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2017 में बढ़ा 'भगवा राजनीति' का दायरा

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राजनीति के लिए कैसा रहा वर्ष 2017
अंत भला तो सब भला। लेकिन भाजपा के लिए वर्ष 2017 का अंत तो अच्छा रहा ही, शुरुआत भी उतनी ही अच्छी रही। यदि कहा जाए कि राजनीति में यह वर्ष भाजपा के नाम रहा तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। कांग्रेस के लिए शुरुआत कैसी भी रही हो, लेकिन अंत जरूर सुखद रहा।
 
इस वर्ष कांग्रेस को अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी मिले, वहीं गुजरात में सरकार तो नहीं बनी, लेकिन मनोवैज्ञानिक रूप उसकी जीत जरूर हुई। इसके अलावा भाजपा ने भी 19 राज्यों में सरकार बनाकर भगवा रंग के दायरे को और बढ़ाया।
 
यूपी में भाजपा की रिकॉर्ड तोड़ जीत : मार्च का महीना भाजपा की झोली में बहुत-सी खुशियां डाल गया, जब 4 राज्यों में उसकी सरकार बनी। हालांकि गठबंधन से बनी सरकार वाला राज्य उसके हाथ से फिसला भी, लेकिन सफलता इससे कई गुना ज्यादा बड़ी थी। इस माह भाजपा ने देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश रिकॉर्ड 403 में से 325 सीटें (सहयोगी दलों के साथ) हासिल कर अपनी सरकार बनाई। इसी दौरान भाजपा को योगी आदित्यनाथ के रूप में हिन्दुत्व का नया चेहरा मिला जिनकी ताजपोशी उत्तप्रदेश के मुख्‍यमंत्री के रूप में हुई।
 
कुनबे की कलह में उलझी सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी यहां महज 47 सीटों पर सिमट गई। सपा के ही सहयोग से चुनाव मैदानी में उतरी कांग्रेस दहाई के आंकड़े तक भी नहीं पहुंच पाई। उसे यहां सिर्फ 7 सीटें मिलीं। समाजवादी परिवार की लड़ाई में अखिलेश यादव पार्टी और अध्यक्ष पद पर काबिज होने में सफल रहे, वहीं सपा में मुलायम युग की आधिकारिक रूप से समाप्ति हो गई। मायावती की बसपा यहां तीसरे स्थान पर मात्र 19 सीटें हासिल कर पाईं।
 
जोड़तोड़ का अभूतपूर्व नजारा : इसी दौरान 70 सदस्यीय उत्तराखंड विधानसभा के लिए हुए चुनाव में भाजपा को जबर्दस्त सफलता मिली। एकतरफा 57 सीटें हासिल कर वहां भाजपा की सरकार बनी, जबकि सत्तारूढ़ कांग्रस मात्र 11 सीटें ही जीत पाई। मणिपुर में तो भाजपा ने जोड़-तोड़ का अद्‍भुत नजारा पेश किया। वहां कांग्रेस (28) से कम सीटें (21) हासिल करने के बाद भी उत्तर-पूर्व के इस राज्य में भाजपा ने सरकार बना ली। 
 
जोड़तोड़ का नजारा तो गोवा में भी देखने को मिला, जहां 40 में से 13 सीटें हासिल कर भगवा दल ने सरकार बना ली। हालांकि इसके लिए तत्कालीन रक्षामंत्री म‍नोहर पर्रिकर को मुक्त कर गोवा के मुख्‍यमंत्री के रूप में शपथ दिलाई गई। कांग्रेस यहां 17 सीटें हासिल करने के बाद भी सत्ता से दूर रही। उस समय जोड़तोड़ के लिए भाजपा को कटाक्ष भी झेलने पड़े। तब भाजपा के लिए कहा गया था, 'जहां हम चुनाव जीतते हैं वहां तो सरकार बनाते ही हैं, जहां नहीं जीतते वहां तो निश्चित रूप से बनाते हैं।’
 
कांग्रेस को पंजाब ने राहत दी : कांग्रेस को गोवा और मणिपुर में सत्ता नहीं मिलने की कसक तो रही, लेकिन पंजाब के चुनाव परिणामों ने उसे राहत दी। पंजाब की 117 सदस्यीय विधानसभा के लिए कांग्रेस ने एकतरफा 77 सीटें हासिल भगवा गठजोड़ को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया। अकाली और भाजपा यहां मात्र 18 रनों पर सिमट गए। आम आदमी पार्टी ने भी 22 सीटें हासिल अपनी जबर्दस्त उपस्थिति दर्ज कराई। इसी दौरान कांग्रेस को नवजोतसिंह सिद्धू के रूप में पंजाब में तगड़ा नेता मिला। भाजपा से नाराज होकर कांग्रेस में सिद्धू को मुख्‍यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने मंत्री पद से भी नवाजा। 
 
पंजाब का बदला बिहार में : भाजपा के हाथ से पंजाब की गठजोड़ सरकार निकली, लेकिन 3 माह बाद ही उसने बिहार में नीतीश के साथ मिलकर फिर गठबंधन सरकार बना ली। भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते नीतीश ने लालू से रिश्ता तोड़कर फिर भाजपा से नाता जोड़ने में ही भलाई समझी। इसी बीच भाजपा बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाने में भी सफल रही। कोविंद की शपथ के ही अगले माह यानी अगस्त में केंद्रीय मंत्री का पद छोड़कर वेंकैया नायडू ने उपराष्ट्रपति पद की शपथ ली। तीन तलाक के मुद्दे को भी भाजपा ने अपने पक्ष में जमकर भुनाया।
 
गुजरात में सत्ता बचाई : वर्षांत में दिसंबर का महीना भी भाजपा के लिए खुशियों की सौगात लेकर आया। भाजपा ने गुजरात में जहां अपनी सत्ता बरकरार रखी, वहीं हिमाचल कांग्रेस से छीन लिया। यहां 68 सदस्यीय विधानसभा के लिए भाजपा ने 44 सीटें जीतीं। हालांकि गुजरात की जीत भाजपा के लिए सदमे वाली रही। 150 सीटों का लक्ष्य लेकर चुनावी मैदान में उतरी भाजपा यहां 100 का आंकड़ा भी नहीं छू पाई। वह भी तब जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्‍यक्ष अमित शाह इसी राज्य से संबंध रखते हों। 
 
हिमाचल भले ही कांग्रेस के हाथ से निकला लेकिन गुजरात में कड़े संघर्ष के बाद उसे राहुल गांधी नेता के रूप में मिले। गुजरात का प्रदर्शन कांग्रेस के लिए आत्मविश्वास बढ़ाने वाला रहा जिसका असर 2018 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनावों में देखने को मिले तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। हालांकि भाजपा गुजरात के प्रदर्शन को सबक के रूप में लेती है तो उसके लिए आगे की राह आसान हो सकती है। 

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