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गर्भस्थ शिशु और माता की चिकित्सीय केयर करेगा ये नया ऐप

IIT Roorkee
, बुधवार, 28 दिसंबर 2022 (12:03 IST)
नई दिल्ली, भारतीय शोधकर्ताओं ने गर्भस्थ शिशु और गर्भवती महिलाओं की चिकित्सीय देखभाल के लिए ‘स्वस्थगर्भ’ नामक नया मोबाइल ऐप विकसित किया है। यह ऐप दूरदराज के ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के लिए विशेष रूप से उपयोगी है, जिनके लिए डॉक्टर तक पहुंचना कठिन होता है।

यह गर्भावस्था के लिए विशेष रूप से विकसित किया गया ऐप है, जो चिकित्सकीय रूप से प्रमाणित होने के साथ-साथ विश्वसनीय भी है। इसकी मदद से डॉक्टरों तक तुरंत ऑनलाइन पहुंचा जा सकता है, और चिकित्सीय सलाह प्राप्त की जा सकती है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रुड़की और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के शोधकर्ताओं ने मिलकर यह मोबाइल ऐप विकसित किया है।

मरीज और डॉक्टर दोनों ‘स्वस्थगर्भ’ मोबाइल ऐप का निशुल्क लाभ उठा सकते हैं। यह ऐप गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध है। ‘स्वस्थगर्भ’ चिकित्सीय जटिलताओं को कम करने और गर्भावस्था के दौरान के तनाव और चिंताओं को कम करने में मदद करता है। चिकित्सा के अन्य क्षेत्रों की तुलना में गर्भावस्था संबंधी ऐप्स का प्रचलन अधिक है। आमतौर पर ऐसे ऐप्स केवल गर्भावस्था से संबंधित जानकारी प्रदान करते हैं और इनमें चिकित्सकों की भागीदारी नहीं होती। 'स्वस्थगर्भ' ऐप इस कमी को पूरा करता है और प्रसव-पूर्व देखभाल और सुरक्षित प्रसव के लिए इंटरैक्टिव मंच के रूप में कार्य करता है।

‘स्वस्थगर्भ’ को उन गर्भवती महिलाओं की सहायता के लिए डिजाइन किया गया है, जिन्हें अपने एवं गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए बार-बार अस्पताल जाना पड़ता है। इस ऐप की मदद से मरीज और डॉक्टर के बीच दोतरफा संवाद वास्तविक समय में हो सकता है। ऐप में नैदानिक परीक्षणों और लक्षणों का रिकॉर्ड आसानी से रख सकते हैं। किसी स्वास्थ्य मापदंड के बिगड़ने की स्थिति में ऐप डॉक्टर और रोगी दोनों को अलर्ट भेज देता है।

वीडियो के माध्यम से ऐप महामारी के दौरान एहतियाती सलाह से अवगत कराने में भी उपयोगी हो सकता है। ऐप विकसित करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि कोविड-19 जैसी महामारी की स्थिति में इसके लाभ बढ़ जाते हैं, जब मरीज संक्रमण के जोखिम के कारण अस्पतालों में जाने से डरते हैं, या फिर देशव्यापी लॉकडाउन या अन्य प्रतिबंधों के कारण ऐसा करने में असमर्थ होते हैं।

आईआईटी रुड़की के के शोधकर्ता प्रोफेसर दीपक शर्मा कहते हैं – “उच्च नवजात मृत्यु दर के मामले चिंताजनक हैं। ‘स्वस्थगर्भ’ ऐप गर्भवती महिलाओं को वास्तविक समय पर चिकित्सा सहायता प्रदान करता है। यह मातृ-भ्रूण स्वास्थ्य में सुधार लाने में मददगार हो सकता है। यह ऐप आईआईटी रुड़की की ओर से भारत सहित पूरे विश्व की महिलाओं को एक उपहार है। यह ऐप प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत मिशन में आगे बढ़ने में भी मदद करेगा।”

ऐप की उपयोगिता का मूल्यांकन 150 रोगियों पर किया गया है। प्रसव पूर्व देखभाल की गुणवत्ता में सुधार और जटिलताओं को कम करने में ऐप को उपयोगी पाया गया है। ऐप पर पंजीकृत गर्भवती महिलाओं के मामले में पाया गया है कि प्रसव पूर्व देखभाल संबंधी डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों का बेहतर अनुपालन हुआ है।

शोधकर्ताओं की योजना भविष्य में ऐसी किसी असामान्य स्थिति का अनुमान लगाने के लिए मशीन लर्निंग का उपयोग करने की है, ताकि समय पर प्रभावी हस्तक्षेप किया जा सके।

प्रोफेसर वत्सला डधवाल, प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग, एम्स नई दिल्ली ने कहा, ‘हमारे पायलट अध्ययन से पता चला है कि इस ऐप को गर्भवती महिलाओं के साथ-साथ डॉक्टरों ने भी अच्छी तरह से स्वीकार किया है। हम चाहते हैं कि अधिक से अधिक मरीज और डॉक्टर इसका उपयोग करें, ताकि स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सके’

आईआईटी रुड़की के निदेशक प्रोफेसर के.के. पंत ने कहा है - “कोविड-19 महामारी के कारण स्वास्थ्य सेवा में टेलीमेडिसिन की उपयोगिता तेजी से उभरकर आयी है। स्मार्टफोन, जिसके दुनियाभर में एक अरब से अधिक उपयोगकर्ता हैं, में चिकित्सा क्षेत्र में बदलाव लाने और स्वास्थ्य सेवा में सुधार करने की जबरदस्त क्षमता है।”
ऐप की उपयोगिता के बारे में बताते हुए एम्स नई दिल्ली की डीन (रिसर्च) प्रोफेसर रमा चौधरी ने कहती हैं -“स्वास्थगर्भ ऐप गर्भावस्था में आम समस्याओं के संभावित समाधान प्रदान करने के लिए उपयोगी होगा। हमारा लक्ष्य इस ऐप को देश के हर घर तक पहुँचाकर मातृ एवं भ्रूण जीवन की रक्षा करना है।”

प्रोफेसर दीपक शर्मा और प्रोफेसर वत्सला डधवाल के अलावा इस अध्ययन में आईआईटी रुड़की के शोधकर्ता साहिल शर्मा एवं शालिनी कौशिक; और एम्स नई दिल्ली की प्रोफेसर अपर्णा शर्मा, स्निग्धा सोनी तथा मणि कलईवाणी शामिल हैं। ‘स्वस्थगर्भ’ ऐप के विकास पर केंद्रित यह अध्ययन शोध पत्रिका आईईईई जर्नल ऑफ बायोमेडिकल ऐंड हेल्थ इन्फॉर्मेटिक्स में प्रकाशित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)

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