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महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि पर जानें 10 रोचक बातें

WD Feature Desk
Maharana Pratap 
 
जन्म- 9 मई 1540 
निधन- 19 जनवरी 1597
 
HIGHLIGHTS
 
* वीर महापुरुष महाराणा प्रताप के बारे में रोचक जानकारी।
* महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया की वीरता का इतिहास।
* 19 जनवरी, भारत के गौरव महाराणा प्रताप की पुण्‍यतिथि।
 
Maharana Pratap Death Anniversary : 19 जनवरी को और मतांतर के चलते 29 जनवरी को भारत के गौरव रहे महाराणा प्रताप सिंह का बलिदान दिवस मनाया जाता है। अदम्य साहस, स्वामिभान के प्रतीक और मातृभूमि के महान रक्षक महाराणा प्रताप की पुण्यतिथि पर आइए यहां जानते हैं उनके जीवन की 10 खास बातें....
 
1. महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 में राजस्थान के कुंभलगढ़ में महाराजा उदयसिंह एवं माता राणी जीवत कंवर के घर हुआ था। प्रतिवर्ष तिथि के अनुसार उनकी जयंती ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। महाराणा प्रताप को मेवाड़ की धरती को मुगलों के आतंक से बचाने वाले वीर सम्राट, साहसी, राष्ट्रभक्त  शूरवीर, राष्ट्रगौरव, पराक्रमी, वीर महापुरुष आदि कई शौर्य गाथा के रूप में जाना जाता है। 
 
2. महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। उनकी लंबाई 7 फीट और वजन 110 किलोग्राम था तथा वे 72 किलो के छाती कवच, 81 किलो के भाले, 208 किलो की दो वजनदार तलवारों को लेकर चलते थे। वे कुटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ, मानसिक व शारीरिक क्षमता में अद्वितीय थे। महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुंदा में हुआ था। 
 
3. सन् 1576 के हल्दीघाटी युद्ध में करीब बीस हजार राजपूतों को साथ लेकर महाराणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के अस्सी हजार की सेना का सामना किया। शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को शक्ति सिंह ने बचाया। यह युद्ध केवल एक दिन चला परंतु इसमें सत्रह हजार लोग मारे गए।
 
4. महाराणा प्रताप के पास उनका एक सबसे प्रिय घोड़ा था, जिसका नाम 'चेतक' था। इस युद्ध में अश्व चेतक की भी मृत्यु हुई। जिसने अंतिम समय में जब महाराणा प्रताप के पीछे मुगल सेना पड़ी थी तब अपनी पीठ पर लांघकर 26 फीट ऊंची छलांग लगाकर नाला पार कराया और वीरगति को प्राप्त हुआ। जबकि इस नाले को मुगल घुड़सवार पार नहीं कर सकें।
 
5. उनके पिता उदयसिंह द्वारा अपनी मृत्यु से पहले ही जब अपनी सबसे छोटी पत्नी के पुत्र जगमाल को अपना उत्तराधिकारी घोषित करना चाहा तब मेवाड़ की जनता ने असहमत होकर इसका विरोध किया तथा तब महाराणा प्रताप ने मेवाड़ छोड़ने का निर्णय किया था किंतु जनता के निवेदन पर वे रुक गए और 1 मार्च, 1573 को उन्होंने सिंहासन की कमान संभाली। उस समय दिल्ली में मुगल शासक अकबर का राज था और उसकी अधीनता कई हिन्दू राजा स्वीकार करने के लिए संधि-समझौता कर रहे थे, तो कई मुगल औरतों से अपने वैवाहिक संबंध स्थापित करने में लगे थे। लेकिन इनसे अलग महाराणा प्रताप को अकबर की दासता मंजूर नहीं थी। इससे आहत होकर अकबर ने मानसिंह और जहांगीर के अध्यक्षता में मेवाड़ आक्रमण को लेकर अपनी सेना भेजी। 
 
6. आमेर के राजा मानसिंह और आसफ खां के नेतृत्व में मुगल सेना और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून, 1576 को हल्दीघाटी का युद्ध हुआ। माना जाता है कि इस युद्ध में न तो अकबर की जीत हो सकी और न ही महाराणा प्रताप की हार हो सकी। मेवाड़ को जीतने के लिए अकबर ने भी सभी प्रयास किए। महाराणा प्रताप ने भी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया था। उन्होंने कई वर्षों तक मुगल सम्राट अकबर के साथ संघर्ष किया। उन्होंने अकबर के घमंड को चूर कर दिया था।
 
7. महाराणा प्रताप हल्दीघाटी के ऐतिहासिक युद्ध के बाद परिवार सहित जंगलों में विचरण करते हुए अपनी सेना को संगठित करते रहे। एक दिन जब उन्होंने अपने बेटे अमरसिंह की भूख शांत करने के लिए घास की रोटी बनाई तो उसे भी जंगली बिल्ली ले भागी। इससे विचलित होकर महाराणा प्रताप का स्वाभिमान डगमगाने लगा। उनके हौसले कमजोर पड़ने लगे। ऐसी अफवाह फैल गई कि महाराणा प्रताप की विवशता ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली। 
 
8. उस समय बीकानेर के कवि पृथ्वीराज राठौड़ ने महाराणा को पत्र लिखकर उनके सुप्त स्वाभिमान को पुन: जगा दिया। फिर महाराणा प्रताप को मरते दम तक अकबर अधीन करने में असफल ही रहा। 
 
9. महाराणा प्रताप का निधन 19 जनवरी 1597 को अपनी राजधानी चावंड में 57 वर्ष की उम्र में हो गई। तब जब धनुष की डोर खींचते समय वह उनकी आंत में लग गई और इलाज के बाद भी उन्हें बचाया ना जा सका। महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार सुनकर अकबर की आंखों में भी आंसू छलक आए थे। 
 
10. आज भी मेवाड़ की शौर्य-भूमि धन्य है, जहां वीरता और दृढ प्रणवाले महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था, जिन्होंने इतिहास में अपना नाम अजर-अमर कर दिया। उन्होंने धर्म एवं स्वाधीनता के लिए अपना बलिदान दिया। आज हम सभी वीरता और सच्चे राष्ट्रनायक महाराणा प्रताप सिंह के बलिदान दिवस पर उन्हें शत्-शत् नमन करते हैं।

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