तभी बादशाह अकबर को ध्यान आता है कि वो भी तो बीरबल से किया अपना एक वादा भूल गए हैं। उन्होंने बीरबल से जल्दी से महल में चलने के लिए कहा और महल में पहुंचते ही सबसे पहले बीरबल को पुरस्कार की धनराशी उसे सौंप दी और बोले मेरी गर्दन तो ऊंट की तरह नहीं मुडेगी बीरबल।
... और यह कहकर बादशाह अकबर अपनी हंसी नहीं रोक पाए। ...और इस तरह बीरबल ने अपनी चतुराई से बिना मांगे अपना पुरस्कार राजा से प्राप्त किया।