नीचे नहीं उतारा था। किसान नेताओं ने इस हिंसक झड़प में संगठनों के किसानों के शामिल होने से इनकार किया, घटना पर खेद प्रकट किया और मामले की जांच में सहयोग की बात कही।
 
26 जनवरी की हिंसा मामले में दिल्ली पुलिस ने 44 एफ़आईआर दर्ज की और 127 लोगों की गिरफ्तारी की गई। घटना के 12 दिन बाद, 9 फरवरी 2021 को करनाल से दीप सिंधू की गिरफ्तारी हुई।

साल 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान दीप सिंधू ने अभिनेता से नेता बने बीजेपी सांसद सनी देओल के लिए चुनाव प्रचार में हिस्सा लिया था, हालांकि इस घटना के बाद सनी देओल ने खुद को दीप सिंधु से अलग कर लिया।

सुप्रीम कोर्ट की कमेटी और विवाद
11 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने चार सदस्यों की एक कमेटी बनाई जिन्हें सरकार और किसानों से बात करके एक रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंपा गया। जिसमें भारतीय किसान यूनियन के भूपिंदर सिंह मान, शेतकारी संगठन के अनिल घनवत, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और डॉक्टर प्रमोद कुमार जोशी को शामिल किया गया।

लेकिन जैसे ही ये नाम सामने आए इस कमेटी को लेकर बहस छिड़ गई। दरअसल, ये सभी लोग अतीत में सरकार के कृषि कानूनों के समर्थन में अपनी राय रख चुके थे। ऐसे में में बहस छिड़ गई कि आखिर ये कमेटी निष्पक्ष कैसे हो सकेगी।

विवाद और आलोचनाएं बढ़ी तो भूपिंदर सिंह मान ने खुद को इस कमेटी से अलग कर लिया और किसानों के प्रति समर्थन व्यक्त किया। अब इस कमेटी में रह गए सिर्फ तीन लोग।

15 मार्च 2021 को इस कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट पेश की। बीबीसी ने किसान यूनियन के नेता दर्शनपाल सिंह से इस बारे में बात की।

दर्शनपाल सिंह ने बताया कि "संयुक्त किसान मोर्चा को सुप्रीम कोर्ट की कमेटी की ओर से पेश होने के लिए बुलावा मिला था लेकिन किसान नेता इस प्रक्रिया में शामिल होने से इनकार करते हुए कमेटी के सामने पेश नहीं हुए।"

उन्होंने कहा कि "हम हर तरह की विषम परिस्थितियों में सड़कों पर बैठे रहे, आज भी महामारी के दौर में डटे हुए हैं। हम सरकार से सीधे बात करना चाहते हैं। बाकी सबको पता है कि कमेटी में जिन लोगों को शामिल किया गया उनके विचार क्या हैं।"

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