Crisis of clean drinking water: दुनियाभर के करीब 60 फीसदी लोगों को स्वच्छ पेयजल (clean drinking water) नहीं मिल पा रहा है और इससे उनकी सेहत (health) पर असर पड़ रहा है और उन्हें कई बीमारियां घेर रही हैं। इस संबंध में कराए गए एक सर्वेक्षण कराया गया और इसमें शामिल लोगों से यह जानने की कोशिश की गई कि वे अपने पेयजल को कितना स्वच्छ और सुरक्षित मानते हैं?
नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी और चैपल हिल में यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना के स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अध्ययन में कहा गया है कि जब लोग अपने नल के पानी पर भरोसा नहीं करते तब वे बोतल बंद पानी खरीदते हैं। बोतलबंद पानी बहुत महंगा होने के साथ पर्यावरण के लिए हानिकारक भी होता है, क्योंकि इसकी बोतलें प्रदूषण और ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ाने का काम करती हैं। इस अध्ययन के नतीजे 'नेचर कम्युनिकेशंस' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं।
यह सर्वेक्षण रिपोर्ट साल 2019 में लॉयड्स रजिस्टर फाउंडेशन वर्ल्ड रिस्क पोल से 141 देशों के 1,48,585 वयस्कों के आंकड़ों का उपयोग करके तैयार की गई है। अध्यनकर्ताओं ने पानी की आपूर्ति और इसके नुकसान संबंधी वजहों में बहुत अंतर पाया। यह अंतर जाम्बिया में सबसे अधिक, सिंगापुर में सबसे कम और जिनका कुल औसत 52.3 फीसदी तक था।
बच्चों-बुजुर्गों पर पड़ता है विपरीत असर : सर्वेक्षण में शामिल करीब 1 लाख से अधिक लोगों ने आशंका जताई कि उनको स्थानीय संसाधनों से जो जल उपलब्ध कराया जा रहा है, वह स्वच्छ और सुरक्षित नहीं है। सर्वेक्षण में शामिल 60 फीसदी से अधिक लोगों ने बताया कि उनकी सेहत पेयजल की वजह से खराब हुई है। इस संबंध में उन्होंने मेडिकल दस्तावेज भी प्रस्तुत किए। जिन लोगों को पेयजल की वजह से सेहत संबंधी परेशानी हुई उनमें 72 फीसदी बच्चे और बुजुर्ग शामिल थे। दूषित पेयजल की वजह से लगभग 68 फीसदी महिलाओं की सेहत पर विपरीत असर पड़ा।
Edited by: Ravindra Gupta