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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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जया बच्चन : छोटी सी गुड्डी का लंबा दूल्हा

जया बच्चन : छोटी सी गुड्डी का लंबा दूल्हा
अमिताभ बच्चन की जीवन-संगिनी जया बच्चन के बारे में जानना भी प्रासंगिक होगा। अभिनेत्री के रूप में जया की भी अपनी विशिष्ट उपलब्धियाँ रही हैं और वे फिल्म क्षेत्र की आदरणीय नेत्रियों में गिनी जाती हैं। आज के अनेक युवा कलाकारों के लिए वे मातृवत स्नेह का झरना हैं। रचनात्मकता को बढ़ावा देना उनका स्वभाव तथा जीवन का ध्येय जैसा है। अभिनय से उन्हें दिली-लगाव है। वे कई वर्षों तक चिल्ड्रन्स फिल्म सोसायटी की अध्यक्ष रह चुकी हैं। रमेश तलवार के नाटक 'माँ रिटायर होती है' के माध्यम से रंगकर्म की दुनिया में उन्होंने अपनी सनसनीखेज वापसी दर्ज की थी। सत्तर के दशक में उन्होंने फिल्म 'कोरा कागज' (1975) और 'नौकर' (1980) में अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार भी प्राप्त किए थे। जया और अमिताभ का परिचय ऋषिकेश मुखर्जी ने अपनी फिल्म 'गुड्डी' के सेट पर कराया था। 


 
जया ख्यात पत्रकार तरुण कुमार भादुड़ी की तीन पुत्रियों में सबसे बड़ी हैं। तरुण कुमार का वास्तविक नाम सुधांशु भूषण था। 1936 में उनके पिता देवीभूषण दिल्ली से स्थानांतरित होकर नागपुर पहुँचे थे। वे रेवेन्यू विभाग में अकाउंट्स ऑफिसर थे। सुधांशु ने त्रिपुरी कांग्रेस में स्वयंसेवक की भूमिका निभाई थी। वह 1942 का साल था, इसलिए राजनीतिक कार्यकर्ता होने के नाते पकड़ लिए गए। जब पुलिस ने गिरफ्तार नौजवानों के नाम नोंद किए तो सुधांशु भूषण ने अपना असली नाम छुपा लिया और अपने आपको तरुण कुमार भादुड़ी बताया। तभी से उनका सुधांशु नाम लापता हो गया। राजनीति के कारण तरुण कुमार को सरकारी नौकरी नहीं मिल सकती थी, इसलिए वे 'नागपुर-टाइम्स' में पत्रकार हो गए। 1956 में जब मध्यप्रदेश बना तो वे 'स्टेट्समैन' के प्रतिनिधि के रूप में भोपाल आ गए। बीच में दो साल चंडीगढ़ और पाँच साल लखनऊ में भी रहे। उनका अधिकांश जीवन भोपाल में ही गुजरा। उन्होंने 1944 में पटना की इंदिरा गोस्वामी से विवाह किया। जया का जन्म 9 अप्रैल 1950 को हुआ। जया की दो छोटी बहनों के नाम नीता और रीता हैं। 
 
जया बचपन से ही जिद्दी स्वभाव की थीं। उन्हें जो चाहिए, वह हासिल कर छोड़ती थीं। वे भोपाल के सेंट जोसेफ कॉन्वेंट में पढ़ती थीं। खेलकूद में भी वे शिरकत करती थीं और 1966 में उन्हें प्रधानमंत्री के हाथों एन.सी.सी. की बेस्ट कैडेट होने का तमगा मिला था। उन्होंने छःसाल तक भरतनाट्यम का प्रशिक्षण भी लिया था। वे दिलीप कुमार की फेन थीं। 
 
हायर सेकंडरी पास करने के बाद जया ने पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट में प्रवेश लिया था, लेकिन इससे पहले ही वे सत्यजीत राय की फिल्म 'महानगर' में काम कर चुकी थीं। फिल्म निर्माता-निर्देशक तपन सिन्हा, तरुण कुमार के अच्छे दोस्तों में थे। उनकी फिल्म 'क्षुधित पाषाण' की जब भोपाल में शूटिंग हुई थी, तब सारी व्यवस्था तरुण कुमार ने की थी। सिन्हा, तरुण कुमार को भाग्यवान (लकी) आदमी मानते थे और अपनी शूटिंग के समय अक्सर उन्हें अपने पास बुलाया करते थे। इसीलिए 'निर्जन सैकते' की आउटडोर शूटिंग के समय उन्होंने अपने मित्र को पुरी बुलाया था। यह 1962 का साल था। पिताजी के साथ जया भी पुरी गई थीं। वे होटल 'बे-व्यू' में ठहरे थे, जहाँ शर्मिला टैगोर और रवि घोष से भी उनकी मुलाकात हुई थी। 

उस यात्रा के दौरान तरुण कुमार जया को साथ लेकर कलकत्ता भी गए थे। वहाँ एक दिन रवि घोष ने आकर कहा कि माणिक-दा ने आप लोगों को भोजन पर बुलाया है। माणिक दा यानी सत्यजीत राय। इतना बड़ा फिल्म निर्देशक बुलाए और कोई नहीं जाए, ऐसा हो ही नहीं सकता। दोनों गए। माणिक दा ने कहा कि 'महानगर' के लिए जया चाहिए। सुनकर जया घबरा गई थीं। उन्होंने कहा कि स्कूल में पता चल गया तो डाँट पड़ेगी। पर बाद में वे मान गईं, क्योंकि फिल्मों की तरफ उनका झुकाव था। फिल्म पूरी होने के बाद सत्यजीत राय ने जया को जो प्रमाण-पत्र दिया था, उसका मजमून कुछ इस प्रकार था : 'अभी तक मैंने जितने भी नवोदित कलाकारों के साथ काम किया, जया उनमें शायद सबसे अच्छी थी।' जया ने फिल्म-इंस्टीट्यूट के आवेदन-पत्र के साथ इस सर्टिफिकेट की प्रति लगा दी थी। प्रशिक्षणार्थियों के चयन के लिए इंटरव्यू दिल्ली में हुए थे। इंटरव्यू लेने वालों में बलराज साहनी, कामिनी कौशल वगैरह थे। उन्होंने जया के कागजात देखने के बाद आपसी बातचीत में कहा था कि अगर इस लड़की को एडमिशन नहीं दिया, तो यह शताब्दी का सबसे बड़ा स्कैंडल बन सकता है (संदर्भ था, सत्यजीत राय के सर्टिफिकेट का)। 
 
जया जब फिल्म इंस्टीट्यूट में पहुँचीं, तब उनके आगे की बैंच पर शत्रुघ्न सिन्हा, रेहाना सुल्तान थे। उनके साथ में डैनी थे। पहली टर्न में ही उन्हें मेरिट स्कॉलरशिप मिल गई। पहली छात्रवृत्ति जया को, दूसरी डैनी को। ऋषिकेश मुखर्जी ने उन्हें देखते ही पसंद कर लिया था। जया इंस्टीट्यूट में पढ़ रही थीं कि बासु चटर्जी अपनी फिल्म में काम करने के लिए उनसे बात करने आए थे। चटर्जी से जया ने कहा था कि कोर्स पूरा करने से पहले कोई भी छात्र फिल्म में काम नहीं कर सकता, ऐसा नियम है। तब चटर्जी ने जया से कहा था कि उनके जैसी कलाकार के लिए इंस्टीट्यूट की पढ़ाई का कोई महत्व नहीं है। छोड़ दो कोर्स। लेकिन जया ने ऐसा नहीं किया था। बासु चटर्जी ने भी उनकी प्रतीक्षा नहीं की थी। 
 
जगत मुरारी जब फिल्म इंस्टीट्यूट के प्रिंसीपाल थे, तब ऋषिकेश मुखर्जी ने उनसे कहा था कि 'गुड्डी' फिल्म के लिए एक अच्छी लड़की चाहिए। जगत मुरारी ने कहा था- जया है ना, जया भादुड़ी। ऋषिदा को अचानक उनका स्मरण हो आया और उन्होंने कहा- जया आदर्श गुड्डी बनेगी। वह जैसे ही पास हो जाए, मैं 'गुड्डी' का काम शुरू कर दूँगा। 15 अगस्त 1970 को भोपाल में भादुड़ी परिवार में पहली बार 'फ्रिज' आया। 16 अगस्त को जया ने मुंबई की गाड़ी पकड़ी और 18 अगस्त को मोहन स्टूडियो में 'गुड्डी' की शूटिंग शुरू हो गई। गुड्डी के सेट पर ही अमिताभ बच्चन, जलाल आगा और अनवर अली से जया की मुलाकात हुई थी। 'गुड्डी' के सेट पर जया को हमेशा यह लगता रहता था कि यह तिकड़ी कोड-लेंग्वेज में मेरे बारे में ही बातें करती रहती है। मिथुन चक्रवर्ती, अमित और जया की जोड़ी को मेड फॉर इच अदर (एक-दूजे के लिए) कहते हैं।
 
1972 से 81 तक जया ने अमिताभ बच्चन के साथ कुल आठ फिल्में की हैं। ये हैं- बंसी-बिरजू/ एक नजर/ जंजीर/ अभिमान/ चुपके-चुपके/ मिली/ शोले और सिलसिला। 'कभी खुशी-कभी गम' में भी वे साथ-साथ आए थे। श्रीमती अमिताभ बच्चन बनने के बाद अपनी पृथक पहचान बनाए रखना लगभग असंभव था, लेकिन जया ने इसे संभव कर दिखाया। इसे उनके व्यक्तित्व की विशिष्टता कहा जा सकता है। अपनी पहली हिन्दी फिल्म 'गुड्डी' में उन्होंने अभिनेता धर्मेन्द्र की दीवानी-लड़की की भूमिका की थी, जबकि दूसरी फिल्म राजश्री की 'उपहार' में ऐसी अल्हड़लड़की का रोल किया था, जो प्रेम और शादी का अर्थ नहीं समझती है। इन दो फिल्मों के बाद ही उन्हें संजीदा अभिनेत्री के रूप में मान्यता मिल गई। 
 
महिला दर्शकों ने जया को सादगी की साक्षात मूर्ति के रूप में ज्यादा सराहा, लेकिन ग्लैमरस भूमिकाओं में (दिल दीवाना) नकार दिया। अपने अपेक्षाकृत छोटे-से करियर में जया ने 'जवानी दीवानी/ अनामिका/ कोरा कागज/ कोशिश/ पिया का घर/ बावर्ची/ गाय और गौरी/ मन का आँगन/ नौकर/ नया दिन-नई रात/ परिचय/ फागुन/ समाधि/ शोर जैसी सात्विक फिल्मों में काम किया।

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