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श्रावण पूर्णिमा से पहले आने वाला वरलक्ष्मी व्रत आज, जानिए महत्व, शुभ मुहूर्त एवं कथा

श्रावण पूर्णिमा से पहले आने वाला वरलक्ष्मी व्रत आज, जानिए महत्व, शुभ मुहूर्त एवं कथा
- राजश्री कासलीवाल

श्रावण मास में श्रावण पूर्णिमा या रक्षा बंधन से पहले आने वाले शुक्रवार को वरलक्ष्मी व्रत किया जाता है। इस साल यह व्रत 20 अगस्त 2021, शुक्रवार को यानी आज रखा जा रहा है। यह व्रत खासकर दक्षिण भारत में ही रखा जाता है। इस दिन तेलगु परिवार में सुहागिन महिलाएं वरलक्ष्मी माता का व्रत रखकर पूजन करती है। यह व्रत पति की लंबी आयु और घर की सुख-समृद्धि के लिए रखकर वरदान मांगा जाता है। यह व्रत खासतौर से विवाहित महिलाएं ही रखती हैं, मान्यता यह भी है कि इस व्रत को करने से संतान सुख की प्राप्ति भी होती है। 
 
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार माता वरलक्ष्मी को महालक्ष्मी का अवतार ही माना जाता हैं और माता वरलक्ष्मी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं, इसलिए भी उनका नाम वर और लक्ष्मी मिलाकर वरलक्ष्मी पड़ा। मान्यता के अनुसार इस दिन व्रत रखने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर घर से गरीबी, दरिद्रता को दूर करके धन और वैभवता देती हैं। वरलक्ष्मी व्रत पूजा का सबसे खास मुहूर्त शुक्रवार को सिंह लग्न में प्रातः 05:53 मिनट से 07:59 सुबह तक रहा। इस दिन माता वरलक्ष्मी को 9 प्रकार फलों और मिठाइयों का भोग लगाया जाता है। इसके साथ ही माता के 108 नाम की पूजा करके, सायंकाल पूजन आरती के बाद सुहागिन महिलाएं एक-दूसरे को सुहाग सामग्री और फल दान करती हैं। 
 
वरलक्ष्मी व्रत शुक्रवार, 20 अगस्त 2021 के शुभ मुहूर्त 
 
सिंह लग्न पूजा मुहूर्त-  प्रातः 05:53 मिनट से 07:59 सुबह तक।
कुल अवधि- 02 घंटे 06 मिनट
वृश्चिक लग्न- अपराह्न 12:35 से 02:54 दोपहर मिनट तक।
कुल अवधि- 02 घंटे 19 मिनट
कुंभ लग्न- सायंकाल 06:40 मिनट से रात 08:07 तक। 
कुल अवधि- 01 घंटे 27 06 मिनट
वृषभ लग्न- मध्यरात्रि 11:07 मिनट से 21 अगस्त को अद्धर्रात्रि 01:03 तक। 
कुल अवधि- 01 घंटे 56 मिनट 
 
वरलक्ष्मी व्रत कथा- 
 
कहा जाता है कि भगवान शिव जी ने माता पार्वती वरलक्ष्मी व्रत की कथा सुनाई थी। इस व्रत की कथा के अनुसार मगध देश में कुंडी नामक एक नगर था। उस नगर का निर्माण सोने से हुआ था। उस नगर में चारुमती नाम की एक महिला रहती थी। चारुमती अपने पति का बहुत ख्याल रखती थी और वह माता लक्ष्मी की बहुत बड़ी भक्त थी। 
 
चारुमती हर शुक्रवार माता लक्ष्मी का व्रत करती थी और लक्ष्मी जी भी उससे से बहुत प्रसन्न रहती थी। एक बार मां लक्ष्मी ने चारुमती के सपने में आकर उसको इस व्रत के बारे में बताया। तब चारुमती से उस नगर की सभी महिलाओं के साथ मिलकर विधि-पूर्वक इस व्रत को रखा और मां लक्ष्मी की पूजा की। 
 
जैसे ही चारुमती की पूजा संपन्न हुई, वैसे ही उसके शरीर पर सोने के कई आभूषण सज गए तथा उसका घर भी धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। उसके बाद नगर की सभी महिलाओं ने भी इस व्रत को रखना शुरू कर दिया। तभी से इस व्रत को वरलक्ष्मी व्रत के रूप में मान्यता मिल गई।

अब प्रत्येक वर्ष महिलाएं इस व्रत को विधिपूर्वक करने लगी। यह व्रत अपार धन-संपत्ति देने वाला व्रत है। इस व्रत को रखने से धन संबंधी सारी दिक्कतें दूर होकर दिन-प्रतिदिन घर में धन-समृद्धि बढ़ती जाती है। 
 

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