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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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कोरोनाकाल में प्रियजन की विदाई : महामारी से दिवंगत के अंतिम संस्कार पर क्या कहते हैं शास्त्र

कोरोनाकाल में प्रियजन की विदाई : महामारी से दिवंगत के अंतिम संस्कार पर क्या कहते हैं शास्त्र
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पं. हेमन्त रिछारिया

हमारे सनातन धर्म में षोडश संस्कारों का विशेष महत्त्व होता है। जीवात्मा गर्भ में प्रवेश से लेकर देहत्याग करने तक सोलह प्रकार के विभिन्न संस्कारों से गुजरता है। सनातन धर्मानुसार वैसे तो सभी सोलह संस्कार आवश्यक हैं किन्तु देश-काल-परिस्थिति के अनुसार कुछ संस्कारों का लोप हो जाता है। इन षोडश संस्कारों में जो सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण दो संस्कार हैं वे हैं गर्भाधान एवं अन्तिम-संस्कार, क्योंक गर्भाधान संस्कार के दौरान हम गर्भ में श्रेष्ठ आत्मा का आवाहन करते हैं एवं अन्तिम संस्कार में हम उस आत्मा को विदाई देते हैं।
 
 हमारे शास्त्रों में इन दोनों संस्कारों सहित सभी षोडश संस्कारों को करने का पूर्ण विधि-विधान उल्लेखित है जिसके अनुसार हमें यथासमय यह संस्कार करने चाहिए। वर्तमान समय में हमारी पीढ़ी व देश "कोरोना" महामारी नामक एक विकट समस्या से जूझ रहा है। इस महामारी ने असमय ही कई लोगों से उनके प्रियजनों को छीन लिया है। 
 
इस महामारी के प्रकोप से बचने के लिए चिकित्सकों द्वारा इस रोग से अपने प्राण गंवा चुके व्यक्तियों का अन्तिम-संस्कार भी एक विशेष रीति से करने का मार्गदर्शन दिया गया है, जिसमें प्रियजनों को दाह-संस्कार से दूर रखा जाता है। आज अनेक नगरों में "लॉकडाउन" भी लगा हुआ है जिससे अन्तिम-संस्कार के बाद की क्रियाएं भी विधिवत् सम्पन्न नहीं हो पा रही हैं। हमारे शास्त्रों के अनुसार यदि व्यक्ति का अन्तिम-संस्कार पूर्ण विधि-विधान से नहीं किया जाता है तो उसकी आत्मा को सद्गति प्राप्त नहीं होती है। 
 
ऐसे में दिवंगत व्यक्तियों के परिजनों के समक्ष बड़ी दुविधा है कि वे अपने प्रियजन को शास्त्रानुसार विदाई किस प्रकार दें, जिससे उनकी आत्मा को सद्गति प्राप्त हो। मित्रों, इसे प्रभु की इच्छा व उनके विराट रूप का प्राकट्य ही कहें कि हमें इस विषय पर आलेख के माध्यम से आपका मार्गदर्शन करना पड़ रहा है। 
 
बहरहाल, हरि इच्छा बलवान को स्वीकार करते हुए आज हम वेबदुनिया के पाठकों को कोरोना से दिवंगत हुए व्यक्तियों के अन्तिम-संस्कार के बारे उनके परिजनों हेतु कुछ शास्त्रोक्त जानकारी देंगे। आप सभी को विदित है कि इस महामारी से दिवंगत हुए व्यक्तियों के अन्तिम संस्कार में उनके परिजनों को दूर रखा जा रहा है एवं उत्तर क्रिया जैसे दशगात्र आदि के लिए भी ब्राह्मण उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं ऐसे में उनका श्राद्ध किस प्रकार किया जाए इस सम्बन्ध में शास्त्र का स्पष्ट निर्देश है-"श्रद्धया इदं श्राद्धम्" अर्थात् श्रद्धा से ही श्राद्ध है। आप इस नियम के अनुसार अपने दिवंगत हो चुके प्रियजन के लिए पूर्ण श्रद्धा से दस अथवा तेरह (देश-काल-लोक परम्परा अनुसार ) दिनों तक निम्न कर्म करें।
 
1. शास्त्र का वचन है-"तस्माच्छ्राद्धं नरो भक्त्या शाकैरपि यथाविधि" अर्थात् धनाभाव अथवा अन्य कोई प्रतिकूल परिस्थिति होने पर दिवंगत व्यक्ति के परिजन केवल शाक (हरी सब्जी, जैसे पालक इत्यादि) के माध्यम से श्राद्ध सम्पन्न कर सकते हैं। दस अथवा तेरह दिनों तक प्रतिदिन कुतपकाल (अपरान्ह 11:35 से 12:35) के मध्य गाय को शाक खिलाने से श्राद्ध की पूर्णता होती है।
 
शाक की अनुपलब्धता होने पर विष्णु पुराण का निर्देश है कि कुतपकाल में श्राद्धकर्ता एकान्त में खुले आकाश के नीचे जाकर अपने हाथों को आसमान की ओर उठाकर यह प्रार्थना करे-" हे मेरे प्रियजन! मेरे पास श्राद्ध करने के लिए अनुकूल परिस्थिति नहीं है किन्तु मेरे पास आपके निमित्त श्रद्धा व भक्ति है। मैं इन्हीं के द्वारा आपको संतुष्ट करना चाहता हूं और मैंने शास्त्राज्ञा में अपने दोनों हाथ आकाश में उठा रखे हैं। आप मेरी श्रद्धा व भक्ति से ही तृप्त हों।"
 
2. दीपदान- दस अथवा तेरह (देश-काल-लोक परम्परा अनुसार ) दिनों तक दक्षिण दिशा में अपने दिवंगत हो चुके प्रियजन के लिए तिल के तेल (तिल के अभाव में किसी भी तेल) का दीपक प्रज्जवलित करें।
 
नारायबलि कर्म-
 
उपर्युक्त वर्णित शास्त्रोक्त निर्देश आपत्तिकाल के लिए त्वरित करने योग्य कर्म हैं किन्तु इनके करने मात्र से विधिवत् अन्तिम-संस्कार ना किए जाने सम्बन्धी दोष का निवारण तब तक नहीं होगा जब तक कि इस निमित्त "नारायणबलि कर्म" को सम्पन्न ना कर लिया जाए क्योंकि ऐसे व्यक्ति जिनका शास्त्रोक्त रीति से विधिवत् अन्तिम-संस्कार नहीं किया जाता है वे सभी "दुर्मरण" की श्रेणी में आते हैं एवं "दुर्मरण" वाले व्यक्तियों के निमित्त "नारायणबलि" कर्म का किया जाना अत्यन्त आवश्यक होता है। शास्त्रानुसार "नारायणबलि" कर्म ना करने से दिवंगत आत्मा को सद्गति  प्राप्त नहीं होती है। 
 
"नारायणबलि" कर्म परिस्थिति सामान्य होने के उपरान्त किसी भी श्राद्धपक्ष में सम्पन्न किया जा सकता है। यदि "नारायणबलि" कर्म किसी तीर्थक्षेत्र या पवित्र नदी के तट पर दिवंगत होने की तिथि से तीन वर्षों के अन्दर सम्पन्न किया जाता है तो इसके शुभफल में अतीव वृद्धि होती है एवं दिवंगत व्यक्ति को सद्गति प्राप्त होने में किसी प्रकार का संशय नहीं रह जाता है। अत: हमारा पाठकों से विशेष निवेदन है कि जिनके परिजन भी "कोरोना" महामारी से दिवगंत हुए हो वे अपनी सुविधानुसार उनके निमित्त "नारायणबलि" कर्म अवश्य सम्पन्न करें जिससे उन्हें सद्गति प्राप्त हो। 
 
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com

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