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धर्म 2014 : पांच विवाद और पांच संवाद

धर्म 2014 : पांच विवाद और पांच संवाद

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

, सोमवार, 22 दिसंबर 2014 (12:14 IST)
धर्म अब ईश्‍वर और स्वयं की खोज का मार्ग नहीं रहा। धर्म एक व्यापार, जिहाद, धर्मयुद्ध और क्रूसेड है। हर धर्म चाहता है कि संपूर्ण धरती पर हमारे ही धर्मों के लोग रहें इसीलिए वे जिहाद करते हैं, धर्मांतरण करते हैं या मिशनरी की तरह दूसरे धर्मों के लोगों के प्रति लामबंदी करते हैं।

गरीब मुल्कों में धन के बल पर लोगों में फर्क डालते हैं, हथियार बांटते हैं और उनके ही मुल्क के खिलाफ देशद्रोह करना सिखाते हैं। सांप्रदायिक विचारधारा अगले वर्षों में अपने चरम पर जाने वाली है। सांप्रदायिक विचारधारा से कहीं ज्यादा घातक वह विचारधारा है जिसे साम्यवादी और धर्मनिरपेक्ष विचारधारा कहा जाता रहा है। दोनों ही तरह की विचारधारा धर्म का इस्तेमाल बखूबी करना जानती है, क्योंकि लोगों की अक्ल पर पर्दा डला है। 
 
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धर्म का इस्तेमाल राजनीतिक सत्ता हासिल करने के लिए और अपने व्यापार को फैलाने के लिए मध्यकाल में अपने चरम पर था। कहीं-कहीं धर्म ने राजनीति और व्यापार को अपने विस्तार के लिए इस्तेमाल किया। नई कौम, रूहानी कौम, सच्चा मार्ग, ईश्‍वर की कौम के नाम पर कई पंथ चले और आज उनके ही कारण दुनियाभर में अशांति है। हिन्दू धर्म की तरह ही इस्लाम और अन्य सभी धर्म कई फिरकों में बंट गए।
 
बड़बोले बोल : साध्वी निरंजना ने रामजादे और... कहकर कई दिनों तक संसद नहीं चलने दी। यह उतना गंभीर नहीं है जितना कि उनके वचनों से देश का माहौल खराब हुआ। इससे पहले आदित्यनाथ, आजम खान, साक्षी महाराज, प्रवीण तोगड़िया, अशोक सिंघल, इमाम बुखारी, अकबरुद्दीन औवेसी, असदउद्दीन औवेसी, जाकिर नायक और गुजरात के सूफी इमाम मेहदी हुसैन आदि नेताओं सहित कई धार्मिक नेताओं के कुवचनों से सोशल मीडिया भरा रहा। इससे भी खतरनाक बात तो यह कि टीवी चैनल इन लोगों के बयान दिनभर दिखाकर और प्रचारित करते रहे। इन नेताओं की लिस्ट में अमित शाह, अबू आजमी, बेनी प्रसाद वर्मा, गिरिराज सिंह, यूपी के कांग्रेसी नेता इमरान मसूद, उमा भारती, लालू प्रसाद यादव, दिग्विजय सिंह, मुलायम सिंह आदि नेताओं के कारण भी देश का माहौल कहीं न कहीं खराब हुआ।
 
राजनीति का धर्म : यह वर्ष पूरी तरह चुनाव का रहा। इस दौरान राजनीतिक और धार्मिक शक्तियां अपने चरम पर थीं। धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक ताकतें और उनसे जुड़े लोग नहीं चाहते थे कि नरेन्द्र मोदी सत्ता में आएं। यही कारण था कि सोनिया गांधी को इमाम बुखारी की शरण में जाना पड़ा और अरविंद केजरीवाल ने भी मुल्लाओं का दामन थाम लिया था। दूसरी ओर हिन्दू संगठनों, ईसाई मिशनरियों और तबलीगी जमात, बरेली शरीफ और देवबंद जमात में भी बेचैनी लाजमी थी। ऐसे में इस वर्ष धर्म पूर्णत: राजनीति की शरण में ही रहा और हर बार की तरह इस बार उसका व्यापार और आतंकवाद में कंवर्सन भी अच्छे तरीके से किया गया।
 
इस वर्ष हमने संत, पंडित, मुल्ला, मौलवी और इमामों को राजनीति की शरण में और राजनीतिज्ञों को इनकी शरण में जाते हुए भी देखा, क्योंकि इस वर्ष लोकसभा के चुनाव के साथ ही विधानसभा के चुनाव भी अपने चरम पर थे। इस चुनाव में धर्म की बहुत बड़ी भूमिका रही। एक ओर दंगे थे तो दूसरी और लव जिहाद का शोर। खैर, इस सभी को छोड़कर हम बताएंगे उन बाबाओं के बारे में जिनके एक ओर तो हिन्दू धर्म को बदनामी झेलना पड़ी तो दूसरी ओर उसका सकारात्मक रूप भी देखने को मिला। 
 
सोशल मीडिया का धर्म : इस वर्ष फेसबुक और ट्विटर के बढ़ते प्रचलन के बीच हमने एक ओर हिन्दू और मुस्लिम युवाओं का कट्टर चेहरा देखा तो दूसरी ओर ऐसी झूठी पोस्टें भी देखीं जिनको पढ़कर हिन्दू और मुसलमानों के मन में नफरत का विस्तार होता है। इस मीडिया का भयानक रूप तब सामने आने लगा जबकि लड़कियों को जाल में फंसाकर उनको एक देश से दूसरे देश में बेच दिया जाता है और दूसरी ओर इसके माध्यम से आतंकवादियों का एक ऑनलाइन नेटवर्क खड़ा किया जाता रहा है।
 
सचमुच इस मीडिया के माध्यम से अब भारत में बैठा व्यक्ति ISIS के हाथों की कठपुतली बन सकता है तो दूसरे मुल्क के ड्रग्स माफियाओं से आसानी से संपर्क भी कर सकता है। धर्म के नाम पर उधर पाकिस्तान में धर्म का अलग तरह से दोहन किया जा रहा है, किस तरह? यह कहने की बात नहीं है। लेकिन अब हिन्दुस्तान में भी फेसबुक और ट्विटर ने यह काम आसान कर दिया है। देश और धर्म के लिए यह मीडिया बुरा ही साबित हुआ है। 
 
टेलीविजनों का धर्म : टीवी चैनलों ने धर्म का प्रस्तुतीकरण पूरी तरह से बदल दिया है। अब उनके ज्योतिष कार्यक्रम में ज्योतिषियों के प्रस्तुतीकरण और ज्योतिष के अजीबोगरीब झूठे उपायों ने जनता में पहले से कहीं अधिक भ्रम फैला दिया है। एक ओर इस देश में ज्योतिषियों की फौज खड़ी हो गई है, तो दूसरी ओर बाबाओं के आश्रमों का आकार पहले की अपेक्षा और भव्य एवं हाईटेक हो चला है। उत्तर भारत में निर्मल बाबा और दक्षिण भारत में ईसाइयों के धर्म प्रचारक इंजीलवादी बाबा केए पॉल उर्फ पॉल दिनाकरन अभी भी टेलीविजन पर लाइव प्रवचन देते हैं। इस प्रकार एक ओर जहां निर्मल बाबा का उद्देश्य लोगों से पैसे ऐंठना है तो पॉल बाबा का उद्देश्य हिन्दुओं को चंगाई सभा के नाम पर ईसाई बनाना रहा है। 
 
मीडिया द्वारा प्रचारित या कहें कि पैदा किए गए ऋषि और मुनि भी अब एसी बेडरूम और स्वीमिंग पूल का मजा लेते हैं। यू-ट्यूब पर अपने प्रवचन डालकर उन्होंने देखते ही देखते भव्य साम्राज्य खड़ा कर लिया है। धार्मिक चैनलों पर तो दंत मंजन, किताबें, चूर्ण के साथ ही अब धार्मिक ज्ञान और वस्तु्ओं को आधुनिक लुक दिया जा रहा है। चैनलों और अखबारों के माध्यम से 2014 में हमने रुद्राक्ष, माला, पारद शिवलिंग, ताबीज, यंत्र, मंत्र और तंत्र के नए-नए रूप देखे हैं। नवरात्रि और मोहर्रम के मेलों में धार्मिक पोस्टरों और अन्य सामग्रियों के दाम भी उनकी आधुनिक शैली के कारण ही बढ़े हैं। क्रिसमस का बाजार तो पहले से ही चमकदार रहा है। 
 
खैर, हमने तो सुना था कि धार्मिक संत सत्य, अहिंसा, नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं लेकिन वर्ष 2014 में दुनियाभर के पादरियों, संतों, इमामों और बाबाओं के कुकृत्य अखबारों की सुर्खियां बने रहे। दूसरी ओर जहां पाकिस्तान, बांग्लादेश, बर्मा और श्रीलंका में धर्म के नाम पर अल्पसंख्‍यकों पर जुल्म बढ़े, वहीं भारत में दंगों का सृजन किया गया। आओ डालते हैं धर्म और संप्रदाय से जुड़े प्रमुख 10 विवादों के बारे में...
 
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सांईं-शंकराचार्य विवाद : हिन्दुओं के सबसे बड़े धर्मगुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने शिर्डी के सांईं बाबा के खिलाफ विवादित बयान देते हुए उनकी पूजा का विरोध किया जिसके चलते अच्छा-खासा विवाद चलता रहा और अंतत: यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने सांईं-शंकराचार्य विवाद में दखल देने से इंकार कर दिया है। सांईं भक्तों ने अदालत से अपील की थी कि वह शंकराचार्य को सांईं के खिलाफ बयानबाजी से रोकें। मुंबई के सांईं भक्त इस मामले में सुप्रीम कोर्ट गए थे। 
 
शंकराचार्य ने सांईं बाबा को एक अफगानी मुस्लिम बताते हुए उनको वेश्या-पुत्र कह दिया था। शंकराचार्य ने कहा कि पिंडारी बहरुद्दीन, जो अफगानिस्तान का रहने वाला था, वह अहमदनगर आया और एक वेश्या के यहां रहा। वहीं ये चांद मियां पैदा हुए, जो शिर्डी का सांईंबाबा है। शंकराचार्य ने तो सांईंबाबा के बढ़ते भक्तों को संक्रामक बीमारी की तरह बताया। स्‍वरूपानंद ने सांईं बाबा को भगवान मानने से इंकार किया है। उन्‍होंने कहा कि सांईं बाबा अगर हिन्‍दू-‍मुस्लिम एकता के प्रतीक हैं, तो उनकी पूजा मुसलमान क्‍यों नहीं करते हैं। वे संत भी नहीं थे। उन्‍होंने कहा कि सांईं बाबा का मंदिर बनाना भी गलत है।
 
लेकिन सांईं भक्तों का कहना है कि शंकराचार्य झूठ बोलकर लोगों में विभाजन कर रहे हैं। सांईं भक्तों के अनुसार महाराष्ट्र के पाथरी (पातरी) गांव में सांईं बाबा का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके अनुसार सांईं के पिता का नाम गोविंद भाऊ और माता का नाम देवकी अम्मा है। दे‍वकीगिरी के 5 पुत्र थे। पहला पुत्र रघुपत भुसारी, दूसरा दादा भुसारी, तीसरा हरिबाबू भुसारी, चौथा अम्बादास भुसारी और पांचवां बालवंत भुसारी था। सांईं बाबा गंगाभाऊ और देवकी के तीसरे नंबर के पुत्र थे। उनका नाम था हरिबाबू भुसारी।
 
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स्वयंभू संत रामपाल महाराज : हरियाणा के स्वयंभू संत रामपाल को अरेस्ट करने में 26.61 करोड़ रुपए से अधिक खर्च हुए। पुलिस ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट को सौंपी रिपोर्ट में यह बात कही है। 63 वर्षीय रामपाल को कई दिनों की कड़ी मशक्कत के बाद हिसार के बरवाला में स्थित सतलोक आश्रम से अरेस्ट किया गया था। 
 
रामपाल के खिलाफ 2006 में हुई एक हत्या के मामले में अदालती अवमानना के आरोप में गैरजमानती वारंट जारी किया गया था, लेकिन रामपाल के समर्थक उसकी गिरफ्‍तारी के खिलाफ थे। समर्थकों और पुलिस के बीच कई हिंसक झड़पें हुईं। रामपाल को 2 हफ्तों की कोशिश के बाद 19 नवंबर को अरेस्ट किया गया था। इसके अलावा सतलोक आश्रम से कथित तौर पर बंधक बनाए रामपाल के 1,600 अनुयायियों को भी आजाद कराया गया था जबकि रामपाल का कहना था कि मैं तो सरेंडर करना चाहता था लेकिन भक्तों ने ही मुझे बंधक बना रखा था।
 
गिरफ्तारी के बात बाबा के आश्रम को जब खंगाला गया तो पूरा देश हैरान रह गया। समर्थकों को अध्यात्म ज्ञान देने वाला रामपाल भोग-विलास की तमाम सुविधाओं के बीच रहता था। हिसार के बरवाला में लगभग 12 एकड़ में फैले सतलोक आश्रम में रामपाल ने ऐशोआराम की तमाम सुविधाएं जुटा रखी थीं। आश्रम में 800 सीसीटीवी कैमरे लगे थे। जगह-जगह लिफ्ट, आलीशान स्वीमिंग पूल, कई लग्जरी बाथरूम, टॉयलेट, सत्संग हॉल, भोजनशाला, राशन स्टोर, शयन हॉल और लगभग 1,000 से ज्यादा कमरे इस आश्रम में हैं। बताया जाता है कि बाबा यहां धर्म की आड़ में कई तरह के अवैध काम करता था। रामपाल फिलहाल जेल में है और उसके भक्त समझते हैं कि यह कबीर परमेश्वर की लीला है। वे उसे अभी भी भगवान मानते हैं।
 
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आशुतोष महाराज : नवंबर-दिसंबर में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा आशुतोष महाराज के दाह- संस्कार के आदेश देने के बाद जालंधर के आश्रम नूरमहल में भक्तों और पुलिस के बीच तनातनी के हालात बन गए। कोर्ट के आदेश में लंबे समय से फ्रीजर में रखे आशुतोष महाराज के पार्थिव शरीर के दाह-संस्कार करने के आदेश देने के बाद समर्थकों ने इसका गहरा विरोध जताया है। महाराज के समर्थकों एवं आश्रम के सुरक्षा गार्डों ने अपनी मर्जी से आश्रम के सारे रास्ते सील कर दिए।
 
उल्लेखनीय है कि आशुतोष महाराज का पार्थिव शरीर 29 जनवरी से फ्रीजर में रखा हुआ है, वहीं उनके समर्थकों का मानना है कि आशुतोष महाराज समाधि में हैं। पंजाब एवं हरियाणा कोर्ट ने अपने फैसले में दाह-संस्कार करने के लिए कहा था। 
 
इसके चलते संस्थान ने कहा है कि वह इस फैसले को अदालत की दो न्यायाधीशों वाली पीठ में चुनौती देगा। दिव्य ज्योति जागृति संस्थान ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा है कि वे एक न्यायाधीश वाली पीठ की ओर से बीते 1 दिसंबर को दिए गए फैसले को खंडपीठ के समक्ष चुनौती देने के लिए समय चाहते हैं।
 
आशुतोष महाराज के समाधि में लीन मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की ओर से सुनवाई की अगली तारीख 9 फरवरी तय किए जाने के बाद से संस्थान में शांति है। 
 
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धर्मांतरण : दिसंबर में यह मुद्दा भारतीय संसद में गर्म रहा। यह वर्ष पूरी तरह चुनाव का रहा। इस दौरान राजनीतिक और धार्मिक शक्तियां अपने चरम पर थीं। हिन्दू संगठनों द्वारा ईसाइयों और मुस्लिमों के 'घर वापसी' कार्यक्रम से पूरे देश में बवाल मचा हुआ है। हिन्दू संगठनों का आरोप है कि देश में ऐसे सैकड़ों एनजीओ और ईसाई संगठन हैं, जो सेवा के नाम पर आदिवासी और पिछड़े इलाकों में हिन्दुओं को ईसाई बनाने में लगे हैं तथा उन्हीं हिन्दुओं को‍ फिर से हिन्दू धर्म में वापस लाया जाएगा।
 
कई लोग मानते हैं कि पश्‍चिम बंगाल, केरल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और देश के तमाम आदिवासी इलाकों में जिस तेजी के साथ ईसाई मिशनरियों द्वारा हिन्दुओं का धर्मांतरण किया जा रहा था उससे हिन्दू संगठनों में चिंता बढ़ गई थी। ऐसे में नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद धर्मांतरण का वह मुद्दा अपने देश के पटल पर आ गया, जो पिछले 60 वर्षों से तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सरकारों द्वारा नजरअंदाज किया जाता रहा था जिसके चलते देश में 2 करोड़ से अधिक हिन्दू अब ईसाई बन चुके हैं। 
 
आगरा और अलीगढ़ में मुसलमानों का धर्मांतरण कराने के कथित मामले के सामने आने के बाद यह मुद्दा अब संसद में हंगामे का मुद्दा बन गया है। हिन्दू संगठनों का मानना है कि औरंगजेब के काल (1658 से 1707 के बीच) में मजबूरी में मुसलमान बने हिन्दुओं को फिर से घर वापस लाया जाएगा और सभी को आर्य समाजी बनाया जाएगा। सड़क से लेकर संसद तक उत्तरप्रदेश में मुस्लिमों का धर्म परिवर्तन कर फिर से हिन्दू बनाने के मामले पर बवाल मचा हुआ है। हिन्दू संगठनों की आपत्ति है कि संसद में विपक्ष सरकार को घेर रहा है जबकि इससे पहले महाराष्ट्र में धर्मचक्र परिवर्तन और छत्तीसगढ़ में चंगाई सभा का आयोजन कर हजारों हिन्दुओं को ईसाई और बौद्ध बनाया जा रहा था, तब मायावती चुप क्यों थीं?
 
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अयोध्या विवाद : हाल ही में उत्तरप्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने की वकालत करते हुए विवाद खड़ा कर दिया। नाइक ने कहा कि भारतीय नागरिकों की इच्छा के मुताबिक बाबरी मस्जिद की जगह राम मंदिर बनना चाहिए। अयोध्या के फैजाबाद में एक समारोह में नाइक ने बोला, 'जितना जल्दी हो, राम मंदिर बनना चाहिए।'
 
इससे पहले बाबरी-अयोध्या विवाद के मुख्य याचिकाकर्ता हाशिम अंसारी ने बाबरी विवाद की अपनी याचिका कोर्ट से वापस लेने की घोषणा कर दी जिसके चलते मुस्लिम कट्टरपंथी लोग नाराज हो गए। अंसारी ने कहा कि वे इस मसले पर हो रही राजनीति से आहत हैं, साथ ही वे इस विवाद को सुलझाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से बात करना चाहते हैं।
 
अंसारी ने कहा कि वे इस मुद्दे का शांतिपूर्ण हल चाहते हैं तो दूसरी ओर मुलायम सिंह ने अंसारी द्वारा याचिका वापस लेने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। इसका मतलब कि मुलायम नहीं चाहते कि इस मामले का शांतिपूर्ण हल हो? हालांकि इस बार यह अच्छी बात रही कि हिन्दू संगठनों ने 6 दिसंबर को शौर्य दिवस में उत्साह नहीं दिखाया तो दूसरी ओर मुस्लिम संगठनों ने भी काला दिवस नहीं मनाया।
 
मौलाना वहीदुद्दीन खान जाने-माने इस्लामी विद्वान और धार्मिक नेता हैं। उनका शुरू से यह मत रहा है कि मुसलमानों को बाबरी मस्जिद कहीं और बनाकर इस विवाद को हमेशा के लिए खत्म कर देना चाहिए। शिया धार्मिक नेता मौलाना कल्बे जव्वाद कहते हैं कि दोनों बिरादरियों की संकीर्णता की वजह से यह विवाद अभी तक हल नहीं हुआ है। अधिकतर लोगों का मानना है कि यह विवाद इमाम बुखारी और प्रवीण तोगड़िया जैसे लोगों के कारण अभी तक अधर में अटका हुआ है जिसके कारण देश का माहौल खराब हो रहा है जबकि अधिकतर मुसलमान इसका शांतिपूर्ण हल चाहते हैं।
 
6 दिसंबर, 1992 को बाबरी ढांचा गिराया गया था। उसे 'ढांचा' इसलिए कहा जाता है, क्योंकि वहां कभी नमाज नहीं पढ़ी गई। वह बाबर द्वारा हिन्दू मंदिर को तोड़कर बनाया गया एक ढांचा ही था। बाबर एक विदेशी आक्रांता था।
 
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श्री श्रीरविशंकर : आध्‍यात्‍िमक गुरु और 'आर्ट ऑफ लिविंग' के संस्‍थापक श्री श्रीरविशंकर इराक गए। इस वर्ष श्री श्रीरविशंकरजी ने जहां इराक और सीरिया के शरणार्थियों के शिविरों में पहुंचकर उनको भोजन, कपड़े और सांत्वना दी वहीं उन्होंने शिया और सुन्नियों को भाईचारे से रहने का संदेश भी दिया। इसके अलावा दुबई में मुस्लिमों द्वारा आयोजित किए गए एक कार्यक्रम को भी उन्होंने संबोधित किया। आर्ट ऑफ लिविंग के जरिए उन्‍होंने वर्ष 2003 में पहली बार इराकी नागरिकों की मदद की थी।
 
जमीयत उलेमा ए हिंद के जनरल सेक्रेटरी मौलाना महमूद मदनी के बुलावे पर श्रीश्री रविशंकर ने उत्तरप्रदेश में मुस्लिम उलेमाओं को संबोधित किया और सभी को भाईचारे की शिक्षा दी। इस कार्यक्रम में असदउद्दीन औवेसी, स्वामी अग्निवेश भी शामिल थे। पूरे वर्ष श्री श्री ने देश-दुनिया में लोगों के बीच पहुंचकर एकता, नशामुक्त और अहिंसा के लिए सतत कार्य किया। वे नरेन्द्र मोदी के स्वच्छता अभियान और चिदानंद के गंगा अभियान से भी जुड़े हुए हैं।
 
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योग डे : भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयास के चलते दिसंबर में संयुक्त राष्ट्र द्वारा 21 जून को 'वर्ल्ड योग डे' घोषित किया गया। 21 जून को योग दिवस घोषित करने के लिए 177 देशों ने समर्थन व्यक्त किया। इस खबर को सुनकर योग गुरु बाबा रामदेव को सबसे ज्यादा खुशी हुई। योग अब विश्‍व मानव समाज के बीच एक संवाद का काम करेगा।
 
इस घोषणा पर श्री श्रीरविशंकर ने मोदी को शुभकामना देते हुए कहा कि युवाओं को हिंसा से दूर करेगा योग। 'द आर्ट ऑफ लिविंग' ने योग को पिछले 3 दशकों में 152 देशों में फैला दिया है। सारे विश्व में योग के कुल 26,000 शिक्षक हैं। बाबा रामदेव और भारत के तमाम योग गुरुओं की देश-विदेश में कई योगा क्लासेस हैं। अमेरिका में 2 करोड़ से अधिक लोग योग करते हैं।
 
योग दिवस का सुझाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र में अपने भाषण में दिया था और उसके 3 महीने के अंदर ही संयुक्त राष्ट्र ने भारी बहुमत से योग को गले लगा लिया। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में योग को दुनिया के नाम भारत का उपहार कहा था। उन्होंने योग को जलवायु परिवर्तन के हल की तरह भी पेश किया था।
 
संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत अशोक मुखर्जी ने बताया कि जिस तरह का समर्थन इस प्रस्ताव को मिला, वह अपने आप में एक कीर्तिमान है। उनका कहना था, 'जब हम ये प्रस्ताव लेकर आए, तभी 130 देश हमारे साथ आ गए थे और अब जब ये पारित हो गया है तो हमारे साथ 175 देश हैं। वो ये दिखाता है कि इस मामले पर साथ आने की बड़ी दबी इच्छा थी।'
 
संयुक्त राष्ट्र में एक और उच्च भारतीय अधिकारी प्रकाश गुप्ता ने बताया कि अब समर्थक देशों की संख्या 177 हो गई है और अभी कुछ अन्य देश भी जुड़ सकते हैं। योग 5,000 साल पुरानी भारतीय शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक पद्धति है जिसका लक्ष्य शरीर और मस्तिष्क में सकारात्मक परिवर्तन लाना है, साथ ही सतत योग क्रियाओं से मोक्ष पाना आसान हो जाता है।
 
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चिदानंद सरस्वती (मूल नाम श्रीधर राव) : उत्तराखंड के ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती मुनि महाराज की पहल न केवल सराहनीय है बल्कि अनुकरणीय भी है। उनके प्रयास से अभी हाल में ऋषिकेश में गंगा के पावन तट पर यूनिसेफ की मदद से ग्लोबल इंटरफेथ वॉश एलायंस (जीवा) और गंगा एक्शन परिवार की ओर से परमार्थ निकेतन में आयोजित 'आराधना से स्वच्छता की ओर' अभियान पर केंद्रित शिखर सम्मेलन हुआ।
 
गंगा नदी के करीब 2,500 किलोमीटर लंबे किनारे पर बसे गांवों में लगभग 5,000 जैव-शौचालयों (बायो-डायजेस्टर टॉयलेट्स) का निर्माण करने का कार्य भी स्वामी चिदानंद सरस्वती का ट्रस्ट कर रहा है। स्वामीजी गंगा सफाई अभियान से जुड़े हुए हैं।
 
विश्व शांति व पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती मुनि महाराज को 'एम्बेसेडर ऑफ पीस' अवॉर्ड से सम्मानित किया।
 
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अमृतानंदमयी : गुरु माता अमृतानंदमयी को विश्व शांति और गरीबों की सेवा व शिक्षा के कार्य के लिए जाना जाता है। वे प्रवचन देने के बजाय दुनियाभर के लोगों को जादू की झप्पी देकर उनके दु:ख दूर करती हैं। लोगों से जुड़ने का उनका यही संवाद है। गैप ट्रेडवेल और उसके समर्थक माता के पीछे पड़े रहते हैं। ईसाइयों द्वारा निरंतर किए जा रहे धर्मांतरण के चलते माता को बदनाम किए जाने के अनेक बार प्रयास होते रहे हैं।
 
नरेन्द्र मोदी द्वारा सांसदों को गांव गोद लेने की सलाह के बाद मां अमृतानंदमयीजी ने हाल ही में देश के 101 गांवों को गोद लेकर उनके विकास और शिक्षा का संकल्प लिया है। इसके अलावा माता ने सुनामी, भूकंप और अन्य प्राकृतिक त्रासदी से दर-ब-दर हुए लाखों लोगों का पुनर्वास कराया है। उन्होंने हाल ही में उत्तराखंड के लिए 50 करोड़ के पुनर्वास पैकेज समेत कई कल्याणकारी योजनाओं का शुभारंभ किया।
 
माता अमृतानंदमयी के सेवा कार्यों पर कई वृत्तचित्र बन चुके हैं और उनको कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड भी मिले हैं। हाल ही में अमृतानंदमयी को समाज के प्रति अपने योगदान के लिए स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क ने बुधवार को डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया।
 
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मोरारी बापू : आध्यात्मिक गुरु और प्रसिद्ध रामकथा वाचक मोरारी बापू को उनके हिन्दू-मुस्लिम एकता और मानव सेवा के कार्यों के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने उत्तराखंड के पीड़ितों के लिए तन, मन और धन से योगदान किया।
 
मोरारी बापू ने हज जाने वाले यात्रियों के लिए भी अपनी संस्था द्वारा आर्थिक सहयोग दिया। इस बार उन्होंने एक गरीब मुसलमान को हज यात्रा करने के लिए 6 लाख रुपए देकर ऐसी ही मिसाल पेश की।

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