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84 महादेव : श्री कपालेश्वर महादेव(8)

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तस्मिनक्षेत्रे महलिङ्गम गजरूपस्य सन्निधौ।
विद्यते पश्य देवेश ! ब्रह्महत्या प्रणश्यति।।
उज्जयिनी स्थित चौरासी महादेव में से एक श्री कपालेश्वर महादेव की महिमा के साक्षी स्वयं महादेव हैं। श्री कपालेश्वर महादेव की आराधना कर स्वयं महादेव का ब्रह्म हत्या दोष निवारण हुआ।

पौराणिक आधार एवं महत्व:
पौराणिक कथाओं के अनुसार त्रेता युग में एक बार ब्रम्हाजी यज्ञ कर रहे थे। यह यज्ञ महाकाल वन में किया जा रहा था। वहां ब्राह्मण बैठे थे एवं आहुतियां दे रहे थे। तब शिवजी भस्म धारण कर कपाल हाथ में लिए हुए विकृत रूप में वहां पहुंचे। उन्हें इस रूप में देखकर ब्राह्मण अत्यंत क्रोधित हुए और उनका अनादर किया। तब कापालिक वेष धारण किए शिवजी ने ब्राह्मणों से अनुरोध किया कि ब्रह्म हत्या पाप के नाश करने हेतु मैंने कपाल धारण करने का व्रत लिया है। यह व्रत पूर्ण होने पर में सद्गति को प्राप्त होऊंगा।
 अतःमुझे कृपा करके आपके साथ बैठने दें। तब ब्राह्मणों ने उन्हें इंकार कर वहां से जाने के लिए कहा। इस पर शिवजी ने कहा थोड़ी देर मेरी प्रतीक्षा करो, मैं भोजन करके आता हूं। तब ब्राह्मणों ने उन्हें मारना शुरू कर दिया। इससे उनके हाथ में रखा कपाल गिर कर टूट गया। इतने में वह पुनः प्रकट हो गया। ब्राह्मणों ने क्रोधित होकर कपाल को ठोकर मार दी। जिस स्थान पर कपाल गिरा वहां सैकड़ों कपाल प्रकट हो गए। ब्राह्मणों ने उन कपालों को फिर फेंका तो करोड़ों कपाल हो गए। तब आश्चर्य को प्राप्त ब्राह्मण समझ गए कि यह कार्य महादेव का ही है।
 
फिर ब्राह्मणों ने शतरुद्री आदि मन्त्रों से हवन किया। तब महादेव प्रसन्न हुए और ब्राह्मणों से वरदान मांगने को कहा। तब ब्राह्मणों ने कहा कि अज्ञानतावश हमसे बहुत बड़ा अपराध हुआ है, हमसे ब्रह्म हत्या हुई है, कृपया दोष का निवारण बताएं। प्रतिक्रिया में महादेव ने कहा कि जिस जगह कपाल को फैंका है वहां अनादिलिंग महादेव का लिंग है जो समयाभाव से ढंक गया है। उस लिंग का दर्शन करने से ब्रह्म हत्या का दोष दूर होगा।
 
शिवजी आगे ब्राह्मणों से कहते हैं कि एक बार ब्रह्मा का पांचवा सिर काट देने पर उन्हें ब्रह्म हत्या का दोष लगा था और ब्रह्मा का मस्तक उनके हाथ में लग गया था। उस दोष ने उनके अन्तःकरण को क्षोभ से भर दिया था और उस दोष को दूर करने के लिए उन्होंने कई तीर्थ स्थलों की यात्रा की किन्तु ब्रह्म हत्या दूर नहीं हुई। तब आकाशवाणी ने बताया कि महाकाल वन में गजरूप के पास दिव्य लिंग है उसकी पूजा करो। तब वे वहां आए और उस दिव्य लिंग के दर्शन करने पर उनके हाथ से ब्रह्मा का कपाल नीचे पृथ्वी पर गिर गया। उस लिंग का नाम कपालेश्वर रखा गया। शिवजी के कहे अनुसार ब्राह्मणों ने उस लिंग के दर्शन कर पूजा-अर्चना की और उनके समस्त पाप नष्ट हो गए।
 
दर्शन लाभ:
ऐसा माना जाता है कि श्री कपालेश्वर के दर्शन से कठिन मनोरथ पूर्ण होते हैं व पापों का नाश होता है। चतुर्दशी के दिन इस लिंग के पूजन का विशेष महत्त्व माना गया है। श्री कपालेश्वर महादेव का मंदिर उज्जैन में बिलोटीपुरा स्थित राजपूत धर्मशाला के पास स्थित है।
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