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छत्तीसगढ़: हिंदू-मुसलमान, आदिवासी-ईसाई तनाव के बीच बीजेपी-कांग्रेस के सियासी दांव

छत्तीसगढ़: हिंदू-मुसलमान, आदिवासी-ईसाई तनाव के बीच बीजेपी-कांग्रेस के सियासी दांव

BBC Hindi

, गुरुवार, 8 जून 2023 (07:54 IST)
फ़ैसल मोहम्मद अली, बीबीसी संवाददाता, छत्तीसगढ़ से
छत्तीसगढ़ में सांप्रदायिक हिंसा में अप्रैल महीने में एक ही गाँव में तीन मौतें हुईं, बेमेतरा ज़िले के बिरनपुर में मारे गए लोगों में दो मुसलमान थे, और एक हिंदू। राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भुवनेश्वर साहू की हत्या के तीसरे दिन परिवार को दस लाख रूपए और सरकारी नौकरी देने का ऐलान कर दिया।
 
हिंसा में मारे गए मुसलमान पिता-पुत्र रहीम मोहम्मद और ईदुल मोहम्मद को मुआवज़ा नहीं मिला, राज्य सरकार मुसलमानों को मुआवज़ा देने के सवाल पर चुप है।
 
छत्तीसगढ़ अख़बार के संपादक सुनील कुमार कहते हैं, "सत्तारूढ़ कांग्रेस कोई ऐसा काम नहीं करना चाहती जिससे उसकी छवि हिंदू विरोधी की बने या वो मुस्लिम या ईसाई समर्थक दिखाई दे।"
 
कांग्रेस प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला पक्षपात के आरोप को नकारते हैं, वे कहते हैं कि सरकार अपना काम सही ढंग से कर रही है। आनंद कहते हैं, 'पिता-पुत्र के शव जहाँ पाए गए, वहां दंगे के निशान नहीं थे, जाँच हो रही है, अगर उनकी मौत भी दंगे के कारण हुई है तो जैसा पहले वाले के साथ हुआ था वैसा ही दूसरे वाले को भी मुआवज़ा दिया जाएगा।'
 
बढ़ रहा है सांप्रदायिक तनाव
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में मज़बूती से खड़े अल्पसंख्यक समुदायों में हालात को लेकर हलचल है, मुसलमान बाप-बेटे के मुआवज़े का मामला हाई कोर्ट पहुँच गया है।
 
वहीं बस्तर जैसे आदिवासी क्षेत्र में उग्र होती ईसाई-विरोधी राजनीति को लेकर भी तनाव है। बस्तर में हालात इस क़दर ख़राब हो गए हैं कि ईसाई शवों को क़ब्रों से निकालकर बाहर फेंकने जैसी घटनाएँ हुई हैं, सामूहिक क़ब्रिस्तानों में ईसाई धर्म अपना चुके आदिवासियों की लाशों को दफ़न करने से रोका जा रहा है।
 
भुवनेश्वर साहू क़त्ल मामले में हुई कार्रवाई को हालांकि भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह नाकाफ़ी बताते हैं और कहते हैं कि ये ‘तुष्टीकरण’ की नीति के तहत किया जा रहा है।
 
बीजेपी विधायक दल के साथ भुवनेश्वर साहू के पिता ईश्वर साहू से मिलने बिरनपुर गए रमन सिंह ने आरोप लगाया कि इस मामले में 41 लोगों का नाम दिया गया था लेकिन कार्रवाई सिर्फ़ 11 लोगों पर हुई।
 
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हिंसा और बदले की कार्रवाई
छत्तीसगढ़ विधानसभा की कुल 90 सीटों में से बीजेपी के पास जो चौदह सीटें हैं वो इसी इलाक़े के दर्जन भर ज़िलों से आती हैं, जिन्हें मैदानी क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है।
 
घटना के दिन यानी आठ अप्रैल को गांव में साहू समाज की बैठक थी, ये बैठक दो स्कूली बच्चों की आपसी लड़ाई को लेकर बुलाई गई थी। स्कूल में हुई इस लड़ाई में हिंदू और मुसलमान दोनों समुदायों के बच्चे शामिल थे।
 
ईश्वर साहू के अनुसार, साहू समाज की मीटिंग जारी ही थी तभी "डंडा-लाठी, औज़ार लेकर आए लोगों ने हमला बोल दिया, लोग वहां से भागे, मेरा लड़का भी उसी रास्ते निकल गया या उसको खींच कर ले गए।"
 
लगभग 1500 की आबादी वाले बिरनपुर गांव में बाएँ-दाएँ दोनों तरफ़ मंदिरों का समूह है, आगे सीधे जाने पर साहू टोला है। मंदिर के पीछे के हिस्से में पड़ता है मुसलमानों का मोहल्ला और उससे सटा उनका क़ब्रिस्तान।
 
ईश्वर साहू का दो कमरों का घर साहू टोले के भीतरी हिस्से में है, घर की तरफ़ घुसने वाली गली के सामने पुलिस चौकी बन गई है।
 
मंदिर के पास मौजूद 'जय मां शक्ति किराना स्टोर्स' के बाद जो अधूरा बना मकान है उसी में ईदुल मोहम्मद अपने परिवार के साथ रहते थे। मगर अब उनके घर में ताला लगा है। अपने पति और बेटे को हिंसा में खो चुकी शकीला बताती हैं कि ये सब कैसे हुआ।
 
उनके मुताबिक़, 'साहू समाज के व्यक्ति की हत्या के बाद गांव में मचे हंगामे के कारण डरे हुए थे। वहाँ ऐसी ख़बर फैली थी कि बजरंग दल वाले इधर ही आ रहे हैं।'
 
भुवनेश्वर साहू के क़त्ल की वारदात के वक़्त शकीला अपने पति के साथ खेत पर काम करने गई थीं, जहाँ उनके ससुर रहीम का फ़ोन आया जिसके बाद दोनों ने घर लौटने की कोशिश की।
 
लेकिन पुलिस ने उन्हें ये कहते हुए रोक दिया कि उनके घर के आसपास ही बड़ा हंगामा हो गया है और वहाँ जाना सुरक्षित नहीं है।
 
शकीला बी अब गाँव छोड़ चुकी हैं और उनसे हमारी मुलाक़ात पास के ज़िले कबीरधाम के पंडरा में हुई, जहाँ वे छह साल के बेटे वक़ार हसन के साथ इन दिनों रह रही हैं।
 
बेटे की तरफ़ इशारा करते हुए कहती हैं कि 'इसके अब्बू और दादा बकरी लाने बिरनपुर चले गए, उसके कुछ देर बार फ़ोन आया कि दोनों को मारकर जंगल में फेंक दिया है।'
 
पुलिस के अनुसार, रहीम और पुत्र ईदुल का शव सिर, आंख, पीठ, हाथ पर गंभीर चोटों के साथ ख़ून से सना पाया गया। पास में ख़ून लगा पत्थर और डंडा भी पड़ा था।
 
रहीम मोहम्मद की बीवी अल्हाम बी जो कई हफ़्तों बाद गांव लौटी हैं, वे कहती हैं कि वो शौहर और बेटे के कफ़न-दफ़न के लिए पुलिस वाहन में कुछ घंटों के लिए बिरनपुर आई थीं और वापस चली गईं।
 
भुवनेश्वर साहू की हत्या के सवाल पर अल्हाम बी कहती हैं, "जिसने किया उसके घर में घुसते न, उसका बदला हमसे क्यों लिया भाई?"
 
हिंदू वोट और साहू समाज की चिंता
राज्य में राजनीतिक रसूख़ वाले साहू समाज के ईश्वर साहू के घर पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह, बीजेपी विधायकों का दल और हिंदुत्व विचारधारा वाले संगठनों के लोग पहुंचे।
 
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी साहू समाज के प्रतिनिधियों से भेंट की, वहीं अल्हाम बी और शकीला की तरफ़ कांग्रेस समेत किसी भी राजनीतिक दल का ध्यान नहीं गया।
 
बीजेपी ने 2018 विधानसभा चुनावों में तक़रीबन दर्जन भर टिकट साहू समुदाय के लोगों को दिए थे। राज्य के गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू इसी समुदाय से ताल्लुक़ रखते हैं।
 
वरिष्ठ पत्रकार सुनील कुमार कहते हैं कि ऐसा लगता है मानो मुसलमानों की लाशें अदृश्य हों जो भूपेश बघेल सरकार को दिख नहीं रहीं।
 
सुनील कुमार पूछते हैं, "ये बीजेपी को न दिखे, वीएचपी को न दिखे तो समझ में आता है लेकिन कांग्रेस तो छत्तीसगढ़ में बहुत बड़ी पार्टी है, ये पूरा इलाक़ा कांग्रेस का है। नेहरू-गांधी की कांग्रेस पार्टी सांप्रदायिक ताक़तों से डर के चलेगी? इतना हिंदू बनने की कोशिश करेगी?"
 
कांग्रेस के दो क़द्दावर नेता रवींद्र चौबे और राज्य के इकलौते मुस्लिम विधायक मोहम्मद अकबर इसी इलाक़े से हैं। रवींद्र चौबे साजा से विधायक हैं जो बिरनपुर की तहसील है। मोहम्मद अकबर पड़ोसी कबीरधाम ज़िले के कवर्धा से हैं।
 
कवर्धा रमन सिंह का गृह ज़िला भी है, कवर्धा में तक़रीबन डेढ़ साल पहले सांप्रदायिक झड़पें हुई थीं जिनमें कुछ बीजेपी नेताओं के ख़िलाफ़ पुलिस केस भी दर्ज हुए थे।
 
रायपुर में अपने अख़बार के दफ़्तर में पूरे मामले की व्याख्या करते हुए सुनील कुमार कहते हैं, "वहां का तनाव यहां भी फैला हुआ था, लोग वही हैं, पार्टियां वही हैं, राजनीतिक दल वही हैं और अगर लेफ़्ट के एक दो राजनीतिक दलों को छोड़ दें, जिनकी मौजूदगी नाम भर को है, छत्तीसगढ़ में कोई भी ऐसी पार्टी नहीं है जो हिंदुओं को ख़ुश करने की कोशिश में न लगी हो।"
 
सुनील कुमार गाय, गोबर-गोमूत्र ख़रीदी, राम की मां कौशल्या के भव्य मंदिर का निर्माण, 170 करोड़ के ख़र्च से राम वन गमन पथ वग़ैरह को इसी नज़रिए से देखते हैं।
 
उनके मुताबिक़, इन सबके माध्यम से "राज्य की कांग्रेस सरकार अपने-आपको बीजेपी से बड़ा हिंदूवादी साबित करने में लगी है, ऐसे में मुसलमानों और ईसाईयों की चिंता करना या उनके मुद्दों को उठाना राजनीतिक तौर पर सहज नहीं है।"
 
बीजेपी, कांग्रेस, हिंदुत्व विचारधारा वाले संगठन और ख़ुद कांग्रेस की सरकार अपने सियासी फ़ायदे देख रही हो, सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए तीनों लोग आर्थिक रूप से लगभग एक बराबर खड़े दिखते हैं।
 
रहीम और ईदुल बकरी चराने और कबाड़ ख़रीदने-बेचने का काम करते थे। भुवनेश्वर और उनके पिता ईश्वर साहू दिहाड़ी मज़दूरी करते रहे हैं।
 
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट हासिल करने की नाकाम कोशिश के बाद निराश घर लौटे ईश्वर साहू पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई पर सवाल खड़े करते है। उन्होंने पुलिस को 40-50 आदमी का नाम दिए लेकिन साहू कहते हैं कि कार्रवाई नहीं हो रही है।
 
भुवनेश्वर साहू की हत्या के मामले में ग्यारह और मुसलमान बाप-बेटे की हत्या को लेकर आठ लोगों की गिरफ्तारियां हो चुकी हैं।
 
मिली-जुली आबादी वाले गाँव में हिंसा
बिरनपुर की कुल लगभग पंद्रह सौ जनसंख्या में ग्राम पंचायत कार्यालय के मुताबिक़ मुस्लिम आबादी 370 है जिसमें 116 पुरुष हैं।
 
पुलिस ने गांव में हुई सांप्रदायिक हिंसा को लेकर जो आधा दर्जन एफ़आईआर दर्ज की हैं उनमें गांव में जारी विवाद के डर से कई मुस्लिम परिवारों के गांव छोड़कर चले जाने की बात कही गई है, जिनमें सरदार ख़ान, ख़ातून बी के घरों और सेहत्तर ख़ान के वाहन में आग लगाने का ज़िक्र भी है।
 
सांप्रदायिक हिंसा फ़ैलने के पहले दिन यानी आठ अप्रैल को एक सब-इंस्पेक्टर पर मुस्लिम मोहल्ले में ‘हत्या करने की नीयत से पत्थर से जानलेवा हमला’ किए जाने को लेकर भी पुलिस ने अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ एक केस दर्ज किया है।
 
अर्थशास्त्र के शिक्षक और साहू समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से एक डोशन साहू से हमारी मुलाक़ात तहसील मुख्यालय साजा में हुई।
 
प्रोफ़ेसर डोशन साहू से बातचीत के दौरान ये पहलू सामने आया कि गांव में कुछ माह पहले से एक हिंदू युवती और मुस्लिम युवक के प्रेम प्रसंग को लेकर भारी तनाव था, वे कहते हैं, "इस संबंध में थाने में मामला भी दर्ज हुआ, पर लड़की बालिग़ थी इसलिए प्रशासन ने कुछ नहीं किया।"
 
फ़रवरी में हिंदू युवतियों से कथित जबरिया विवाह को लेकर गांव में धर्म सभा का आयोजन हुआ था जिसमें युवतियों को प्रशिक्षण, 'ग़लत कामों' से दूर रहने, काउंसेलिंग दिए जाने पर सहमति बनी थी। मुसलमानों से किसी तरह की लेन-देन न रखने का निर्णय भी गांव में लिया गया था।
 
हिंदू युवतियों और मुस्लिम युवकों के संबंधों के मामले, जिसे हिंदूवादी संगठन 'लव जिहाद' कहते हैं, बीजेपी के लिए एक बड़ा मुद्दा रही है। रमन सिंह ने बिरनपुर में भी ‘बलपूर्वक शादी करने के आतंक’ की चर्चा की।
 
विश्व हिंदू परिषद ने भुवनेश्वर साहू की हत्या को लेकर 10 अप्रैल को छत्तीसगढ़ बंद का ऐलान कर दिया जिस दौरान प्रदेश में जगह-जगह पर 'भुवनेश्वर भैया अमर रहें', 'भुवनेश्वर हम शर्मिंदा हैं, तुम्हारे क़ातिल ज़िंदा हैं' जैसे नारे लगाए गए।
 
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने उस बीच बिरनपुर जाने का प्रयास भी किया लेकिन पुलिस ने उन्हें पहले ही रोक लिया।
 
सैकड़ों किलोमीटर दूर बस्तर में तनाव
बेमेतरा से तक़रीबन चार सौ किलोमीटर दूर है बस्तर। ये क्षेत्र कुछ सालों पहले तक नक्सलवाद का पर्याय माना जाने लगा था लेकिन पिछले चंद सालों में सात ज़िलों वाला ये इलाक़ा धर्मांतरण, घर-वापसी, चर्च पर हमले और ईसाई धर्म अपनाने वालों की लाशों को क़ब्रिस्तान में जगह न दिए जाने जैसी ख़बरों को लेकर चर्चा में रहा है।
 
ईसाइयों के शवों को क़ब्र खोदकर बाहर फेंक देने जैसे कई मामले भी सामने आए हैं, जैसे जानकी सोरी के मामले में हुआ या फिर जिस तरह मुकेश कुमार नरेटी की माँ का शव हफ़्ते भर तक दफ़न के लिए इंतज़ार करता रहा।
 
क़ब्र से निकाल फेंके जाने के बाद जानकी सोरी के शव को दूसरे गाँव में दफ़नाया गया, लेकिन उससे पहले उनकी लाश अस्पताल के मुर्दाघर में कई दिनों तक पड़ी रही।
 
बस्तर के सबसे बड़े शहर जगदलपुर से कोई 35 किलोमीटर दूर है ऐर्राबोर गांव, जिसमें घुसते ही सड़क के बाईं ओर पड़ने वाले क़ब्रिस्तान के बस थोड़ा आगे ही है मुंडरी और चेतू का घर, वो मकान जिसके मुख्य कमरे के दरवाज़े के दोनों तरफ़ की दीवार पर सीमेंट को उकेर कर बड़ा-सा क्रॉस का निशान बनाया गया है।
 
मगर क़ब्रिस्तान से कुछ क़दमों के फ़ासले पर घर होने के बावजूद मुंडरी और चेतू के बेटे सेमलाल को गांव की मिट्टी नसीब न हो सकी।
 
सेमलाल ने मई के दूसरे सप्ताह में आत्महत्या कर ली थी, सेमलाल की भाभी सुकमती के मुताबिक़, गाँव के पुजारी और दूसरे लोग उन पर दबाव बनाने लगे कि वो हिंदू रीति-रिवाज में वापिस आएँ तभी शव को गाँव के क़ब्रिस्तान में जगह मिल पाएगी।
 
पोस्टमॉर्टम के बाद सेमलाल का शव कई दिनों तक अस्पताल के मुर्दाघर में अंतिम संस्कार के इंतज़ार में पड़ा रहा। सेमलाल को गाँव से पैंतीस किलोमीटर दूर जगदलपुर के एक ईसाई क़ब्रिस्तान में उन्हें दफ़नाया जा सका।
 
बीजेपी के दौर में मंत्री रह चुके केदार कश्पय इन घटनाओं को ‘अवैध धर्मांतरण’ के विरुद्ध समाज के जागृत होने के प्रमाण के तौर पर देखते हैं।
 
हालांकि वरिष्ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम का कहना है कि ‘साफ़ दिखता है कि बाहर से उकसाया जा रहा है।’
 
आदिवासियों का धर्मसंकट
सर्व आदिवासी समाज के अध्यक्ष अरविंद नेताम मानते हैं कि ‘सेवा भाव की आड़’ में ईसाई मिशनरियों का ‘अल्टीमेट गोल धर्मांतरण है’ लेकिन वो आदिवासियों को हिंदू बताए जाने को भी ‘सनातनी हमला’ क़रार देते हैं।
 
भूरिया जनजाति से ताल्लुक़ रखने वाले आदिवासी नेता रूपसाईं सलाम का आरोप है कि "गाँवों में जिस तरह चर्च का फैलाव हो रहा है, कुछ लोग समाज के नीति-नियमों और पूर्वजों की परंपराओं को तोड़ रहे हैं, उससे आने वाले दिनों में आदिवासियों के देवी-देवताओं को मानने वाला कोई नहीं रहेगा।"
 
"इन सबसे समाज टूट रहा है इसलिए ‘यहां के समाज का कहना है कि आप अगर दूसरा धर्म अपनाते हो तो आप यहाँ से जाइए।"
 
बीजेपी नेता रूपसाईं को नारायनपुर कैथोलिक चर्च पर साल 2023 जनवरी में हुए हमले के लिए चार महीने की जेल भी काटनी पड़ी, जहां से वो कुछ ही दिनों पहले गांव वापस लौटे हैं।
 
दो जनवरी के हुए चर्च हमले में आदिवासी ग्रामीणों की एक बड़ी भीड़ ने चर्च में तोड़-फोड़ की, परिसर और प्रार्थना हॉल के भीतर लगी ईसा मसीह और मरियम की प्रतिमाओं को कुल्हाड़ियों के वार से तोड़ डाला।
 
ऐसे भी आरोप हैं कि ईसाईयों के पवित्र ग्रंथ बाइबिल से बेअदबी की गई। चर्च हमले में पुलिसकर्मियों को पीटा गया, साथ ही नारायनपुर एसपी सदानंद कुमार के सिर पर किसी भारी चीज़ से हमला किया गया जिससे उन्हें गंभीर चोटें आई थीं।
 
बस्तर इलाक़े के पुलिस महानिरीक्षक सौंदराज पी कहते हैं, "पुलिस को सिर्फ़ सामुदायिक मीटिंग का नोटिस दिया गया था, जो बाद में रैली में तब्दील हो गई, हो सकता है कि उनमें से कुछ ने पहले से ही हमले का मन बना रखा हो, मामले में केस चल रहा है।"
 
बीजेपी के स्थानीय नेता रूपसाईं बताते हैं कि नारायनपुर में जो हुआ वो गोर्रा गांव में एक दिन पहले हुई घटना की प्रतिक्रिया थी जिसमें ईसाई समुदाय से संबंधित आदिवासियों ने दूसरे गांववालों की पिटाई कर दी थी।
 
ये सवाल पूछे जाने पर कि क्या वो ईसाई धर्म अपना चुके ईसाईयों से बस्तर छोड़कर चले जाने को कह रहे हैं, रूपसाईं कहते हैं, "बस्तर से जाने को नहीं कहा गया है, उल्टा वापस आने को कहा गया है।"
 
साल 2008 तक बस्तर की कुल 12 विधानसभा सीटों में से 11 बीजेपी के पास हुआ करती थीं, जो पिछले विधानसभा चुनाव में शून्य पर पहुंच गईं। राज्य के दूसरे आदिवासी बहुल इलाक़े सरगुजा की सभी 14 सीटें फ़िलहाल कांग्रेस के कब्ज़े में है।
 
क्या कहते हैं ईसाई और आदिवासी?
ईसाई पूजारी बेंजामिन मसीह (बदला हुआ नाम) ने 'घर वापसी' (ईसाइयों को दोबारा हिंदू बनाने का आयोजन) जैसे कार्यक्रम में पुलिस के सहयोग का आरोप लगाया।
 
उन्होंने कहा कि सुरक्षाकर्मियों का किरदार ईसाई और दूसरे पक्षों के विवाद में एकतरफ़ा होता है जिसके बाद गांववाले और हावी हो जाते हैं।
 
उनका कहना था कि दबाव बनाने के लिए ईसाई समुदाय के लोगों का राशन-पानी बंद कर दिया जाता है, गांव के तालाब से पानी नहीं भरने दिया जाता है, घर तोड़ने तक की धमकी दी जाती है।
 
पुलिस आईजी सौंदराज पी कहते हैं कि इस तरह के मामले जब भी संज्ञान में आते हैं उन पर उचित कार्रवाई की जाती है।
 
जगदलपुर में हिंदुत्ववादी संगठनों के ज़रिए ईसाईयों और मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार की शपथ दिलवाने के मामलों में भी भूपेश बघेल सरकार पर चुप्पी साधे रहने के आरोप लग रहे हैं।
 
बीजेपी ने डि-लिस्टिंग की माँग भी उठाई है, यानी अनुसूचित जाति की श्रेणी से उन लोगों को बाहर किया जाए जिन्होंने आदिवासियों के मूल नियमों-पद्धतियों को छोड़कर कोई दूसरा धर्म अपना लिया हो।
 
बस्तर क्षेत्र जहां से नक्सलवाद अभी भी पूरी तरह से उखड़ नहीं पाया है, वहां समाज में निर्मित हो रहे नए तनाव की स्थिति को लेकर अरविंद नेताम कहते हैं, "ये आदिवासी समाज में आने वाले दिनों में बहुत तकलीफ़ पैदा करेगा।"
 
कांग्रेस और बीजेपी की आदिवासी बहुल क्षेत्रों में जारी गतिविधियों को आदिवासी नेता अरविंद नेताम वोट का खेल मानते हैं।
 
वे कहते हैं, "दक्षिणपंथी दल केवल ये सोचते हैं कि हमारा वोट बैंक कैसे बढ़े या मज़बूत हो, वो इसके लिए क्रिश्चियन मिशनरियों के विरूद्ध दुष्प्रचार का प्रयोग करते हैं। कांग्रेस का क्या है? आदिवासी है तो वोट देगा ही और अगर धर्मांतरण हो गया तो वोट बैंक और पक्का हो जाएगा।"
 
सर्व आदिवासी समाज ने राज्य में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित 29 सीटों और जहां आदिवासियों के बीस फ़ीसद अधिक मतदाता हैं उन क्षेत्रों में चुनाव मैदान में उतरने का मन बना रही है।

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