स्वर्गद्वारेश्वर लिङ्ग नवमं सिद्धि पार्वती।
सर्व पाप हरं देवि स्वर्ग मोक्ष फल प्रदम।।
उज्जयिनी स्थित चौरासी महादेव में से एक श्री स्वर्गद्वारेश्वर महादेव की महिमा गणों और देवताओं के संघर्ष व देवताओं की स्वर्ग प्राप्ति से जुड़ी हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार श्री स्वर्गद्वारेश्वर के पूजन अर्चन से इंद्र समेत सभी देवताओं को स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार माता सती के पिता दक्ष प्रजापति ने भव्य यज्ञ का आयोजन किया था। उस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी-देवताओं व गणमान्यों को बुलाया पर अपनी पुत्री सती और उनके स्वामी भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। फिर भी माता सती उस यज्ञ में उपस्थित हुईं। वहां माता सती ने देखा कि दक्षराज उनके स्वामी देवाधिदेव महादेव का अपमान कर रहे थे। यह देख वे अत्यंत क्रोधित हुईं और फलस्वरूप उन्होंने अग्निकुण्ड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए। जब शिवजी ने माता सती को पृथ्वी पर मूर्छित देखा तो वे अत्यंत क्रोधित हुए। उन्होंने उस यज्ञ का नाश करने के लिए अपने गणों को वहां भेजा।
अस्त्र-शस्त्र से युक्त उन गणों का वहां देवताओं से भीषण संघर्ष हुआ। गणों में से एक वीरभद्र ने इंद्र को अपने त्रिशूल के प्रहार से मूर्छित कर दिया। उसके बाद गणों के सामने देवताओं की शक्ति क्षीण होने लगी। गणों से परास्त हो सभी देवता भगवान श्री विष्णु के पास पहुंचे और मदद के लिए अनुरोध किया। देवताओं की व्यथित दशा देखकर भगवान विष्णु क्रोधित हुए और और उन्होंने अपने दिव्य सुदर्शन चक्र से गणों पर प्रहार कर दिया। सुदर्शन चक्र तीव्रता से गणों को नष्ट करने लगा। फिर भगवान विष्णु वीरभद्र की तरफ बढ़े और गदा से प्रहार किया किन्तु गणों में उत्तम वीरभद्र शिवजी के वरदान के कारण नहीं मरा।
विष्णु भगवान के प्रहार से गण भागने लगे और भगवान शंकर के पास पहुंचे। उनके पीछे-पीछे विष्णु और सुदर्शन भी वहां पहुंचे। वहां शिवजी को शुल लिए देख भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र सहित अंतर्ध्यान हो गए। इस प्रकार यज्ञ का विध्वंस हो गया और शिवजी ने अपने गणों को स्वर्ग के द्वार पर बैठा दिया और आज्ञा दी कि किसी भी देवता को स्वर्ग में प्रवेश न दिया जाए। तब सभी देवता एकत्रित हो ब्रह्माजी के पास गए और अपना शोक प्रकट किया।
देवताओं ने ब्रह्मा जी से कहा कि कृपया हमें कोई उपाय बताएं ताकि हमें स्वर्ग की प्राप्ति हो सके। सारी बातें जानकर ब्रह्मा जी ने कहा आप सभी शिवजी की शरण में जाएं और उनकी आराधना कर उन्हें प्रसन्न करें। आप सभी महाकाल वन जाओ, वहां कपालेश्वर के पूर्व में एक दिव्य लिंग है उसकी आराधना करो। तब इंद्र इत्यादि देवता महाकाल वन पहुंचे और उस लिंग के दर्शन किए। उस लिंग के दर्शन मात्र से शिवजी ने स्वर्गद्वार स्थित अपने गणों को हटा लिया और देवताओं को स्वर्ग की प्राप्ति हुई। इसलिए उस लिंग को स्वर्गद्वारेश्वर कहा जाता है।
दर्शन लाभ:
मान्यतानुसार श्री स्वर्गद्वारेश्वर के दर्शन करने से सम्पूर्ण पापों का नाश होता है और स्वर्ग की प्राप्ति होती है। ऐसी भी मान्यता है कि श्री स्वर्गद्वारेश्वर के दर्शन करने से समस्त भय और चिंताएं दूर होती है। प्रत्येक अष्टमी, चतुर्दशी और सोमवार को यहां दर्शन का विशेष महत्त्व माना गया है। श्री स्वर्गद्वारेश्वर महादेव मंदिर उज्जैन में खण्डार मोहल्ले के पीछे नलियाबाखल के पास स्थित है।