दिल्ली चुनाव में भाजपा की बड़ी हार के बाद अब मंथन का दौर शुरू हो गया है। भाजपा जिसने दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के लिए जहां एक ओर अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं की पूरी फौज चुनावी मैदान उतार दी तो दूसरी ओर धर्म के आधार पर भी वोटरों के ध्रुवीकरण की कोशिश की। लेकिन चुनाव नतीजे बताते हैं कि जनता ने भाजपा की इस चुनावी रणनीति को बुरी तरह नकार दिया।
दिल्ली में आम आदमी पार्टी की शानदार जीत और भाजपा की बड़ी हार पर वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि दिल्ली चुनाव के नतीजों का साफ संदेश है कि सरकारों को जनता की खुशहाली पर काम करना चाहिए और राजनीतिक दलों को समाज को बांटने वाली भाषा और अभियान से बचना चाहिए।
वे कहते हैं कि दिल्ली चुनाव के नतीजे इन मायनों में बहुत खास हो जाते हैं कि वहां जनता ने केजरीवाल और केंद्र सरकार दोनों के परफॉर्मेंस पर वोट दिया है। दिल्ली में केवल केजरीवाल की सरकार नहीं थी। वहां कानून-व्यवस्था और जमीन से जुड़े मामले सीधे केंद्र सरकार के पास हैं, तो ऐसे में जनता चुनाव में दोनों की परफॉर्मेंस पर वोट कर रही थी।
दिल्ली की इस बड़ी हार के बाद भाजपा के नेताओं को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और उसे लोगों और समाज को बांटने वाले अभियान और बयानों से दूर रहकर अपना ध्यान जनता की भलाई और ऐसे कार्यक्रमों पर फोकस करना चाहिए जिससे लोगों की जिंदगी आसान बन सके।
रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि दिल्ली में मोदी और अमित शाह की तमाम कोशिशों के बाद भी लोगों ने केजरीवाल को पसंद किया और इससे साफ संदेश है कि भाजपा को निगेटिव एजेंडे की जगह लोगों की भलाई के लिए काम करना चाहिए। अब भाजपा को समाज में बंटवारा कर चुनावी लाभ लेना वाली अपनी रणनीति को बदलना होगा।
वे कहते हैं कि दिल्ली चुनाव से साफ संदेश है कि भाजपा आने वाले बिहार और पश्चिम बंगाल चुनाव में निगेटिव एजेंडे की जगह पॉजीटिव एजेंडा पेश करे। वे कहते हैं कि भाजपा ने दिल्ली में वोटरों के जिस तरह धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश की, उसको दिल्ली की जनता ने बुरी तरह नकार दिया और इससे भाजपा को बहुत कुछ सबक लेने के जरूरत है कि वह कम्युनल एजेंडे को अपना चुनावी हथियार नहीं बनाए।