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बहन की शादी की तैयारियां चल रही थीं, कोठारी बंधुओं ने राम मंदिर के लिए शहादत दे दी

रामकुमार और शरद कोठारी की बहन पूर्णिमा ने वेबदुनिया से साझा किए कार सेवा के अनुभव

Kotahari Bandhu

संदीप श्रीवास्तव

, शुक्रवार, 26 जनवरी 2024 (11:38 IST)
Ram Mandir Ayodhya: श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण आंदोलन में विवादित ढांचे पर सबसे पहले भगवा लहराने वाले और 1990 में राम मंदिर आंदोलन के दौरान हुए गोलीकांड में शहीद हुए कोठरी बंधुओं- रामकुमार और शरद की छोटी बहन पूर्णिमा कोठरी ने रामलला की भव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा को लेकर प्रसन्नता जताई। उन्होंने कहा कि सभी रामभक्तों का सपना साकार हुआ। 
 
पूर्णिमा कोठारी ने वेबदुनिया से बातचीत में कहा कि सबसे पहले मैं देशवासियों को बधाई देना चाहूंगी कि रामलला अपने भव्य  दिव्य मंदिर में प्रतिष्ठित हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि 500 वर्षों का लंबा इतिहास है। मैं इस संघर्ष से जुड़ी हूं मेरे भाइयों के माध्यम से, जिन्होंने राम मंदिर के लिए बलिदान दिया। मैं घरेलू लड़की थी, इसलिए मुझे उतनी समझ नहीं थी। मैं बाहर नहीं जाती थी। वे लगातार कार्य कर रहे थे, चाहे वो 89 का रामशिला पूजन हो या 1990 में राम ज्योति पूजन हो। करसेवा का जो आह्वान हुआ उसमें भी उन दोनों ने अपना नाम आगे किया, जबकि संगठन ने बोला था कि एक ही व्यक्ति जाएगा, एक घर से पर फिर भी वे दोनों नहीं माने। उन्होंने अपने तर्कों से उन्हें रोक दिया, फिर संगठन भी मान गया।
मेरी शादी की तैयारियां चल रही थीं : जहां तक माता-पिता का प्रश्न है, उन्हें मना लिया गया था। हमारे घर से कोई विरोध नहीं था। उन्होंने कहा कि मेरी शादी थी तो पिताजी ने कहा कि हम अकेले पड़ जाएंगे, कैसे काम कर पाऊंगा तो उन दोनों ने उस बात का भी समाधान किया कि आप बिलकुल चिंता न करे हम जैसे ही वहां काम हो जाएगा तो हम चले आएंगे। उसके बाद दोनों ने पूरे परिवार से विदाई ली, मां ने भी उन दोनों को मंगल तिलक लगाकर उन्हें आशीर्वाद दिया। फिर वे अयोध्या के लिए निकल पड़े।
 
पूर्णिमा ने कहा कि दोनों भाई राष्ट्र को संदेश देना चाहते थे कि घर्म और राष्ट्र के लिए हम तन-मन-धन न्योछावर कर सकते हैं। वे ये संदेश देने मे समर्थ हुए आज उनके बलिदान को जो सार्थकता मिली है और सम्मान मिला है, यह देखते हुए मुझे बड़े ही गर्व की अनुभूति हो रही है कि मैं उनकी छोटी बहन हूं। माता-पिता को भी इस बात पर गर्व है। बेटों की शहादत के बाद माता-पिता ने भी संकल्प लिया कि अगर आगे जरूरत पड़ेगी तो हम अपने भी प्राणों को भी समर्पित करने में भी पीछे नहीं रहेंगे। 
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उन्होंने कहा कि 33 वर्ष की तपस्या सार्थक हुई। उन्होंने कहा कि हम सरकार से 500 वर्षों के लंबे संघर्ष का इतिहास है। आज तक किसी भी धर्म के लिए इतना लम्बा और इतना बड़ा आंदोलन नहीं हुआ। ऐसे संघर्ष का कभी नाम नहीं मिटना चाहिए। 
 
कौन हैं कोठारी बंधु : राम मंदिर के लिए शहादत देते समय बड़े भाई रामकुमार कोठारी जिनकी उम्र 22 वर्ष व छोटे भाई शरद कोठारी जिनकी उम्र केवल 18 वर्ष की थी। दोनों भाई कोलकाता के बड़ा बजार के रहने वाले थे। दोनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से से जुड़े थे और राम मंदिर आंदोलन में भी सक्रिय थे। 1990 में अयोध्या में हुई कारसेवा के लिए देश के कोने-कोने से भारी संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंचे थे। 
 
दोनों भाई कोलकाता से 22 अक्टूबर कि रात ट्रेन से अयोध्या के लिए निकल पड़े थे। ट्रेन वाराणसी रुकी, वहां से दोनों टैक्सी से अयोध्या के लिए रवाना हुए। चूंकि अयोध्या में कर्फ्यू लगा हुआ था जिसके चलते उनकी टैक्सी को अयोध्या से 200 किलोमीटर पहले है रोक दिया गया था। वहां से दोनों भाई पैदल ही निकल पड़े। 30 अक्टूबर को हुई कारसेवा में लाखों कारसेवक अयोध्या पहुंच चुके थे। करीब 5 हजार कारसेवक विवादित परिसर में घुस गए। इनमें कोठारी बंधु भी घुस गए। तभी मौका देखकर दोनों भाइयों ने विवादित ढांचे पर भगवा ध्वज फहरा दिया। 
 
दो नवंबर को विनय कटियार कि अगुवाई मे एक जत्था हनुमान गढ़ी कि तरफ बढ़ने लगा। मुख्‍यमंत्री मुलायम सिंह के आदेश पर गोलियां चलने लगीं तभी पास के एक मकान में कुछ लोग छिप गए। उन्हीं के साथ ये दोनों कोठारी बंधु भी थे। पुलिस ने उस मकान से निकालकर एक भाई को सड़क पर ही गोली मार दी। उसे बचाने के लिए दूसरा भाई भी बाहर निकला तो पुलिस ने उसे भी गोली मार दी। दोनों भाई राम मंदिर के वहीं शहीद हो गए। इस गोलीकांड में काफी करसेवक मारे गए थे। 
Edited by: Vrijendra Singh Jhala

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