भारतीय जेलों में क्षमता से बहुत ज्यादा कैदियों को रखा जाता है। वहां कोरोना वायरस के संक्रमण की स्थिति में हालात बेकाबू होने का अंदेशा है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस स्थिति पर चिंता जताते हुए राज्य सरकारों को उनकी रिहाई पर विचार करने का निर्देश दिया है। अदालत ने ऐसे कैदियों को 4 से 6 सप्ताह के पेरोल पर रिहा करने पर विचार करने का निर्देश दिया है जिनको किसी अपराध में 10 साल की सजा हुई हो या उनके खिलाफ तय आरोपों में अधिकतम 7 साल तक की सजा का प्रावधान हो।
कोलकाता के दमदम सेंट्रल जेल के विचाराधीन कैदियों ने जमानत या पेरोल पर अपनी तत्काल रिहाई की मांग में बीते सप्ताह लगातार 2 दिनों तक जमकर हिंसा और आगजनी की। इस हिंसा में कम से कम 4 कैदियों की मौत हो गई।
सुप्रीम कोर्ट इससे पहले भी देश की विभिन्न जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की अमानवीय स्थिति पर चिंता जताते हुए केंद्र व राज्य सरकारों को उनकी तादाद कम करने को कहता रहा है। लेकिन यह पहला मौका है, जब शीर्ष अदालत ने किसी महामारी की वजह से जेलों में बंद कैदियों को पेरोल पर रिहा करने पर विचार करने का निर्देश दिया है। उसने तमाम राज्यों को इसके लिए उच्चस्तरीय समिति बनाने का निर्देश दिया है।
न्यायालय ने राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के हवाले से कहा है कि देश की 1,339 जेलों में लगभग 4.66 लाख कैदी हैं, जो उनकी क्षमता से 117.6 फीसदी ज्यादा है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने साफ कहा है कि कोरोना वायरस के संक्रमण का अंदेशा कम करने के लिए जेलों में भीड़ कम करने की पहल के तहत ही इन कैदियों को पेरोल पर रिहा किया जा रहा है।
जेलों में कैदियों की भीड़ को देखते हुए वहां सामाजिक दूरी बनाए रखना संभव नहीं होगा और अगर जेल प्रशासन ने तत्काल ठोस कदम नहीं उठाए तो हालात भयावह हो सकते हैं।
पश्चिम बंगाल में तमाम अदालतें अप्रैल के पहले सप्ताह तक बंद हैं। इसके अलावा सरकार ने कैदियों से जेल में होने वाली साप्ताहिक मुलाकातों पर भी रोक लगा दी है। नतीजतन जेलों में विचाराधीन कैदियों की तादाद के साथ आतंक भी लगातार बढ़ रहा है।
कोरोना के मद्देनजर जमानत या पेरोल पर रिहा किए जाने की मांग में कोलकाता के दमदम सेंट्रल जेल के कैदियों ने शनिवार और रविवार को लगातार 2 दिनों तक जमकर हिंसा, तोड़फोड़ और आगजनी की। इस हिंसा में कम से कम 4 कैदियों की मौत हो गई और जेलर समेत 20 लोग घायल हो गए।
दूसरी ओर प्रेसीडेंसी जेल में बंद कैदियों ने भी शनिवार रात को रसोईघर में तोड़फोड़ की और प्रदर्शन किया। सरकार ने इस मामले की जांच खुफिया विभाग को सौंप दी है।
पश्चिम बंगाल के जेल मंत्री उज्ज्वल विश्वास बताते हैं कि कोरोना की वजह से अदालतें 31 मार्च तक बंद हैं। इससे जमानत याचिकाओं पर सुनवाई नहीं हो रही है। ऐहतियात के तौर पर परिजनों को मुलाकात के लिए जेल परिसर के भीतर नहीं जाने दिया जा रहा है।
जेल के एक शीर्ष अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं कि सरकार कोरोना के खतरे के चलते आजीवन कारावास की सजा काट रहे कुछ कैदियों को 15 दिनों के विशेष पेरोल पर रिहा करने पर विचार कर रही है। इससे बाकी कैदियों में भारी नाराजगी है।
मानवाधिकार संगठन कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव (सीएचआरआई) ने भी दमदम जेल में हुई हिंसा पर गहरी चिंता जताई है। सीएचआरआई के अंतरराष्ट्रीय निदेशक संजय हजारिका कहते हैं कि न्यायिक हिरासत में भेजे गए विचाराधीन कैदियों की तादाद तुरंत कम करने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए।
कैसे होगी जेलों में भीड़ कम?
सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में एक फैसले में विचाराधीन कैदियों की रिहाई के लिए हाईकोर्टों को विस्तृत निर्देश भी दिए थे। इसके बाद अदालत ने 2016 में भी जेलों में विचाराधीन कैदियों की स्थिति पर चिंता जताते हुए जिला स्तर पर विचाराधीन कैदी समीक्षा समिति गठित करने का निर्देश दिया था।
केंद्र सरकार छोटे-मोटे अपराधों के आरोप में जेल में बंद या 7 साल की सजा में से आधी अवधि गुजार चुके कैदियों को मुचलके पर रिहा करके जेलों में भीड़ कम करने का प्रयास करती रही है।
लेकिन विभिन्न वजहों से अब तक इस मामले में खास कामयाबी नहीं मिल सकी है। 2010 में तत्कालीन कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने जेलों में कैदियों की भीड़ कम करने के लिए छोटे-मोटे अपराध के आरोपों में बंद विचाराधीन कैदियों को निजी मुचलके या जमानत पर रिहा करने की पहल की थी।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर अमल करते हुए एक 3 सदस्यीय आयोग का गठन किया है, जो राज्य की तमाम जेलों के अध्ययन के बाद यह सिफारिश करेगा कि भीड़ कम करने के लिए किन कैदियों को जमानत या पेरोल पर रिहा किया जा सकता है।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष दीपंकर दत्ता की अध्यक्षता में गठित इस आयोग में जेल विभाग के महानिदेशक और प्रमुख गृह सचिव को सदस्य बनाया गया है। हाईकोर्ट ने आयोग से 31 मार्च तक अपनी सिफारिशें सौंपने को कहा है। अदालत ने आयोग से पेरोल पर रिहा किए जा सकने वाले कैदियों के लिए एक मानदंड तय करने को कहा है।
इससे पहले सोमवार को बंगाल के एडवोकेट जनरल किशोर दत्त ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टीबीएन राधाकृष्णनन तो एक पत्र लिखकर विचाराधीन कैदियों की जमानत याचिकाओं पर उदारता से विचार करने का अनुरोध किया था। उन्होंने कहा था कि कोरोना वायरस के संक्रमण को ध्यान में रखते हुए विचाराधीन कैदियों की जमानत की याचिकाओं को शीघ्र निपटाया जाना चाहिए ताकि जेलों में भीड़ कम की जा सके।